Dec 8, 2009

राहुल के बयान का मतलब


राहुल गाँधी आजकल खूब दौरे पे है ,कभी उत्तरप्रदेश कभी पंजाब तो कभी झारखण्ड .झारखण्ड में तो फिलहाल चुनाव भी चल रहे है तो वहां तो दौरा करना ही चाहिए .राहुल गाँधी तो लगातार विकास की राजनीती की बात भी कर रहे है ,वो अपने बयानों को लेकर भी खूब सुर्खियों में रहते है ,इधर भी झारखण्ड में चुनाव प्रचार में जो उन्होंने कहा वो देश की एकता और केन्द्र राज्य संबंधो में आपसी खीचतान को स्पस्ट करती है .झारखण्ड के लातेहार में एक चुनावी सभा में कांग्रेस के प्रत्यासी के लिए भाषण में उन्होंने कहा की उत्तरप्रदेश ,बिहार ,और झारखण्ड में कांग्रेस की सरकार नही है इसलिए केन्द्र से पैसा नही पहुँच पाता है ,राहुल यहाँ इस बात को भूल गए की ये बात इन तीन राज्यों को लेकर ही नही और भी जगह के लिए हो सकती है जहाँ कांग्रेस की सरकार नही है .कुछ दिन पहले कुछ दिन क्या अभी भी बिहार के मुख्मंत्री नीतीश कुमार येः आरोप लगाते है की केन्द्र सरकार बिहार के साथ सौतेला बर्ताव कर रही है जिसके कारणबिहार को जो उचित राशिकेन्द्र की और से मिलनी चाहिए वो नहीं मिल पा रहा है .बिहार में पिछले साल आई बाढ़ को लेकर भी नीतीश ने यही बात कही थी वो हमेशा से एक ही आरोप लगा रहे है ,इसके जबाब में केन्द्र सरकार का कहना है की बिहार को उचित राशि दी जाती है पर वो उसका उपयोग नहीं कर पाता है ,बात किसकी माने यहाँ पर नीतीश कुमार की या केन्द्र सरकार की अगर नीतीश की बात पर गौर करे तो राहुल गाँधी के इस बयान ने इस चीज़ को स्पस्ट कर दिया है की केन्द्र वास्तविक में कुछ दूजे ढंग का बर्ताव कर रहा है .राहुल गाँधी एक तरफ़ तो ये कहते फिर रहे है की उनका लक्ष्य देश का विकाश है दूसरी तरफ़ इस तरह का बयान देते है तो क्या राहुल की मनसा वास्तविक में कुछ और ही तो नहीं है .देश का विकाश तभी हो सकता है जब राज्य विकसित हो और राज्य तभी विकसित हो सकते है जब केन्द्र और उसके सम्बन्ध अच्छे हो ,विकास योजनाओ का लाभ मिले उसे .लेकिन एक बात जो सही है की राजनीति में कुछ भी हो सकता है तो शायद ये सही है .कम से कम राहुल के इस बयान ने तो कुछ कह ही दिया है इस लोकोक्ति को लेकर .

Dec 4, 2009

कांग्रेस की बिहार स्थिति

कांग्रेस पार्टी द्वारा राज्यों में जल्द ही पार्टी संगठन के चुनाव कराने जाने के आसार है ,पार्टी का अगला लक्ष्य उत्तरप्रदेश में २०१२ का विधानसभा और बिहार में २०१० के विधानसभा चुनावों पर है ,उत्तरप्रदेश में तो पार्टी को कुछ सफलता भी इस लोकसभा चुनाव के दौरान मिली थी लेकिन बिहार में अपने पुराने सहयोगियों से अलग होकर ख़ुद चुनाव लड़ना पार्टी के लिए कोई खास कामयाबी भरा नहीं रहा .पार्टी की स्थिति बिहार में कुछ अच्छे नहीं है ,यहाँ पार्टी में ऐसा कोई नेता नहीं है जो कम से कम पांच सीट भी जिताने की कुव्वत रखता हो .ख़ुद पार्टी के प्रदेश प्रमुख जगदीश शर्मा का वोटरों पर तो जाने ही दीजिये अपनी पार्टी के लोगो पर ही कोई खास नियंत्रण नहीं है .पार्टी की स्थिति एक तरह से कहा जाए तो अभी असमंजस वाली ही है की अगले चुनाव में क्या ख़ुद अकेले ही लड़ा जाए या फिर किसी से गठबंधन कर के ?पार्टी के कई नेता तो गठबंधन के फिराक में है लेकिन आलाकमान के कड़े रुख के सामने कोई कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं कर रहा है .पिछले लोकसभा में पार्टी को महज २ सीट ही मिल सका जो पिछली बार ४ था .पार्टी ने एक चीज़ जो बिहार में पायी वो ये क्या की उसके पुराने वोटर धीरे धीरे उसका साथ पकड़ रहे है ,लेकिन पार्टी को कोई खेवनहार नहीं मिल रहा है जो उसका पारघाट लगा सके ,.

Dec 1, 2009

घाटा किसका

सांसदों का सदन से गायब रहना कोई नई बात नही है ,अरे आख़िर जनता के प्रतिनिधि है जनता को भी समय तो देना ही है और संसद में उपस्थित रह कर तो चुनाव नही ही जीता जा सकता है ये तो हुआ एक मामला .अब चलये दूसरी तरफ़ भी निगाह डालते है .कल यानि की बिता हुआ ३० नोवंवर को जो हुआ वो एक नया तो नही लेकिन जबरदस्त झलक थी की कितने हिमायती है हमारे सांसद हमारे लिए उनके लिए हमसे नजदीकी कितना जरूरी है उस चीज़ का शानदार परिचय दिया है इन लोगो ने .संसद में प्रश्नकाल के दौरान कुछ प्रश्न पूछे जाते है ,हर किसी का दिन सुनिश्चित रहता है इसके लिए फिर भी वो इस दिन अनुपस्थित रहते है , कल भी लगभग १७ विषयो पर प्रश्न पूछा जाना था लेकिन जो हुआ वह एक तरह से अलग ही वाकया था ,लगभग ३२ सांसद आनुपस्थित रहे स्पीकर नाम पुकारते रहे पर कोई रहता तो न जबाब देता कोई था ही नही .कई लोगो ने अनुपस्थिति का कारण यात्रा में देरी को बताया तो कई लोगो का जबाब था की बकरीद मिलन के कारण कार्यक्रम था इसलिए देर हो गया .लेकिन अगर एक बात पर गौर करे तो इसमे नुकसान तो आम लोगो का ही हुआ ,संसद को चलाने में प्रतिदिन करोड़ो रूपये खर्च होते है और वो होता है आम जनता का तो बात तो बराबर है नुकसान तो आम लोगो का ही हुआ .दूसरी बात हर सांसद अपने प्रश्न में अपने इलाके की समस्या को जरूर उठाता है और उठाये भी कैसे नही आख़िर जनता को जबाब भी तो देना है सरकार का धयान भी तो दिलाना है अपने इलाके की तरफ़ तो ऐसे में अगर सांसद ही अनुपस्थित रहे तो सवाल कौन उठाएगा घाटा तो जनता का ही है .देश में हर लोगो को सही से खाने और रहने की सुविधा नही है और वो इसकेलिए अपने जनप्रतिनिधि पर आश्रित रहते है की वो उन्हें ये चीज़े मुहैया कराएँगे पर यहाँ तो हालत ऐसे है आख़िर क्या होगा हमारे देश का .ये सवाल हर उस लोगो को सोचना चाहए जो इस व्यवस्था से तालूकात रखते है .

letter to common people

We all should support Raj Thackeray and take his initiative ahead by doing
more..

1. We should teach our kids that if he is second in class, don't study
harder.. just beat up the student coming first and throw him out of the
school

2. Parliament should have only Delhiites as it is located in Delhi

3. Prime-minister, president and all other leaders should only be from Delhi

4. No Hindi movie should be made in Bombay . Only Marathi.

5. At every state border, buses, trains, flights should be stopped and staff
changed to local men

6. All Maharashtrians working abroad or in other states should be sent back
as they are SNATCHING employment from Locals

7. Lord Shiv, Ganesha and Parvati should not be worshiped in our state as
they belong to north ( Himalayas )

8. Visits to Taj Mahal should be restricted to people.

Nov 29, 2009

सिनेमाहाल या युद्ध का मैदान

बहुत दिनों के बाद आप सबो से मुलाकात हो रही है तो और कहे कैसे है .और आज कुछ लिखने जा रहा हूँ .मैं जिस विषय पे आज कुछ ज्ञान पखारने जा रहा हूँ वो है आज के समय में सिनेमाहाल .आज तो लोग माल्स में ही सिनेमा देखने जाते है बड़े शहरों में तो करीब करीब लेकिन अगर मैं बताऊँ तो सिनेमाहाल में बैठ कर सिनेमा देखने का मज़ा ही कुछ और है ,लोगो की भीड़ ,उस भीड़ में टिकेट के लिए मारामारी ,टिकेट मिलने के बाद भी सीट मिलने की कोई गारंटी नही जो पहले घुस गया उसी को सीट मिलेगी .फिर मारामारी सिनेमा हाल में मौजूद लोगो को शांत करानेमें खैर मारामारी सिनेमाहाल में घुसने से लेकर निकलने तक ये कहाँ नसीब में माल्स और बड़े मल्टीप्लेक्स में इसी को तो कहते है सिनेमा विथ देशी सिस्टम .तो मुझे लगता है अब तक आप कुछ न कुछ तो समझ ही गए होंगे की काहे लोगो की भीड़ सिनेमाहाल से दूर होती जा रही है पर छोटे शहरों में इनका जादू अभी भी बरकरार है ,जनाब तो आपको तो समझ आ ही गया होगा की आख़िर क्या हाल है सिनेमहाल्स का ?

Nov 11, 2009

भटकाव

जिंदगी में बहुत चीज़ हमें ऐसे भी समय में सीखने को मिल जाती है जिसकी हम कल्पना भी नही करते है .मैंने भी अपने अ़ब तक के अल्प जीवन में बहुत कुछ इसी तरह से सिखा है .ऐसे तो मैं किसी बड़े शहर से नहींआता हूँ और कभी कभी लगता भी है की काश मैं भी किसी बड़े शहर से आता लेकिन जिस तरह पुरबा हवा का झोखा बस छु कर निकल जाता है उसी तरह ये ख्याल भी जल्द ही छूमंतर हो जाता है .एक तरह से कहूँ तो मैं अपने आपको धन्य मानता हूँ की मुझे ग्रामीण और शहरी दोनो जीवन जीने का मौका मिला है.अब मैं जो कुछ भी कहना चाहता हूँ वो ये क्या की अगर आपने अपना कुछ समय गावं में नहीं बिताया है तो आप भारत देश के विषय में ज्यादा नहीं कह सकते है जैसे की मैंने बहुत सारे लिखने वालो को पढ़ा तो मुझे बहुत सी बातें अजीब सी लगी लेकिन एक पल ही ये समझते देर नहीं लगी की इन्होने तप सिर्फ़ औरो से जो सुना है वही लिखा है वास्तविकता तो कोसो दूर लगती है इनके लेखनी से .मैं जो मुझे लग रहा है वो ये क्या की अपने मुद्दे से भटक रहा हूँ ,मैंने जो शुरुआत की थी वो कुछ और थी पर क्या करू भटक जाता हूँ ऐसी दुनिया में आकर .

Oct 21, 2009

क्या कहूँ

यात्रा को अगर शब्दों में लिखने को कहा जाए तो एक बार तो लगता है क्या लिखू कहाँ से शुरुआत करूँ पर कुछ तो करना पड़ेगा चलिए कुछ लिखते है .मैंने अभी हाल में ही रुद्रपुर की यात्रा की है मिला जुला हुआ ही रहा ,चाचा की इस दुनिया को अलविदा कहने की ख़बर पहले ही मिल चुकी थी ,उत्साह हाफ हो गया था .खैर फिर भी उनके आखिरी संस्कार में समय से पहुँच नही पता तो पुराने प्रोग्राम पर ही चल पड़ा .बस पॉँच घंटे की यात्रा थी ,सोचा यूँ ही कट जायेगी पर हुआ ऐसा कुछ भी नही जो हुआ मैं लिख रहा हु .अगर सही लिखूं तो एक बात जरूर कहना चाहूँगा की अगर आपके बगल में कोई लड़की बैठी है तो बड़ा गजब सा माहौल हो जाता है ,मेरा सीट भी कुछ इसी तरह पड़ा आप इसे सौभाग्य कहिये लेकिन मैं इसे दुर्भाग्य ही मानता हु ,मैं समझता हूँ की इससे आजादी में कुछ कमी आ जाती है खैर हटायिए जो भी हो .मैंने एक बात जो आज तक अनुभव की है की अगर आप किसी लड़की के बगल में बैठे है और वो आपके बगल में तो प्रतिक्रिया के बारे में दोनों सोचते है ,आपको अब तक लग गया होगा की आज मैं पुरे रंग मैं हूँ पर हाँ मैं आपको बता दू की ये वो बात नही है जैसा की आप अब तक समझ रहे है .मैं तो सिर्फ़ ये बता रहा हु की आख़िर होता क्या है ?मैं विण्डो सीट पर था आख़िर सीट बुक थी मेरे नाम ,हकदार था मैं पर क्या बताऊ क्या हुआ ,मैं थोडी देर तक तो अपने जगह पर ही बैठा रहा लेकिन उसके बाद क्या हुआ होगा आप सोच चुके होंगे ,वही जो होता है एक हलकी सी बात और जगह फिर दुसरे के पास ,पर मैं औरतो को सीट दे दिया करता हु लेकिन आज लड़की को भी दे दिया ,बस फिर क्या मैं इधर मेरे उसके बीच उसके पापा फिर मैं ?मैं बहुत देर तक यही सोच रहा था की मैंने उसे सीट आख़िर इस तरह दे दिया पर अब तो जो होना था वो हो चुका था ,बस मैंने उस को वही भूल कर अलग काम में लग गया पर वो नही भूल सका ?एक बात मैंने जो मैंने जानी वो ये क्या की कैसे मन badalta है ?

Oct 15, 2009

अटपटी सोच

शहर की मारामारी और हम शायद हर किसी को अटपटा सा लग...
शहर की मारामारी और हम शायद हर किसी को अटपटा सा लग रहा होगा की मैं इस पर क्या बकवास लिख रहा हु , या मैं जो भी लिखना चाह रहा हूँ उसका मतलब क्या कुछ है .कुछ खटपट तो जरूर है जिसने मुझे लिखने को मजबूर किया है या हो सकता है मुझे कुछ ऐसा दिखा हो जो की लिखने लायक हो .पर बात अगर मैं कहूँ की ऐसी वैसी नही तो थोड़ा अचरज तो जरूर होगा .खैर मैं फिलहाल नॉएडा में वास कर रहा हूँ एक छोटा सा कमरा है जिसमे जिंदगी के साँस को अन्दर बाहर करता हूँ ,आखिर जरूरी है करना ही पड़ेगा नही तो इस पर लिखूंगा कैसे .खैर जाने दीजिये इन बातो को ये तो टेंशन में आदमी ऐसे ही लिखता रहता है .अब थोडी काम की बात हो जाए अरे पर यहाँ तो मुझे कुछ काम ही नही है ,सुबह उठ कर नहाना ,फिर कॉलेज जन नेट परसमय देना ,एक से एक खतरनाक क्लास करना यही तो है फिलहाल जिंदगी ,पर हाँ एक चीज़ है जो मुझे सोचने को कुछ देर तक विवश करता है वो तब जब मैं बस में सफर करता हूँ .उतनी भीड़ एक दुसरे के उपर आने को आतुर ,खैर बस है तो भीड़ तो होनी ही चाहिए नही तो काम नही चलेगा .मैं सोचता हु की यहाँ की जिंदगी क्या है क्या सोच कर महानगर में लोग आते है जिंदगी बिताने को वो बिता तो रहे है पर जो कल तक गावं में एक दूजे के लिए था वो अब अपने के लिए हो गया .यहाँ आने के बाद भूल जाते है लोग मानवता ,भाईचारा ,बंधुत्व और कितने उपमे से अलंकृत करू शायद कम पड़ जाए .मैं देखता हु की यहाँ जिंदगी है शाम या रात को घर आओ फिर खाना बनाओ फिर खाओ और फिर सुबह उठो और काम पर जाओ .फुरसत मांगे भी नही मिलती अरे कंपनी में और भी समय देना है पैसे की खातिर चाहए कुछ भी हो जाए देश फिर भी गरीबी में ही है .कहाँ से उपाय करे ,अरे मैं तो लग रहा है भटक गया मुद्दे से अरे यही तो होता है हर के साथ यहाँ ?

Oct 13, 2009

लोग कहते है की अगर आप किसी की मदद करते हो तो कोई न कोई किसी न किसी तरह ,जिंदगी में कभी न कभी आपकी मदद किसी न किसी रूप में कर ही देता है.खैर जो भी हो मैं जहाँ तक सोचता हु तो ये बात मेरे हिसाब से सही है .मेरे निज के साथ तो ऐसा कोई मौका नही आया है पर मैंने लोगो की अपने तरीके से कुछ न कुछ मदद करने की कोशिस की है ,मतलब जहाँ तक मुझे लगा है तो मैं बस कहना चाहता हु की अगर किसी की भी मदद कर सकते तो मेरे तरीके के अनुसार करना चाहिए .मैं यहाँ पर एक और बात करना चाह रहा हु की अगर हम किसी की जरूरत को किसी भी हद तक समझ सकते है और उसे कुछ दूर कर सकते है तो जरूर करना चाहिये .एक घटना का मैं यहाँ विशेष तौर पे जिक्र करना चाहता हु .मैं इस बार होली पे पठानकोट गया था .खैर जिस घटना के बारे में कहना चाह रहा हु वो ये क्या मैं जब वापस आ रहा था तो मैंने जनरल क्लास में यात्रा करने की सोची .भीड़ जबरदस्त थी और किसी तरह बस पैर रखने की थोडी सी जगह थी .मैं ट्रेन में सवार तो हो गया पर मैंने देखा की लोग परेशान है.मैंने अपने साथ कुछ खाने की भी चीज़ ले ली थी .मगर जो मेरे साथ हुआ वो मैं कभी नही भूल पाऊंगा . एक बुढा आदमी कुछ बडबडा रहा था मैंने जानने की कोशिस करने लगा तो मुझे पता लगा की वो तीन दिनों से भूखा था .मुझे लगा की ये भूख से गुस्सा रहा था मैंने उनसे कहा की मेरे पास कुछ है उसने बिना कुछ सोचे अपने कहा बड़ी जोर से भूख लगी है .मेरे पास जो भी था मैंने उन्हें दे दिया वो बस खाने लगा .मैं उसे देखता रहा और बस एक चीज़ मेरे मन में आ रहा था की क्या है दुनिया ?और क्या होती है भूख ?खाने के बाद मैंने देखा की उनके मुख पर एक जो भाव था वो सायद मुझे कुछ न कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया ?मैंने देख लिया की दुनिया में अगर किसी की मदद की जाए तो उसके बाद जो एक शकुन मिलता है वो मैंने उसके बाद समझ लिया ?

Oct 12, 2009

मध्यप्रदेश में नया फार्मूला

मध्यप्रदेश में अब मंत्री और ऑफिसर प्रतिदिन डायरी लिखेंगे ,इस डायरी में जो मुख्या बात होगी वो ये क्या की वो प्रतिदिन किससे मिलते है ?कौन से सरकारी काम निबटाते है इन सब चीजों को लेकर होगी .सबसे जो मुख्य बात है वो ये क्या की मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का मानना है की इससे सारी जानकारी मिल सकेगी की कौन से काम समय पे पुरा हुआ या नही हुआ .इसके द्वारा जो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की एक सोच की इससे लोगो में सरकार की लोकप्रियता भी बढेगी ,लोगो को सरकार से जुड़े मामले में सच्चाई नज़र आएगी .इस के परिणाम स्वरुप लोगो की समस्स्याओ को ज्यादा अच्छे से निपटाया भी जाया जाय सकेगा .इस में अधिकारी लोगो के वास्ते जो नियम है वो है की उन्हें इसमे प्रतिदिन का एक तरह से हिसाब ही देना होगा .अधिकारियो को ये बताना होगा की उन्होंने महीने में क्या क्या काम किया और उसमे आवश्यक कितने थे .अपने विभाग को लेकर कितने महत्वपूर्ण फैसले लिया .एक बात तो जरूर है की इस कदम की प्रशंसा तो करनी ही चाहए की कम से कम सरकार के मुखिया ने येः तो सोचा की कैसे प्रशासन को ज्यादा पारदर्शक बनाया जाय। .वही दूसरी ओर मंत्रियो को भी हर महीने अपने काम के बारे में जानकारी देनी होंगी .अपने प्रभार वाले जिले के दौरे की भी जानकारी देनी होंगी .साथ ही साथ येः भी बताना होगा की अपने मंत्रालय में कितना समय दे रहे है .अधिकारियो की रिपोर्ट तो हर महीने १५ तारीख को वेबसाइट पे होगी पैर मंत्रियो की रिपोर्ट को सिर्फ़ मुख्मंत्री ही पढेंगे .मेरा मानना है की सरकार को लोकसभा के परिणामो ने इस चीज़ को करने को उकसाया जैसा की चुनाव परिणाम ने जता दिया की सरकार से जनता उतनी खुस नही है .खैर जो भी हो येः कदम स्वागत के योग्य है .

Oct 9, 2009

चुनाव में शब्दबाण


चुनाव हो और शब्दबाण न चले ये तो हो ही नही सकता है .लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात के मुख्मंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी को बुढ़िया और गुडिया कहा था .कांग्रेस तो चुनाव जीत के सत्ता में आ गई लेकिन बीजेपी का क्या हुआ हम देख ही रहे है.ठीक इसी तरह २००७ के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान सोनिया गाँधी ने नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था वहां भी हमने देखा की किस तरह मोदी जीत कर आए .मैं यहाँ पे महाराष्ट्र चुनाव की बात कर रहे हु जहाँ अभी कुछ ऐसा ही चल रहा है .शिवसेना और बीजेपी के गठबंधन को राज ठाकरे के मनसे ने लोकसभा चुनाव में काफी नुक्सान पहुचाया था और फिर से उनकी पार्टी के उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में मैदान में है और राज मराठी मानुस के मुद्दे को लेकर चल रहे थे और है .एक बात जो जरूरी है वो ये की राज ठाकरे को शिवसेना के बारे में अच्छी तरह पता है और उद्धव के बारे में भी .शिवसेना अपने को मराठो की हिमायती के रूप में पेश करते आई है और उसे राज की पार्टी से इस मुद्दे पर कठिन मुकाबला करना पड़ रहा है .शिवसेना को भी पता है की अगर इस बार सत्ता अगर हाथ नही लगी तो फिर आगे मुस्किल है तो उन्होंने राज के उपर कड़े प्रहार करने सुरु कर दिए है ताकि राज इसमे उलझे रहे और फायदा उन्हें हो .हाल में ठाकरे सीनियर द्वारा कहा गया की राज जिन्नाह है जो महाराष्ट्र का बटवारा करना चाहता है ,वही दूसरी ओर उद्धव ने राज को सुपारीमैन कहा है जो कांग्रेस ओर राकपा को जिताने की सुपारी ले चुका है .बात बिल्कुल स्पष्ट है की उद्धव ओर उनके गठबंधन के लिए राज एक मुसीबत बन गए है ओर वे हर हाल में इससे पीछा छुड़ाना चाहते है .वही दूसरी ओर ये भी कहा जा रहा है की अगर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नही मिला ओर राज के पास कुछ सीट आ गई तो वे कांग्रेस को सपोर्ट कर देंगे .कांग्रेस नेता ओर पुराने शिवसैनिक नारायण राणे ने इसका खुलाशा भी किया है.वही दूसरी तरफ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक चाहवान ने ये कह कर राज पर टिपण्णी की है की वो तो एक मेढक है जो मानसून आने पर तर्तारता है .अब देखना ये दिलचस्प होगा की क्या चुनाव बाद कोई ऐसी संभावना होगी की शब्दबाण चलने वाले के साथ परेशानी हो .ये तो २२ अक्टूबर ही बताएगा .

आडवाणी के सन्यास की घोषणा

बीजेपी में चल रही खीचतान के बाद जो सारे लोग एक आसरा लगाये बैठे थे की कब पार्टी में परिवर्तन होगा तो शायद उन लोगो के लिए एक राहत वाली बात सामने आ ही गए मैं यहाँ अडवाणी जी के बारे में ही कह रहा हु.आखिरकार उनके भरोसेमंद नायडू ने एक टीवी पर इस बात को खुलेआम स्वीकार कर लिया की अगले चुनाव में आडवाणी जी के नेतृत्व में चुनाव नही लड़ा जाएगा .इस बात को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद ही कानाफूसी शुरु हो गए थी की इस चुनाव में पार्टी ने जो किसी एक पर ही मुख्य रूप से जो इतना बल दिया उसी का परिणाम सामने बीजेपी की हार का कारणबना .यहाँ पर एक बात और भी है की आडवाणी जी ने भी इस बात को कहीं न कहीं स्वीकार कर लिया की देश की ज्यादातर जनता को वे प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार्य नही है.आडवाणी जी ने राजनीती में आधी से भी ज्यादा जिंदगी बिता दी और अच्छे और बुरे का उन्हें एक बहुत ही शानदार अनुभव है,तो हो सकता है की उन्होंने सोचा होगा की अब जो है इस तरह के हालात से तो ठीक यही होगा की राजनीती से सन्यास ही ले लिया जाए .वही दूसरी तरफ़ संघ की ओर से भी इस तरह की बातें सामने आ रही थी की बीजेपी को अब किसी युवा नेतृत्व की जरूरत है ,ये बातें भी आडवाणी जी के लिया बहुत ठीक नही थी .एक बात जो हो सकता है संघ को या बीजेपी के लोगो को नागवार लग रहा था वो शायद ये था की अचानक आडवाणी जी उस हिंदुत्व की बात को लोगो के सामने नही कह रहे है जो वो पहले किया करते थे जिनसे उनको लोगो का बड़ा आर्शीवाद प्राप्त था .यहाँ पर एक बात ओर भी गौर करने लायक है की जिस तरह बीजेपी ने शिमला बैठक के समय जसवंत सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया क्या वही कुछ संघ के राजगीर में चल रहे बैठक का तो नही?खैर जो भी हो मुझे लगता है की आडवाणी जी के लिए सही समय है ओर पार्टी को मजबूत अगर बनाना है तो आडवाणी जी को इस चीज़ के बारे में सोचना ही होगा ओर पार्टी में कुशल लोग तैयार करना उनकी जिम्मेदारी होगी .

Oct 6, 2009

खर्चे में कटौती

कांग्रेस पार्टी के लोगो को सादगी बरतने का नया आदेश आलाकमान की तरफ़ से आया है .आदेश की अवहेलना भी शुरु में कई लोगो ने की और अपनी आवाज़ उठाई .लेकिन एक बात जो यहाँ क्लेअर है वो ये की वास्तविक में क्या हमारे देश में लोग ऐसा कर पा रहे है तो मैं मानता हु की इस बात को हमें सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी के लोगो से रिलेट कर के नही देखनी चयिए हमें और पहलुओ पर भी बराबर धयान देना चयिए .सबसे बड़ी बात है की क्या सिर्फ़ प्लेन के इकोनोमी क्लास में यात्रा करने या स्टार होटल्स में न रुकने से ही ये बात ख़त्म हो जायेगी या फिर मितव्यता की जो परिभाषा दी जा रही है वो पुरी तरह से लागु हो जायेगी .आज भी हमारे बहुत से नेता इस बात को नही समझ पा रहे है या हो सकता है की वो चाह कर भी अपने आदत को नही छोड़ सकते .एक बात और है जहाँ एक तरफ़ पैसे बचाने की बात हो रही वही दूसरी बात ये है अभी जो हरियाणा चुनाव में जो ४८९ लोगो का सर्वे किया गया तो उसमे से २५१ करोड़पति निकले .इन में से कांग्रेस के ही सबसे ज्यादा ७२ लोग निकले जहाँ एक बात है की एक तरफ़ तो कांग्रेस खर्च में कमी की बात कर रहे है वही दूसरी ओर करोड़पति लोगो को चुनाव में ज्यादा से ज्यादा टिकेट दिया गया है .एक बात में जो मेरे समझ में नही आती वो ये की जब कम खर्च की बात चल रही है तो हमारे सरकारी बाबुओ को एक दिन पैदल चलने को कुअन नही कहा जाता .अगर हम सारेलोग जब तक मिल कर इस बात की जिम्मेदारी नही लेंगे तब तक कुछ नही होगा .सिर्फ़ बात कहने से नही उसके पालन करने से होगी .

Oct 5, 2009

झारखण्ड चुनाव की जरूरत

झारखण्ड में केन्द्र द्वारा अभी चुनाव नही कराने के कई कारण सामने आ रहे है .सबसे बड़ी बात जो है वो येः है की कांग्रेस सरकार को भी पता है की अभी झारखण्ड में माहोल अभी उनके अनुकूल नही है ,इस कारण से उन्होंने वहां के राज्यपाल रजी को बदलकर के शंकर्नारायण को बनाया है .कांग्रेस का सोचना है की हो सकता है अभी राज्यपाल द्वारा कुछ काम करा देने के बाद जनता का कुछ मन उनके तरफ़ हो जाए फ़िर चुनाव कराया जयेगा .सबसे बड़ी जो बात है वो ये है की क्या झारखण्ड इतना कुछ खनिज संसाधन होते हुए भी पॉलिटिकल कारण से ही आज इतना पिछड़ा है तो शायद ज्यादातर लोगो के जबाब हाँ में आयेंगे .झारखण्ड की हालत लगातार बदतर होती जा रही है .नक्सली गतिविधि तो वहां बहुत पहले से ही हो रही है लेकिन लोगो में बरोजगारी भी बढ़ रही है .आज झारखण्ड को एक सशक्त और स्थिर सरकार की जरूरत है वो चाए बीजेपी की हो या कांग्रेस की और केन्द्र सरकार को भी इस बात पे खास धयान देना चाहिए की वहां जल्द से जल्द चुनाव करवा के एक चुनी हुई सरकार बहल करने की होनी चाहए ताकि झारखण्ड में विकास जल्द से जल्द हो .झारखण्ड में लोगो को भी इस बात का धयान अब रखना चाहए की वो एक ऐसी पार्टी को मत दे जो स्थिर सरकार का निर्माण कर झारखण्ड का विकास कर सके .

Oct 4, 2009

अरुणाचल से सीख

हमारे देश में आज के समय में चुनाव में आए दिन धन बल और बाहुबल का प्रयोग हो ही रहा है .कोई कितना भी कह दे लेकिन आज के चुनाव के लिए सबसे बड़ी बात जो है वो है धनबल इसके बिना आज कोई चुनाव जितना मुश्किल ही है .लेकिन में जिस बात के विषय में कहना चाहता हु वो ये क्या की आज क्या ये संभव लग रहा है की कोई निर्विरोध चुनाव जीत जाए शायद ये अगर आम जानो की रायली जाए तो ज्यादातर के जबाब नही ही आयेंगे .लेकिन मुझे लगता है की ये भी सम्भव हो सकता है अगर किसी चुनाव लड़ने वाले ने जनता का दिल जीत लिया हो अपने काम से ,अपने विचार से ,अपने व्यवहार से .अरुणाचल प्रदेश में कुछ ऐसा ही हुआ है इस बार के विधानसभा चुनाव में जहाँ १३ अक्टूबर को वोट डाले जायेंगे उससे पहले ही नामांकन के जाँच के बाद ३ लोगो को निर्विरोध चुन लिया गया है .किसी भी राज्य के सरकार में सबसे बड़ा काम उसके मुखिया का होता है .उसके उपर ही ये निर्भर करता है की सरकार को कैसे लोकप्रिय बनाया जाए और इसके लिए वो अपने सहपाठियों को बार बार दिशानिर्देश भी देते रहता है .चुनाव के समय सरकार की असली परख होती है की लोगो के बिच उसकी लोकप्रियता क्या है ?अगर वो सत्ता में वापस आ जाती है तो ये कहा जाता है की उसके काम से जनता संतुस्ट है .अरुणाचल में जो तिन लोग चुने गए है उसमे से दो तो पहले भी चुने गए थे जिसमे एक ख़ुद मुख्यमंत्री दोरजी खांडू है .सबसे बड़ी बात है की की खांडू से वहां की जनता संतुस्ट है इसलिय ही तो वे निर्विरोध चुने गए। दुसरे चुने गए विधायक का नाम तवांग शहर के मौजूदा विधायक सेवांग घौंदुप है .तीसरा जोचुने गए है वो पहली बार ही चुनाव लड़ रहे है .वो लुमला सीट से चुने गए जम्बो तशी है .सबसे बड़ी बात है की तीनो के तीनो ही कांग्रेस के टिकेट पे चुने गए है .एक बात तो यहाँ से देश के और भाग के नेताओ को सीखनी चाहए वो ये की वो भी जनता के बीच कुछ ऐसा ही काम करे जिससे वो भी इसी तरह निर्विरोध चुने जाए .एक बात जो स्पस्ट है वो ये की अगर हम अपने को पुरी तरह जनता का सेवक बना दिया तो वो भी हमें मौका देते रहेंगे .

बीजेपी को लेकर जनमानस

नईदुनिया अख़बार द्वारा भाजपा में सबसे उपयुक्त हेड कौन होगा उसमे नरेन्द्र मोदी को जनमानस द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किए जाने के बाद एक बात जो स्पष्ट है वो ये की भाजपा को हिंदुत्व की राह नही छोडनी चयिए .भाजपा में एक धड़ा तो लोकसभा चुनाव के समय ये सोचता था की भाजपा को उदारवादी पार्टी के रूप में अपने को विकसित करना चयिए लेकिन अगर एक बात सच है तो वो ये की भाजपा ने जो इस नई परिकल्पना को अपनाया वही कही न कही इसके हार का कारन बना .भाजपा को इस बात का खासा धयान देना होगा की पार्टी का जो मुख्या मुद्दा था वो कहीं गौण न हो जाए .भाजपा के विषय में अभी भी बहुत से लोगो में येः धारणाहै की यही पार्टी हिंदू लोगो की हित में काम कर सकती है ,लेकिन जैसे ही भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में वो दामन छोड़ अपने को नया बनानेकी कोशिस उसने तो बीजेपी का लुटिया ही डुबो दी .बीजेपी को इस सर्वे से इस बात की सबक तो लेनी ही चयिए की पार्टी को अपने हिंदुत्व को लेकर आगे जन चयिए और इस बात का हमेशा से ख्याल रखना चयिए की पार्टी इस विचारधारा से भटकने न पाये .ज्यादातर स्टेट के लोगो ने पार्टी के टॉप पोस्ट के लिया नरेन्द्र मोदी को ही बेस्ट मन है इसका मतलब तो ये है की लोग अभी भी सिर्फ़ यही चाहते है की पार्टी को ऐसा नेतृत्व चयिए जो अपने मुद्दे से दूर न जाए और हिंदुत्व की राह भी न छोडे खैर जो भी हो लेकिन इतना तो स्पष्ट ही लग रहा है की बीजेपी को अगर अपने को फिर से उसी तरह की पार्टी बनानी है तो जनता की बात तो सुननी ही होगी .

Oct 1, 2009

हमारी नई सोच

महानंदा एक्सप्रेस में हात्रस में हुआ हमला हमारी इस सोच को उजागर करता है की हम सिर्फ़ अपनी जरूरत के कारन किसी और की जरूरतों ककुच भी धयान नही रखते है .हम शायद इस बात को मानते ही नही है की किसी भी चीज़ को बर्बाद करने से पहले हमें येः सोचना चाहए की वो हमारी निजी नही है .बात अगर निजी की करे तो बस हमें सिर्फ़ अपना घर और उसमे रखे कुछ चंद वास्तु ही नज़र आते है .हम इस चीज़ को कभी नहियो सोचते है की देश की सम्पति भी अपनी है अगर हम ख्याल नही रखेंगे तो कोण रखेगा .खैर यहाँ जो बात है की हम उस बात को बर्दास्त ही नही कर पाते है जो हमको फायदा ने दे .कुछ दिनों पहले बिहार में पटना के पास भी श्रमजीवी एक्सप्रेस में ऐसा ही कुछ हुआ था और पुनजब के जालंधर में भी हुआ था .हम ट्रेन को ही निशाना बना रहे है जो बहुत लोगो के साथ जुड़ी है .हमें इस बात का धयान रखना ही होगी की हम अपने चलते किसी और को परेशानी में न डाले .

आंध्र प्रदेश का मामला

आन्ध्र प्रदेश में उठा बबालअभी तक शांत नही हुआ है .जगन समर्थक ,समर्थक क्या अपने फायदे देखने वाले लोग चाहते है की कुर्सी जगन को दे दी जाए लेकिन कांग्रेस आलाकमान नही चाहती है की किसी ऐसे को कुर्सी दे दी जाए जिसे अभी राजनीत में आए जुम्मा दिन भी नही हुए है .जो मूल रूप से एक व्यापार करने वाला है .जगन के समर्थन में जो नारा लग रहा है और जो आवाज़ लगातार आ रही है वो येः की फिलहाल वहां की राजनीती में कुछ तो गड़बड़ जरूर है .एक तरफ़ तो जगन अपने लोगो को समझाने की कोशिस कर रहे है लेकिन कहीं न कहीं ये बात भी उनके मन में जरूर है की इससे अच्छा मौका फिर नही मिल सकता इसका फायेदा ऊठाया जाए और अभी तो उनकी सुरुआत ही है राजनीत में और इतना अच्छा मौका ?दूसरी तरफ़ कांग्रेस पार्टी लगातार ये कोशिस कर रही है की किसी तरह इस को शांत किया जाए .कांग्रेस के प्रवक्ता लगातार इस बात से बच रहे है की उनका जगन के मानले में क्या कहना है.पार्टी के लोग इसे अंदरूनी मामला कह कर ताल रही है .आख़िर आन्ध्र प्रदेश में लोग ऐसा किस कारन से सोच रहे है तो इसका एक ही उत्तर है की कहीं न कहीं इन लोगो को जगन के मुख्मंत्री बनने से फायदा ही है जो चीज़ रेड्डी के समय में पुरी नही हो सकी वो जगन के समय में ये पुरा कर सकते है लेकिन अगर कोई दूसरा बन गया तो ये सम्भव नही है .हो सकता है की अगर जगन अभी से ही सत्ता संभल ले तो ये लम्बी रेश का घोड़ा हो सकता है और उनकी दाल भी गलती रहेगी वही दूसरी तरफ़ कांग्रेस आलाकमान जगन के राजनीती में ज्यादा अनुभव नही रहने के कारन उससे किनारा कर रही है .

Sep 30, 2009

हरियाणा चुनाव और हुड्डा

हरियाणा में चुनावी बिगुल तो बज ही चुका है सेज भी सजने की राह देख रहा है अब हर किसी को इन्तिज़ार है १३ अक्टूबर की जिस दिन मत डाले जायेंगे और फिर दिवाली बाद २२ अक्टूबर की जिस दिन मतगणना होगी .आख़िर हरियाणा चुनाव में है क्या जो सभी चर्चा कर रहे है .येः चुनाव अपने आप में महत्पूर्ण है जहाँ एक तरफ़ टिकेट बटवारे में हुड्डा ने पहली बाज़ी मर ली है वही लगता है की आखिरी भी वही मारेंगे.हुड्डा ने आसानी से तो नही लेकिन टिकेट बटवारे में अपनी धक् दिखा दी है .दूसरी तरफ़ और दलों ने टिकेट तो पहेले बाट दिया लेकिन कुछ सीटो पर इस बातपर धयान लगाये रखा की कब कांग्रेस का कोई नेता जिसे कांग्रेस ने टिकेट नही दिया है उसे वो टिकेट दे लेकिन उनकी येः योजना भी धरी रह गई .बीजेपी तो वहां दिन प्रतिदिन कमजोर हो रही है इनलोद और हजका का भी हाल कुछ खास नही है .ओमप्रकाश चौटाला को जाट मतदाताओ पर ही पकड़ नही है तो कुलदीप बिश्नोई भी कुछ खास नही कर प् रहे है और लोकसभा के पिछले चुनाव ने तो येः दिखा ही दिया है की हुड्डा की राजनीती ने हरियाणा में कही न कही अपने पर जमा लिए है .हुड्डा तो यहाँ तक निशिंत दिख रहे है जैसे की कुछ हुआ ही नही है और वे दुबारा जितने वाले है .खैर जो भी हो येः चुनाव हुड्डा और दुसरे खास कर के चौटाला के लिया नाक की बात है .अब देखना है की किसकी नाक बचती है और किसकी कटती है .एक बात तो साफ़ है की अगर हुड्डा चुनाव में बहुमत हासिल कर लेते है तो निश्चित तौर पर वे हरियाणा के नए छत्रप हो जायेंगे और चौटाला और कुलदीप की कही न कही एक दुखद विदाई होगी .

शत्रुधन का बयां

शत्रुधन सिन्हा द्वारा हाल में ही जो राहुल गाँधी के बड़ाई में कसीदे पढ़े गए वो श्री सिन्हा के दोहरी मानसिकता को दर्शाती है .सिन्हा एक ऐसे नेता है जो की बीजेपी के सरकार में मंत्री भी रह चुके है ,उन्होंने २००९ का लोकसभा चुनाव भी बीजेपी के टिकेट पर ही पटना साहिब से लड़ा और जीता भी ,उनके टिकेट से लेकर आख़िर जीत तक पार्टी ने हरसंभव उनको मदद दी लेकिन चुनाव के दौरान भी बहुत तरह के विचार उनके द्वारा समय समय पर दिए गए .कभी टिकेट न मिलने पर बीजेपी छोड़ सपा में जाने की भी अटकले भी लगाये गए .आख़िर बीजेपी ने ही सिन्हा को इतना कुछ दिया उनको मंत्री तक बनाया और वही सिन्हा आज राहुल की बड़ाई कर रहे है .वैसे अगर एक बात को देखा जाए तो इतना तो स्पस्ट है की उनका बिहार की राजनीती से कोई खास लेना देना नही है २००५ के विधानसभा में भी वो प्रचार के लिया नही आए थे लेकिन पार्टी ने शानदार जीत हासिल की ,हो सकता है की शत्रुधन को येः लग रहा हो की अब बीजेपी में कोई भविष्य नही है ,वैसे भी बीजेपी में उनके न चाहने वालो की लम्बी फौज है तो हो सकता है उन्होंने सोचा हो की अब कहीं और देखा जाए .एक बात जो बहुत दिनों से उनके मन में है वो बिहार का मुख्मंत्री बनना है ,उपरी तौर से नही लेकिन अंडर से तो उनकी मनसा येः है .लेकिन जो संभावना है उसमे तो दूर दूर तक उनके मुख्मंत्री बनना की कोई आशा नही दिखती है ,हो सकता है विधानसभा उपचुनाव के बाद उनको लगा हो की बिहार में कांग्रेस का राज एक बार फिर से आ सकता है और यही समय है की वो कांग्रेस में किसी तरह अपनी जगह बनाये .अगर बिहार नही तो फिलहाल हो सकता है की केन्द्र में कुछ मिल जाए और अगर ऐसी बयानबाजी की जाए तो जसवंत सिंह के तरह मुझे भी निकल दिया जाए और फिर तो जनता का विश्वास जीत ही लिया जाएगा ,वैसे भी इस बार के लोकसभा इलेक्शन के बाद उनको अपने वोट का कुछ तो अंदाज़ लग ही गया होगा इसलिए वो ऐसी बात कर रहे हो .जहाँ तक बात राहुल की बड़ाई की है तो उनको कहीं न कहीं आभास हो गया होगा की अगर कांग्रेस में आया जाए तो आज नही तो कभी बिहार का मुख्मंत्री बना जा सकता है और वैसे भी बिहार में कांग्रेस को अभी नेता की तलाश है .शायद सिन्हा इस बात को भूल गया है की अब जनता इतनी भी मुर्ख नही रह गई है की नेताओ को न समझ सके .शत्रु जी आप की हड़बड़ी कही आपके लिया गडबडी न हो जाए .

Sep 29, 2009

सफलता मैं क्या सोचता हु

सफलता क्या है, इस बात को मैंने कई बार जानना चाहा पर सच कहू आज तक समझ नही पाया हु बस अपने तरफ़ से इस बारे में कुछ कहना चाह रहा हु की मैंने क्या क्या देखे है इस चीज़ को लेकर .सबसे पहले मैं एक छोटी सी बात कहना चाहता हु आज भी हमारे समाज में उन्ही लोगो को सफल कहा जाता है जो ज्यादा या अच्छा पैसा कमा रहे है या जिनकी आमदनी अच्छी है ,मैं ये कहना चाहता हु की क्या यही लोग असल में सफल है .मैं तो मानता हु की सिर्फ़ पैसा कमा लेना ही सफलता नही है ,मेरे हिसाब से सफलता तो वोह है की आप अपने अपने जिंदगी से कितने संतुस्ट है ,आप जो काम कर रहे है वो आपको तस्सली दे पा रहा या नही ?अगर आप ख़ुद ही अपने काम से संतुस्ट नही है तो कैसे सफल हो गए आप ?हाँ एक तरह से सफल हो गया ऐसे परिस्थिति में की कम से कम दो जून की रोटी खा रहे है ज्यादा कुछ नही .मैंने जहाँ तक देखा है या अभी तक अनुभव किया है हर माँ बाप की इक्छा होती है की उसकी संतान ज्यादा से ज्यादा धयान पढ़ाई पर लगाये और एक अच्छी नौकरी करे शायद इसी को वो सफलता मानते हो .पर एक चीज़ जो वो भूल जाते है की इस के लिया वो अपने संतान पर एक अनावश्यक दबाब भी दे रहे है .उन्हें ये तो फुरसत ही नही है की अपने बच्चे को कुछ दुनियादारी भी बताये ताकि वो सारा कुछ समझ सके .खैर मैं ज्यादा तो कुछ नही कहना चाहता हु लेकिन एक बात तो जरूर कहूँगा की अगर आत्म्संतुस्ती नही है तो कोई सफल नही कहा जा सकता है चाए वो अरबपति ही क्यू न हो .अम्बानी बंधुओ की आपसी लडाई सबके सामने है पैसे होने से ही कोई सफल नही हो सकता अगर वो अपने घर ,परिवार ,समाज के प्रति जिम्मेदार न हो ,इन सब से बाद कर कुछ नही है जहाँ तक मेरा मानना है हो सकता है आप भी कुछ सोचते होंगे पर बयां कर नही पा रहे है आपको लगता होगा की दुनिया आपको आसफल मानती है लेकिन अगर आप अपने अन्दर की बातो को उपर लाने की हिम्मत रखते है तो आप मेरी नजरो में सफल है दुनिया जो कुछ भी कहे आपके बारे में .?????????????????????/

क्या हो गया है हमें

लोग कहते है की आज न जाने क्यां हो गया है हमें जो हम इतने अवसरवादी हो गया है .कभी वो जमाना भी था जब अगर हमारे घर में कुछ होता था तो सारे गावं को जानकारी हो जाती थी मगर आज हालात येः है की हमारे ख़ुद के घर के निचे रहने वाले को भी पता नही चलता है क्या हो गया है हमें ?खैर कुछ न कुछ तो है जरूर है जो आज हालत ऐसे हो गए है ,हो सकता है की आज हम किसी चीज़ पर उतना धयान नही देते है या फिर धयान देकर भी अनजाने बन जाते है ,सायद आज हम सोचते है की दुसरो से हमें क्या लेना देना उन्हें कुछ भी हो हम तो ठीक है न .आज हमारे मन में येः बात घर कर चुकी है की दुनिया में जितना अकेले रहो उतना अच्छा .लेकिन हम येः भूलते जा रहे है हम हमेशा दुनिया से कट कर नही रह सकते है .कभी अगर किसी के घर बच्चा जनमता था तो वो बच्चा पलता कही और था उसे हर घर की जानकारी होती थी लेकिन अब शायद येः बात बेमानी लगे .पहले अगर गावं का कोई एक लड़का भी कामयाब होता था तो सारे गावं में चर्चा होती रहती थी लेकिन आज ज्यादातर हालात ये है की कोई अच्छा कर दे तो दुसरे को जलन होने लगती है आख़िर क्या हो गया है जो ऐसी बातें हो रही है .जरूर ही एक बात जो हमें सोचने को मजबूर कर देती है की क्या हम इतने मतलबी हो गए तो शायद हमें कहना होगा की हाँ हम हो गए है .एक बात यहाँ पर सही लगती है की मतलब निकल गया तो पहचानते नही .एक और बात आज तो यहाँ तक हो गया है की अगर लोग बड़े आदमी हो जाते है तो अपने पुराने पहचान को भी मिटा रहे है आख़िर कब तक ऐसा होगा ?

Sep 25, 2009

राहुल की राजनीती

राहुल गाँधी द्वारा आचानक उत्तरप्रदेश के दौरे पर जाना मायावती को मुसीबत लग रही है आख़िर लगे भी क्यू न लोकसभा इलेक्शन में तो इसका साफ़ असर नज़र आया .वैसे भी अब उत्तरप्रदेश में मायावती की पकड़ उतनी मजबूत नही लग रही है जैसी २००७ में विधानसभा चुनाव के समय थी .आख़िर क्या राहुल गाँधी का असर इस प्रदेश में बढ रहा है या फिर जनता के सामने कोई विकल्प नही है .जनता ने पिछले कुछ समय से सपा ,बसपा .भाजपा का शासन तो देखा लगता है जनता को कांग्रेस पर ही येः उम्मीद लगी है की वही उनका कुछ कर सकती है .राहुल गाँधी द्वारा यूथ्स को टिकेट देने की बात भी साफ़ असर कर रही है और इस बार के लोकसभा इलेक्शन में इसका फायदा भी मिला .अब जब २०१२ का चुनाव आने वाला है और इसकी कोशिस में राहुल गाँधी अभी से जुड़ गए है तो येः बात तो साफ़ है की इसका असर जरूर पड़ेगा और हो न हो मायावती को हार का मुह देखना पड़े .वैसे मायावती को भी इसका अंदाज़ लग गया होगा और हो सकता है वो भी इसका हल खोजने में लग गई हो लेकिन एक बात तो साफ़ है की राहुल की येः पहल एक अच्छी पहल है कम से कम हमारे नेताओं को इस बात का तो आभास हो गया की अब सिर्फ़ एसी में बठने और बड़े बड़े होटल्स में खाना खाने से अब राजनीती नही हो सकती है .उन्हें जमीं से जुड़ना ही होगा आन्यथा अब तो ऐसा लग रहा है की सिर्फ़ बड़ी बात से चुनाव नही जीता जा सकता है .

Sep 24, 2009

वंशवाद

देश में हर बार येः बात जोर शोर से उठाई जाती है की वंशवाद की राजनीती को ख़त्म किया जाएगा .वैसे लोगो को टिकेट नही दिया जाएगा जो ख़ुद राजनीती में शामिलनही है किसी को आचानक ही टिकेट नही दिया जाएगा ,पहीले उनका काम देखा जाएगा .कहेने को तो कुछ भी कहा जा सकता है लेकिन आमल में लेन की बात जब होती है तो फिर वही चीज़ आमल में लायी जाती है की उनको टिकेट देने से जीत हो सकती है चाएःजो कार्यकर्ता निराश हो उससे कोई मतलब नही .इसका स्पस्ट उद्धरण बिहार विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिला जहाँ जेडीयू ने इस परम्परा को दरकिनार कर कार्यकर्ताओ को टिकेट दिया लेकिन रिजल्ट ने सारा माज़रा बिगड़ दिया ,आज कोई भी राजनितिक पार्टी सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता पाना चाहती है नैतिकता से उनका कोई लेना देना नही है .महारास्ट्रविधान सभा चुनाव के लिया जो अब तक टिकेट के बात्वारे हुआ है उससे तो येअही लगता है येः ख़त्म होने वाला नही है .आज के डेट में हर बड़ा नेता अपने आगे की पीढी को सेटल करना चाहता है और उसी का परिणाम है ये वंशवादकी राजनीती इस समय जो सबसे अहम् बात रहती है वो होती है की अपने लोगो को जिताना .आख़िर ये कब तक रहेगा ये प्रश्न तो हमेशा होती है पर उत्तर अभी तक नही आ पाया है .अगर मैं कहू तो येः अभी ख़त्म नही होगा .

Sep 19, 2009

संथानम का खुलासा

११ मई १९९८ को तत्कालीन सरकार द्वारा जो परमाणु परिक्चन किया गया था उसपे आज ऊँगली उठ रही है.यहाँ सबसे बड़ी बात जो समझ से परे है वो येः क्या की आज तक अब तो ११ साल होने वाले है इन लोगो ने आज तक येः बात नही की और अचानक येः हो रही है यही समझ मैं सायद मुझे नही आ रही है .संथानम द्वारा जो बात आज कही जा रही है उसमे एक राजनीती की बू आ रही है हो सकता हो संथानम को कोई विवाद हो इसलिय वो आज ऐसी बात कर रहे है नही तो अगर देश का सवाल था तो उन्हें पहेले येः उजागर करना चयिया था .एक बात और हो सकती है की किसी राजनितिक दल द्वारा उन्हें कुछ फायदा हो रहा हो या फिर येः बात सही हो .लेकिन जो सबसे बड़ी बात यहाँ एक ही है वो संथानम का इतने दिनों तक खामोस रहना .खैर जो भी हो अब तो समय ही बातएगालेकिन देश के परमाणु स्सिएंतिस्तो को आचानक ग़लत ठरना एक जल्दबाजी होगी सायद अब तो जांच ही बता सकता है की असलियत क्या है ??????????????

सरकार के दावे और हमारा गावं

सरकार गावं की स्थिति बदलने की बात कई सालो से कर रही है कुछ सफलता भी सरकार को मिली है पर वास्तविक बात तो येःहै की अभी भी येः पुर्न्रुपें सही नही है .आज भी कई गावं ऐसे है जहाँ बिजली ही नही है ,सरकार अपना पैसा सरकारी विज्ञापनों मैं खर्च करती है अगर यही पैसा इन गावं के विकास मैं लगाया जाय तो बहुत कुछ बदल सकता है .आज भी हमारे गावं मे समुचित सुभिदा का आभाव है लोगो को बहुत चीजों के बारे मैं जानकारी नही है .अभी भी गावं में शिक्षा पुर्न्रुपें सही नही है बस खानापूर्ति जारी है ,कोई अच्छा रेफोर्म नही हो पा रहा है जिससे गावं की तस्वीर बदले खैर यहाँ मेरे कहने का मतलब येः नही है की गावं का देवेलोप्मेंट नही हो रहा है बल्कि येः है की जिस स्थिति में हमारे गावं अभी भी है वो सरकार के सारे वादों की पोल खोल देती है ,अभी भी शासन के पास समय है इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाये और गावं में जो उचित चीज़ होनी चयेया वो उपलब्ध कराये नही तो हो सकता है एक विषमता उत्पन्न हो जाए .

शशि की समस्या

कांग्रेस में शशि थरूर जैसे हाई प्रोफाइल लोगो को भारत की असली जानकारी सायद अभी भी नही हुई है ,बात बिल्कुल सही भी है हो भी तो कैसे वो तो हमेशा से विदेशो में ही रहे और यहाँ आकर कोई खास म्हणत भी नही करनी पड़ी और टिकटभी मिल गया .किश्मत ने भी साथ दिया और पहेली बार ही मंत्री बन गए .लेकिन येः तो सच ही है की किसी को भी अपनी पुरानी आदत छोड़ने में में दिन तो लग ही जाते है .लेकिन सबसे बड़ी बात है कोई भी जो कभी जनता के बीचनही गया उसे आम आदमी के दुःख दर्द के बारे कहाँ से ज्यादा जानकारी हो सकती है .शशि थरूर भी इसी किस्म के है आराम के शौकीन लोगो को जब थोडी सी भी दिक्कत आती है तो वो बौखला जाते है यही कुछ थरूर के साथ हुआ है .आम जनता के बीच से चुन कर तो वो आए है लेकिन उसकी कोई फिक्र उन्हें अभी तक नही है ,इसमे दोष सिर्फ़ उनका ही नही है दोष पार्टी का भी है जिसने एक ऐसे को मंत्री बना दिया है जो अपने समय को जनता को नही वरण होटल्स और ट्विट्टर पर देता है .जिसे अभी तक येः भी पता नही है की भारत जैसे देश मैं चुन कर आने के बाद कितनी जिम्मेदारी बढ़ जाती .लेकिन येः तो बहुत ही जरूरी है की अगर आप देश के विकाश के बारे में सोचते है तो आपको आम जनता का ख्याल करना ही होगा नही तो ऊँचे पदों पर जाने का कोई महत्व ही नही है .

Sep 17, 2009

वादे है वादों का क्या

लगातार सरकार द्वारा येः बात कही जा रही है की देश के तबके के बच्चो को तालीम दी जायेगी .सरकार दावे तो बहुत कर रही है और येः सिर्फ़ इसी सरकार द्वारा नही वरण सभी के द्वारा किया जाता रहा है.शिक्षा मंत्री द्वारा बड़े बड़े वादेभी किए जाते रहे है मगर वाश्त्विकता येः है की वादों मैं धयान तो छोटे वर्गो का भी होता है लेकिन वो सिर्फ़ वही तक सिमट कर रह जाता है .अमल मैं लेन से पहेले ही चापलूसों की नज़र लग जाती है और फिर वही होता है जो आज तक सरकारी स्कूलों का होते आया है .यहाँ पड़ने वाले ज्यादातर बच्चे ये तो गरीब परिवार से ही होता है ये फिर किसी कम आमदनी वाले घर से बात एक ही है यहाँ सिर्फ़ गरीबो के बच्चे ही पढ़ते है तो धयान देने की जरूरत क्या है .इलेक्शन आते ही वादे करके सारा काम हो जाएगा तो फिर कहे का दिमाग लगना .आज ज्यादातर स्कूलों की हालत ऐसी है की वहां पर्याप्त मात्र में शिक्षक ही नही है और जो है भी उनमे भी कए तो सिर्फ़ नाम मात्र के ही पढ़ते है उनको सिर्फ़ दुएइटी करनी है .एक तरफ़ सरकार देश के लिया ऊँचे ऊँचे सपने देखती है शिक्षा को लेकर दुश्री तरफ़ इतनी बड़ी खाई है इसमे .एक तरफ़ तो बाचे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ कर बड़े बड़े बन्ने का सपना देखते है वही आज भी सरकारी स्कूलों के बच्चे अपने आपको हिन् मानते है .येः बड़ी खाई ही समाज में इतनी आसमानता लती है तो सरकार को येः भी धयान रखना चयिया की सिर्फ़ वादे करने से नही जमीनी हकीकत से जानकर होना होगा तभी देश की सरकारी शीशा सुधर सकती है.

लालू की वापसी

लालू यादव की पार्टी ने बिहार उपचुनाव के परिणाम में जो सफलता पाई है वो पार्टी के लिए एक प्राणवायु का कम कर सकती है .लगातार मिल रहे हार के बाद ये जीत वाश्त्विक में लालू यादव के लिया कुछ रहत वाली है .बिहार मई जातिकी राजनीती तो पुरनरुपेंअभी खत्मनही हुई है लेकिन कुछ सकारात्मक शुरुआत हो चुकी है .श्याम रजक द्वारा पार्टी को चोरने के बाद येः कहना शुरू हो चुका था की लालू यादव के बुरे दिन सुरु हो चुके है .लोकसभा चुनाव के बाद लालू यादव के लिया येः सबसे बड़ा झटका था फिर तस्स्लिमुद्दीन द्वारा पार्टी छोरनेके बाद आवाज़ और तेज़ हो गई लेकिन बिहार के उपचुनाव मैं शानदार रिजल्ट और दिल्ली की विधानसभा मई पार्टी के मेंबर के पहुचने से लालू की पार्टी में फिर से जान आ गया है और हो न हो येः यादव के लिया येः एक सुभ संकेत हो और विरोधियो के लिए एक सबक की लालू को बिहार की राजनीती से हटाना कोई मुट्ठी का खेल नही है.

बिहार उपचुनाव और नीतिश की हार

बिहार में हुए उपचुनाव में सत्तारुड जेडीयू बीजेपी गठबंधन को अपेक्षित सफलता नही मिलने के कई कारण हो सकते है .इन कारणों के बारे में अगर सही से विवेचना की जाय तो कुछ मालूम चल सकता है .पहली बात तो येः है की नीतिश कुमार की सरकार द्वारा जो बात की जा रही है वो कही न कही कम sabit हो रही है.कुछ महीने pahela जो महादलित श्रेणी बनाई गई थी उसमे पस्वानो को नही सामिल करना भी एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है.एक महत्पूर्ण कारण बिहार में अगड़ी जाती के लोगो का नीतिश से मोःभंग होना भी है .नीतिश कुमार के समय में टीचर्स की बहाली में जो शिकायते आ रही है वो भी एक कारण हो सकता है .तीसरी बात येः हो सकती है की नीतिश द्वारा जो दुसरे पार्टी से आए हुए लोगो को जो टिकेट दिया गए वो कही न कही आम पार्टी के लोगो को उपरी तोर पे नही लेकिन अंडर से चोट पंहुचा रही थी.इसका येः एक कारण हो सकता था अब नीतिश कुमार को खास तोर पे येः धयान देना होगा की पार्टी के लोगो को नाराज़ करके चुनाव नही जीते जा सकते है ,उपचुनाव में उन्हें येः सबक मिल ही चुका है.

Sep 16, 2009

एक अनुरो़ध सभी से

देश की राजनीती मेंलगातार एक नया मोड़ आ रहा है .हर राज्य की स्थिति तो ठीक थक ही लग रही हैलेकिन १५ नवम्बर को बने राज्य झारखण्ड की स्थिति बहुत ही विकटहै .लगातार सत्ता परिवर्तन के कारण येःराज्य सबसे ज्यादा खनिज होने के बाबजूद सबसे पिछाडा हुआ है .यहाँ की स्थिति सारा कुछ बता देते है येः राज्य सिर्फ़ धन कमाने का एक जरिए हो गया है .यहाँ के मंत्री तो अरबपति हो बाते है चाएःजनता को कुछ भी हो इनका सारा धयान तो बस एक जगह धन के खदान पर लगा हुआ है । बात अगर यहाँ के इंडस्ट्री की करे तो टाटा जैसी कंपनिया यही है.लेकिन फिर भी सबसे ज्यादा गरीब लोग यही है .कारण तो बहुत है आख़िर कितने के बारे में लोगो को पता है येः बड़ी बात है.खैर जनता तो सबसे आसान साधन है जिसे कोई भी कुछ कर सकता है .अभी देश में लगातार युवा की बात चल रही है .झारखण्ड में भी टॉप युवा ही थे कैबिनेट मेफिर क्यों नही बदलाव आया खेर येः भी बहुत ही लंबे विवाद का विषय है .सिर्फ़ नेता बंननेसे कुछ नही होता है, होता है निःस्वार्थ सेवा की भावना की अगर वही नही है तो सारा कुछ बेकार .देश को बदलने को लेकर काफी बातें होती रहती है लेकिन देश को बदलने के लिया किस चीज़ की जरुरत सबसे ज्यादा है वो किसी को नही पता .जो कभी गावं नही गया जिन्होंने कभी गावं नही देखा क्या बदलेंगे वो सूरत इनकी येः तो वही होगा बिना जाने ही किसी चीज़ के बारे में दिस्कुस्स करना .खैर अब हमारी कोशिस यही होनी चह्यिअकी हम और राज्य को झारखण्ड न होने दे .देश के विकास में एक सही योअग्दान दे .

Sep 14, 2009

आ गया मेरा गावं

दुनिया के रंगों मई रंगा था मेरा बचपन ,न कोई गिले ,न किसी से शिकवे शिकायत
बस खुस रहना ,हँसाना यही तो जिंदगी थी
देखते ही देखते यौवन ने आ घेरा मुझको
मै भी दुनिया से मुखातिब होने लगा
स्कूल पढ़ने से फुरसत ही न रहा
दोस्तों के समय भी घटने लगे
धीरे धीरे एकाकीपन सी आने लगी
फिर एक दिन छुट गया गावं ,छुट गए बचपन के दोस्त
डगर हो गई कठिन ,
दुनिया की भीड़ मे हो गया शामिल शहर महानगर जिंदगी इन्ही के बीच पिसने लगी
गावं अब पुराना सा लगने लगा ,
दोस्तों के नाम ख्यालो मे भी आने से परहेज़ करने लगे ,
फिर एक दिन हो गई शादी , रम गया अपने आप मे
भूलने लगा रिश्ते नातो को
जिंदगी के ढंग ही बदलने लगे
गावं दोस्त तो कब के छुट चुके थे अब छुटने लगे अपने भी
माँ ,पिता ,भाई ,बहन , अब लगने लगे पराये से
याद भी उनकी यदा कदा ही आती थी ,
फिर आ गए घर नए मेहमान
बस फिर भूल गया सारे रिश्ते को
ये बीते ज़माने से लगने लगे ,
अपने भी कोसो दूर हो गए
बढ़ता गया जीवन , बढ़ती गई दुरी
गावं ,समाज ,माँ ,बाप तो कब के छुट चुके थे
अब छुट गई वो भी
बड़े हो गया नन्हे मेहमान
लेकिन वो भी दिल से दूर जाने लगे
उनकी भी हो गई नई जिंदगी
अकेला हो गया मैं ,
फिर याद आया गावं ,बचपन और बचपन के अल्हड़पन भरे दिन ,
एक कसक सी उभर आई दिल मे
याद आने लगे रिश्ते ,नाते ,अपने
पास जाने को करने लगा दिल अपनों के बीच
मगर चाह कर भी नही जा सका
टूट गए सरे अरमान ,
छुट गए सरे दिल ऐ साजो सामान
फिर न रहा पास वो शाहर ,न रहे शाहर के चाहने वाले लोग
फिर चल पड़ा एक दिन मैं , एक अंजानी राह पर
मंजिल का पता नही पर बस चल पड़ा
छुट गई शाहर की जिंदगी
रास्ते मे याद आने लगे अपने
अपनों के बीच पाने को बेताब होने लगा मन
दिल चाह कर भी उनसे दूर न जा सका
फिर आ गई याद गावं की ,चल पड़ा राह वो अनजान छोड़
उस राह पर ,जहाँ था गावं मेरा
थे मेरे अपने नाते -रिश्ते ,थे मेरे अपने दोस्त यार
जम गई फिर वही महफिल ,
और फिर आ गया मेरा गावं ,आ गया मेरा गावं

Sep 13, 2009

तिरंगा हमारा शान


देश की आजादी को हम किसी भी कीमत मैं खोने नही देंगे .हम लोगो मैं येः भावना होनी चाह्यिया की हम किसी भी कीमत पर अपने तिरेंगे की शान को झुकने नही देंगे .हमें एक प्रतिज्ञा लेनी होगी की जो भी हो अगर कोई तिरेंगे के बारे मैं कोई ग़लत बात करेगा तो या तो उसका सर होगा य़ाःफिर हमारा . अगर आप एक सच्चे भारतीय है तो आज ही मेरी बात पर अपनी एक टिपण्णी जरूर दे .देश हमारा है हम किसी भी कीमत पर इसका आपमान नही सह सकते चाहए कुछ भी हो जाए .
सायद आज हम यह सोचने लगे है की दुनिया सिर्फ़ नए नए फैशन का हो गया है .हमारा सोचना भी बिल्कुल सही है लेकिन सायद हम हमे यह नही भूलना चाहिय की देश मैं अभी भी सभ्यता संस्कृति मौह्जूद है .नारी का जो शौन्द्रय साडी और गहनों मैं अच्छा लगता है सायद वो किसी और परिधान मैं अच्छा नही लगता है .आप बतायिया क्या मैं कुछ ग़लत कह रहा हु आपके अनुसार क्या होना चाहए .................................................

Sep 12, 2009

देश तो हमारा आजाद हो तो गया लेकिन हमारी मानसिकता अभी तक नही बदली है,आए दिन ऐसी घटनाये होती रहती ही की हम चाह कर भी कुछ नही कह पते है.चाहे किसी महिला के साथ बलात्कार हो जाए किसी बच्चे को जबरदस्ती तरह तरह की यातनाए दी जाए!हमारा तो बस कम ही है घटनाओ को देख कर अपना मुह मोर लेते है!आख़िर कब तक हम ऐसे ही सहते रहेंगे !आख़िर हम कब कुछ कहंगे !तब जब हमारे ऊपर ऎसी किसी तरह की घटनाये होंगी,...............................................................................आप अपने विचार जरूर दे !आपके विचारो की सख्त जरूरत है !

Feb 11, 2009

youths

dear
it was quite clear from the 20-20 match played between india and srilanka that youths can change everything.in the last moment of the game the pathan's take the match away from the lankan's,this is how we can done any things on the same basis but only a serious effort be needed.we can drove the air in favour of us by practicising by our effort,without it we can't do anything.

Feb 8, 2009

for the youths

dear,

you all very well know that the standard of politics in our country goes dirty day to day.and it would be well only when you all had take active part in it.nowdays it has been seen that very few youth wants to join the politics,even they had't take interest.and due to this region the condition became critical day by day.and no doubt in saying it that it would de more.so i request you that at least participate in it and make the feet of country strong.thank you and have a desire for your good future.