कभी - कभी मैं सोचता हूँ की आखिर हमारा समाज आज किस ओर जा रहा है. आजकल एक चीज़ का समाज के साथ बड़ा घनिष्ट सम्बन्ध हो चुका है और इसकी घनिष्टता बढ़ती ही जा रही है. मैं बात कर रहा हूँ शराब की जिसे भदेस भाषा में दारु भी कहते हैं. या यूँ कहें की आज समाज और शराब के बीच बहुत ही कमाल का सम्बन्ध विकसित हो चुका है. चुनाव में या किसी खास तरह के उत्सवों के दौरान पीया जाने वाला शराब आजकल हर समय अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहा है.मैं बहुत कुछ तो कहना नहीं चाहूँगा लेकिन एक व्यथा जो मन में बार-बार उभरकर आती है उसका वर्णन जरुर करूँगा. कुछ दिनों से मैं अपने शहर और गांव में होने वाले पर्व-त्योहारों में पूरी तरह से संलग्न रह रहा हूँ, इसे भी मैं अपना किस्मत ही मानता हूँ की इस भागदौड़ वाली जिंदगी में यह मौका मुझे मिल पा रहा है. मैं एक चीज़ जो हर पर्व के दौरान देख रहा हूँ की आजकल बिना दारू के पर्व अधूरा है. और अगर किसी को कहें की कम से कम इस दौरान दारू का सेवन न करें तो फिर आपसे बुरा कोई नहीं. एक प्रश्न जो मुझे बहुत परेशान करता है की आखिर हमारा समाज जा कहाँ रहा है. दारु के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार रहते हैं. रोटी और बेटी नहीं वरन दारू सबसे जरुरी हो गयी है. मैं बीते दिनों की एक बात कहना चाहता हूँ. मेरे आसपास समाज में ही कोई समारोह था, सारी तैयारी हो चुकी थी. लोग बाग़ भी आने लगे थे. पर कुछ लड़के जो उस समारोह के मुख्य कार्यकर्त्ता थे पता नहीं अचानक कहाँ गायब हो गए. थोड़ी देर बाद वो आये तो मैंने पूछा की क्या भाई कहाँ चले गए थे उनमे से जो सबसे छोटा था वह कहता है की मूड बनाने गए थे. आप खुद अंदाज लगा सकते हैं की कहाँ जा रहे हैं हम और कहाँ जा रहा है हमारा समाज. नैतिकता की परिभाषा अगर यहाँ पर राखी जाये तो शायद उसे भी शर्म आ जाये. दुर्गापूजा हो या सरस्वती पूजा इस दौरान अगर कुछ जरुरी है तो वह है दारु. पता नहीं लोग क्या सोच रहें हैं या किस तरह की सोच है उनकी लेकिन अगर यह नजारा रहा तो वह दिन दूर नहीं जब फिर से हम गुलाम हो जायेंगे. घर तो बर्बाद हो ही रहा है इससे देश को बर्बाद होने में भी दिन नहीं लगेगा. आखिर में एक ही सवाल है की क्या दारू इतनी जरुरी है जो हम उसका गुलाम बनते जा रहे हैं. सोच को बढ़ाना होगा और एक स्वस्थ समाज और देश का निर्माण करना होगा. विचार का विषय है, गंभीरता से सोचना होगा नहीं तो परिणाम तो हमें पता ही है.