दुनिया के रंगों मई रंगा था मेरा बचपन ,न कोई गिले ,न किसी से शिकवे शिकायत
बस खुस रहना ,हँसाना यही तो जिंदगी थी
देखते ही देखते यौवन ने आ घेरा मुझको
मै भी दुनिया से मुखातिब होने लगा
स्कूल पढ़ने से फुरसत ही न रहा
दोस्तों के समय भी घटने लगे
धीरे धीरे एकाकीपन सी आने लगी
फिर एक दिन छुट गया गावं ,छुट गए बचपन के दोस्त
डगर हो गई कठिन ,
दुनिया की भीड़ मे हो गया शामिल शहर महानगर जिंदगी इन्ही के बीच पिसने लगी
गावं अब पुराना सा लगने लगा ,
दोस्तों के नाम ख्यालो मे भी आने से परहेज़ करने लगे ,
फिर एक दिन हो गई शादी , रम गया अपने आप मे
भूलने लगा रिश्ते नातो को
जिंदगी के ढंग ही बदलने लगे
गावं दोस्त तो कब के छुट चुके थे अब छुटने लगे अपने भी
माँ ,पिता ,भाई ,बहन , अब लगने लगे पराये से
याद भी उनकी यदा कदा ही आती थी ,
फिर आ गए घर नए मेहमान
बस फिर भूल गया सारे रिश्ते को
ये बीते ज़माने से लगने लगे ,
अपने भी कोसो दूर हो गए
बढ़ता गया जीवन , बढ़ती गई दुरी
गावं ,समाज ,माँ ,बाप तो कब के छुट चुके थे
अब छुट गई वो भी
बड़े हो गया नन्हे मेहमान
लेकिन वो भी दिल से दूर जाने लगे
उनकी भी हो गई नई जिंदगी
अकेला हो गया मैं ,
फिर याद आया गावं ,बचपन और बचपन के अल्हड़पन भरे दिन ,
एक कसक सी उभर आई दिल मे
याद आने लगे रिश्ते ,नाते ,अपने
पास जाने को करने लगा दिल अपनों के बीच
मगर चाह कर भी नही जा सका
टूट गए सरे अरमान ,
छुट गए सरे दिल ऐ साजो सामान
फिर न रहा पास वो शाहर ,न रहे शाहर के चाहने वाले लोग
फिर चल पड़ा एक दिन मैं , एक अंजानी राह पर
मंजिल का पता नही पर बस चल पड़ा
छुट गई शाहर की जिंदगी
रास्ते मे याद आने लगे अपने
अपनों के बीच पाने को बेताब होने लगा मन
दिल चाह कर भी उनसे दूर न जा सका
फिर आ गई याद गावं की ,चल पड़ा राह वो अनजान छोड़
उस राह पर ,जहाँ था गावं मेरा
थे मेरे अपने नाते -रिश्ते ,थे मेरे अपने दोस्त यार
जम गई फिर वही महफिल ,
और फिर आ गया मेरा गावं ,आ गया मेरा गावं