Jan 9, 2012

क्या यह पर्व कुछ राह दिखायेगा ?

भारत में चुनाव से बड़ा पर्व शायद ही कोई हो, और हर आम को इसका इन्तजार रहता है. और अभी तो देश के पांच राज्यों में चुनाव की घंटी बज गयी है तो लाजिमी है की मेले की तैयारी भी हो रही होगी. मेले की  तैयारी तो हो ही रही है और तमाशबीन भी अपने-अपने उपकरणों के साथ मैदान में आ चुके हैं, अब तो पूरे देश को इन्तजार है, इस मेले में आने वालों का. और अगर इसको मीडिया में जगह न मिले तो यह अधूरा सा लगता है.खासकर उत्तरप्रदेश इस बार कुछ खास की उम्मीद है और पूरा मैदान पट गया है. बीजेपी, कांग्रेस, सपा और बसपा तो मैदान में ख़म ठोक ही रही है साथ ही साथ कई छोटे और मझोले दल भी ताल पर ताल दे रहे हैं. सब को सपने में लखनऊ का ताज  नजर आ रहा है और अगर आ रहा है तो वह गद्दी जिसपर वो राज करें और देश दुनिया में अपना रुतबा जाहिर कर सकें. लेकिन इस बार ताज किसके सर लगेगा यह कहना बड़ा कठिन है. लेकिन एक चीज़ जो सबसे ज्यादा दिख रही है वह यह की हर दल जीत के लिए ही प्रयत्नशील हैं राज में नीति गायब सी दिख रही है. बड़ा दुःख होता है रोज चलने वाले बहस में पार्टी के नेता अपने को बेदाग बताते हैं और बहस के बाद दागियों की जमात में भोज खाते नजर आते हैं. टीवी पर जिसे गाली देते नहीं अघाते टीवी के बाद उसके साथ गलबाहियां करते नजर आते हैं, हर पार्टी की चाल तो बदली ही है अब उनका चरित्र भी बदल गया है. ईमानदार तो कोई नजर नहीं आता और अगर आता भी है तो वह मुश्किल से ही नजर आता है. क्या चुनाव में एक दल या एक व्यक्ति ऐसा भी हो जाता है, जो अपने लोगों के साथ-साथ अपने ईमान और धर्म को भी भूल जाएँ. वाह रे लोकतंत्र और इसकी पूजा करने वाले जो किसी की तकदीर क्या बदलेंगे  खुद की नयी तस्वीर ही बनाने में मशगूल हैं. खुद पर दया आती है की क्या हम ऐसे ही जमात को अपना प्रतिनिधि बनाते रहेंगे या फिर कुछ बदलाव भी लेन की सोचेंगे. चुनाव तो हर साल आते हैं लेकिन बदलता कुछ भी नहीं है, पता नहीं यह कब बदलेगा और क्या सच में भी कुछ बदलने वाला है. देखिये और चार मार्च का इन्तजार कीजिये और फिर लोकतंत्र के बारे में भी कुछ ख्याल कीजिये. आज बस इतना ही आप भी जरुर अपनी राय दें और बदलाव की शुरुआत करें. 

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