बूढ़ी हड्डी में आई नई जवानी है
अडवाणी ने फिर एक जिद ठानी है,
निकल पड़ें हैं रथ लेकर
जनता को जगाने
भ्रष्टाचार, महंगाई
को देश से भगाने
घूम रहे हैं शहर-शहर
कर रहे हैं लोगों की जय-जय कार
प्रधानमंत्री बनने की हो रही है तैयारी
पर पार्टी के लोग ही पड़ रहे हैं भारी,
मन में रेसकोर्स का तूफान है
पीएम की कुर्सी में ही बसती अब उनकी जान है.
टीवी-पेपर पर जारी है बहस,
लेकिन नेताजी दिखते हैं बेबस
हर ओर तमाशा चालू है,
यह आदमी थोड़ा दयालु है,
रथ का पहिया घूम रहा
नेताजी का मन झूम रहा,
बढ़ने लगा है विश्वास,
अबकी बहुत है आस
बस एक मौके की है तलाश,
क्या नेताजी का सपना बनेगा झकास,
या फिर हो जायेंगे नेताजी खल्लास?
अब तो समय बताएगा
की नेताजी मुस्कुराएंगे
या फिर हारकर राजनीति से बाहर हो जायेंगे
करें इंतजार, होगा कुछ अद्भुत चमत्कार
शायद हो जाये नेताजी का बेड़ा पार?