Dec 1, 2012

क्या न्याय मिलेगा बीबी शहजादी को?

कहते हैं मानव जीवन के भलाई के लिए समाज का होना परम आवश्यक है। परिवार के बाद समाज ही एक ऐसी संस्था है जहाँ मनुष्य का नैतिक और सांस्कृतिक विकास होता है। कहें तो जीवन रूपी इस नैय्या को भवसागर के पार लगाने में समाज की बहुत ही महती भूमिका होती है। पंच परमेश्वर को पढने के बाद तो लगता है इस न्याय रूपी मंदिर में सभी के साथ एक जैसा व्यवहार होता है। लेकिन अब दौर जुम्मन शेख और अलगू चौधरी वाला नहीं रहा, अब नियत के मामले में लोग बदल चुके हैं। एक बहुत ही हृदयविदारक घटना ने मुझे अन्दर से समाज और राजनीति को लेकर सोचने को विवश कर दिया है। कभी एक जमाना था जब राजनीती देश को जोड़ने का काम करती थी। समाज के उत्थान के लिए राजनीतिज्ञ आगे रहते थे लेकिन समय बदला, लोगों की जरूरतें बदली और बदल गया सामाजिक ताना-बाना।  मैं आजकल बिहार में रह रहा हूँ तो जरुर है  की यहाँ की घटनाओं को बारीक़ नजरों से देखूं .कल यानि की शनिवार को एक ऐसी ही खबर जो अख़बारों में प्रमुखता से आई थी, जहाँ तक मैंने पढ़ा एक अख़बार ने तो शानदार तरीके से छापी थी। किस तरह निर्दयी समाज ने एक  औरत को तडपा-तडपा के मार दिया। एक तरफ राज्य सरकार महिलाओं के हितों के प्रति अपने वादों को प्रचारित करते रहती है वहीँ दूसरी ओर उसके राज्य के जनप्रतिनिधि तुगलकी फरमान सुनाते फिरते हैं। जी हाँ मैं बात कर रहा हूँ बीबी शहजादी की जिसे तडपा-तडपा  के मार दिया गया। पंचायत के प्रमुख की बात न मानने की ऐसी सजा मिली जिसकी कल्पना भी एक सभ्य समाज नहीं कर सकता। एक तरफ हम अपने को न्यायप्रिय देश कहने का दंभ भरते हैं वहीँ दूसरी ओर अपने देश के नागरिकों को ही न्याय नहीं, वाह रे देश और वाह  रे तेरा कानून। जी हाँ वह राज्य जहाँ की सरकार पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 प्रतिशत  आरक्षण देती है वहां भरी पंचायत में ऐसे कृत्य को अंजाम दिया जाता है तो कहने की बात ही क्या? बिहार के पूर्णिया जिले के असियानी गांव में बीबी शहजादी को पहले तो बेवजह तंग करने की साजिश रची गयी फिर उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया। समूचे गांव वालों ने भी गजब के धैर्य दिखाया कोई भी उसकी मदद को नहीं आया। और जब उसके रिश्तेदार आये तो समाज के पहरेदारों ने उन्हें  भी धमकी देकर उसे मरने छोड़ देने को कहा । क्या ऐसे ही चलेगी व्यवस्था और ऐसे ही होगा हमारा विकास। किसी के दामन को दागदार कोई कैसे कह सकता है। खैर अगर ऐसा ही होता रहा तो चला अपना देश, क्या लोग ऐसे में बंदूक उठाने को मजबूर नहीं होंगे। और बड़ी बात तो यह की उस मजबूर औरत के नौनिहालों का क्या होगा, कौन लेगा उनकी  जिम्मेदारी? कौन देगा उनको माँ का वात्सल्य? क्या इसका जवाब है किसी के पास। क्या किसी के गर्भ में पल रहे बच्चे के बारे में दूसरा ही कुछ कह सकता है, दूसरा ही कुछ भी आरोप लगा सकता है। क्या अब इसका भी प्रमाण देना होगा की किसी के गर्भ में पल रहा बच्चा उसका है की नहीं? क्या एक औरत हमेशा शक की नजरों से ही देखी जाएगी? आखिर इस दकियानूसी विचार वालों से हमें कब छुटकारा मिलेगा या फिर ऐसे ही चलता रहेगा। क्या बीबी शहजादी को इन्साफ मिलेगा या  उसके मौत को दबा दिया जायेगा। क्या कहीं  इसपर राजनीति तो शुरू नहीं हो जाएगी ये प्रश्न बहुत विचारनीय हैं? क्या जकी अहमद जैसे सरपंच का कुछ होगा या फिर राजनीति की ओट में वह बच निकलेगा। और एक सवाल हमारे समाज से भी की क्या अगर हमारा कोई अपना होता तो हम भी उसे ऐसे ही छोड़ देते। अब जब बीबी शहजादी के बच्चे इन्साफ मांगेंगे तो क्या उनको इन्साफ मिल सकेगा प्रश्न बड़ा है। समय का इंतजार सब सामने आ जायेगा। सड़क पर गाड़ी फिर दौड़ेगी लेकिन क्या पुराने व्यवस्था पर ही या कुछ नया होगा?