सांसदों का सदन से गायब रहना कोई नई बात नही है ,अरे आख़िर जनता के प्रतिनिधि है जनता को भी समय तो देना ही है और संसद में उपस्थित रह कर तो चुनाव नही ही जीता जा सकता है ये तो हुआ एक मामला .अब चलये दूसरी तरफ़ भी निगाह डालते है .कल यानि की बिता हुआ ३० नोवंवर को जो हुआ वो एक नया तो नही लेकिन जबरदस्त झलक थी की कितने हिमायती है हमारे सांसद हमारे लिए उनके लिए हमसे नजदीकी कितना जरूरी है उस चीज़ का शानदार परिचय दिया है इन लोगो ने .संसद में प्रश्नकाल के दौरान कुछ प्रश्न पूछे जाते है ,हर किसी का दिन सुनिश्चित रहता है इसके लिए फिर भी वो इस दिन अनुपस्थित रहते है , कल भी लगभग १७ विषयो पर प्रश्न पूछा जाना था लेकिन जो हुआ वह एक तरह से अलग ही वाकया था ,लगभग ३२ सांसद आनुपस्थित रहे स्पीकर नाम पुकारते रहे पर कोई रहता तो न जबाब देता कोई था ही नही .कई लोगो ने अनुपस्थिति का कारण यात्रा में देरी को बताया तो कई लोगो का जबाब था की बकरीद मिलन के कारण कार्यक्रम था इसलिए देर हो गया .लेकिन अगर एक बात पर गौर करे तो इसमे नुकसान तो आम लोगो का ही हुआ ,संसद को चलाने में प्रतिदिन करोड़ो रूपये खर्च होते है और वो होता है आम जनता का तो बात तो बराबर है नुकसान तो आम लोगो का ही हुआ .दूसरी बात हर सांसद अपने प्रश्न में अपने इलाके की समस्या को जरूर उठाता है और उठाये भी कैसे नही आख़िर जनता को जबाब भी तो देना है सरकार का धयान भी तो दिलाना है अपने इलाके की तरफ़ तो ऐसे में अगर सांसद ही अनुपस्थित रहे तो सवाल कौन उठाएगा घाटा तो जनता का ही है .देश में हर लोगो को सही से खाने और रहने की सुविधा नही है और वो इसकेलिए अपने जनप्रतिनिधि पर आश्रित रहते है की वो उन्हें ये चीज़े मुहैया कराएँगे पर यहाँ तो हालत ऐसे है आख़िर क्या होगा हमारे देश का .ये सवाल हर उस लोगो को सोचना चाहए जो इस व्यवस्था से तालूकात रखते है .
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