Oct 21, 2009

क्या कहूँ

यात्रा को अगर शब्दों में लिखने को कहा जाए तो एक बार तो लगता है क्या लिखू कहाँ से शुरुआत करूँ पर कुछ तो करना पड़ेगा चलिए कुछ लिखते है .मैंने अभी हाल में ही रुद्रपुर की यात्रा की है मिला जुला हुआ ही रहा ,चाचा की इस दुनिया को अलविदा कहने की ख़बर पहले ही मिल चुकी थी ,उत्साह हाफ हो गया था .खैर फिर भी उनके आखिरी संस्कार में समय से पहुँच नही पता तो पुराने प्रोग्राम पर ही चल पड़ा .बस पॉँच घंटे की यात्रा थी ,सोचा यूँ ही कट जायेगी पर हुआ ऐसा कुछ भी नही जो हुआ मैं लिख रहा हु .अगर सही लिखूं तो एक बात जरूर कहना चाहूँगा की अगर आपके बगल में कोई लड़की बैठी है तो बड़ा गजब सा माहौल हो जाता है ,मेरा सीट भी कुछ इसी तरह पड़ा आप इसे सौभाग्य कहिये लेकिन मैं इसे दुर्भाग्य ही मानता हु ,मैं समझता हूँ की इससे आजादी में कुछ कमी आ जाती है खैर हटायिए जो भी हो .मैंने एक बात जो आज तक अनुभव की है की अगर आप किसी लड़की के बगल में बैठे है और वो आपके बगल में तो प्रतिक्रिया के बारे में दोनों सोचते है ,आपको अब तक लग गया होगा की आज मैं पुरे रंग मैं हूँ पर हाँ मैं आपको बता दू की ये वो बात नही है जैसा की आप अब तक समझ रहे है .मैं तो सिर्फ़ ये बता रहा हु की आख़िर होता क्या है ?मैं विण्डो सीट पर था आख़िर सीट बुक थी मेरे नाम ,हकदार था मैं पर क्या बताऊ क्या हुआ ,मैं थोडी देर तक तो अपने जगह पर ही बैठा रहा लेकिन उसके बाद क्या हुआ होगा आप सोच चुके होंगे ,वही जो होता है एक हलकी सी बात और जगह फिर दुसरे के पास ,पर मैं औरतो को सीट दे दिया करता हु लेकिन आज लड़की को भी दे दिया ,बस फिर क्या मैं इधर मेरे उसके बीच उसके पापा फिर मैं ?मैं बहुत देर तक यही सोच रहा था की मैंने उसे सीट आख़िर इस तरह दे दिया पर अब तो जो होना था वो हो चुका था ,बस मैंने उस को वही भूल कर अलग काम में लग गया पर वो नही भूल सका ?एक बात मैंने जो मैंने जानी वो ये क्या की कैसे मन badalta है ?

Oct 15, 2009

अटपटी सोच

शहर की मारामारी और हम शायद हर किसी को अटपटा सा लग...
शहर की मारामारी और हम शायद हर किसी को अटपटा सा लग रहा होगा की मैं इस पर क्या बकवास लिख रहा हु , या मैं जो भी लिखना चाह रहा हूँ उसका मतलब क्या कुछ है .कुछ खटपट तो जरूर है जिसने मुझे लिखने को मजबूर किया है या हो सकता है मुझे कुछ ऐसा दिखा हो जो की लिखने लायक हो .पर बात अगर मैं कहूँ की ऐसी वैसी नही तो थोड़ा अचरज तो जरूर होगा .खैर मैं फिलहाल नॉएडा में वास कर रहा हूँ एक छोटा सा कमरा है जिसमे जिंदगी के साँस को अन्दर बाहर करता हूँ ,आखिर जरूरी है करना ही पड़ेगा नही तो इस पर लिखूंगा कैसे .खैर जाने दीजिये इन बातो को ये तो टेंशन में आदमी ऐसे ही लिखता रहता है .अब थोडी काम की बात हो जाए अरे पर यहाँ तो मुझे कुछ काम ही नही है ,सुबह उठ कर नहाना ,फिर कॉलेज जन नेट परसमय देना ,एक से एक खतरनाक क्लास करना यही तो है फिलहाल जिंदगी ,पर हाँ एक चीज़ है जो मुझे सोचने को कुछ देर तक विवश करता है वो तब जब मैं बस में सफर करता हूँ .उतनी भीड़ एक दुसरे के उपर आने को आतुर ,खैर बस है तो भीड़ तो होनी ही चाहिए नही तो काम नही चलेगा .मैं सोचता हु की यहाँ की जिंदगी क्या है क्या सोच कर महानगर में लोग आते है जिंदगी बिताने को वो बिता तो रहे है पर जो कल तक गावं में एक दूजे के लिए था वो अब अपने के लिए हो गया .यहाँ आने के बाद भूल जाते है लोग मानवता ,भाईचारा ,बंधुत्व और कितने उपमे से अलंकृत करू शायद कम पड़ जाए .मैं देखता हु की यहाँ जिंदगी है शाम या रात को घर आओ फिर खाना बनाओ फिर खाओ और फिर सुबह उठो और काम पर जाओ .फुरसत मांगे भी नही मिलती अरे कंपनी में और भी समय देना है पैसे की खातिर चाहए कुछ भी हो जाए देश फिर भी गरीबी में ही है .कहाँ से उपाय करे ,अरे मैं तो लग रहा है भटक गया मुद्दे से अरे यही तो होता है हर के साथ यहाँ ?

Oct 13, 2009

लोग कहते है की अगर आप किसी की मदद करते हो तो कोई न कोई किसी न किसी तरह ,जिंदगी में कभी न कभी आपकी मदद किसी न किसी रूप में कर ही देता है.खैर जो भी हो मैं जहाँ तक सोचता हु तो ये बात मेरे हिसाब से सही है .मेरे निज के साथ तो ऐसा कोई मौका नही आया है पर मैंने लोगो की अपने तरीके से कुछ न कुछ मदद करने की कोशिस की है ,मतलब जहाँ तक मुझे लगा है तो मैं बस कहना चाहता हु की अगर किसी की भी मदद कर सकते तो मेरे तरीके के अनुसार करना चाहिए .मैं यहाँ पर एक और बात करना चाह रहा हु की अगर हम किसी की जरूरत को किसी भी हद तक समझ सकते है और उसे कुछ दूर कर सकते है तो जरूर करना चाहिये .एक घटना का मैं यहाँ विशेष तौर पे जिक्र करना चाहता हु .मैं इस बार होली पे पठानकोट गया था .खैर जिस घटना के बारे में कहना चाह रहा हु वो ये क्या मैं जब वापस आ रहा था तो मैंने जनरल क्लास में यात्रा करने की सोची .भीड़ जबरदस्त थी और किसी तरह बस पैर रखने की थोडी सी जगह थी .मैं ट्रेन में सवार तो हो गया पर मैंने देखा की लोग परेशान है.मैंने अपने साथ कुछ खाने की भी चीज़ ले ली थी .मगर जो मेरे साथ हुआ वो मैं कभी नही भूल पाऊंगा . एक बुढा आदमी कुछ बडबडा रहा था मैंने जानने की कोशिस करने लगा तो मुझे पता लगा की वो तीन दिनों से भूखा था .मुझे लगा की ये भूख से गुस्सा रहा था मैंने उनसे कहा की मेरे पास कुछ है उसने बिना कुछ सोचे अपने कहा बड़ी जोर से भूख लगी है .मेरे पास जो भी था मैंने उन्हें दे दिया वो बस खाने लगा .मैं उसे देखता रहा और बस एक चीज़ मेरे मन में आ रहा था की क्या है दुनिया ?और क्या होती है भूख ?खाने के बाद मैंने देखा की उनके मुख पर एक जो भाव था वो सायद मुझे कुछ न कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया ?मैंने देख लिया की दुनिया में अगर किसी की मदद की जाए तो उसके बाद जो एक शकुन मिलता है वो मैंने उसके बाद समझ लिया ?

Oct 12, 2009

मध्यप्रदेश में नया फार्मूला

मध्यप्रदेश में अब मंत्री और ऑफिसर प्रतिदिन डायरी लिखेंगे ,इस डायरी में जो मुख्या बात होगी वो ये क्या की वो प्रतिदिन किससे मिलते है ?कौन से सरकारी काम निबटाते है इन सब चीजों को लेकर होगी .सबसे जो मुख्य बात है वो ये क्या की मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री का मानना है की इससे सारी जानकारी मिल सकेगी की कौन से काम समय पे पुरा हुआ या नही हुआ .इसके द्वारा जो मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की एक सोच की इससे लोगो में सरकार की लोकप्रियता भी बढेगी ,लोगो को सरकार से जुड़े मामले में सच्चाई नज़र आएगी .इस के परिणाम स्वरुप लोगो की समस्स्याओ को ज्यादा अच्छे से निपटाया भी जाया जाय सकेगा .इस में अधिकारी लोगो के वास्ते जो नियम है वो है की उन्हें इसमे प्रतिदिन का एक तरह से हिसाब ही देना होगा .अधिकारियो को ये बताना होगा की उन्होंने महीने में क्या क्या काम किया और उसमे आवश्यक कितने थे .अपने विभाग को लेकर कितने महत्वपूर्ण फैसले लिया .एक बात तो जरूर है की इस कदम की प्रशंसा तो करनी ही चाहए की कम से कम सरकार के मुखिया ने येः तो सोचा की कैसे प्रशासन को ज्यादा पारदर्शक बनाया जाय। .वही दूसरी ओर मंत्रियो को भी हर महीने अपने काम के बारे में जानकारी देनी होंगी .अपने प्रभार वाले जिले के दौरे की भी जानकारी देनी होंगी .साथ ही साथ येः भी बताना होगा की अपने मंत्रालय में कितना समय दे रहे है .अधिकारियो की रिपोर्ट तो हर महीने १५ तारीख को वेबसाइट पे होगी पैर मंत्रियो की रिपोर्ट को सिर्फ़ मुख्मंत्री ही पढेंगे .मेरा मानना है की सरकार को लोकसभा के परिणामो ने इस चीज़ को करने को उकसाया जैसा की चुनाव परिणाम ने जता दिया की सरकार से जनता उतनी खुस नही है .खैर जो भी हो येः कदम स्वागत के योग्य है .

Oct 9, 2009

चुनाव में शब्दबाण


चुनाव हो और शब्दबाण न चले ये तो हो ही नही सकता है .लोकसभा चुनाव के दौरान गुजरात के मुख्मंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पार्टी को बुढ़िया और गुडिया कहा था .कांग्रेस तो चुनाव जीत के सत्ता में आ गई लेकिन बीजेपी का क्या हुआ हम देख ही रहे है.ठीक इसी तरह २००७ के गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान सोनिया गाँधी ने नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कहा था वहां भी हमने देखा की किस तरह मोदी जीत कर आए .मैं यहाँ पे महाराष्ट्र चुनाव की बात कर रहे हु जहाँ अभी कुछ ऐसा ही चल रहा है .शिवसेना और बीजेपी के गठबंधन को राज ठाकरे के मनसे ने लोकसभा चुनाव में काफी नुक्सान पहुचाया था और फिर से उनकी पार्टी के उम्मीदवार विधानसभा चुनाव में मैदान में है और राज मराठी मानुस के मुद्दे को लेकर चल रहे थे और है .एक बात जो जरूरी है वो ये की राज ठाकरे को शिवसेना के बारे में अच्छी तरह पता है और उद्धव के बारे में भी .शिवसेना अपने को मराठो की हिमायती के रूप में पेश करते आई है और उसे राज की पार्टी से इस मुद्दे पर कठिन मुकाबला करना पड़ रहा है .शिवसेना को भी पता है की अगर इस बार सत्ता अगर हाथ नही लगी तो फिर आगे मुस्किल है तो उन्होंने राज के उपर कड़े प्रहार करने सुरु कर दिए है ताकि राज इसमे उलझे रहे और फायदा उन्हें हो .हाल में ठाकरे सीनियर द्वारा कहा गया की राज जिन्नाह है जो महाराष्ट्र का बटवारा करना चाहता है ,वही दूसरी ओर उद्धव ने राज को सुपारीमैन कहा है जो कांग्रेस ओर राकपा को जिताने की सुपारी ले चुका है .बात बिल्कुल स्पष्ट है की उद्धव ओर उनके गठबंधन के लिए राज एक मुसीबत बन गए है ओर वे हर हाल में इससे पीछा छुड़ाना चाहते है .वही दूसरी ओर ये भी कहा जा रहा है की अगर कांग्रेस को पूर्ण बहुमत नही मिला ओर राज के पास कुछ सीट आ गई तो वे कांग्रेस को सपोर्ट कर देंगे .कांग्रेस नेता ओर पुराने शिवसैनिक नारायण राणे ने इसका खुलाशा भी किया है.वही दूसरी तरफ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक चाहवान ने ये कह कर राज पर टिपण्णी की है की वो तो एक मेढक है जो मानसून आने पर तर्तारता है .अब देखना ये दिलचस्प होगा की क्या चुनाव बाद कोई ऐसी संभावना होगी की शब्दबाण चलने वाले के साथ परेशानी हो .ये तो २२ अक्टूबर ही बताएगा .

आडवाणी के सन्यास की घोषणा

बीजेपी में चल रही खीचतान के बाद जो सारे लोग एक आसरा लगाये बैठे थे की कब पार्टी में परिवर्तन होगा तो शायद उन लोगो के लिए एक राहत वाली बात सामने आ ही गए मैं यहाँ अडवाणी जी के बारे में ही कह रहा हु.आखिरकार उनके भरोसेमंद नायडू ने एक टीवी पर इस बात को खुलेआम स्वीकार कर लिया की अगले चुनाव में आडवाणी जी के नेतृत्व में चुनाव नही लड़ा जाएगा .इस बात को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद ही कानाफूसी शुरु हो गए थी की इस चुनाव में पार्टी ने जो किसी एक पर ही मुख्य रूप से जो इतना बल दिया उसी का परिणाम सामने बीजेपी की हार का कारणबना .यहाँ पर एक बात और भी है की आडवाणी जी ने भी इस बात को कहीं न कहीं स्वीकार कर लिया की देश की ज्यादातर जनता को वे प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार्य नही है.आडवाणी जी ने राजनीती में आधी से भी ज्यादा जिंदगी बिता दी और अच्छे और बुरे का उन्हें एक बहुत ही शानदार अनुभव है,तो हो सकता है की उन्होंने सोचा होगा की अब जो है इस तरह के हालात से तो ठीक यही होगा की राजनीती से सन्यास ही ले लिया जाए .वही दूसरी तरफ़ संघ की ओर से भी इस तरह की बातें सामने आ रही थी की बीजेपी को अब किसी युवा नेतृत्व की जरूरत है ,ये बातें भी आडवाणी जी के लिया बहुत ठीक नही थी .एक बात जो हो सकता है संघ को या बीजेपी के लोगो को नागवार लग रहा था वो शायद ये था की अचानक आडवाणी जी उस हिंदुत्व की बात को लोगो के सामने नही कह रहे है जो वो पहले किया करते थे जिनसे उनको लोगो का बड़ा आर्शीवाद प्राप्त था .यहाँ पर एक बात ओर भी गौर करने लायक है की जिस तरह बीजेपी ने शिमला बैठक के समय जसवंत सिंह को पार्टी से निष्कासित कर दिया क्या वही कुछ संघ के राजगीर में चल रहे बैठक का तो नही?खैर जो भी हो मुझे लगता है की आडवाणी जी के लिए सही समय है ओर पार्टी को मजबूत अगर बनाना है तो आडवाणी जी को इस चीज़ के बारे में सोचना ही होगा ओर पार्टी में कुशल लोग तैयार करना उनकी जिम्मेदारी होगी .

Oct 6, 2009

खर्चे में कटौती

कांग्रेस पार्टी के लोगो को सादगी बरतने का नया आदेश आलाकमान की तरफ़ से आया है .आदेश की अवहेलना भी शुरु में कई लोगो ने की और अपनी आवाज़ उठाई .लेकिन एक बात जो यहाँ क्लेअर है वो ये की वास्तविक में क्या हमारे देश में लोग ऐसा कर पा रहे है तो मैं मानता हु की इस बात को हमें सिर्फ़ कांग्रेस पार्टी के लोगो से रिलेट कर के नही देखनी चयिए हमें और पहलुओ पर भी बराबर धयान देना चयिए .सबसे बड़ी बात है की क्या सिर्फ़ प्लेन के इकोनोमी क्लास में यात्रा करने या स्टार होटल्स में न रुकने से ही ये बात ख़त्म हो जायेगी या फिर मितव्यता की जो परिभाषा दी जा रही है वो पुरी तरह से लागु हो जायेगी .आज भी हमारे बहुत से नेता इस बात को नही समझ पा रहे है या हो सकता है की वो चाह कर भी अपने आदत को नही छोड़ सकते .एक बात और है जहाँ एक तरफ़ पैसे बचाने की बात हो रही वही दूसरी बात ये है अभी जो हरियाणा चुनाव में जो ४८९ लोगो का सर्वे किया गया तो उसमे से २५१ करोड़पति निकले .इन में से कांग्रेस के ही सबसे ज्यादा ७२ लोग निकले जहाँ एक बात है की एक तरफ़ तो कांग्रेस खर्च में कमी की बात कर रहे है वही दूसरी ओर करोड़पति लोगो को चुनाव में ज्यादा से ज्यादा टिकेट दिया गया है .एक बात में जो मेरे समझ में नही आती वो ये की जब कम खर्च की बात चल रही है तो हमारे सरकारी बाबुओ को एक दिन पैदल चलने को कुअन नही कहा जाता .अगर हम सारेलोग जब तक मिल कर इस बात की जिम्मेदारी नही लेंगे तब तक कुछ नही होगा .सिर्फ़ बात कहने से नही उसके पालन करने से होगी .

Oct 5, 2009

झारखण्ड चुनाव की जरूरत

झारखण्ड में केन्द्र द्वारा अभी चुनाव नही कराने के कई कारण सामने आ रहे है .सबसे बड़ी बात जो है वो येः है की कांग्रेस सरकार को भी पता है की अभी झारखण्ड में माहोल अभी उनके अनुकूल नही है ,इस कारण से उन्होंने वहां के राज्यपाल रजी को बदलकर के शंकर्नारायण को बनाया है .कांग्रेस का सोचना है की हो सकता है अभी राज्यपाल द्वारा कुछ काम करा देने के बाद जनता का कुछ मन उनके तरफ़ हो जाए फ़िर चुनाव कराया जयेगा .सबसे बड़ी जो बात है वो ये है की क्या झारखण्ड इतना कुछ खनिज संसाधन होते हुए भी पॉलिटिकल कारण से ही आज इतना पिछड़ा है तो शायद ज्यादातर लोगो के जबाब हाँ में आयेंगे .झारखण्ड की हालत लगातार बदतर होती जा रही है .नक्सली गतिविधि तो वहां बहुत पहले से ही हो रही है लेकिन लोगो में बरोजगारी भी बढ़ रही है .आज झारखण्ड को एक सशक्त और स्थिर सरकार की जरूरत है वो चाए बीजेपी की हो या कांग्रेस की और केन्द्र सरकार को भी इस बात पे खास धयान देना चाहिए की वहां जल्द से जल्द चुनाव करवा के एक चुनी हुई सरकार बहल करने की होनी चाहए ताकि झारखण्ड में विकास जल्द से जल्द हो .झारखण्ड में लोगो को भी इस बात का धयान अब रखना चाहए की वो एक ऐसी पार्टी को मत दे जो स्थिर सरकार का निर्माण कर झारखण्ड का विकास कर सके .

Oct 4, 2009

अरुणाचल से सीख

हमारे देश में आज के समय में चुनाव में आए दिन धन बल और बाहुबल का प्रयोग हो ही रहा है .कोई कितना भी कह दे लेकिन आज के चुनाव के लिए सबसे बड़ी बात जो है वो है धनबल इसके बिना आज कोई चुनाव जितना मुश्किल ही है .लेकिन में जिस बात के विषय में कहना चाहता हु वो ये क्या की आज क्या ये संभव लग रहा है की कोई निर्विरोध चुनाव जीत जाए शायद ये अगर आम जानो की रायली जाए तो ज्यादातर के जबाब नही ही आयेंगे .लेकिन मुझे लगता है की ये भी सम्भव हो सकता है अगर किसी चुनाव लड़ने वाले ने जनता का दिल जीत लिया हो अपने काम से ,अपने विचार से ,अपने व्यवहार से .अरुणाचल प्रदेश में कुछ ऐसा ही हुआ है इस बार के विधानसभा चुनाव में जहाँ १३ अक्टूबर को वोट डाले जायेंगे उससे पहले ही नामांकन के जाँच के बाद ३ लोगो को निर्विरोध चुन लिया गया है .किसी भी राज्य के सरकार में सबसे बड़ा काम उसके मुखिया का होता है .उसके उपर ही ये निर्भर करता है की सरकार को कैसे लोकप्रिय बनाया जाए और इसके लिए वो अपने सहपाठियों को बार बार दिशानिर्देश भी देते रहता है .चुनाव के समय सरकार की असली परख होती है की लोगो के बिच उसकी लोकप्रियता क्या है ?अगर वो सत्ता में वापस आ जाती है तो ये कहा जाता है की उसके काम से जनता संतुस्ट है .अरुणाचल में जो तिन लोग चुने गए है उसमे से दो तो पहले भी चुने गए थे जिसमे एक ख़ुद मुख्यमंत्री दोरजी खांडू है .सबसे बड़ी बात है की की खांडू से वहां की जनता संतुस्ट है इसलिय ही तो वे निर्विरोध चुने गए। दुसरे चुने गए विधायक का नाम तवांग शहर के मौजूदा विधायक सेवांग घौंदुप है .तीसरा जोचुने गए है वो पहली बार ही चुनाव लड़ रहे है .वो लुमला सीट से चुने गए जम्बो तशी है .सबसे बड़ी बात है की तीनो के तीनो ही कांग्रेस के टिकेट पे चुने गए है .एक बात तो यहाँ से देश के और भाग के नेताओ को सीखनी चाहए वो ये की वो भी जनता के बीच कुछ ऐसा ही काम करे जिससे वो भी इसी तरह निर्विरोध चुने जाए .एक बात जो स्पस्ट है वो ये की अगर हम अपने को पुरी तरह जनता का सेवक बना दिया तो वो भी हमें मौका देते रहेंगे .

बीजेपी को लेकर जनमानस

नईदुनिया अख़बार द्वारा भाजपा में सबसे उपयुक्त हेड कौन होगा उसमे नरेन्द्र मोदी को जनमानस द्वारा सबसे ज्यादा पसंद किए जाने के बाद एक बात जो स्पष्ट है वो ये की भाजपा को हिंदुत्व की राह नही छोडनी चयिए .भाजपा में एक धड़ा तो लोकसभा चुनाव के समय ये सोचता था की भाजपा को उदारवादी पार्टी के रूप में अपने को विकसित करना चयिए लेकिन अगर एक बात सच है तो वो ये की भाजपा ने जो इस नई परिकल्पना को अपनाया वही कही न कही इसके हार का कारन बना .भाजपा को इस बात का खासा धयान देना होगा की पार्टी का जो मुख्या मुद्दा था वो कहीं गौण न हो जाए .भाजपा के विषय में अभी भी बहुत से लोगो में येः धारणाहै की यही पार्टी हिंदू लोगो की हित में काम कर सकती है ,लेकिन जैसे ही भाजपा ने इस लोकसभा चुनाव में वो दामन छोड़ अपने को नया बनानेकी कोशिस उसने तो बीजेपी का लुटिया ही डुबो दी .बीजेपी को इस सर्वे से इस बात की सबक तो लेनी ही चयिए की पार्टी को अपने हिंदुत्व को लेकर आगे जन चयिए और इस बात का हमेशा से ख्याल रखना चयिए की पार्टी इस विचारधारा से भटकने न पाये .ज्यादातर स्टेट के लोगो ने पार्टी के टॉप पोस्ट के लिया नरेन्द्र मोदी को ही बेस्ट मन है इसका मतलब तो ये है की लोग अभी भी सिर्फ़ यही चाहते है की पार्टी को ऐसा नेतृत्व चयिए जो अपने मुद्दे से दूर न जाए और हिंदुत्व की राह भी न छोडे खैर जो भी हो लेकिन इतना तो स्पष्ट ही लग रहा है की बीजेपी को अगर अपने को फिर से उसी तरह की पार्टी बनानी है तो जनता की बात तो सुननी ही होगी .

Oct 1, 2009

हमारी नई सोच

महानंदा एक्सप्रेस में हात्रस में हुआ हमला हमारी इस सोच को उजागर करता है की हम सिर्फ़ अपनी जरूरत के कारन किसी और की जरूरतों ककुच भी धयान नही रखते है .हम शायद इस बात को मानते ही नही है की किसी भी चीज़ को बर्बाद करने से पहले हमें येः सोचना चाहए की वो हमारी निजी नही है .बात अगर निजी की करे तो बस हमें सिर्फ़ अपना घर और उसमे रखे कुछ चंद वास्तु ही नज़र आते है .हम इस चीज़ को कभी नहियो सोचते है की देश की सम्पति भी अपनी है अगर हम ख्याल नही रखेंगे तो कोण रखेगा .खैर यहाँ जो बात है की हम उस बात को बर्दास्त ही नही कर पाते है जो हमको फायदा ने दे .कुछ दिनों पहले बिहार में पटना के पास भी श्रमजीवी एक्सप्रेस में ऐसा ही कुछ हुआ था और पुनजब के जालंधर में भी हुआ था .हम ट्रेन को ही निशाना बना रहे है जो बहुत लोगो के साथ जुड़ी है .हमें इस बात का धयान रखना ही होगी की हम अपने चलते किसी और को परेशानी में न डाले .

आंध्र प्रदेश का मामला

आन्ध्र प्रदेश में उठा बबालअभी तक शांत नही हुआ है .जगन समर्थक ,समर्थक क्या अपने फायदे देखने वाले लोग चाहते है की कुर्सी जगन को दे दी जाए लेकिन कांग्रेस आलाकमान नही चाहती है की किसी ऐसे को कुर्सी दे दी जाए जिसे अभी राजनीत में आए जुम्मा दिन भी नही हुए है .जो मूल रूप से एक व्यापार करने वाला है .जगन के समर्थन में जो नारा लग रहा है और जो आवाज़ लगातार आ रही है वो येः की फिलहाल वहां की राजनीती में कुछ तो गड़बड़ जरूर है .एक तरफ़ तो जगन अपने लोगो को समझाने की कोशिस कर रहे है लेकिन कहीं न कहीं ये बात भी उनके मन में जरूर है की इससे अच्छा मौका फिर नही मिल सकता इसका फायेदा ऊठाया जाए और अभी तो उनकी सुरुआत ही है राजनीत में और इतना अच्छा मौका ?दूसरी तरफ़ कांग्रेस पार्टी लगातार ये कोशिस कर रही है की किसी तरह इस को शांत किया जाए .कांग्रेस के प्रवक्ता लगातार इस बात से बच रहे है की उनका जगन के मानले में क्या कहना है.पार्टी के लोग इसे अंदरूनी मामला कह कर ताल रही है .आख़िर आन्ध्र प्रदेश में लोग ऐसा किस कारन से सोच रहे है तो इसका एक ही उत्तर है की कहीं न कहीं इन लोगो को जगन के मुख्मंत्री बनने से फायदा ही है जो चीज़ रेड्डी के समय में पुरी नही हो सकी वो जगन के समय में ये पुरा कर सकते है लेकिन अगर कोई दूसरा बन गया तो ये सम्भव नही है .हो सकता है की अगर जगन अभी से ही सत्ता संभल ले तो ये लम्बी रेश का घोड़ा हो सकता है और उनकी दाल भी गलती रहेगी वही दूसरी तरफ़ कांग्रेस आलाकमान जगन के राजनीती में ज्यादा अनुभव नही रहने के कारन उससे किनारा कर रही है .