Nov 15, 2010

सुदर्शन वाणी?

बयान और भारतीय राजनीति दोनों का चोली-दामन का साथ है| समय-समय पर राजनेता बयान देते रहते हैं, कभी उनका बयान सुर्ख़ियों में आ जाता है तो कभी गुमनामी के अँधेरे में गायब हो जाता है| वैसे भी अगर राजनीतिज्ञ बयान नहीं देंगे तो कौन देगा| अगर बयानों के ताजा श्रृंखला की बात करें तो आरएसएस के पूर्व प्रमुख के एस सुदर्शन के बयान ने देश में हलचल मचा दी है| अजमेर बम धमाके में इन्द्रेश कुमार के लिप्त होने की बात को लेकर देश भर में आरएसएस के लोगों ने धरना दिया था| भोपाल में लिली सिनेमाघर के पास इस धरने में सुदर्शन भी शामिल थे| यही वह भोपाल है जहाँ कुछ दिनों पहले राहुल गाँधी ने इस संगठन की तुलना सिमी से की थी| आखिर जिस जमीन पे राहुल ने आरएसएस की तुलना सिमी से कर दी उस धरती पे कुछ न कुछ तो होना ही था| राहुल के इस बयान के बाद से ही संघ में उबाल था, लेकिन आरएसएस के लोग  राहुल की बात का कोई माकूल जवाब नहीं दे पा रहे थे| आखिर कोई खुलेआम किसी संस्था की साख पर बट्टा लगा रहा है और उसके लोग सिर्फ तमाशा देख रहे हों यह कैसे हो सकता है |  सुदर्शन को राहुल की यह बात अच्छी नहीं लगी, वे समय का इन्तजार करने लगे की कब राहुल को जवाब दिया जाए| और यह समय मिला उन्हें और उन्होंने उसका भरपूर फायदा उठाया| उनके भीतर की ज्वाला भड़क उठी और उन्होंने कह दिया जो कहना था| सुदर्शन ने राहुल पर नहीं उनकी माँ और कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गाँधी को निशाना बनाया| सुदर्शन यह सोचते हैं की राहुल जो कुछ कहते हैं वह सोनिया की सलाह होती है ,तो चलो उसी पर निशाना साधो|| सुदर्शन ने सोनिया को अमेरिकी खुफिया संगठन सीआइए का एजेंट कह दिया| सुदर्शन इतने पे ही नहीं रुके उन्होंने राजीव और इंदिरा गाँधी के हत्या में भी सोनिया के शामिल होने की बात कह दी| अगर देश की सबसे बड़ी पार्टी के सर्वेसर्वा के खिलाफ कोई इस तरह की बात कहता है तो उनके चाहने वालों में गुस्सा तो अवश्य  ही होगा| और हुआ भी ऐसा ही, लोगों ने सुदर्शन के खिलाफ लामबंदी शुरू कर दी  |सुदर्शन हर तरह से गलत साबित हो रहे हैं| पूरे देश में उनके खिलाफ धरना और प्रदर्शन हो रहा है| उनपर मुक़दमे की भी बात हो चूकि है| आखिर सुदर्शन ने देश की सबसे ताकतवर महिला के खिलाफ गलत शब्दों का प्रयोग किया है और वह भी बिना किसी प्रमाण के| अगर सुदर्शन प्रमाण के आधार पर ऐसा कहते तो बात कुछ होती, लेकिन आपसी प्रतिशोध में उन्होंने ऐसा कह दिया| उन्हें भरोसा था की बीजेपी और संघ उनके साथ आएगा, लेकिन दोनों ने किनारा कर लिया| खैर बात ही ऐसी है जो हर कोई किनारा करेगा| सुदर्शन ने अपने को प्रचारित करने के चक्कर में फिर से एक ऐसा बयान दे दिया है जो उनके उपर खुद आफत बन गया है| लेकिन मुंह से निकली बात को लौटाया नहीं जा सकता| ऐसा कोई पहली बार नहीं है जब सुदर्शन ने ऐसा कुछ कहा है वो पहले भी ऐसा कह चुके  हैं| उन्होंने तो यह भी कहा था की महात्मा गाँधी को गोली गोडसे ने नहीं किसी और ने मारी थी, लेकिन वहां भी उनके पास प्रमाण की कमी दिखी| मुझे लगता है की सुदर्शन उम्र के साथ नाबोध बालक जैसे हो रहे  हैं जिसे यह ही पता नहीं रहता की क्या कहना है? खैर जो भी हो लेकिन सुदर्शन का अपने को सुर्ख़ियों में लाने का प्रयास विफल हो गया है?  सही कहते हैं न जब विपत्ति में होते हैं तो कोई साथ नहीं देता ऐसा ही कुछ सुदर्शन के साथ भी हो रहा है|  खैर जो भी हो लेकिन यह तो कहा ही जा सकता है की सुदर्शन का चक्र इस बार नहीं चल सका, वह धरासायी हो गया?

Nov 4, 2010


जिदंगी के हर एक अंत में शायद एक नई शुरुआत की भी संकल्पना छुपी हुई होती है। हमें इसीलिए किसी भी वस्तु के खत्म हो जाने से बहुत ज्यादा दु:खी नहीं होना चाहिए। क्योकि जो चल रहा है, उसे बदलने के लिए एक नई शुरुआत की आवश्यकता होती है। हो सकता है कि नई शुरुआत में कुछ समय लगे और यह जोखिम भरा भी हो। परन्तु आखिरकार डर और जोखिम के बाद ही जीतने का मजा आता है।
राजेश शुक्ल....

Oct 26, 2010

मतदाता की ख़ामोशी?

बहुत दिनों से सोच रहा था की बिहार चुनाव पर कुछ लिखूं| चलिए आज अपना इन्तजार ख़त्म करता हूँ और कुछ लिखता हूँ| इस बार चुनाव हर बार की तरह अलग है, हार दल परेशान है| चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हार किसी को हार का डर है| नीतीश कुमार की विकास के नारे जात के नारे में कब के बदल चुकें हैं| सुशील मोदी तो पहले से सुशील हैं, अपने दल में किसी की नहीं सुनते लेकिन नीतीश को अपना आराध्य मान रहें हैं| दूसरी तरफ पुराने राजा लालू जी पूरे परिवार के साथ जुटे हुए हैं, किसी तरह इज्जत बच जाए| रामविलास पासवान के लिए शायद यह आखिरी मौका होगा यह वह भी सोच रहें हैं| कांग्रेस पार्टी भी अपने नए नारों के बीच उछलकूद कर रही है | छोटे बड़े सभी टाल ठोक रहें हैं| निर्दलियों की भरमार है| खुद चुनाव जीतने से उन्हें कोई मतलब नहीं है लेकिन प्रतिद्वंदी को हराना है, ऐसा लेकर वह भी चुनाव मैदान में हैं| लेकिन सबसे निराशाजनक बात है की वोटर खामोश है| शायद उसे किसी पर भरोसा नहीं रह गया है| उसने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं की किसके पक्ष में आंधी है| मतदाता तो हार बार ही छला जाता है, यह उसको भी पता है| इसलिए इसबार उसमे अजीब सी ख़ामोशी है| जनता के तथाकथित सेवकों की हालत पतली है| बिहार चुनाव में ऐसा पहले नहीं होता था, वोटर अपना रुख स्पष्ट करते थे, पिछले लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में भी ऐसा ही हुआ| लेकिन इस बार रहस्य बरकरार है| आखिर वोटर क्या करे सरकार किसी की बने उससे उसको क्या होने वाला है| मंत्री और विधायक कभी कभी ही उनका हाल लेने शायद ही आयेंगे|| वोट की दरकार है तो अभी उनकी भी बारी है हिसाब चुकता करने की| इस बार नीतीश की सभा में भी विरोध इस बार को उजागर करता है की उनके प्रति भी जनता में जबरदस्त गुस्सा है, राहुल गाँधी के प्रति भी ऐसी ही हो चुकी है और भी नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है| आप ही बताईये क्या यह वही चुनाव है जहाँ कभी नेतओं के नाम पे ही चुनाव जीत जाते थे आज इतने मसक्कत के बाद भी आशा नहीं है| जरूर इसके लिए हमारे प्रतिनिधि भी जिम्मेदार हैं| धन और शक्ति के नशे में चूर उन्हें आम जनता की कोई सुध- बुध नहीं रहती और वे जनता से दूर होते चले जाते हैं| आज चाँद युवाओं को छोड़कर जयादा को राजनीति में विश्वास नहीं है| मैंने अपने एक दोस्त को फोन किया की इस बार क्या हाल है, उसने मुझे कहा की कुछ नहीं बस सब दौड़ धूप रहें हैं अपने को क्या मतलब| आज अगर एक मतदाता यह कह रहा है तो कुछ जरूर गड़बड़ है| जो कभी चुनाव में बढ़चढ़ कर भाग लेता था आज बेरुखी भरा जवाब देता है| शायद उसको यह विश्वास है की उसको इस चुनाव से कुछ नहीं मिलेगा| और यही बेरुखी नेताओं की परेशानी बना हुआ है| मतदात की ख़ामोशी का कारण वाजिब भी है| आज पार्टियाँ अपराधियों को खुलेआम टिकट दे रही है, तो जनता में खौफ तो होगा ही\ अब तो चुनाव आधा बीत चुका है और कोई भी दल यह नहीं कह रहा है की उसकी जीत हो रही है, लेकिन हार का भय हार किसी को है|  

क्या यह हमारा देश है?

आज फिर से कुछ लिकने की कोशिश कर रहा हूँ, हाथ कीबोर्ड की तरफ खुद ब खुद आ गए| शायद इन्हें भी लग रहा है की आज कुछ लिखना ही चाहिए| तो चलिए जिस्म के इस अंग की बात माननी चाहिए, और शुरुआत करनी चाहिए| विषय आज के तारीख में ढ़ेरों हैं लेकिन आज मैं देश की एक ऐसी स्थिति पे लिखने जा रहा हूँ जो फिलहाल मद्धिम पड़ गया है| आज देश को एक पुनर्जन्म की जरूरत है ऐसे लोगों की जो देश को आजाद करके दुनिया आजाद करने निकल पड़े हैं| आपको लगता होगा की क्या अजीब उल्टी- सीधी बिना मतलब के बात कर रहा है| बड़ा आया है देश की चिंता करने वाला| तो आपको आज मैं अपने तरफ से कुछ कहने की तम्मना रखते हुए ही लिख  रहा हूँ|  जब देश आजाद नहीं हुआ था तो हम सोचते थे की आजादी जल्दी मिले, मिल भी गयी| लेकिन मुझे लगता है देश में ख़ुशी नाम की कोई चीज़ नहीं है, एक तरफ मुकेश अंबानी 27  मंजिला घर बना रहे हैं तो दूसरी तरफ राजू 27  दिनों से बस नाममात्र अन्न पर मौत की बाट जोह रहा है| आप ही बताईये क्या यही  है वह देश जहाँ के लोगों ने आजाद भारत की एक स्वर्णिम कल्पना की थी| आज विजय माल्या का अरबों रुपया बांकी है सरकारी फार्मों में लेकिन उन्हें कोई नोतिसे भी नहीं मिलती, लेकिन बिहार की धन्नो हक़ की बात लेकर बाबुओं के पास जाती है तो उसे फटकार दिया जाता है| आज देश के बड़े बड़े सरकारी समारोह में लाखों रूपये का खाना बर्बाद होता है, तो दूसरी तरफ करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को विवश हैं| शायद यही है भारत ऐसा कभी-कभी मैं सोचता हूँ, आज भी किसी दूर दराज के इलाके में जाइये आपको भूख से तिलमिलाते हजारों परिवार मिल जायेंगे| जिनको आँखों में एक आग है, किसी की बाट नहीं सुनते वो, आखिर क्यूँ सुने जब उनकी कोई नहीं सुनता| खुलेआम सरकारी संपत्ति का बंदरबांट चाल रहा है और देश के लोग मूक दर्शक होकर सुन रहे हैं, देख रहे हैं| खुद को विवश कहते हैं, आज भी किसी दफ्तर मैं जाओ तो बिना घूस दिए शायद ही कोई काम होता है| इस बाट को सुप्रीम कोर्ट भी स्वीकार कर चुका है की देश में भ्रष्टाचार गंभीर रूप से व्याप्त  है| सुप्रीम कोर्ट ने व्यंग भरे लहजे में यह भी कहा था की ' बेहतर होगा की सरकार अब रिश्वत खोरी को वैध कर दे , ताकि लोग निश्चित राशि देकर अपना काम करवा ले|' आयकर, बिक्रिकर, अबकारी विभागों में तो कोई काम ही बिना पैसों के नहीं होता| इससे कम से कम प्रत्येक व्यक्ति को यह तो मालूम हो जायेगा की उसे कितना घूस देना है| क्या यह बात यह नहीं कहता की देश में स्थिति किस तरह भयावह है| अब समय आ गया है की हमे कुम्भ्करनी नींद से जागना होगा और खुद के लिए ही नहीं देश के लिए भी कुछ सोचना होगा| मैं आपको एक कहानी सुनाता है जो मेरे साथ घटित हुआ| आज से दो महीने पहले एक आदमी मेरे पास आया (भोपाल में जहाँ मैं फिलहाल जिंदगी गुजर रहा हूँ) उसकी स्थिति से लगती थी की उसने कितने दिनों से ही कुछ खाया नहीं है| वह अचानक मेरे पास आकार बोला साहेब एक बात कहूँ, आप मुझे कुछ रूपये दे दें तो आपका बहुत एहसान होगा| मेरी बेटी एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती है और इलाज के लिए अब पैसे नहीं बचा है| मैंने कहा की सरकारी में क्यूँ नहीं भर्ती करवाया, तो उसका जवाब सुनकर मेरी रूह कांप उठी| उसने कहा की साहेब मेरी बछि तो उसी दिन मर जाती जिस दिन सरकारी में भर्ती करवाता| क्या यही है देश जिसे भारत कहते हैं, जहाँ ओबामा के आंये से पहले करोड़ों रूपये और आने तक पता नहीं कितने रूपये  उनके स्वागत में बहा देता है| लोगों को भूखे मरने दो उसकी फ़िक्र मत करो| शायद यही इंडिया का नारा हो गया है| मुझे लगता है की अगर ये भूखे, नंगे लोग साड़ों पर उतर आयें और कुछ भी करने ओ आतुर रहें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी| और मुझे लगता है की यह कुछ दिनों में हो सकता है| आज भी अगर हम अपने आपसे थोड़ा हट कर दूसरों के लिए भी सोचें तो देश में कितने चेहरों पर मुस्कान आ सकती है| इससे पहले की देश में लोग भूख से बेमौत मरने लगें हमें कुछ करना चाहिए| मेरे हिसाब से यह हमारा भारत नहीं है| यहाँ तो इंडिया घुस आया है, अपनी मौज दूसरों से क्या मतलब| नींद से जागना होगा नहीं तो देर हो जाएगी| मैं आप लोगों से पूछता हूँ क्या यही भारत है? आपके जवाब के आशा में ? 

Oct 25, 2010

राहुल का डर ?

आखिर राहुल की महिमामंडन में कांग्रेस पार्टी इस प्रकार क्यूँ जुटी है|  क्या कांग्रेस को यह डर हो गया है कि राहुल कि लोकप्रियता में जबरदस्त कमी आयी है | मिशन 2014  कि तैयारी  को लेकर कांग्रेस के लिए इसे एक गहरा झटका माना जा सकता है|  जिस राहुल को देश के अगले भविष्य के रूप में कांग्रेस पार्टी प्रचारित कर रही है, उसके लिए यह एक सदमे वाली बात हो सकती है| दिल्ली विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविदयालय और हिमाचल विश्वविदालय के चुनाव में मिली हर से कांग्रेस पार्टी तिलमिला उठी| जिस राहुल को युवाओं के सम्राट के तौर पे मीडिया और कांग्रेस पार्टी खुद आगे दिखा रही थी उसके लिए ये हार एक तमाचे कि तरह थी| राहुल कि स्थिति सिर्फ भीड़ खीचने तक ही सीमित रहने लगी युवाओं का भी मोहभंग उनसे होता जा रहा है | युवा कांग्रेस में किस प्रकार भ्रष्टाचार हो रहा है यह किसी से छुपा नहीं है| अब कांग्रेस के ही एक प्रवक्ता ने राहुल कि तुलना जयप्रकाश नारायण से कर दी और कह डाला कि राहुल में वह सारे गुण हैं जो जेपी में थे | अजीब ही हास्यास्पद बात है कि एक ऐसे व्यक्ति से साथ ऐसे कि तुलना कि जा रही है जिसमे कोई तालमेल ही नहीं है| जेपी तो देश कि जनता के नब्ज़ को पहचानते  थे , जमीन से जुड़े हुए लोग थे, जन-जन के नायक थे वे| क्या राहुल को यह सारे सम्मान प्राप्त हैं, क्या राहुल को देश कि आम जनता से सरोकार है, क्या राहुल जनता के नब्ज़ को पहचानते हैं| यह राहुल को शायद ही प्राप्त हो, जेपी ने अपने लिए नहीं बल्कि आम लोगों के लिए संघर्ष  किया था , लेकिन राहुल तो खुद का रास्ता तलाशने कि कोशिश कर रहे हैं| आखिर ऐसे किसी से तुलना करने के पहले सोचने कि एक अदब जरूरत है| राहुल गाँधी को प्रचारित और प्रसारित करने का एक ही पहलु मुझे नजर आता है कि कांग्रेस अपने युवराज को लेकर चिंतित है| गुजरातमें डर से ही राहुल कि सभा नहीं कराई जाती कि हार का ठीका किसके सर फोड़ेंगे, क्यूंकि जनता वहां कि समझदार है और कांग्रेस को मौका ही नहीं दे रही, विकास  को मौका दे रही है| मुझे राहुल गाँधी से कोई चिड नहीं है लेकिन मुझे उनके दो तरह के चेहरे से नफरत है | वो छात्रों को राजनीति में आने  को कह रहे हैं, लेकिन क्या वे उनकी रोजी रोटी कि भी कोई बात करते हैं| इस मुद्ददे पे वे गौण हो जाते हैं, जब उनसे देश में व्याप्त स्थिति पे प्रश्न किया जाता है तो वो अपनी सरकार का बखूबी बचाव करते हैं लेकिन अपनी चोरी को नहीं छिपा पाते| सिर्फ गोल  मटोल  जवाब देने से और आह्वाहन करने से जनता कि समस्या नहीं दूर हो सकती| लेकिन अब कौन समझाए ऐसे लोगों को जिनको अपनी महिमंदन ही प्रिय है| शायद राहुल को आभाष हो गया है कि मेरी बात अब सिर्फ मीडिया में जगह पाती है जनता तो कभी गौर से सुनती ही नहीं थी| राहुल को लगे हाथ एक बात कहना चाहूँगा कि दो मुह वाली सांप कि तरह व्यवाहंर न करें और सही भारत को पहचाने| 

Oct 11, 2010

बाबा क्या बोल गए ?

राहुल गाँधी आजकल युवाओं को राजनीती में आने की सलाह देते फिर रहे हैं| वैसे भी जब आदमी को बिना मेहनत का मुकाम हासिल हो जाते हैं तो उसके पास एक ही कम बचता है प्रवचन देना | खैर जो भी हो आप कहेंगे की प्रवचन तो साधू- महात्मा लोग भी देते हैं आप उनके बारे में कुछ क्यूँ नहीं कहते? खैर मेरी मनसा ऐसी कुछ नहीं है, मैं तो राजनीति के नए बाबा राहुल गाँधी की बात कर रहा हूँ | राहुल ने सीख लिया है की लोकप्रियता और जनता की नजरों में कैसे रहा जा सकता है | अभी राहुल को बिहार चुनाव में जाने की फुर्सत नहीं है लेकिन वह देश घुमने में मशगूल हैं | जो भी हो यह उनका मामला है | बिहार में तो युवाओं को पार्टी से जोड़ दिया, अपराधियों को भी बुला लिया, उत्तरप्रदेश में भी ऐसा ही कर रहे हैं | लोग कहते हैं की देश के अगले प्रधानमंत्री वही हैं , जरूर बने आखिर खानदानी जगह है, मम्मी सोनिया तो चूक गयी इनको नहीं चूकना है| ऐसी ही प्रणाली पे काम चाल रहा है| दौरे के इसी क्रम में बाबा मध्यप्रदेश भी आये | एक तरफ उनकी सरकार की राष्ट्रमंडल खेलों को लेकर किरकिरी हो रही थी तो दूसरी तरफ बाबा देश भ्रमण पर थे, ऐसा होगा देश का प्रधानमंत्री तो क्या होगा देश का , जो जब देश पे लगातार ऊँगली उठ रही हो और वह बेफिक्र हो कर यायावरी करता फिर रहा हो| इसका तो यही मतलब हुआ की ' एक तरफ रोम जल रहा था, दूसरी तरफ नीरो बांसुरी बजा रहा था'| खैर देश के युवराज को जो एक वर्ग तक ही सीमित हैं को इन सब से कुछ लेना देना नहीं है | उनको तो चिंता है की किसी तरह युवा कांग्रेस आगे बढ़ता जाए | युवा कांग्रेस को ही मजबूत करने की खातिर बाबा 4 अक्टूबर को मध्यप्रदेश के तीन दिन के दौरे पे पधारे | युवाओं से बातचीत करी, राजनीति से जुड़ने के न्योता दिया , जैसे कोई बाप अपनी बेटी के शादी के पहले लोगों को देता है | सब कुछ ठीक ही चाल रहा था , लोग बाबा के दर्शन खातिर आ रहे थे , जब किसी को यह आभाष हो जाए की लोग उनके लिए आ रहे हैं तो वह यह तय नहीं कर पता है की क्या बोलें| आखिर किसी भी जुबान है , कभी भी फिसल सकती है | राहुल ने युवाओं से कहा की आपको राजनीत में कोई जगह देने वाला नहीं है , वहां आपको जगह खुद बनानी होगी | अगर देखें तो ठीक ही कह रहे थे राहुल वहां तो सिर्फ बड़े लोगों के सम्बन्धियों की जगह है , उसमे से अगर  बच जाए तो फिर आपका | राजस्थान, दिल्ली और हिमाचल के छात्र संघ चुनाव का दर्द राहुल में साफ़ नजर आ रहा  था, राहुल को जैसे ही आभाष हुआ की मध्यप्रदेश में भी छात्र संघ का चुनाव हो सकता है आने वाले दिनों में तो पहुँच गए यहाँ | खैर यहाँ भी अगर चुनाव हो जाए तो बाबा की किश्ती भंवर में फँस  सकती है| दूसरी बात बाबा ने कही की आपको बुजुर्ग नेताओं से मिलकर चलना होगा, हाँ लेकिन अगर वह यूथ कांग्रेस के चुनाव में किसी तरह का प्रभाव  डालने का प्रयास करें तो आप उनकी शिकायत करें | यह  जुमला नया आया आखिर हर बार एक ही जुमला कैसे कहें | काश यही बात बिहार , झारखण्ड और उत्तरप्रदेश में भी लागु हो पाती |वहां तो ऐसे लोग चुन कर आये हैं जिनकी दोस्ती बाहुबलियों से जगजाहिर है |  खैर राहुल को लगा की यहाँ के लोगों को इसके बारे में क्या पता? कह दो नई बात ? यहं भी चूक गए बाबा? शायद बाबा को पता चाल गया है  अल्पसंख्यकों को मिला कर रखना होगा , उनकी मीटिंग में पहली बार बाबा ने असलाम आलेकुम से शुरुआत की | खैर वोटरों को तो लुभाना ही होगा | इतना कुछ हो गया और देश में किसी को पता भी नहीं चला | अब जो बात बाबा ने कही वह उन्हें सुर्ख़ियों में लाने के लिए प्रयाप्त थी |  उन्होंने  संघ जैसे संगठन की तुलना राष्ट्रविरोधी सिमी से कर दी |  उन्होंने कहा की संघ और सिमी एक जैसे हैं , आगे कहा की आरएसएस व प्रतिबंधित सिमी दोनों ही हैं कट्टरपंथी विचारधारा के पोषक | यहाँ पे उनकी अज्ञानता साफ़ नजर आयी | शायद उनको इस महान देशसेवी संगठन के बारे में पता नहीं, शायद उन्होंने सोचा होगा उनको मुस्लिमों  का वोट बिहार में आसानी से मिल जायेगा, और वहां तो इस तरह के शब्द कह नहीं सकते तो यही कह लो | लेकिन इस मोर्चे पे भी बाबा की हवा निकल गयी | मैडम को भी चिंता होने लगी की क्या कह दिया बाबा ने | खैर जब छोटा बच्चा पैंट में पेशाब कर देता है तो माँ उसे साफ़ करती है | लेकिन जब बड़ा बच्चा ऐसा काम करे तो वह हंसी का पात्र बन जाता है | खैर राहुल के साथ भी यही हुआ| भोपाल में रविन्द्र भवन से दिया हुआ यह बयान राहुल के किसी काम नहीं आया, इसका दुःख उनको भी है | लेकिन राहुल को एक सलाह मैं भी देना चाहता  हूँ की एक तरफ तो आप जात और पात की राजनीति से उपर उठ कर बात करना चाहते हैं लेकिन दूसरी तरफ वोटों के लिए ऐसी घिनोनी हरकत करते हैं | खैर जो भी हो देश के लोगों से मेरी एक अपील है की ऐसा लोगों को पहले देश के बारे में बताएं फिर प्रधानमंत्री बनायें नहीं तो यह कुछ भी कर सकते हैं | कल को यह भी कह सकते हैं की भारत में ब्रिटिश शासन ही अच्छा है | मुझे एक बात और लगता है की राहुल को अब शादी कर लेनी चाहिए, ताकि उनका दिमाग नियंत्रित रहे | भोपाल जैसे खुबसूरत शहर को दुर्गंधित करने की कोशिश कभी नहीं चलेगी |

Sep 6, 2010

देश की शिक्षा कैसे सुधरेगी ?

आज एक दफा फिर से कुछ लिखने की कोशिश करने बैठा हूँ | हाथ कंप्यूटर के की बोर्ड पर चलने शुरू हो गएँ हैं तो लगता है थोड़ा बहुत लिख लूँगा | हाँ क्यूँ न लिखूंगा कोशिश करने वाले की कभी हार नहीं होती यह बात सबने सुन रखी है | मैंने भी कई बार इस शब्द को सुना है और आज उसी को लागु कर रहा हूँ | आज मैं सुबह से सोच रहा था की आज क्या लिखूंगा और मैंने अंतत काफी  जद्दोजहद के बाद फैसला किया की आज शिक्षा पर ही कुछ लिखूंगा , आखिर हाल में हमने शिक्षक दिवस भी मनाया है | तो इससे बेहतर तो कुछ हो ही नहीं सकता है | शिक्षक दिवस तो हर वर्ष मानते हैं हम ,लेकिन जो वायदे और घोषणाएं उस दिन की जाती है वो फिर अमल में आ नहीं पाती है| आज देश के शिक्षा मंत्री जो अपने को बहुत कुलीन समझते हैं , और समझे भी क्यूँ नहीं आखिर विदेशों में शिक्षा ग्रहण की , हमेशा से बड़े लोगों के उठना बैठना हुआ है , देश में शिक्षा की दशा को सुधारना चाह रहे हैं | लगातार नए-नए बिल संसद में सुधार को लेकर पेश किये जा रहे हैं , सहमती चाहे एक पे भी न बने आखिर पेश तो हो रहा है | विदेशी शिक्षण संस्थानों को भी निमंत्रण दिया जा रहा है , की आप आयें और देश में अपनी शाखा खोलें | वो शिक्षा के उच्च स्तर को लेकर काफी चिंतित दिख रहे हैं और खास कर के अंग्रेजी शिक्षा को लेकर वे काफी परेशान हैं | सही भी है आप ही सोचिये अगर आज के समय में अंग्रेजी न आती हो तो क्या होगा | अच्छे  माहौल में आप बैठने के काबिल नहीं रहेंगे , तथाकथित बड़े और सभ्य लोगों के नजरों में आपकी खातिरदारी नहीं होगी , और  आजकल ऐसा कौन नहीं चाहता है | तो अब तो आपको समझ आ ही गया होगा की शिक्षा मंत्री जी क्यूँ परेशान हैं | लेकिन एक बात जो पूरे मज़े को ख़राब कर रही है , शिक्षा मंत्री जिसको जानकर भी अनजान बने हुए हैं वो है भारत की असली शिक्षा की स्थिति | अब आईये हम इस हकीकत पर भी नज़र डालतें हैं | आज भी हमारे देश  कुल मिलाकर 12  लाख शिक्षकों की कमी है | आज भी 42  मिलियन बच्चे ( 1  मिलियन = 1000 ,000 )   जिनकी उम्र 6 से 14 वर्ष के बीच है स्कूलों से महरूम हैं | यह दिन पर दिन सुधर रहा है इसपर एक काली लेकिर ही छाई है | स्थिति तो और भी भयावह है आप ही बताईये आज भी देश के 16  प्रतिशत गांवों में प्रायमरी स्कूल की सुविधा नहीं है , और 17  प्रतिशत स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक है | अब बताईये क्या देश में शिक्षा की स्थिति अच्छी हो  रही है, उत्तर में मुझे नहीं लगता है की कोई कहेगा की सुधार आ रहा है | आज भी बिहार में प्रायमरी स्तर पर 1  लाख शिक्षकों की कमी है | झारखण्ड में 42 टीचरों के पद खाली हैं | और तो और उत्तरप्रदेश में तो 1000 प्रायमरी स्कूलों में तो शिक्षक ही नहीं हैं | और बिहार , झारखण्ड और राजस्थान में प्रत्येक प्रायमरी स्कूलों का औसत लें तो यह 2  शिक्षक प्रति स्कूल निकलेगा | देश में शिक्षा की ऐसी भयावह स्थित है और हमारे मंत्री महोदय विदेशी संस्थानों को आमंत्रण दे रहे हैं | सही ही कहते हैं की देश की शिक्षा की डोर उस आदमी के हाथ में देनी चाहिए जिसके देश के बारे में पता हो | ऐसे आदमी के हाथ में अगर व्यवस्था आएगी तो सुधार की संभावना रहेगी लेकिन अगर कपिल सिब्बल जैसे लोगों के हाथ में रही तो सुधार की संभावना बहुत कम है | स्थिति नीचे से लेकर ऊपर तक ऐसी ही है | क्या आपको नहीं लगता की हमारे देश में शिक्षा को सिर्फ ऐसे लोगों तक सीमित किया जा रहा है जो पहले से जागरूक हैं | अभी हाल में ही एक खबर आयी थी की एक लड़की जो इंजीनियरिंग की छात्रा थी ने सिर्फ इसलिए आत्महत्या कर ली की वो अंग्रेजी में कमजोर थी और इसके लिए क्लास में उसका मजाक बनाया जाता था | लेकिन इस और धयान देना जरूरी है जहाँ शुरू से ही पढाई नहीं हो पा रही है उनकी स्थिति कैसी होगी |  आज देश में शिक्षा के कानून के तहत शिक्षक और विद्यार्थियों के बीच औसत 1 : 30  का होना चाहिए लेकिन यह औसत आज भी 1 : 42  का है और बिहार में तो यह 1 : 83  का है | आज हमारे देश में कई ऐसी स्कूली बच्चे हैं जिनको अंग्रेजी नहीं आती है , मैंने खुद इसका परीक्षण किया है | अंग्रेजी के नाम पे वो बिल्कुल शुन्य हो जाते हैं | और अगर हम पिछड़े इलाकों की बात करे तो स्थिति बहुत ही ख़राब है | हकीकत को नजरंदाज नहीं किया जा सकता , लेकिन हमारे देश में इसको नजरंदार किया जा रहा है | भविष्य के सपने देखने में कोई बुराई नहीं है , लेकिन उसके लिए काम भी करना होता है यह हमें नहीं भूलना चाहिए | स्थिति ऊपर से लेकर नीचे तक एक ही समान है , आज भी समय- समय पर आने वाली रिपोर्ट देश की शिक्षा की स्थिति से अवगत कराती है , और हमेशा खामी ही निकालती है | और इस रिपोर्ट को कुछ दिनों के बाद एक बक्से में बंद कर दिया जाता है और बक्से को  उफनती नदी में डाल दिया जाता  है | जिसका कोई ठिकाना नहीं रहता | यही स्थिति देश की है , आयोग बिठाया जाता है और उनसे रिपोर्ट मांगी जाती है ,लेकिन वह सिर्फ आयोग को ही पता रहता है की उसने रिपोर्ट क्या बनायीं है | तो यहाँ पर एक गंभीर प्रश्न उठता है की आखिर कैसे हमारे देश की स्थिति शिक्षा मामले में अच्छी होगी , क्या देश में जो स्थिति है शिक्षा की उसके आधार पर हम आगे सकते हैं | बात बिल्कुल  स्पष्ट है हमें यहाँ हकीकत को लेकर नीति बनानी होगी नहीं तो स्थिति ठीक नहीं हो सकता ? सुधार तो ऐसी स्थिति में हो ही नहीं सकता | एक सशक्त नीति बने होगी और उसके पालन करना होगा | और ऐसी नीति सिर्फ वातानुकूलित में बैठ कर नहीं बन सकता , इसके लिए हकीकत से रूबरू होना होगा , नहीं तो कुछ नहीं हो सकता |
  

Aug 30, 2010

ममता की मायागिरी ?

ममता बनर्जी को लेकर कांग्रेस के अगुवाई वाली सरकार को आये दिन विपक्ष के द्वारा तरह तरह की बाते सुननी पड़ती है | लेकिन सरकार ममता के छाँह में ही रहना चाहती है | और आये दिन ममता को लेकर कुछ भी कहने से डरती है | और एक ममता है जिसे किसी की परवाह नहीं है | उसे तो किसी भी तरह रायटर्स बिल्डिंग पर कब्ज़ा जमाना है | बंगाल उनकी प्राथमिकता है , देश को उनकी नजर में देखने वाले बहुत से लोग हैं | ममता का एक ही मिशन है 2011  में बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करना | और इसके लिए वो प्रयासरत भी हैं चलिए कुछ तो कर रही हैं वो | हमारे देश में तो ज्यादातर नेता लोग बीच में ही फंसे रहते हैं | ममता का विजन स्पष्ट है | ममता जब से रेलमंत्री बनी है तब से रेलवे का मुख्यालय बंगाल शिफ्ट हो गया है , आखिर जब शरद पवार ने भारतीय क्रिकेट का मुखिया बनते ही मुख्यालय मुंबई शिफ्ट करा दिया तो ममता क्यूँ न करे | लेकिन यहं ममता मात खा गयीं वो इसे पूरी तरह बंगाल भी शिफ्ट करना नहीं चाहती , सिर्फ काम काज के लिए अधिकारियों को दिल्ली तो कोलकाता के बीच दौड़ लगानी है | यह हुई न ममता की रंगबाजी | वो खुलेआम नक्सलियों  का समर्थन करती हैं लेकिन जब समय आता है तो अपने बात से मुकरने से भी नहीं हिचकती हैं | वैसे भी दिल्ली में ममता को क्या मिलेगा , बंगाल की वे मुखिया बन सकती हैं , सारे राज्य पे राज करेंगी | तो उनका हित को बंगाल में ही है | और जब दोनों तरफ काम हो ही रह है तो परेसानी की कोई बात ही नहीं है | रेल दुर्घटना हो तो सीधे कह दो की विरोधियों की चल है , यह तो कोई ममता से सीखे | इसमें कोई दो राय नहीं है की ममता का मिशन बंगाल बड़ी तेज गति से चल रहा है | केंद्र सरकार भी उनसे हार मान चूकी है , आखिर एक शेरनी जब खूंखार हो जाए तो कौन हार नहीं मानेगा| ममता एक बात बड़ी अच्छे से कहती है की उनकी चाहे लाख बुराइयाँ हो लेकिन वो अपने पथ से हटने वाली नहीं हैं | ममता का जो मिशन है उसकी झलक साफ़ दिखती है | सबसे ज्यादा रेलगाड़ी भी मिशन वाले जगह से गुजारनी चाहिए , आखिर हार रेलमंत्री तो ऐसा ही करता है तो ममता क्यूँ न करे | ममता एक बात बड़ी साफगोई से कहती है की मुझे बदनाम करने की चाहे कितनी भी कोशिश कर लो लेकिन मैं अपने रास्ते से हिलने वाली नहीं हूँ | मिशन तो मैं किसी भी हद पर पूरा करके रहूंगी |

सेक्स और समाज ?

आज लिखने तो बैठ गया हूँ, पर अपने को यह समझा नहीं पा रहा हूँ की आखिर आज का विषय क्या होगा ? कुछ सोचने की कोशिश करता हूँ तो लगता है अरे मेरे पास तो ढ़ेरों विषय हैं | ज्यादा सोचना नहीं है , बस अब माउस हाथ में आ गया है और कीबोर्ड भी कह रहा है की कुछ लिख ही दो भाई, ज्यादा सोचो विचारो नहीं ? मैं भी आखिर में इनकी ही बात मान रहा हूँ और फिर से कुछ लिखने को प्रतिबद्ध हो रहा हूँ ? पर कहा जाता हैं न डीजल इंजन को गर्माने में थोड़ा समय लगता है तो वही मुझे भी लग रहा है | रोज की तरह  राजनीत और अर्थनीत पर लिखने से आज मैं परहेज करने के मूड में हूँ | आज मैं सेक्स पर कुछ लिखने जा रहा हूँ | सही में देखें तो अभी भी हमारे समाज में यह एक विचाराधीन मुद्दा ही है | लोग अभी भी इसके बारे में खुल कर बात नहीं करते हैं , आखिर करें भी तो कैसे अपने को सभ्य जो कहते हैं | इस तरह की बातों से उनकी असलियत बाहर आने का जो डर लगा रहता है | पर जहाँ तक मेरा मानना है आज जितना लोग कहते फिर रहे हैं की यह बड़ा ही ख़राब मुद्दा है उतनी तेजी से ही यह बढ़ता जा रहा है | पहले अक्सर देखा जाता था की लोग शादी के बाद ही रतिक्रिया में भाग लेते थे | एक दो प्रतिशत ही इसके अपवाद थे | फिर यह कॉलेज तक आ पहुंचा | अब कॉलेज के विद्यार्थी इसमें भाग लेने लगे | समय बड़ी तेजी से घुमा और हायर सेकेन्ड्री स्तर के स्टुडेंट इसमें शरीक होने लगे | पर कहते हैं न तकनीक ने सबको पीछे छोड़ दिया है आज तो क्या बताएं बच्चे-बच्चे इसमें मशगुल हैं | तो कहिये क्या यह छुपाने की बात है | अब इसका दूसरा पहलु लोग कहते हैं की आदमी एक उम्र के बाद सेक्स की गतिविधि से दूर हो जाता है लेकिन मैं इस मान्यता के बिल्कुल खिलाफ हूँ | अरे साहेब मैंने खुद देखा है की ऐसी उम्र में लोग और रसिक हो जाते हैं | वो ऐसा खुलेआम करते हैं , क्यूंकि उनको तो इस चीज़ की फ़िक्र रहती ही नहीं है की उनपर भी कोई शक करेगा | तो बतायिया जब बच्चे और बूढ़े दोनों इस कम में पीछे नहीं हैं तो फिर इस तरह की बात छिपाना किससे| एक वाक्य लिखने की चाहत है और लिख ही देता हूँ | मैं बिहार का रहने वाला हूँ | हमारे यहाँ एक ठाकुर बाबा हैं | समाज में उनकी बड़ी ही इज्जत है , धार्मिक कार्यों में सबसे आगे रहते हैं | लेकिन उनकी एक दूसरी स्थिति भी है , वो बड़े ही सेक्सी विचारधारा के भी हैं | एक बार उन्होंने मुझे और मेरे दोस्तों को एक लड़की की ओर  इशारा करके कहा का देखते क्या हो ??????????????? अब आप समझ ही गए होंगे क्या बात कहना चाह रहे थे वो | एक दिन मुझसे मिले जब मैं दिल्ल्ली से घर आया था तो कहा क्या बेटा वहां कुछ हुआ की सब जगह मरुस्थल ही है | और तो और उन्होंने मुझसे यह भी मांग कर डाली की मुझे ब्लू फिल्म दिखाओ |  अब आप ही बताओ क्या है ? यह दबी कुची भावना है लेकिन सिर्फ डर से बाहर नहीं आती है | आज भी जब कोई जवान लड़की सड़क पे मटक कर चलती है तो देखने वाले सबसे पहले उसे सेक्स की दृष्टी से ही देखते हैं | कहना होता है उनका मस्त माल है , मज़ा आ जायेगा | आप ही बताओ क्या ऐसा सही में नहीं होता है | मैं ज्यादातर की बात करता हूँ | मैंने कई लोगों को देखा है जो दिन में तो इसके विरुद्ध आन्दोलन निकालते रहते हैं , समाज सुधार के प्रणेता बनने का ढोंग रचते हैं ,लेकिन रात के अँधेरे में वही हरकत कर बैठते हैं | दुनिया के बहुत से देशों में सेक्स की शिक्षा दी जाती है और वह ठीक है | वैसे भी लोग जानकारी ले ही रहे हैं तो खुलेआम लेने में क्या हर्ज़ है | मैं बतौब एक बार हमलोग सर्वे का रिजल्ट देख रहे थे , उस रिजल्ट में था की प्रत्येक 4  में से 1 16  वर्ष की उम्र होते होते अपनी कौमार्यता खो चूका था चाहे वो लड़का हो या लड़की | ताज्जुब हुआ पर वो हमारे राष्ट्रीय राजधानी की स्थिति थी | अब बतायिया ? मैं पिछले बार घर गया था तो पता चला की मेरा एक पडोसी जिसकी उम्र मुश्किल से 14 -15 वर्ष रही होगी एक लड़की को लेकर फरार हो गया | आप ही कहो न यह क्या है ? तो मैं यहाँ पर यही कहने की कोशिश कर रहा हूँ की इस चीज़ को हमर समाज में जीतन छुपाया जा रहा है उसका कोई सार्थक परिणाम नहीं आ रहा है | आज छोटे- छोटे बच्चे जब हम उस उम्र के थे तो इस चीज़ के बारे में अनजान थे लेकिन आज हामी से पूछते हैं की क्या भैया लड़की-वडकी पटाई की नहीं | कुछ हुआ की नहीं , मैं तो इतना काम कर चुका हूँ |
थोड़ा आश्चर्य होता है लेकिन फिर समझ जाता हूँ | आज इन्टनेट के पोर्न साईट के बारे में सबको पता है | अकेला मौका देखा नही की लग गए , घर मैं माँ- बाप नहीं हैं तो बाजार से पोर्न कैसेट लाकर ब्लू फिल्म देखने लगे | यह सिर्फ लड़के ही नहीं लड़कियां भी करती हैं | तो बताओ क्या सेक्स की बात करनी गलत है , क्या है समाज को बर्बाद कर देगा | आपका जवाब इसकी पुष्टि कर सकता है |

Aug 23, 2010

आन्दोलन ही एक चारा ?

देश में अराजकता तो माहौल तो पहले भी रहा है, लेकिन अब जो बन रहा है वो कहीं ज्यादा विषम है|
आये दिन चर्चा होती रहती है इसको दूर करने को लेकर, लेकिन वो सिर्फ बैठक तक ही सीमित रह जाती है
जो चीज़ वातुनुकुलित कमरों में तय होता उसे बाहर निकला ही नहीं जाता है, बाहर निकलने की कोशिश भी नहीं की जाती है| ऐसी ही अराजकता और स्थिति विद्रोह को निमंत्रण देती है विद्रोह का मतलब जब आम जनता शासन और व्यवस्था से तंग आ जाता है तो उसके पास एक ही रास्ता होता है और वो है प्रदर्शन और कथित नेतृत्व के विरोध में संगठित होकर जबाब देना| इतिहास गवाह है जब जब अति हुई है तब तब जनता ने इसको बचाने की भरपूर कोशिश की है और अपने ताकत का एहसास कराया है| समय और परिस्थिति हमेशा से आम को आवाम को रास्ता दिखाने को मजबूर करती करती है| सन 1975 में भी ऐसा ही हुआ था जब इंदिरा गाँधी के विरुद्ध आम की आवाज़ बुलंद हुई थी| जयप्रकाश नारायण ने मोर्चा खोला तो लोग अपनी दबी भावना को छिपा न सके और आ गए सड़कों पर, दिखा दी अपनी ताकत और परिणामस्वरूप इंदिरा गाँधी को सत्ता से दूर जाना पड़ा था, जाना क्या पड़ा था दूर कर दिया गया था| स्थिति को इंदिरा ने अच्छी तरह समझ लिया की हमेशा अपनी मन मुताबिक काम नहीं कभी आम लोगों के लिए भी काम करनी होती है |आज उस चीज़ को बीते लगभग 35 वर्ष हो गएँ है|
उस समय के कितने लोग भगवान को प्यारे हो गए, तो कितने सत्ता का सुख ले रहे हैं लेकिन आज फिर उसी देश में स्थिति कुछ वैसी ही बनती दिख रही है| आज देश में हर तरफ एक अजीब सा माहौल है सरकार और शासन विवश दिख रहा है| आम के अन्दर एक अजीब सा आक्रोश पैदा हो रहा है| आज देश में गरीबी, भुखमरी, अनियंत्रित व्यवस्था आम हो गयी है| एक तरफ लोग दिन प्रतिदिन आमिर होते जा रहे हैं तो दूसरी और गरीबी भी सुरषा के मुंह की तरह फैलती जा रही है, और पता नहीं कितना फैलेगी| एक तरफ अनाज बर्बाद हो रहा है, दूसरी तरफ लोग दाने-दाने को मोहताज़ हैं|एक तरफ हम विश्व मंच से अपने विकसित होने की बात करते फिर रहे हैं तो दूसरी और लोग एक दूसरे को देख कर आंहे भरते नजर आ रहे हैं| इस देश का ही एक भाग लगातार बेवजह सुलग रहा है और सरकार सिर्फ दिलासा देती फिर रही है| सरकार को लगातार आंतरिक ताकतों द्वारा चुनौती मिल रही है और सरकार सिर्फ घोषणा और बयान देकर अपना काम पूरा कर रही है| आज बेरोजगारी की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है ,लेकिन यहाँ भी सिर्फ आश्वाशन ही मिलता दिख रहा है| अब जो सबसे बड़ी बात है वो यह क्या की इतना कुछ होने के बाद भी हम चुप क्यूँ हैं| तो इसका सीधा सा एक ही जवाब है की कोई आगे आने की हिम्मत नहीं कर रहा है| एक बात तो तय है की कोई न कोई तो आगे आएगा ही| लेकिन सबसे बड़ी बात जो है वो ये क्या की आज का युवा वर्ग सिर्फ अपने तक ही सीमित होकर रह गया है| उसे देश दुनिया से ज्यादा कुछ लेना देना नहीं रह गया है|यह स्थिति देश के लिए खतरनाक है| हाल में मैंने अपने तीन चार मित्रों से कहा की हमलोगों को देश के लिए कुछ करना चाहिए तो वो सोचने वाली स्थिति में आ गए| और सबसे जो सबसे बड़ी बात है वो ये क्या की उनमे से ज्यादातर ने कहा क इतुम तो राजनीती के कीड़े हो तो बनो , हमलोगों के भी कुछ कल्याण कर देना
मुझे बड़ा ही ताज्जुब हुआ , और खुद पर शर्म भी आयी की पढ़े लिखे लोग ऐसा सोच सकते हैं तो औरों की तो बात ही कुछ और है| लेकिन मेरा भरोसा है की एक दिन वही लोग आयेंगे और कहेंगे की हम भी कुछ करना चाहते हैं| मेरी शिकायत है की आखिर क्या हम इतने बेफिक्र हो गए हैं की अपने में ही चूर रहते हैं
दुःख तो होता ही है लेकिन  नेक पल यह भी सोचता हूँ की सही ही तो कर रहे हैं|
लेकिन दूसरे पल गुस्सा भी आता है जब वो कहते हैं की राजनीत देश को बर्बाद करके ही दम लेगी|
अरे भाई जब आप गली देते हो तो उसे सुधारने की कोशिश तो करो , वो आपसे होगा नहीं तो आप लाया खी नहीं हो उस विषय में कुछ कहने को| मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ की आज जो स्थिति बन रही है वो आज न कल एक आन्दोलन का रूप लेने वाली है| जनता का खून कभी तो गरम होगा , लोग कभी तो कुछ देश के बारे में सोचेंगे और युवा वर्ग कभी तो अपने अधिकार के लिए आगे आएगा| सब परिस्थिति  पनप  रही है बस अब चिंगारी फूटनी बांकी है| आग तो कब  की लग चूकी है और बहुत से लोग ऐसा हैं जो झुलसने वाले हैं|
अब फिर से एक आपातकाल की जरूरत भी आ सकती है जब देश के लोग एकजुट हों और एक करार जवाब दें
युवाओं से बस एक ही बात कहना चाहता हूँ की देश के लिए भी कुछ समय वह दे |
अगर आप देश और समाज को नहीं देखेंगे तो क्या फिरंगी लोग देखेंगे|
एक तरह से तो यही मनसा पैदा कर रहे है आपलोग समय रहते अगर कुछ नहीं किया गया तो हो सकता है की फिरंगी फिर से लौट आयें| इसलिए अब युवाओं को इस व्याप्त अवयवस्था के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी
मैं दावे और यकीन के सात कह सकता हूँ की अगर एक बार देश में आवाज़ बुलंद हो गयी तो सरकार भी निंद्रा से जग जाएगी|
आखिर क्या कहना है आपका देश को लेकर, क्या विचार रखते है जरूर अवगत कराएँ|

Aug 14, 2010

किस कारण बदल गई छात्र राजनीत ?

बात हो रही है छात्र राजनीत की | विषय बड़ा गंभीर है, बात भी गंभीरता वाली होनी चाहिए| यह एक ऐसा विषय है जो देश की दशा और दिशा दोनों बड़ा सकता है | आज देश में हर जगह एक अजीब सी स्थिति हो गयी है | और जहाँ तक बात है छात्र राजनीती का तो इसमें बदलाव जरूर आया है | धनबल तो खैर तुक्छ चीज़ हो जाती है यहाँ बाहुबल भी छोटा पड़ जाता है, और इन सबके उपर हावी हो जाता है वह है इसके साथ भी राजनीती | अगर राजनीत हो और वह सही दिशा में चले तो देश और समाज का हित हो सकता है लेकिन वही जब पथ से भटक जाए तो अहित होने से कोई रोक नहीं सकता | और आज ऐसा ही कुछ हो रहा है | आज अगर देखा जाए तो देश में एक अच्छे छात्र नेता की कमी सी लगती है, लगता है समाज में कोई है ही नहीं | और जो महानगरों में कुछ हैं भी तो उनसे आम लोग जुड़ नहीं पाते हैं | मतलब स्पष्ट है समस्या बरकरार है | जहाँ तक बात है डूसू चुनाव की यहाँ लोग चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन आगे सफलता की बात कम ही रह पाती है | स्पष्ट है यहाँ के चुनाव में एक खास जात और गुट का ही दबदबा रह रहा है पिछले कुछ चुनावों से | जमकर माहौल बनाया जाता है | लेकिन यह सब यहीं तक सिमट कर रह जाता है | देश को इनसे कोई लेना देना नहीं रहता | आप ही देखिये की कितने नेतओं ने बड़ा धमाल किया है | वो दिल्ली में बैठ कर राजनीत को चलाने की बात जरूर करते हैं लेकिन ज्यादातर मोर्चे पर विफल ही हैं | और एक बात तय है की आज भी चाहे जो दावा और बात की जाए लेकिन यहाँ के कम ही लोग चुनाव को देश से जोड़कर देखतें हैं, निजी हित सर्वोपरी होता है | आज देश को एक अदद जयप्रकाश नारायण जैसे लीडर की जरूरत है | लेकिन जो अभाव है वो स्पष्ट देखा जा सकता है | अगर सही मायनों में कोई अच्छा छात्र दिल्ल्ली में छात्र नेता रहता, जिसकी रूचि गावं और शहर दोनों में रहती तो जेपी की तरह जनता और लोग उनसे जुड़ते | लेकिन एक शुन्यता है जो निकट भविष्य में पूरा होते नहीं दिखता | अब राजनीत में आखाड़े का प्रवेश हो गया है , जहाँ लोग पथ्कानी तो दे सकते हैं लेकिन किसी का दर्द नहीं समझ सकते | भविष्य की जो बात करता है वह ज्यादातर डरा हुआ इंसान होता है | जहाँ तक बात छात्र राजनीती के भाविस्ये की है तो एक बात नज़र आती है की जब तक सही में एक क्रांति नहीं होगी लोगों में विश्वास नहीं आएगा | सही में देखें तो एक क्रांति की सख्त जरूरत है जो देश को नया जीवन दे सके | और अगर एक सही छात्र जीत कर आता है जिसने गरीबों, बेकसूरों की सच्ची दुनिया देखी है तो तो इससे देह का कल्याण हो सकता है | जहाँ तक इसमें कम होते रुझान की बात है तो कोई गलत बात नहीं है | सही में छात्रों का इससे लगाव कम हो रहा है | वो अपने को इससे जुड़ा हुआ महसूस नहीं कर पा रहें है | जो सबसे बड़ी बाधा है | सही मायनों में इसका दमन कोई और नहीं बल्कि छात्र ही कर रहे हैं |

Aug 8, 2010

क्रांति की ओर इशारा ?

आज फिर कुछ लिखने की कोशिश करने की जहमत उठा रहा हूँ | इस बार विषय थोड़ा गंभीर है देखता हूँ कितना न्याय कर पाता हूँ | आज तस्वीर के माध्यम से कुछ कहना चाह रहा हूँ | यह तस्वीर हमारे अपने देश भारत की है जिसे हम जी जान से भी ज्यादा प्यार करने की बात करते हैं | हम सिर्फ बात ही करतें हैं लेकिन अगर यह देश हमारा है तो फिर यहाँ के लोग हमारे क्यूँ नहीं हैं ? यह एक कठोर लेकिन सत्य प्रश्न है, जिसे हम चाह कर भी नकार नहीं सकते | आज देश में एक तरफ बाढ़ से तभी है तो दूसरी तरफ स्थिति भूखों मरने की है | उत्तर भारत के कई राज्यों में सुखाड़ की स्थिति बनी हुई है | कई जिले सुखा ग्रस्त घोषित हो चूके हैं| कीमतें तो आसमान छु ही रही है | सरकार बेबस ओर अपंग की तरह पेश आ रही है | सबसे बड़ी जो कठिनाई है वो यह क्या अगर वर्षा नहीं हुई तो क्या होगा गरीब किसानों का जो इसके सहारे ही टिके हुए है | आत्महत्या जारी है रोज़ किसान इस तरह की घटनाओं  को  अंजाम दे रहे हैं | यह भयावह स्थिति हर साल आती है लेकिन शायद वातानुकूलित कमरे में बैठ कर देश चलाने वालों को इसकी खबर नहीं है | अभी भी ये चिरनिंद्रा में है , इनकी माने तो देश तो निवेश से चलता है | किसानों के भरोसे देश थोड़े ही चलता है | यह
दूसरी तस्वीर ओर भी भयावह है ये इस आस में हैं की कब उपर वाले की कृपा हो ओर हमारी रोजी रोटी का इंतजाम हो सके |

चाहे जो भी हो लेकिन यह एक ऐसा सुच है जिससे हम इनकार नहीं कर सकते | कही ऐसे न हो की एक ऐसी क्रांति इस रूप में शुरू हो जाए जिसका फिर कोई निदान न हो सके | बारिश की आश में कई लोग जान दे देते हैं तो किसी की ले भी सकते हैं | यह एक क्रांति की ओर बढ़ रहा है जो भूख ओर खाने को लेकर होगी | अगर अभी भी सही इंतजाम नहीं हुआ तो यह नजदीक है | इस बार जब भूखे लोग सडको पर निकलेंगे तो फिर इससे रोक पाना असंभव ही होगा | देश को इससे बचाने के प्रयत्न अभी से शुरू नहीं किया गया तो भविष्य बहुत कठिन साबित होने वाला है |

Aug 1, 2010

बिहार में कौन बनेगा अर्जुन ?

बिहार में चुनावी बिसात बिछ गयी है , हर दल चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रहा है | बात भी वाजिब है जब चुनाव होना ही है तो पहले से पूरी तरह से तैयार क्यूँ न हो जाया जाए|  सबसे बड़ी बात है की हर दल तैयार है, पूरी तरह से अपने अपने नए नए समीकरण और प्रयोग के साथ | लेकिन जो एक बात सबसे दुखद है वह यह क्या की हर दल विकास की बात तो करता है पर चुनाव आते ही जात वाली फैक्टर पर ही केन्द्रित दिख रहा है | अगर हम दलवार बात करें तो स्थिति बहत हद तक स्पष्ट हो सकती है| सबसे पहले बात करतें है बिहार में सत्तासीन पार्टी जनता दल (यू) की| वैसे तो नीतीश कुमार अपनी छवि विकास पुरुष की बनायें हुए हैं | बात भी एक हद तक सही है की आखिर उनके काल में बिहार में कुछ काम तो हुए ही हैं | लेकिन अगर गौर किया जाए तो यह सिर्फ रोड बनाने तक ही सीमित रह गया | आज भी बिहार में जाती वाद लागू ही है | ठेकेदार मालामाल हो गए हैं | आधिकारियों की तो बात ही मत कीजिये| उनका तो मानना है की वो भगवान हो गएँ है जो चाहे वो कर सकते हैं | नीतीश भी जातिवाद को बढ़ावा देने में किसी से पीछे नहीं रहेना चाहते हैं | हर जाती के लोगों को चाहे वह अपराधी किस्म का ही क्यूँ न हो अपनी पार्टी में उनका बड़े ही सम्मान से स्वागत कर रहे हैं | यह है इनकी चुनाव जीतने की नई तरकीब | अब आप ही बतायिए यह कहाँ तक उचित है| अभी हाल में जो घोटाले वाली बात आयी है इससे नीतीश भी सकते में हैं | शायद जवाब नहीं है उनके पास इस चीज़ का | एक बात और नीतीश कुमार जो गरीबो के हिमायती बनने की बात करतें है तो आखिर आज भी बिहार के गरीबों का उठान किस कारण से नहीं हुआ है | बात बिल्कुल स्पष्ट है सारे लोग एक ही है सिर्फ खाल अलग अलग है | नीतीश ने जितना पैसा विज्ञापन पर खर्च किया अगर इसका कुछ भाग गरीबों पे खर्च करते तो शायद ज्यादा अच्छा रहता | खैर जो भी हो अब तो जनता के पास ही इसका न्याय होगा जो अपने मत से सरकार का निर्माण करेगी |
बीजेपी- कहने को तो पार्टी सत्ता में बराबर की भागीदार है| लेकिन पार्टी के नेता हमेशा से अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते फिरते है | इधर पार्टी में बहुत बदलाव हुआ है | पार्टी चुनाव में आगे रहने की हर तरकीब अपना रही है | अपने नाराज़ वोट बैंक को भी खुश करने की कोशिश में लगी हुई है | नेतओं का दौरा चालू है पर फिर भी पार्टी का कुछ कहना अभी से मुश्किल है | अपने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का नाम घोषित करने ही वाली है ताकि चुनाव में ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके | वैसे अभी भी गतिरोध जारी है समय और चुनाव का इन्तजार है |
कांग्रेस- पार्टी हवा हवाई बात करने में माहिर दिख रही है | चुनाव जीतने के लिए हर तरह के प्रयत्न कर रही है | दागियों को पार्टी में लगातार शामिल कर रही है | एक तरफ कहती फिरती है की दागियों को टिकट नहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों को चुनाव की जिम्मेदारी दी जा रही है | कुछ समय पहले तक स्वर्ण वोटों में सेंध लगाने की कोशिश की थी पर ज्यादा कामयाब नहीं हो सकी | अब एक मुस्लिम को पार्टी का प्रदेश प्रमुख बनाकर नई राजनीती खेल रही है | बहुत ज्यादा तो नहीं पर हर किसी का समीकरण जरूर बिगाड़ सकती है इस बार |
आरजेडी- लालू यादव को अब अहसास हो गया है की कुछ काम करना होगा | लगातार दौरे पे दौरे कर रहे हैं | पुराने फॉर्म में वापस आने की तय्यारी में जी जान से जूते हुए हैं | दौरे पे दौरे कर रहे है | हाल के घोटाले को लेकर मुद्दा ओर हवा बनाने में जुटे हैं | कार्यकर्ताओं में जोश भर रहें हैं |
लोजपा- रामविलास पासवान के लिए यह आखिरी मौका है कुछ करने का | लालू यादव से गठजोड़ बना कर पूरे कोशिश में लगे हैं अपनी लाज बचाने की | वोट बैंक में भी नीतीश ने सेंध लगा ही दिया है | उसी को सँभालने में व्यस्त हैं | बहुत ज्यादा खुद पर भरोसा नहीं है, लेकिन मैदान में जी तोड़ कोशिश कर रहें हैं |
शेष दल - यह ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकते पर किसी किसी जगह का समीकरण बदल सकतें हैं |
कुल मिलकर देखा जाए तो स्थिति यही है बिहार की अब देखना है की कौन बनता है सिकंदर ओर किसी राजनीती पे लगती है | अब हर किसी को चुनाव का ही इंतजार है | देखना है की अर्जुन कौन ओर कर्ण कौन होता है | दोनों के बीच बहुत से योद्धाओं का परीक्षण होने वाला है |

Jul 24, 2010

कांग्रेस का दोहरा चरित्र !

आज कांग्रेस की दोहरी नीति की कुछ व्याख्या करने का मन बना रहा हूँ | यह व्याख्या कांग्रेस के महासचिव और देश की राजनीती को अपराधियों से मुक्त बनाए की बात करने वाली राहुल गाँधी के दोहरे चरित्र को लेकर है | एक तरफ राहुल कहते फिर रहें हैं की कांग्रेस में अपराधियों  को जगह नहीं मिलने वाली है वहीं दूसरी तरफ आने वाले उत्तरप्रदेश और सामने खड़े बिहार विधानसभा चुनाव के लिया लगातार पार्टी में दागदार लोगों का स्वागत हो रहा है | अब बात की शुरुआत उत्तरप्रदेश से करतें है जहाँ राहुल गाँधी खूब यात्रा कर रहे हैं | कभी किसी विदेशी मेहमान को लेकर चर्चा बतोरतें हैं तो कभी किसी और को लेकर | लेकिन वास्तविकता है की वो सारे कुछ अमेठी और रायबरेली तक ही कर पाते हैं | इससे आगे लगता है उनका ध्यान जा ही नहीं पा रहा है | देश को समझने के लिए तो खूब बातें करतें है लेकिन आज ता कितना समझ पायें है यह एक यक्ष प्रश्न है | राहुल जब उत्तरप्रदेश का दौरा कर रहे थे तो कहते थे अपराधी किस्म के लोगों को कांग्रेस में जगह मुश्किल है , मुश्किल क्या नहीं ही मिलने वाली है | लेकिन सच ही कहा गया है सत्ता में बने रहने के लिए और सत्ता को प्राप्त करने के लिए हर चीज़ सही है | हर कथनी को समय के साथ भुलाना पड़ता है | अब बिहार की ही बात करें तो कांग्रेस में दागदार लोगों की जमात लगातार बढती जा रही है | यही नहीं चुनाव को धयान में रखते हुआ आलाकमान भी इन लोगों को पड़ देकर पार्टी में बनाया रखना चाह रहे हैं | अभी इसका ताज़ा उद्धारण साधू यादव को पद से सुशोभित करना है | ठीक इसी तरह कुख्यात पप्पू यादव की पत्नी को भी पद दिया गया है | यह पत्नी क्या पप्पू को ही खुश करने की बात है | यह तो नामी गिनामी बात है , और भी कई लोग ओहें जिनके उपर संगीन आरोप हैं पर उनकी शरंस्थाली  अब कांग्रेस बन चूकी है | अब उतरप्रदेश की और आते हैं | एक तरफ कांग्रेस मायावती को कहते फिरती है की वो अपराधियों को पार्टी में शरण देती है जितने के लिए लेकिन कांग्रेस तो उत्तरप्रदेश की सत्ता की इतनी लालायित है की संगीनों का तहेदिल से पार्टी में स्वागत कर रही है | यह है राहुल गाँधी का दोहरा चरित्र | अब आपको लगता होगा मैं तो खोकली बात कर रहा हूँ लेकिन नहीं मैं आपको साक्ष्य भी दे रहा हूँ | सबसे पहले अजय राइ जिनपर कई आपराधिक आरोप है को कांग्रेस ने प्रदेश विधानमंडल से संबद्ध कर लिया है | और इसकी खुशियाँ मानते फिर रही अहि | अगर बात इतने तक ही रहती तो कोई बात नहीं | तुलसी सिंह जिनपर 2004  में महाराष्ट्र सरकार जिसमे कांग्रेस भी भागीदार ने मकोका लगाया था | तुलसी सिंह पर दर्जनों आरोप हैं जो संगीन किस्म का हैं | लेकिन आज वो कांग्रेस में हैं | इसी तरह एक और नाम राधाकृष्ण किंकर का है | किंकर पर 2  दर्जन से ज्यादा अपराधिक मामले हैं | लेकिन कांग्रेस ने इनको प्रदेश मुख्यालय में बड़े ताम झाम के साथ पार्टी में शामिल किया | लिस्ट यहीं ख़त्म हो जाती कुछ रहत था लेकिन और भी बहुत से लोग हैं जिनको पार्टी अपने में शामिल करती जा रही है | कुछ और नाम जिन पर संगीन आरोप हैं और वे कांग्रेस में शामिल किया गए हैं में  केडी शुक्ल उर्फ़ भगोले महाराज , गुलाब चन्द्र, अर्जुन और रामलखन पासी भी इस जमात में शामिल है | तो पार्टी का यह कौन सा चरित्र है | एक तरफ राहुल गाँधी युवाओ को स्वच्छ राजनीत की बात करतें है वहीं दूसरे तरफ संगीनों और अपराधियों की पार्टी में बड़े स्तर पर नियुक्ति हो रही है तो ये क्या है | मैं यहाँ किसी दूसरे दल की बात नहीं कर रहा हूँ न ही करना चाहता हूँ | कांग्रेस यह लबादा किस कारण से धारण कर रही है और किस मुह से आपराधियों के राजनीती के खात्मे की बात करती है | जबाव तो खुद पार्टी भी नहीं दे पा रही है | यहाँ तो स्पष्ट है की पार्टी की स्थिति उत्तरप्रदेश में किस हालात में है | आप ही बतायिया क्या यह पार्टी का दोहरा चरित्र नहीं है |

Jul 17, 2010

मध्यप्रदेश में राजनीतिक गहमागहमी

आजकल मध्यप्रदेश राजनीती में चर्चा में है | देश की दोनों बड़ी पार्टिओं को लेकर यह चर्चा में है | पहला सबसे बड़ा मुद्दा कांग्रेस के ताकतवर महासचिव और इस प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और बीजेपी की वाकयुद्ध के कारण है | शायद लोगों को भी यह खूब पसंद आ रहा है तभी तो नेता लोग भी इसे चालू रखे हुए हैं | और मीडिया को तो ऐसी चीजें हमेशा से ही अच्छी लगती है कुछ नया तो मिलता है अपने ग्राहकों के लिए उन्हें | यह तो राजनीती की स्थिति को बयां करता है जब अपशब्द राजनीती की भाषा खुलेआम होती जा रही है | अब तो गर्मी भी ख़त्म हो गयी और बरसात का मौसम आ गया पर इसकी उमस अभी बरकरार है | कभी बीजेपी की राष्ट्रीय अध्यक्ष गडकरी की जुबान फिसलती है तो कभी दिग्विजय उसके प्रतिउत्तर में अपनी जुबान पर लगाम नहीं रख पाते हैं | वैसे भी दिग्विजय की जुबान कभी संभली भी नहीं थी तो अब संभलेगी | इस युद्ध में बीजेपी के प्रदेश भर के आला नेता भी अपनी भड़ास निकल रहे हैं | मौका अच्छा है कुछ कर लिया जाए ऐसे उनको पता है तो वो इसके अनुसार कम कर रहे हैं | खैर अगर ज्यादा इसपर बात नहीं चाहता हूँ और दूसरे मुद्दे पर आता हूँ | यह मुद्दा है एक साध्वी की घर वापसी की | उमा को लेकर को उठापटक सबसे बड़ी बात है | बीजेपी के प्रदेश से लेकर देश भर के नेता इसमें रूचि ले रहें है | ले भी किस कारण से अनहि उमा उमा जो है | साक्षात रूप है उसमे भीड़ खीचने की | वैसे भी आजकल बीजेपी नेतओं के सभा में भीड़ कम ही दिख रही है | उमा शायद कुछ भीड़ खिंच लाये ऐसी तम्मना है लोगों की | खासकर यूपी में तो ऐसा हो ही सकता है और लगे हाथ बिहार में भी उनको थोड़ा सहयोग तो उमा से मिल ही सकता है | लेकिन सबसे बड़ी समस्या है उनकी वापसी में लगे रोड़े को हटाना जो बहुत ही खतरनाक हैं | खैर आज हो कल हो वापसी की उम्मीद तो है ही | उमा के जोशीले भाषणों को जनता भी सुनना चाह रही है ऐसा भी लग रहा है | दोनों मुद्दे ऐसे हैं जिसमे हर कोई रोटी सकना चाहता है अब देखना है की किसकी रोटी अच्छी बनती है और किसकी जल जाति है |  तीसरा मुद्दा भी है और वो है प्रदेश के ही भीतर का मंत्रियों की क्लास लगनी किसी तरह शुरू हुई है | अनूप मिश्रा तो घायल हो ही गएँ है अब देखना है घायल होने वाली की अगली लिस्ट में किसका स्थान है|

Jul 11, 2010

महिला आरक्षण पर फिर होगा तमाशा

आज खबर आयी है की महिला आरक्षण का आखिर क्या होगा | बात भी सही है अब संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है तो बात उठनी लाजमी है | शरद यादव का कहना है की 90  प्रतिशत सांसद इस बिल के खिलाफ में हैं | लेकिन मजबूर हैं | बात भी सही है कौन अपने पैर पे कुल्हाड़ी मारना चाहेगा | नेताओ का विरोध तो उसी समय झलक गया था जब लोकसभा में कोई भी आगे नहीं आया | भुझे मन से तो आगे दिखा लेकिन सूरत सब कुछ बयां कर रही थी की माजरा क्या है | अगर इमानदारी से देखा जाए तो ये सही है भी नहीं | आखिर क्या पैमाना है इसका कोई अगर एक बार चुनाव जीत जायेगा तो फिर वो काम किस आधार पे करेगा जब उसे इस चीज़ के बारे में पाता रहेगा की आगे से सीट आरक्षित होने वाली है | यह तो एकदम से देश की स्थिति को बर्बाद करने वाला लग रहा है | मैं इस बात का विरोधी नहीं हूँ की आरक्षण नहीं मिलना चाहिए लेकिन सब कुछ देककर ही मिलना चाहिए इस बात का हिमायती हूँ | अगर मेरी एक बात जो मैं सोचता हूँ यह तो ख़त्म ही कर देना चाहिए  फिलहाल राजनीती गर्म हो रही है नया सत्र आने वाला है | यह तो तय है की इस बार सत्र में फिर इस बिल पर जोरदार तमाशा होने वाला है और तमाशबीन बैठे हैं इसका नज़ारा लेने | राजनीत को तमाशा बनाने वाले भी खुश ही रहेंगे इसको देखने के बाद |

Jul 2, 2010

बिहार में आखिर मुद्दा क्या ?

आज बहुत दिन के बाद कुछ लिखने जा रहा हूँ. काफी दिनों से जीवन में भागा दौड़ी चल रही थी इस कारण से आपलोगों से मरहूम था. विषय वस्तु के बारे में सोचा तो एक चीज़ का ख्याल आया की चलो आज बिहार कथा पे कुछ लिखता हूँ . तो चलिए श्रीगणेश करते हैं . आजकल बिहार में आने वाले चुनाव को लेकर हर पार्टी कमर कस रही है .अपने को धर्मनिरपेक्ष कहने वाले दल खास लोगों और कौम के आगे पिच्छे कर रहें हैं . यह तो है नज़ारा . नीतीश तो लगता है क्या कर जायेंगे किसी को पाता नहीं. कल तक जिसकी बुराई में उनका समय बीतता था आज उनको साथ लिए घूम रहें हैं . कहते हैं बिहार को जात पात की राजनीती से उपर उठाना है पर यह सिर्फ उनके कहने और हमारे सुनने तक ही सीमित रह जाता है. राजनीती में राहुल गाँधी ने यह नारा दिया की अपराधियों को इससे दूर रखो पर बिहार जाकर देखा जाए तो पार्टी में इनलोगों की लम्बी क़तर है भाई साहेब. राहुल बाबा को तो पाता है बस एक बार बिहार में आ जाएँ सब कुछ ठीक हो जायेगा. पर बाबा सपना तो उत्तरप्रदेश में भी बिखरता ही लग रहा है तो बिहार तो दूर की बात  है. खैर उनको भी तो कुछ कहना है बस कह दिया . अब बात लालू जी की भी होनी चाहिए. लालू और पासवान भाई आज कल सवर्णों के पिच्छे लगें है .उनका तो नीतीश ने जाती वाली राजनीती को आग लगा दिया है. बीजेपी तो बड़े ही पशो पेश में है की करें तो करें क्या? अरे कुछ मत करो सिर्फ देखो ईस्ससी तरह देखते रहोगे तो कुछ दिनों में बिहार से सफाया तय है . अब ये तो हुए दल वाले बिना दल वाले भी ख़म खाकर लगे हैं लोगों को लुभाने में . चुनाव की बेला नजदीक है भाई .पर स्थिति बड़ी ख़राब है. विकास तो है ही नहीं मुद्दा, मुद्दा तो जाति है भाई साहेब जाति . नज़ारा देखना है तो जाकर आँखों से देख लीजिये .  यकीन शायद नहीं हो सकता है पर ये तो हकीकत है मेरे भाई जिसे मानना ही होगा .मेरा क्या में तो ऐसे ही लिख देता हूँ पर इस बार थोड़ा अनुभव किया है तभी कुछ लिख रहा हूँ . वैसे जो कह रहें हैं की देश में अब विकास के नाम पे वोते मिलता है उन्हें ऐसी वस्तुस्थिति से जरूर रूबरू होना चाहिए.

Mar 7, 2010

महिला आरक्षण किस आधार पर सही ?

आजकल देश में महिला आरक्षण विधेयक को लेकर हो हल्ला चल रह हैं | देश की दो प्रमुख  पार्टी इसको पारित करवाने पे तूली है | सबसे बड़ी बात है की इस विधेयक के पास हो जाने से क्या सहीं में महिलओं को उचित प्रतिनिधित्व मिल सकेगा | देश वैसे भी इस आरक्षण के कारण बहुत पीछे जा चूका है | और अब महिला आरक्षण मेरे हिसाब तो सही यह है की कम से कम देश की सर्वोच्च राजनीतिक संस्था को तो इससे दूर रखा जाए | मेरा मानना है की इन सब जगहों पर आरक्षण से नहीं वरन अपने दम पर लोगों को आना चाहिए | वैसे भी देश में जहाँ भी आरक्षण की किरण पहुंची है उस जगह की क्या हालत है यह किसी से छुपा नहीं है | महिलओं को बहुत जगह आरक्षण दिया गया है राजनीती में लेकिन वहां पर काबिज पुरुष ही है | ऐसे आरक्षण से फायदा ही क्या ? बिहार में पंचायतो में महिलओं को पचास प्रतिशत आरक्षण दे दिया गया है लेकिन कुछ को छोड़कर क्या स्थिति है यह देखने लायक बात है | अगर देश को इसी तरह आरक्षण के दम पर आगे बढ़ाने की बात होती रही तो बड़ी ख़राब बात है | मेरे हिसाब से आरक्षण तो देना ही नहीं चाहिए अगर आपमें काबिलियत है तो खुद व खुद आप उपर आ सकतें है | राजनीती में सिर्फ फायदा ही नहीं देखना चाहिए बल्कि देश हित की बात सोचना चाहिए  नहीं तो देश का बेडागर्क है |  कुछ लोग अपना हित साधने के लिए देश को कहाँ ले जा रहें है यह सोचनीय  विषय है | आम लोगों की राय इस विषय पर जो भी हो पर सही मायनों में ऐसा नहीं होना चाहिए |

Feb 18, 2010

एक बार फिर से आपातकाल की जरूरत ?

देश में लगातार हमलें पर हमलें हो रहें हैं | कभी आतंकवाद तो कभी नक्सलवाद देश को परेशान कर रह हैं | आज देश हर तरफ से बड़ी ही आफत में हैं आम नागरिक बेचैन हैं | कोई भी कुछ कर नहीं पा रह हैं ,सरकार सोच तो रही है पर वो काम हो नहीं पा रह हैं |सरकार बात तो कर रही हैं लेकिन इसे रोकने में अभी तक सफल नहीं हो सकी हैं ,सफल तो दूर की बात इसपर थोडा बहुत भी लगाम नहीं लग सका हैं | देश को लगातार इन ताकतों के द्वारा चुनौती मिल रही है | सारा देश जल रह हैं अभी देश को एक मजबूत निर्णय की जरूरत हैं लेकिन इसपर सिर्फ बात ही हो रही है कुछ हो नहीं पा रह हैं | देश को मेरे हिसाब से एक कठोर नेतृत्व की जरूरत है जो हर तरफ से उपर उठकर देश के हित में कुछ काम करें | आज देश को जरूरत तो है लेकिन वह पूरा नहीं हो पा रह हैं
देश में मेरे हिसाब से पुनः एक बार आपातकाल जैसी चीज़ होनी चाहिए ताकि देश में सब कुछ फिर से बहाल हो सके |यह मेरी सोच हो सकती है लेकिन मेरी यह सोच इस चीज़ को देखते हुए हुई है की आज देश में कुछ भी सही नहीं है |वादे से देश तो चल सकता है पर इससे किसी समस्या का निदान नहीं हो सकता हैं |
आज देश में हर समस्या से बड़ी समस्या है देश की सुरक्षा अगर देश के आम लोगों की स्थिति ठीक नहीं है तो देश में कुछ भी सही नहीं हो सकता है और फिलहाल हमारे देश में आम ही खुश नहीं है |देश में हर तरफ अफरातफरी का माहौल है और अगर इसे जल्द से जल्द काबू नहीं किया गया तो यह एक खतरनाक रूप ले सकता हैं |

Feb 12, 2010

शिवसैनिको की नई नीति ?

मुंबई में आजकल खूब तमाशा हो रह है और हम तमाशा देख रहें है | शिवसेना को एक अच्छा मौका मिला है अपनी धार को फिर से मजबूत करने के लिए | शिवसेना महाराष्ट्र में लगातार अपने गिरते प्रदर्शन से परेशान थी लेकिन अब उसे एक अच्छा मौका मिल गया है |लगातार मिल रहे हार के बाद शिवसेना बौखलाई हुई थी की उसे कुछ नज़र आया और उसने बिना समय गवाएं उसने इस मुद्दे पर अमल करना शुरू कर दिया | शिवसेना का  हमेशा से ही इस विषय पर एक रुख रहा है की जब भी धार कमजोर होने लगे तो कुछ नए मुद्दे को अमल में लाओ | वैसे इस पार्टी में एक चीज़ देखने को मिलता है की ये जिस किसी को भी अपना निशाना बनाते हैं उसे लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा कर ही दम लेतें हैं | अब देखिये अभी शाहरुख़ खान को अपने देश में प्रचार करने की कोई जरूरत ही नहीं है यहाँ तो शिवसैनिक ही उनकी फिल्म का प्रचार कर रहें हैं | शिवसैनिक लोगों का मानना है की वो किसी खास को बर्बाद कर रहें हैं जबकि वास्तविकता है की वो उन्हें फायदा ही दिला रहें हैं | बाल ठाकरे को फिल्म देखने का बहुत शौक है और वो चाहतें हैं की जो फिल्म उन्हें पसंद आये उसकी मार्केटिंग अच्छे से की जाए ताकि बाद में फायदे में से कुछ उनके हिस्से भी आ जाए | यक़ीनन यह बड़ी ही दुविधा वाली बात है की हमारे देश में एक तरफ तो ऐसे लोग भारत माता का नाम लेतें है वहीं दूसरी तरफ अपने देश के ही लोगों पर हमले करतें हैं | यह ज्यादा कुछ नहीं बस केवल एक सोची समझी राजनीती है जिससे हार किसी को फायदा हो आम जनता को बेवक़ूफ़ बनाने का यह एक बेहतरीन तरीका है | उपर के लोग तो अपना काम कर के निकल जाते हैं और नीचे  वाले वहीं रह जातें हैं जहाँ वो पहले थे |

Feb 9, 2010

राहुल अब परिपक्व हो रहे हैं ?

राहुल गाँधी लगता है अब राजनीती में परिपक्व हो रहे हैं | राहुल को पहले शायद राजनीती में बच्चा माना जाता था  लेकिन अब राहुल इस जगह पे सही दिख रहे हैं | राहुल पहले कभी भी कुछ बयान दे देते थे और उन्हें दूसरे विरोधी दलों की किरकिरी का सामना करना पड़ता था | राहुल ने अभी हाल के बिहार दौरे के बाद इस बात को साबित कर दिया है की वो अब समझदार हो गए हैं | राहुल ने बिहार दौरे पे मुंबई में शिवसेना और राज ठाकरे के द्वारा जारी हिंसा का जमकर जबाब दिया है जो इस बात का साबुत है की राहुल अब हर कुछ सोच समझकर कर रहें हैं | राजनीती में सब कुछ ऐसे तरह से करने होता है की चुनाव में जीत मिल जाए | राहुल ने भी ऐसा ही कुछ किया है | कुछ दिन पहले महाराष्ट्र चुनाव के समय राहुल ने कुछ भी मुंबई को लेकर शिवसेना और राज के बातो का जबाब नहीं दिया ,लेकिन जैसे ही बिहार और उत्तरप्रदेश के चुनाव नजदीक आ रहे हैं राहुल ने यह बयान दिया है की मुंबई किसी की जागीरदार नहीं है | राहुल को समझने वाले अब यह जान चुके हैं की राहुल अब नए तरह की राजनीती कर रहें हैं | खैर जो भी हो राहुल को अब वोट लेने की तरकीब का पता चल गया है और वो इसपर पहल भी कर रहें हैं | राहुल अब समझ चुके हैं की अगर जनता के वोट को अपने पक्ष में करना है तो बयान भी समय को देखकर ही देना होगा |

Feb 7, 2010

क्या हो गया अमर के साथ ?

राजनीती ने कब कौन सी चीज़ महंगी पड़ जाती हैं ये किसी को पता नहीं रहता हैं | अब देख लीजिये जो अमर सिंह कल तक समाजवादी पार्टी के सबसे लोकप्रिय लोगों में से हुआ करते थे आज उस पार्टी ने उनको अपना रास्ता तलाश करने को कह दिया है |अमर को शायद पता नहीं था की उनकी इस नए दावं से मुलायम एक बार फिर पिघल कर उनको पार्टी में आने को कहेंगे | लेकिन अमर के तरह मुलायम ने भी यूटर्न ले लिया और उस काम को किया जो उन्हें बहुत ही पहले करना चाहिए था | अमर जनाब तो देश के अन्य राजनीतिक दलों की तरफ भी गए लेकिन सभी ने अमर को अपना दुखड़ा सुना दिया और अमर के लिए किसी भी जगह के लिए सॉरी कह दिया | अमर सिंह को कहाँ पता था की कल तक बड़े -बड़े नेताओ के लिए सीट और गद्दी पक्का करवाना किसी कम का नहीं रहता है अगर एक बार दिन ख़राब हो जाए | अमर ने मुलायम को एक जमीनी नेता से आसमानी नेता बना दिया पर यह भूल गए की जमीनी आखिर में जमीनी ही रहता है | कुछ दिनों के लिए वह जरूर हवा में रहता है लेकिन वापस एक न एक दिन उसे आना ही पड़ता है | अमर सिंह जी ने सोचा की इस बार मुलायम सिंह को कुछ इस प्रकार कमजोर कर दिया जाए की वो किसी काबिल न रहें | अमर ने मुलायम के घर को ही तोड़ने की कोशिश की जो सफल नहीं हो सका | अब अमर के साथ दिक्कत यह है की उनको सपा ने राज्यसभा से इस्तीफा देने को कहा है अमर भी इस्तीफा देने पे तुले थे लेकिन जब उन्होंने देखा की ऐसा करके वो किसी काम के नहीं रहेंगे तो उन्होंने अपना विचार बदल दिया | अब अमर को तो पता ही है की किसी भी काम को करवाने के लिए पद का होना कितना जरूरी होता है | लेकिन अब जैसे लगता है की अमर की राजनीत की गाड़ी पटरी पर से उतर रही है | अमर के साथ दिक्कत इस बात की भी है की उनका जनता के बीच कोई पकड़ नहीं है | अमर की सपा को बर्बाद करने की कोशिशो को अब विराम लगता हुआ दिखाई देता है | शायद अब अमर को भी समझ आ गया होगा की राजनीती में एक बयान का क्या महत्व होता है | अब लगता है की राजनीती में अमर कहीं सही में अब अमर ही न हो जाएँ |सपा में रह कर अमर ने राजनीत में जो नाम कमाया लगता है वह अब गुमनाम हो रह है | वैसे भी डूबते सूरज को कोई सलाम नहीं करता और अमर के राजनीती में अब सूरज थोडा बहुत डूब चूका है | इस बात को अमर भी जानते हैं और अभी इसको समझ भी रहे हैं |

Feb 5, 2010

सवाल जवाब बाल ठाकरे के साथ ?

आज कल  लगता है की लोगो को हमेशा सुर्ख़ियों में रहना ज्यादा अच्छा लगता हैं | अब जनाब बाला साहेब ठाकरे की ही पार्टी को लीजिये बात समझ में आ ही जायेगा | क्या तमाशा हो रहा है देश की आर्थिक राजधानी में यह हम सब तमाशाबीन की तरह देख रहें हैं | हम कर भी क्या सकते हैं मेरे दिमाग में एक बात कौंध रही है आखिर कारण  क्या है इसका ? इतना तो शोले का गब्बर भी जुल्म नहीं ढाता था ,मैं अपने लहजे में इसको बयां कर रहा हूँ  कुछ प्रश्न - उत्तर के तरीके से -:
प्रश्न - बाला साहेब आज कल आप लोग फ़िल्मी दुनिया पर लगें हुए हैं इसका कारण ?
बाला साहेब - देखिये आज कल हमारे पास कोई  मुद्दा है ही नहीं हम क्या कर सकते हैं | कुछ दिन पहले कहे की ऑस्ट्रेलिया अगर भारत आएगा खलने के लिए तो हम इसे सहन नहीं कर सकेंगे ,पर यह नारा हमारा फ्लॉप चला गया हम करें तो क्या करें ?किसी तरह तो अपनी जगह बनानी है |
प्रश्न -तो इसका मतलब हुआ की आप अपने को जनता में बनाने रखने के लिए ऐसा कर रहें हैं ?
ठाकरे - आप लोग तो सब जानते ही हैं क्या क्या नहीं करना पड़ता है अपनी साख बचने के लिए ?
प्रश्न - आजकल आपलोग शाहरुख़ खान के पीछे लगे हुए हैं क्या कारण है ?
ठाकरे - देखिये हम तो किसी मुद्दे की तलाश में थे तभी इस खान ने कुछ कह दिया ,हमें तो बैठे -बिठाये मुद्दा मिल गया तो हमने भी जोर पकड़ ली ? देखिये एक बात तो आपलोगों से छिपी नहीं ही है की फिर हम लोग एक ही है बॉलीवुड के लोग चुनाव के समय भी हमारा मदद करतें है और अगर वो कुछ कहतें है तो लोकप्रियता और भी बढती है | अब कुछ समझ में आया |
प्रश्न - अच्छा साहेब यह बताइए की आप लोगो ने कुछ दिन पहले लोकमत चैनल में घुस कर भी तोड़ फोड़ की थी ? इसकी क्या वजह थी ?
ठाकरे - आप तो जान  ही रहें है की हमारा जो भतीजा है राज ठाकरे
उसने हमारी नाक में दम कर दिया है | हमारा छत्र छाया में पला बढ़ा और आज हमें ही आँख दिखा रहा है | वैसे मुंबई के चुनावों में ख़राब प्रदर्शन के बाद हम और भी बौखलाए हुआ थे उस का ही नतीजा था यह हमला | 
प्रश्न - अच्छा आप यह बताएं की आपकी अगली रणनीति क्या है ?

ठाकरे - देखिये आगे महानगरपालिका का चुनाव आने वाले है |और आप तो जान ही रहें है की पालिका का बजट  कई हज़ार करोडो  के आस पास होता है हम उसको कैसे छोड़ दें | क्या हर तरफ से हम  निराशा ही मोल लें |
प्रश्न - आज बीजेपी भी आपसे गठबंधन के लिए सोच विचार कर रही है आप क्या मानते हैं ?
ठाकरे - देखिये ऐसी कोई बात नहीं है अरे आखिर हम दोनों तो एक ही चट्टे - बट्टे के लोग हैं | अरे कभी कभी तो ऐसी बात होती ही है | सुलह हो ही जाएगी |
प्रश्न - अच्छा साहब यह बतायिए की मुंबई  में जो आतंकवादी घटनाये हुई है इसका समाधान कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर - अच्छा यह बात पूछ रहें हैं | बस हम लोगो के हाथ में सत्ता दे दीजिये फिर देखिये कैसे सारे समस्याओ का समाधान निकलता हैं |हम तो एक चुटकी देंगे और समस्या हल |
प्रश्न - आपका लक्ष्य क्या रहता है अपने विरुद्ध के लोगो के लिए ?
ठाकरे - अरे ज्यादा कुछ नहीं आप तो जानतें ही हैं की हमारी एक ही नीति है जो तुम्हारे लिए परेशानी पैदा करे उसको मुंह तोड़ जबाब दो और हम तो शुरू से ही ऐसा करते आयें हैं |आज भी वैसा ही करेंगे |
प्रश्न - अच्छा ठाकरे जी आप यह बतायिए की आपकी  उत्तर भारतियों को लेकर क्या राय हैं ?
उत्तर - सुनिए हमारी कोई स्पष्ट नीति अभी तक नहीं है हम तो सिर्फ एक ही नीति पर काम करें है | वो नीति हैं टाइम -टाइम पर देश के लोगो के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज करना |और इसी फेरें में कभी दक्षिण भारतीय तो कभी उत्तर भारतीय निशाना बनतें हैं | हम तो सिर्फ यही जानते हैं की हम देश स्तर पर तो अपनी पार्टी बना नहीं सकते हैं किसी तरह मुंबई पर ही राज कर लें |
प्रश्न - आप पाकिस्तानियो का विरोध करतें हैं लेकिन आप जावेद मियांदाद के साथ पूरे परिवार को लेकर हँसते हुए फोटो खिचवातें हैं , यह समझ में नहीं आया |
उत्तर - अरे जनाब आप मीडिया में कैसे आ गएँ ये मुझे अभी तक मालूम नहीं चल पा रहा है | अरे मियांदाद तो बड़े लोगो में से एक हैं हम तो ज्यादातर छोटे लोगो को अपना निशाना बनातें हैं |
प्रश्न - आपलोगों ने अभी कुछ बड़े लोगो पर भी निशाना साधा हैं ?
ठाकरे - आप देख नहीं पा रहें हैं हमने मुकेश अंबानी को लेकर ज्यादा हो हल्ला नहीं किया ,अगर हम ऐसे लोगो को निशाना बनायेंगे तो हमारा हुक्का -पानी कैसे चलेगा | हम भी सोच समझ कर कम करतें हैं |
प्रश्न - अभी हाल ही में खबर आयी है की आपका दुर्ग कमजोर होता जा रहा हैं ?
ठाकरे - हाँ खबर तो मैं भी सुन रहा हूँ |लेकिन आप देख ही रहें हैं की हम अपनी दुर्ग बचाने की पूरी कोशिश में लगे हुए हैं लेकिन समय ही साथ नहीं दे रहा है | वैसे भी मैं अब  थोडा कमजोर हो गया हूँ इसलिए कोई बात का ज्यादा असर नहीं पड़ता हैं आजकल |और राज भी अलग होकर टेंशन दे रहा हैं | अब तो राम ही मालिक | हिंदुत्व भी कारगर नहीं हो पा रहा हैं सूझ नहीं रहा है की क्या करूँ | अब तो आप लोगों का ही  भरोसा है की हमारी खबर लगातार मीडिया में छापें ताकि हम लोगों की नजरों में दिखाई देते रहें |
हमसे बातचीत करने के लिए ठाकरे साहेब आपका बहुत- बहुत शुक्रिया |
ठाकरे - हाँ आपको भी ताकी आप हमारे यह प्रश्न -उत्तर जल्दी दे छाप दें और हमें जिन्दा रखें |



Feb 4, 2010

आखिर यह देश किसका ?

आज सुबह से ही सोच रहा हूँ की आखिर यह देश किसका है ? कुछ बातें ऐसी होतीं हैं की सोचने पर मजबूर कर देती है मैं भी कुछ इसी प्रक्रिया से गुजर रहा हूँ |  मेरे दोस्त कहते हैं की मैं राजनीती की ही बात करता हूँ |आखिर आप ही बताएँ  बात भी क्या करूँ, देश में इसी शब्द की तो मांग है | मैं सोच रहा हूँ की क्या बताऊंगा जब कोई मुझसे यह पूछेगा की आप बतलायिए की यह देश वाजिब  में किसका है तो क्या कहूँगा मैं ? मैं पशोपेश में हूँ ,मैं सोचता हूँ की यह देश हर किसी का है | जब हमनें देस्व्ह की आजादी की खातिर लड़ाई लड़ी थी तब तो हमारा देश था भारत |लेकिन आज देश नहीं हमारा धर्म और राज्य ही सब कुछ हो गया है |किसी से पूछो की आप कहाँ से हैं तो वह कहेगा की मैं तो यूपी का हूँ मैं पंजाबी हूँ कोई शुरू में नहीं कहता की मैं भारत का हूँ ? आज देश की समस्या का यही कारण है |आज हमारे आपके जैसे लोग जो थोडा बहुत अपने को ज्ञानवान कहतें है अपने को छोड़कर दूसरे की बात शायद ही कभी करतें हैं | सिर्फ मैं खुश रहूँ  यही बात हर हमेशा आज हर कोई सोच रहा है
देश का चाहे जो भी हो उन्हें क्या मतलब उनको तो ठीक ठाक जीवन बिताने के लिए पैसा मिल ही जाता है ,दुसरे चिजों से क्या काम ?सच बात तो यह है की आज हम मतलबी और स्वार्थी हो गएँ हैं
दुसरे के सुख दुख मे कभी हम मिल्कर साझीदार होते थे पर आज हमारे बीच दुरियाँ हो गयीं हैं |
आज हम अपने पड़ोसियों को नहीं पह्चानते तक नहीं है क्या कारण है इसका ? लेकिन जब देश मे क्रेडिट लेने की बात आती है तो हम सबसे आगे रह्तें हैं| यही तो एक कारण है की आज हमारे देश मे इतनी गम्भीर समस्या उत्पन्न हो गई है| देश आज दो धुरियों में विभाजित हो रहा है लेकिन फिर भी किसी का सही से ध्यान इस ओर नहीं गया हैं |अब आप ही बताएँ की यह देश आखिर है किसका ?



Jan 26, 2010

ये टिकत नहीं आसान ?

राजनीती में  बड़े - बड़े लोगो के छक्के छूट जाते हैं| और जब समय चुनाव का हो तो पता चलता है की राजनीत है क्या ? सबसे दिक्कत वाला पल होता है जब टिकट मिलने का समय होता है ,यकीन नहीं होगा आपको की कैसे भाग दौड़ कर के नेता लोग अपनी सेहत बनाते हैं | जब तक टिकट नहीं मिलता है तो खूब प्रदेश की राजधानी से लेकर देश की राजधानी की यात्रा होती है | अगर इतनी सी दौड़ धूप के बाद भी टिकट मिलना पक्का हो तो कोई बात नहीं| सही बात है टिकट के लिए नेताओ को आजकल जितनी जिल्लत झेलनी पड़ रही हैं उतने में तो कोई आम आदमी चार धाम की यात्रा कर आवे | सबसे पहले समर्थक जुटाने पड़ते है इसके लिए देश के टॉप क्लास के मैनेजमेंट वाले लोगो से संपर्क करना होता है |यहाँ जानकारी जरूरी है की ये मैनेजमेंट वाले लोग आईआईएम या अन्य किसी बिजनेस संस्थान से नहीं बल्कि आम जनता से जुड़े हुए संस्थान से होते हैं |उसके बाद भीड़  मैनैजे करनी होती है जितनी ज्यादा भीड़ उतना ज्यादा चांस टिकट मिलने की |अगर लोग नहीं आये तो यकीन कौन  करेगा की फलाने नेता की फलाने जगह कुछ पकड़ है | खैर भीड़ जुटाने में नेताजी को शारीरिक और आर्थिक दोनों रूप से तैयार भी होना होता है |जब लोग नेताजी के रैली में आ गए तो नेता लोगो को कुछ यकीन होता है की इस बार टिकट मिल सकता है पूरा यकीन तो होता ही नहीं है |फिर शुरू होता है असली दौर बड़े -बड़े पार्टी पदाधिकारियों से मिलने का ताकि किसी तरह टिकट का जुगाड़ हो जाए |सिर्फ नेताजी ही नहीं कई चमचे भी चम्मच लगा रहे होते है नेताजी के टिकट के लिए | एक तरफ नेताजी लोगो से मिल कर यह आश्वासन भी ले रहे होते हैं की अगर पार्टी टिकट नहीं देती है तो वो निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते है | नेताजी मुलाकातों का दौर जारी रखते है इस दौरान ताकि कोई मौका छूट न जाए |फिर जब आखिरी दौर आता है एक- दो नामों के बीच कांटे का टक्कर होता है तो नेताजी लगातार बड़े नेताओ को अपनी ताकत का उद्धारण देने में कोई कसर नहीं छोड़ते | लेकिन जब टिकट मिलता है और सिर्फ एक को ही मिलता है तो बड़ी मायूसी होती है अन्य में |और जिसको टिकट मिल जाते है वो यह प्रचार करते फिर रहा होता है की किस तरह इतने लोगो को छांट कर उसे टिकट मिला है |सही में इसी समय नेता लोगो को लगता है की कितना मुश्किल होता है टिकर पाना | भगवान से ज्यादा वे अपने पार्टी के भगवानो को शुक्रिया देते हैं |

Jan 25, 2010

विज्ञापन में भूल ?

कल यानि की 24  जनवरी ,रोज की तरह सुबह बिस्तर से चिपका हुआ था तक़रीबन सुबह के 8  बज रहे होंगे |सर्दियों के सुबह में नॉएडा आने के बाद मैं इसी समय पर अक्सर अपनी आँख खोलता हूँ |कभी -कभी पहले भी खोल देता हूँ ,अनूप बाबु जो हमें सुबह- सुबह अखबार मुहैया करते हैं उनकी कृपा से |कल सोचा की चलो आज तो सन्डे है कुछ देर तलक सोते हैं ,लेकिन अनूप जी तो समय से ही आते हैं| मैं अभी जहाँ निवास करता हूँ वहां मेरा बसेरा तीसरे मंजिल पर है |अनूप जी तो इतने उपर आते नहीं है इसलिए दूसरे फ्लोर से ही पेपर फ़ेंक देते हैं |कल भी कुछ ऐसा ही किया उनने पेपर सीधा मेरे दरवाजे पर एक बम की आकर लगा मैं उठा और पेपर समेत कर रूम में वापस आ गया |अख़बार पढने की आदत तो आप सभी जानते ही होंगे कितनी बुरी होती है ,अगर अख़बार आ जाए तो मैं तो उसे बिना पढ़े रह ही नहीं पाता हूँ |मैंने शुरू कर दिया ,मैं फिलहाल तीन अख़बार लेता हूँ एक है अंग्रेजी का भारत का सबसे अधिक बिकने वाला the times of  india   तो और दो हैं नई दुनिया और दैनिक भास्कर |नई दुनिया को मैं पोलिटिकल न्यूज़ के लिए लेता हूँ |खैर अब आते है कुछ मुद्दे पर ,मैंने पेपर पढना शुरू किया ही था की तब तक मेरे मित्र और कमरे के सहयोगी वेद्पाणी जी की भी निद्रा भंग हो गयी |वेद्पाणी जी भी अखबार में रम  गए |मैं सबसे पहले अंग्रेजी वाला अखबार ही देखता हूँ मैं पढना इसलिए नहीं कहूँगा की मैं अखबार को पूरी तरह तो पढ़ ही नहीं सकता |खैर अखबार उलटते -उलटते हुए मेरी नजर एक विज्ञापन पर गयी जो भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा बालिका दिवस के उपलक्ष्य पर जारी की गयी थी |मुझे उसमे बहुत सा फोटो दिखा लेकिन एक ने मुझे गौर करने पर मजबूर कर दिया |मैंने गौर कर के देखा तो मुझे उसमे किसी दूसरे देश के सेना अधिकारी का फोटो लगा |मैंने उसे वहीं पर त्याग दिया और आगे दृष्टि दी |कुछ देर बाद एक प्रक्रिया के बाद वह अखबार वेद्पनी जी के पास गया |उनकी दृष्टि किसी भी चीज़ पर अगर टिक गयी तो उसका पूरा पड़ताल करके ही छोड़ते हैं |उन्होंने मुझे बुलाया और कहा की कश्यप जी देखिये यहाँ क्या है पाकिस्तान के अधिकारी का भारतीय विज्ञापन पर फोटो लगा है |मैंने कहा हाँ मुझे भी लगा कोई अलग देश का ही है फिर हम दोनों गौर कर के देखने लगे तो उन्होंने कहा की इसकी टोपी में चिन्ह देखिये पाकिस्तान का चाँद तारा निशान है |मैंने कहा हाँ इसका बैच भी अलग है |फिर हम दोनों में विमर्श होने लगा मैंने कहा लगता है इस विभाग को जानकारी का अभाव है |तरह तरह के बात निकले ,फिर समाप्त हो गयी |एक बात जो मैं सोच रहा था वह यह क्या की कैसे इतने बड़े जगह पर ऐसा मिस्टेक हो गया |आज मेरे पास वही दो हिंदी के और एक अंग्रेजी  के अखबार आये| हिंदी में तो मुख्य पृष्ठ की खबर थी कल वाले विज्ञापन की गलती ,पर जो अंग्रेजी  अखबार था उसमे अन्दर एक छोटी से खबर दी गयी थी |मुझे लगा इस अंग्रेजी के अखबार को क्या सिर्फ पैसो से मतलब है क्या वह कुछ देखता है भी की नहीं |मेरा विश्वास अब और तगड़ा हो गया था की इस अंग्रेजी के अखबार में कुछ भी दो अगर उससे पैसे आता है तो वह चाप जायेगा |किसी को भी इस घटना के लिए कम नहीं माना जाना चाहिए ,जो विज्ञापन दे रहा है और जहाँ छप रहा है दोनों जिम्मेदार हैं |इस अंग्रेजी अखबार में जो जो विज्ञापन थी उसमे जो पूर्व पाकिस्तानी वायुसेना प्रमुख तनवीर अहमद की तस्वीर छपी थी वह यह जाहिर करती है की हमारे देश की स्थिति क्या है ?इस जगह पर अगर कोई छोटा आदमी या छोटा संगठन ऐसी गलती करता तो हर कोई उसमे मीन मेख निकलता लेकिन यहाँ तो दोनो मे से एक भी नहीं है |ज्यादा कुछ होगा भी नहीं लेकिन मैं एक सलाह देन चाहूँगा अखबार वाले को की वो कम से कम एक बार विज्ञापन को जांच कर ले छापने से पहले ,अपने आप को आप देश के प्रहरी कहते हैं और ऐसी गलती करते हैं |अगर देश का प्रहरी ही सोते इन्सान की तरह काम करेगा तो देश के आम लोगो के विषय मे ऐसा सोच्न बेकार है की वो सही करेंगे |वैसे इस अंग्रेजी अखबार ने यह दिखा दिया है की उनके लिए पैसा ही सब कुछ है |और मैं मन्त्रालय मैं बैठे लोगो से भी एक बात कहना चाहूँगा की आप तो देश को चलने वाले लोग हो आप अगर ऐसी गलती करेंगे तो कैसे चलेगा देश ?काँग्रेस नीत इस सरकार के इस एक और गलती ने दिखा दिया है की सिर्फ सत्ता पाने से ही सारा काम नहीं होता है, उसको सही से चलाना भी जरूरी होता है |इस सरकार ने लगता है अभी तक सबक नहीं लिया है और करीब -करीब हर मन्त्रालय से लगातार इस प्रकार की गल्तियाँ हो रहिन है |कभी विदेश ,कभी शिक्षा ,कभी कृषि तो अब महिला और बाल विकास मन्त्रालय हर कोई लगातार गलती करता जा रहा हैं ,और देश इस हालात मे आ गया है |अब इनको कुछ ध्यान सही तरह से काम करने पर भी देना चाहिए |

Jan 22, 2010

किसी ने नहीं खरीदा पकिस्तानियो को ?

जैसा होना था वही हुआ पाकिस्तानी खिलाडियों को आइपीअल -3  में किसी भी टीम के प्रायोजकों ने नहीं ख़रीदा |खरीदने की बात तो तब न होती जब कोई इसके लिए बोली भी लगता ,यहाँ तो बोली भी नहीं लगी |काफी झमेले के बाद तो पाकिस्तानी खिलाडियों को बीड में शामिल किया गया लेकिन वो भी सिर्फ दिखावे के लिए |पाकिस्तानी खिलाडियों को थोड़ी बहुत आशा तो थी की उनको इस बार खेलने का मौका मिल सकता है ,लेकिन कहाँ बंधू ऐसा तो तब होता न जब उनको लेकर कोई गंभीर रहता |यहाँ तो सिर्फ दिकह्वे के लिए उनको निमंत्रण तो दे दिया गया पर भोज में शामिल होने का मौका ही नहीं दिया |पाकिस्तानी के बहुत से खिलाड़ी 20 -20  फॉर्मेट के बेहतरीन खिलाड़ी मने जाते हैं एक बार उनको इस आयोजन में भाग लेने का मौका मिला लेकिन फिर दरवाजे बंद हो गए |पाकिस्तान के द्वारा जो आतंकवादियो को लगातार प्रोत्साहन दिया जाता रहा है उसका असर पहले भी पाकिस्तान पर पड़ चूका है |लेकिन 26 /11  के बाद भारत में उनके देश के खिलाफ एक जो ज्वाला भड़की है उसने दोनों देशों के बीच संबंधो को और भी ख़राब कर दिया है |भारत पहली बार इतना खुल कर पकिस्तान का विरोध कर रहा है ,बात भी सही है एक तरफ आप हमें परेशान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हो और दूसरी तरफ हमसे फायदे की उम्मीद भी रखते हो |भारत ने अब तक  कभी भी गलत का साथ नहीं दिया  है लेकिन पाकिस्तान इसको समझ ही नहीं सका है |अब जब भारत ने एक और कठोर कदम उठाया तो अब उनको समझ में आ रहा है |मेरे अनुसार देश सबसे पहले है और देश को अगर कोई अनदेखा करता है तो वह देश में रहने का हक़दार नहीं है |सब कुछ पैसा ही नहीं है इसका परिचय इस बार इस नीलामी में दिया गया |अब पाकिस्तान को लग रहा है की भारत ने यह कदम मुंबई हमलो के कारण उठाया है ,पाकिस्तान अगर भारत को इस मामले पर कुछ सहयोग देता तो सब कुछ ठीक हो सकता था लेकिन पाक तो आखिर पाकिस्तान है ,पीठ पैर छुरा घोपने वाला |मुझे लगता है अब भी शायद  पाकिस्तान को कुछ समझ आ जाए और वो भारत में होने वाली आतंकवादी गतिविधि का प्रायोजक न बने |अगर वो फिर से इस गतिविधि का प्रायोजक बनता है तो कहीं ऐसा न हो की उनके देश के खिलाडियों को भविष्य में कोई प्रायोजक ही न मिल सके |

राहुल की राजनीति

राहुल गाँधी आजकल लगातार यूनिवर्सिटी और कालेजो के दौरे पे हैं और विपक्षी पार्टियों खासकर बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है |बीजेपी को लग रहा है की राहुल के प्रति जो युवाओं  का आकर्षण है वो कहीं पार्टी के वोट बैंक में सेंध न लगा दे |आज राहुल गाँधी हर जगह के दौरे पर है और युवाओं को राजनीती से जुड़ने की बात कर रहे है, उन्हें सलाह दे रहे हैं |यूथ भी राहुल के साथ चलना चाह रहें है ऐसा राहुल के कार्यक्रम के दौरान उनके प्रति युवाओं के नजरिये से पता चलता है |बात भी सही है देश के युवाओं को सही मायनों में राजनीती से जुड़ने और एक अलग मुकाम बनाने को लेकर आजतक ज्यादा बात नहीं होती थी और राहुल ने आज इसकी शुरुआत कर दी है | राहुल युवाओं को एक तरह से प्रेरित और अपील भी कर रहे है |आज देश में कई पार्टियाँ है पर इस तरह की शुरुआत किसी ने नहीं की थी |राहुल की तरह आज कोई भी युवा नेता युवाओं में यह भरोसा नहीं दिला पा रहा है की राजनीती में उनका कुछ भविष्य है |राहुल युवाओं को देश की राजनीती का हिस्सा बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं |राहुल के इस कदम की तारीफ सिर्फ उनकी पार्टी के नेता ही नहीं बल्कि विपक्षी भी कर रहें हैं |अभी हाल में ही नितिन गडकरी ने भी राहुल के इस फ़ॉर्मूले को सही बताया और राहुल को इस कदम के लिए धन्यवाद भी एक तरह से दे गए |वास्तविकता में राहुल की कोशिश अगर रंग लाती है तो देश को कुछ काम करने वाले लोग राजनीती में भी मिल सकते हैं |राहुल ने यूथ कांग्रेस के लिए जिन लोगो को लेने की बात की उनमे से आपराधिक प्रकार के लोगो के लिए कोई जगह नहीं है ,राहुल के इस कदम को हर पार्टियों को नज़र में रखना चाहए इससे देश की राजनीती में कुछ सुधार आ सकता है |राहुल फिलहाल जो काम कर रहे है मेरी नज़र में वह प्रशंसा योग्य है |

चौहान उवाच ,मतलब क्या?

मैं एक बात सुबह से ही सोच रहा हूँ और अब जाकर आखिर में कुछ लिख देने को मजबूर हो गया हूँ |मैंने बचपन  में मछली पकड़ते लोगो को बहुत देखा और बात करते सुना है और मुझे अब लगता है वो कुछ बात बहुत सही करते थे |एक बात वो करते थे की "गंदे पानी में रहने वाली  बड़ी मछलियाँ पहले इसी पानी  में रहने वाली  छोटी मछलियों को शह देती है| और वही मछलियाँ जब बड़ी मछलियों के बताये तौर तरीको को जानकार उनको ही बताने लगते हैं तब बड़ी मछलियों को उनको बताना पड़ता है की वो उनसे बड़ी है |" ऐसा ही कुछ आजकल महाराष्ट्र में हो रहा है |पहले तो शिवसैनिक बाल ठाकरे  दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाते थे ,फिर बारी आई शिवसेना के दुलारे और एक मनमुटाव के कारण पार्टी से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने वाले राज ठाकरे की |राज ने भी अपने को  मराठी मानुस का असली हिमायती बताते हुए उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया, इसका फायदा राज को चुनाव में भी मिला और उनकी पार्टी को विधानसभा में 13  सीट प्राप्त हो गयी |अब जब वही बच्चा बड़े को ही चुनौती देने लगा तो बड़े को कुछ तो कदम उठाना पड़ेगा ,और इसको ध्यान में रख कर अब महाराष्ट्र के निवर्तमान  मुख्मंत्री अशोक चौहान ने भी मराठियो के प्रति अपने प्रेम को जाहिर कर दिया है |चौहान ने अब यह कह कर अपनी मनसा जाहिर कर दी है की "महाराष्ट्र में सिर्फ लोकल लोगो को ही टैक्सी का परमिट मिलेगा ,बाद में अशोक ने इसकेलिए अपने को बचाने का प्रयास किया |सब कुछ ठीक है ऐसा अशोक को इस बार सरकार बनाने के बाद लग गया और उनको लगा की अब उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है |लेकिन कांग्रेस पार्टी आज उत्तर भारत में बेहद कमजोर है और कांग्रेस के गाँधी राहुल पार्टी की स्थिति को ठीक करने में लगे है |ऐसे में अशोक ने यह बयान देकर उनकी स्थिति को ख़राब कर दिया है अब चाहे राहुल कितना भी समझाने का प्रयास करें लेकिन एक बार जो सब्द निकल आता है उसका परिणाम तो कुछ पड़ता ही है |कांग्रेस का कोई अदना सा कार्यकर्त्ता  वहां ऐसी बात तो उसे एक नासमझी या फिर अपनी स्थिति सुधारने की बात मानी जा सकती थी |लेकिन मुख्यमंत्री तो किसी भी पार्टी का प्रदेश में प्रमुख होता है और ऐसी बात अगर वो करे तो ऐसा जरूर है की इसपर पार्टी में कुछ न कुछ पाक रहा है |बाल ठाकरे के आँखों के सामने आज पार्टी की दुर्दशा हो रही है और वैसे भी राज और शिवसेना का मुख्य जनाधार जो भी है वह महाराष्ट्र तक ही है |वहीं कांग्रेस का जनाधार देश भर में है ,आज पार्टी बिना उत्तर भारत में जनाधार बनाये बहुमत नहीं पा सकती है और इसका अंदाज़ा अशोक चौहान को भी है |अब चौहान ने यह बयान देकर स्पष्ट कर दिया है की उनकी भी नीति किसी तरह सत्ता पाने की ही है और कुछ नहीं |कांग्रेस अपने को देश जोड़ने वाली पार्टी कहती है लेकिन उसके बड़े नेता अगर देश तोड़ने वाली बात कहे तो उसकी नीति का दोहरा सच नजर आता है |खैर जो भी हो लेकिन इतना तय हो गया की कांग्रेस जितना भी अपने आप को देश की हिमायती पार्टी कह ले वो है नहीं यह तो स्पष्ट हो गया |

Jan 21, 2010

ममता की ध्रुव प्रतिज्ञा |

राजनीती में अगर कोई अपनी बात पर आज भी कायम रहने की हिम्मत दिखा रहा है तो वो ममता बनर्जी ही हैं |ममता सही में दीदी बनने लायक वाली बात पर कायम है |अभी ज्योति बसु के निधन के बाद उनकी आखिरी यात्रा में शामिल न होकर दीदी ने एक अलग ही बात बतलानी चाही है |तृणमूल कांग्रेस ने जो फैसला लिया था वाम दल के किसी भी कार्यक्रम में शामिल न होने की वह ममता ने बसु के लास्ट यात्रा में शामिल न होकर उसको साबित  कर दिया |वैसे भी ममता की नजर 2012  के बंगाल चुनाव पर ही केन्द्रित है और ममता उसके लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहीं हैं |ममता  ने तो प्रधानमंत्री से बंगाल में मुलाकात करना भी मुनासिब नहीं समझा ,कारण अगर देखा जाए तो प्रधानमंत्री जी के साथ वाम नेताओ की उपस्थिति ही रही है |ममता एक और बात पर कायम है की चाहे जो भी हो जाए ,चाहे किसी भी मंत्रालय में रहें लेकिन उसका काम बंगाल से ही होना चाहए |देश को सही मायनो में आज ऐसे लोगो की कमी हो गयी है जो ममता दीदी की तरह बातो पर कायम हो कर दिखाए |देश के ज्यादातर लोग तो काम देख कर बात करतें है ,उसके हर पहलुओ की ओर ध्यान  देते हैं| लेकिन दीदी ने एक सन्देश देना चाहा है उन सभी लोगो को चाहे देश में कुछ भी हो जाए ,आपके फैसले देश को गर्त में ले जाए ,आपके आसपास के लोगो को पीछे कर दे लेकिन आप अपनी बात पर अटल रहो |ममता जी तो एक और बात पर उसी समय से   अटल रहीं हैं जब वो अटल बिहारी जी के सरकार में रेलवे मिनिस्टर बनी थी|तब भी उनका मुख्य लक्ष्य रेलवे की दुर्गति करना ही था ओर आज भी है |बंगाल के बाहर कोई भी रेल हादसा हो जाए लेकिन ममता जी जाने का कष्ट नहीं कर सकती हैं |उनके अनुसार तो यही सही लगता है की अरे मेरा तो मुख्य काम बंगाल का वोट लेना है देश जाए भांड में |ममता के जूनियर मंत्री भी लगातार कह रहे है की ममता तो उनको कुछ समझती ही नहीं है ,तो मुझे लगता है की उनको अभी भी पता नहीं चल सका है की आखिर ममता हैं क्या ?अरे बंधू लोग जब वो प्रधानमंत्री को समय नहीं दे पाती हैं तो आप किस खेत के मूली है भाई |ममता की एक ओर बात काबिले तारीफ है की एक तरफ तो  वो अपने आप को गरीबो का पूरा ख्याल रखने वाली बताती हैं लेकिन यह मोह भी सिर्फ बंगाल तक ही सीमित है |आखिर बात क्या है यह समझ से परे हैं |मुझे एक बात और लगता है की अगर ममता इस जन्म में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनी तो कहीं यह न हो जाए की 7 रेसकोर्स रोड और रायसीना हिल वाली बिल्डिंग भी कोलकाता शिफ्ट हो जाए |मैं एक बात और भी कहना चाहता हूँ क्या ममता जी को यह नहीं पता चलता की किस राज्य के सबसे ज्यादा लोग रेलवे में सफ़र कर रहें है ?रेलगाड़ी की संख्या  उनके लिए कम पड़ रही है तो बढाया जाए |एक बात तो सरकार में बैठे लोगो को भी सोचना चाहए की ऐसे लोगो को उस जगह पर नहीं बैठना चाहए जहाँ सारे देश का मामला हो ,अगर ऐसे ही लोगो को इनसब जगहों पर बार -बार जगह दी गयी तो देश का कायाकल्प नहीं हो सकेगा ,प्रगति नहीं हो सकेगा |राज ठाकरे तो बयान दे कर प्रांतीयता को फैला रहें है और देश को विभाजित करने की कोशिश कर रहें है ,लेकिन ममता जैसे लोग जो काम कर रहें है वो और भी खतरनाक है |सरकार को इसपर धयान देना ही होगा | 

Jan 20, 2010

आज की सोच ?

मैंने आज सोचा चलो आज कुछ सोचते है |एक मूड बनाया और सोचने बैठ गया ,लेकिन जब बैठा तो लगने लगा क्या सोचूं ?किसके बारे में सोचूं ?फिर सोचने लगा आज तो वसंत पंचमी है माँ सरस्वती के पूजा का दिन |जब घर में रहता था तो पूरे लगन और मेहनत के साथ इसकी तैयारी में लगा रहता था |कोई इस दौरान कोई काम कह दे तो दो मिनट भी नहीं लगते थे ,किसी काम में न तो होती ही नहीं थी|क्या दिन थे जबरदस्त ,मजेदार किसी चीज़ की फ़िक्र नहीं ?लेकिन आज इस भागती दुनिया में अब मुझे थोड़ी थोड़ी फ़िक्र कभी -कभी होने लगती है जब मेरे कुछ अजीज मित्र नौकरी के बारे में बात करने लगते है |कॉलेज जाने से लेकर सोने तक उनके मुख पर सिर्फ एक ही बात होती है ,आज फलाने से बात करनी है ,यहाँ रिज्यूमे देना है ,इस जगह तो इस आदमी से काम निकल सकता है |फिर मन में बात आती है की आखिर इतनी जो महंगाई बढ़ रही है कैसे गुजारा होगा ,अभी तो बाप के पैसे पर बड़े शान से रहते है |कल कैसे होगा आखिर अब तो 5  महीने बाद लोग भी पूछेंगे क्या हो रहा है ,मुझे तो जबाब भी सोचना पड़ेगा कारण सिर्फ इसलिए की तब तक तो पढाई भी ख़त्म हो जाएगी बॉस |और अगर नौकरी नहीं मिली तो कुछ तो करना होगा ही ,वैसे मेरे एक दोस्त का कहना है एक मस्त ढाबा खोलेंगे और दोनों उसी में अपना समय देंगे |हुक्का पानी का इंतजाम तो इससे हो ही जायेगा |वैसे एक दोस्त का कहना है अगर कुछ नहीं मिलेगा तो राजनीती में घूसा जायेगा ,दिन तो कट ही जायेंगे |अगर इलेक्शन का टाइम रहा तो जुगाड़ अच्छा रहेगा |फिर सोचता हूँ देश में वैसे ही कई बंधू बेरोजगार है सरकार तो कुछ कर नहीं सकी चलो हमारा नाम भी इसमें शामिल हो जायेगा ये भी तो एक गर्व की ही बात है |तब तक नींद टूट गयी और फिर सोचना बंद एक्टिविटी चालू |

Jan 17, 2010

अब तू वापस नहीं आएगा ?

तू चला गया ,अब वापस नहीं आएगा
हमें याद तेरी आएगी ,
पर अब शायद तू नहीं आएगा ,
तूने हमें सिखाया ,
कैसे जीते है
कैसे गमों में भी मुस्कुराते है ,
कैसे हर मुसीबत को हँस कर टाल देते हैं ,
दुश्मनो को भी कैसे
दोस्त बनाते हैं ,
हर मोड़ पर कैसे अपनों का साथ निभाते है ,
पर अब तो तू ही छोड़ गया
हमें इस मझधार में
अब कैसे पार होगी हमारी
नैया इस भंवर से ,
कौन दिखाएगा हमें रास्ता
कैसे जायेंगे हम सही राह पर
कौन बताएगा हमें इस
दुनिया की रीति ,
कैसे समझ पाएंगे हम
कठिन से कठिन नीति .
तुम थे तो सब आसान लगता था ,
अब तो तुम ही नहीं हो ,
अब हर कुछ एक बोझ सा लगने लगा है ,
पर अब इनसब बातो का मतलब ही क्या ?
अब तो तू ही  चला गया ,हमें छोड़ के
अब तू वापस नहीं आएगा
वापस नहीं आएगा |

Jan 16, 2010

गोविंदाचार्य का नया बयान और वास्तविकता ?

कभी बीजेपी के थिंक टैंक रहे और अब राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के संयोजक  के.एन.गोविन्दाचार्य ने फिर से एक बार राष्ट्रीयता का मुद्दा उठाया है |इस बार गोविन्दाचार्य ने यह कहते हुए संविधान में संशोधन की बात की है की ,देश के प्रमुख संवैधानिक पदों(जैसे राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री ,सेना के जनरल ) पर केवल भारतीय मूल के लोगो को ही नियुक्त करना चाहिए |गोविन्दाचार्य ने इसके लिए आवश्यक  संविधान संशोधन करने की भी बात उठाई है साथ ही इस पर भी जोर दिया है की संविधान में आमूल -चूल परिवर्तन के लिए एक नई संविधान सभा गठित की जाए| गोविन्दाचार्य के इस बयान को एक बार फिर से सोनिया गाँधी से जोड़ कर देखा जा रहा है |लेकिन मैं इस बात पर गोविन्दाचार्य जी के बयान की सराहना करता हूँ ,इन्होने सही बात कही है |आखिर में जो देश का ही नहीं है वो देश को सही से चला कैसे सकता है ,वो देश को अच्छे से समझ ही नहीं सकता है |जहाँ तक मेरी सोच है तो मैं कहना चाह रहा हूँ की देश के संवैधानिक पदों पर सही में देश के ही किसी व्यक्ति को आसीन होना चाहए |क्या हमारे इतने बड़े विशाल देश में अच्छे और योग्य लोगो की कमी हो गयी है जो की हम दूसरी तरफ देखें |आज अमेरिका के सिलिकॉन वैली को भी भारतीय दिमाग ही चला रहे है तो फिर हम दूसरे की तरफ किस कारण से देखें |एक तरफ तो हम अपने संस्कृति और धरती माँ को महान बताते थकते नहीं है तो दूसरी तरफ हम क्या अपनी इस धरती के लालो को ही सही सम्मान दे पा रहे हैं ?यह प्रश्न कुछ लोगो को ख़राब और बिल्कुल गलत लग सकता है ,कुछ को लग सकता हैं की यह तो सिर्फ राजनीती का एक हिस्सा है पर मैं इससे राजनीती से नहीं अपने आप को एक आम देशवासी होने से जोड़ कर देख रहा हूँ |हम अपनी देश की पूजा करते हुए बड़े हुए ,एक सपना लेकर बड़े हुए लेकिन जब सपना पूरा होने का समय आया तो कोई बाहरी आकर उसपर आसीन हो जाए तो मैं सही में पूछता हूँ कैसा लगेगा? मुझे तो बड़ा ही ख़राब लगेगा ,मैं सोचूंगा की आज मुझे अपनों ने ही धोखा  दिया |अपने देश में इतनी प्रतिभा है और हम दूसरे की तरफ देखे तो एक अजीब सी बात नहीं लगती |मैं अंत में ज्यादा तो नहीं बस यही कहना चाहूँगा की अगर इस चीज़ के लिए संविधान में कुछ संशोधन की जरूरत है तो अवश्य  किया जाए |भारत को  जो समझ ही नहीं सकता वो देश को सही से चलाएगा कैसे ,शशि थरूर इसके सबसे बड़े उद्धरण है |अमेरिका में रह कर न उन्होंने कभी देश के गांवो को जाना न कभी जानने की कोशिश की| मुझे तो एक ताज्जुब भी लगता है की किस कारण से यूपीए सरकार ने उन्हें मंत्री बनाकर रखा है |जिसको देश के आम नागरिक का सम्मान नहीं आता उसे किसी भी पद पर देना खुद अपनी दुर्दशा करने जैसी है |बात सही है जिस देश ने दुनिया को सिखाया वहां आकर कोई दूसरा राज करे समझ से परे है |अंग्रेजो के समय वाली स्थिति फिर आ जाएगी अगर कोई दूसरा आ कर यहाँ शासन करेगा |

Jan 15, 2010

किस कारण से हैं शिक्षा का यह हाल ?

भारत में जितने भी सर्वे होते हैं उनके रिजल्ट बड़े ही चौकाने वाले ही होते हैं |गैर सरकारी संगठन प्रथम का गांवो के स्कूलों पर आधारित स्कूली शिक्षा की रिपोर्ट भी कुछ चौकाने वाली ही आई है |प्रथम ने 575  जिलो  के 16  हज़ार गांवो में तीन लाख परिवारों के बीच इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए सर्वेक्षण किया |इस सर्वेक्षण के अनुसार अभी भी देश के ग्रामीण इलाके के स्कूलों में 50 प्रतिशत बच्चे ऐसे है जो अपेक्षित स्तर से तीन कक्षा निचे के स्तर पर है ,मतलब यदि कोई बच्चा 6ठी क्लास में पढ़ रहा है तो उसका स्तर अभी कक्षा तीन के लायक है |एक बात अगर कहें तो यह बड़ा ही चौकाने वाला है जहाँ इतनी बड़ी- बड़ी बात कही जा रही है शिक्षा को सुधरने के लिए वहां शुरूआती स्तर पर यह हाल है |देश के शिक्षा मंत्री को शायद अभी भी गांवो के बारे में पता नहीं है इसका प्रमाण तो इस को देखने के बाद स्पष्ट है |सिर्फ उच्च स्तर पर शिक्षा को सुधारने से ही काम नहीं चलेगा सबसे पहले तो निचले  स्तर पर ध्यान  देना होगा|अगर शुरुआत में ही बच्चे कमजोर होंगे तो फिर आगे जा कर वो कैसे अपने आप को दुरुस्त करेंगे |अभी भी हमारे देश में सरकारी स्कूलों  में बहुत ऐसे शिक्षक मिल जायेंगे जिनको कुछ नहीं आता है ,लेकिन वे अपने पद पर बने हुए है |एक बात और आई है की गणित में 36  प्रतिशत बच्चे ही गुना भाग हल कर पाते है ,इसका सीधा मतलब है गणित में अच्छे शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं |वैसे भी शिक्षको को करना क्या है स्कूल में जा कर हाजरी बना देनी है काम ख़त्म |आज बहुत ही कम ऐसे शिक्षक रह गए है जो की सरकारी विद्यालयों में सही से पढ़ाते हैं |शिक्षक तो अपने बच्चे को किसी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते  हैं और ज्यादातर का सोचना है की सरकारी स्कूलों में तो निचले  तबके के लोगो के बच्चे ही पढने  आते है |शिक्षक को कभी भगवान् माना जाता था लेकिन आज यही लोग बच्चो के भविष्य के साथ खेल रहे हैं |आज बच्चे सरकारी स्कूलों में सिर्फ मध्यान भोजन और अन्य कुछ जो चीज़े मिल रही है उसी के वास्ते जाते है | आखिर ऐसा  किस कारण से हो  रहा हैं कभी ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते थे |सरकार को इसकेलिए एक ठोस कदम उठाने की जरूरत है |अगर मेरी एक सलाह की बात करें तो मेरा मानना  है की सरकार को यह लागू करनी चाहिए  की " सभी बच्चे प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल को ही जाएँ "|इसका सबसे बड़ा फायदा होगा की शिक्षको को भी लगेगा की उनको अब हर तरह के बच्चो को पढ़ाना है जिसमे उनके बच्चे भी शामिल है |समाज में ज्यादा लोगो की भागीदारी सरकारी स्कूलों की तरफ होगी |सरकारी स्कूलों की सिर्फ गांवो में ही नहीं शहरों में भी हालत खस्त्हाल है |ध्यान दोनों तरफ देना होगा ताकि शिक्षा की स्थिति सुधर सके |समाज में अगर शिक्षा के मामले में भी  दो तरह की स्थिति   हो तो यह एक बड़ी ही दुखद  बात है |कहीं ऐसा न हो की आने वाले दिनों में शिक्षा को लेकर एक तरह से समाज दो फांक हो जाये इसके लिए अभी से कुछ ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है | शिक्षा को सिर्फ बड़े स्तर पर ही नहीं बल्कि छोटे स्तर पर ही सुधारना होगा |देश को अगर आगे ले जाना  है तो इस असमानता को  हम सभी को मिल कर हल करना होगा |जब तक हम कुछ ठोस कदम नहीं उठाएंगे कुछ भी सही नहीं हो सकता है |मेरी एक बात और है की हमारे शिक्षा मंत्री साहेब कभी किसी गांवो के स्कूलों में जाकर स्थिति को जरूर देखें ,अगर वो ऐसा करते है तो सुधर अवश्य ही होगा |

Jan 14, 2010

कुंभ में ही होगा नेताओ का उद्धार?

कुंभ का मेला लग गया है ,लगभग तीन महीनो तक चलेगा |हर कोई सोच रहा है की इस बार हरिद्वार जाकर पवित्र गंगा नदी में डूबकी लगा ही आये |बात भी सही है बहुत दिनों बाद ऐसे मौका मिला है और हरिद्वार तो हरि का द्वार है ,मनोकामना पूर्ण हो सकती है |बात अगर कुंभ की हो और राजनेता लोगो को खबर न हो तो एक अटपटा सा लगता है|लेकिन इस बार तो हर कोई हरिद्वार जाने की बात कर रहे हैं |हमारे दो प्रसिद्द नेता जिनकी 2009  चुनाव में कुछ स्थिति ठीक नहीं रही कुंभ में डूबकी लगाने की बात कुछ इस तरह कर रहे है आजकल |पहले बड़े नेता जी कहते है की ससुरा अब तो जनता समझ चूकी है वोट ही नहीं करती हैं ,तो दूसरा फटाक से जबाब देता है हाँ नेताजी पिछले लोकसभा चुनाव में सारा प्रयास ही बेकार हो गया |पहले ने कहा सिर्फ माल कमाने में रहोगे ,जनता के उपर कुछ ध्यान ही नहीं दोगे तो होगा क्या ?दूसरे नेता महोदय कहते है हाँ मुझे भी लगता है की जनता तो नाखुश है ही लगता है भगवान भी मुझसे नाराज़ चल रहे है |देखिये न इस बार तो हम सांसद भी नहीं बन पाए ,पार्टी भी शून्य पर बोल्ड हो गयी |पहले जब मंत्रालय था तो बहुत बड़ा बंगलो मिला था अब तो पहले उसमे आग लगी और अब उससे हाथ धोना पड़ा |लगता है मुझे कुछ करना ही होगा ,पहले नेताजी अब अपना राग अलापना शुरू करते है |कहते है की मेरा भी कुछ इसी तरह का समाचार है पहले जनता ने साथ छोड़ा अब लगता है ऊपर वाला भी छोड़ रहा हैं |देखिये न इस बार पार्टी आसमान से जमीन पर आ गयी ,पिछले बार मंत्री पद मिला था तो देश- विदेश में कुछ नाम भी कमा लिए थे अब तो कुछ भी नहीं हो पा रहा है |अब तो नयी मंत्री साहिबा कौन - कौन  काला उजला पत्र लाने की बात कर रहीं हैं |दोनों अपनी अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे ,तभी एक तीसरा भी आ गया उन्होंने कहा की देखिये पहले तो हमलोगों की नयी रणनीति का मिटटी पलीत हो गया अब अपना पुराना यार भी मुझे छोड़ कर नया सुर अलाप रहा है |तीनो महोदय अपनी -अपनी चिंता कर रहे थे तभी अचानक एक साधू महाराज वहां से गुजर रहे थे तीनो को देख कर कहा वत्स क्या बात है |तीनो ने साथ में कहा लगता है महाराज हमारी राजनीती का ढलान आ गया है ,सब कुछ उल्टा हो रहा है ,कहीं भी सफलता हाथ नहीं लग रही है |कभी जो सीट अपनी पुस्तैनी  हुआ करती थी वो भी इस बार निकल गयी |पहले वाले दोनों नेताओ न भी कुछ इसी तरह की मुसीबतों के बारे में महाराज को बताया |महाराज ने कुछ सोचा फिर कहा की ऐसे करो तुम्हारे भाग्य फल के अनुसार तुमलोगों का समय कुछ ठीक नहीं चल रहा है |तीनो ने टपक से कहा की महाराज हमारे राज्य में कुछ दिनों में चुनाव होने वाले है हमलोगों का क्या होगा ,कुछ उपाय कीजिये |महाराज ने कहा अब तो एक ही उपाय है की जाओ और अपने पुराने पापो का प्राश्चित करो |तीनो ने पूछा वो कैसे होगा महाराज ,महाराज ने कहा जाओ और हरिद्वार के कुंभ में डूबकी लगाओ और प्राण करो की सब कुछ नहीं लूटेंगे बस थोडा थोडा ही |तीनो को यह उचित लगा और तीनो चल पड़े हरिद्वार के द्वार | 

माया का चमत्कार ?

मायावती को शायद अपने जन्मदिन का तोहफा इससे अच्छा नहीं मिल सकता है |विधानपरिषद के 36  सीटो के नतीजों ने माया को एक नए उत्साह से भर दिया है |15  जनवरी को मायावती का जन्मदिन पड़ता है और कुल 33  सीटो के नतीजों ने माया के जन्मदिन को एक खास बना दिया है |इस बार के परिणामो पे अगर गौर करे तो इनमें  से बसपा को 31 ,कांग्रेस को 1  और सपा को 1  सीट मिला है|अगर हम एक और बात गौर करे तो बीजेपी के लिए यह चुनाव फिर से निराशाजनक साबित हुआ है |बीजेपी और रालोद को एक भी सीट इस बार अब तक नहीं मिली है |कांग्रेस ने भी सिर्फ रायबरेली की सीट काफी मुश्किल से जीती है जबकि सपा सिर्फ प्रतापगढ़ की सीट ही जीत पाई है |अगर पिछले बार के चुनाव परिणामो की बार करे तो बसपा ने चुनाव ही नहीं लड़ा था और सपा को कुल 22  सीटो पर जीत हाशिल हुई थी ,बीजेपी ने भी 6  सीटो पर जीत का स्वाद चखा था तो रालोद ने भी  3  सीट जीती थी |बसपा और मायावती के लिए यह एक बड़ी बात रही ,राहुल गाँधी के लगातार  दौरों ने मायावती को एक चिंता में डाल  दिया था |मायावती को एक समय तो लगा था की राहुल कहीं उनके वोटबैंक पर सेंध लगा रहे है ,लेकिन इस परिणाम से माया ने सारे लोगो को करार जबाब दिया है |प्रदेश की सरकार पर लगातार बीजेपी .रालोद .सपा और कांग्रेस के चौतरफा हमला हो रहा था ,हर दल माया को कमजोर करने की  कोशिश कर रहे थे ,लेकिन उपचुनाव ने दिखा दिया की माया को कमजोर करने की जितनी कोशिश होगी माया उतनी ही मजबूत हो कर उभरेंगी |2012  में होने वाले चुनाव के पहले इस चुनाव को एक बड़ी बात माना जा रहा है ,और राहुल को माया ने दिखा दिया है की उनको कमजोर करने की कोशिश बेकार है |माया ने फिर से एक मैजिक चला दिया है ,और फिर के अपना लोहा मनवा दिया है |

कैसे होगा भारत बुलंद ?

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री " हेराल्ड विल्सन "का कहना था की " राजनीती में एक सप्ताह का समय ही बहुत होता है "|लेकिन आज अगर भारतीय राजनीती के वर्त्तमान परिपेक्ष में देखे तो यह कथन बिल्कुल उल्टा बैठता है |आज यूपीए -2  की सरकार बने हुए लगभग 8  महीने हो गए पर सरकार आज तक सुरसा की तरह मुंह फैलाये महंगाई को काबू करने की दिलासा  भर ही दे पा रही हैं |चुनाव के समय का नारा " यूपीए का हाथ आम आदमी के साथ " बिल्कुल फ्लॉप हो गया है| आज देश का हर आदमी बेहाल हो रहा है ,पॉकेट में जितनी ठन -ठन होती नहीं है उससे ज्यादा खाली होता जा रहा हैं |आज आदमी दाल खाने से इनकार कर रहा है| पहले जिस तरह गांव में किसी खास महोत्सव में खास तरह का पकवान बनता था लोग खाने के लिए लालायित रहते थे आज वही किस्सा दाल के साथ हो रहा हैं |अरहर की दाल की कीमत सुनने से पहले लोग आज कान बंद कर लेते है कौन सुनेगा 90 -100  रूपये किलो का भाव |आज देश की 80  प्रतिशत आबादी 20 रूपये कम पर प्रतिदिन गुजारा करते है वो तो अब दाल खाना सपना ही समझ रहे हैं |बात सिर्फ दाल की ही नहीं है हर तरफ तबाही मची हुई है कल तक दूकान पर जब हम चाय पीते थे तो अक्सर कहते थे की चीनी कम किस कारण से डाला है |आज घर में भी लोग चीनी नाममात्र का ही डालते है ,जब कोई बाहर से आता है तो यह कह कर उसे चीनी कम डालने का स्पष्टीकरण करते है की उनको सुगर बीमारी का खतरा है इसलिए चीनी कम ही डालते है |आज लोग इस महंगाई से बचने के लिए बीमारी तक का सहारा ले रहे हैं |आज अगर आपके पास 100  रूपये है और आप सब्जी खरीदने जाते है तो एक अति छोटी झोली लेकर ही जाना पड़ता  है ,पर वह भी आधा खाली ही रहता है |आज पार्क ,चौराहे, गली ,मोहल्ले में शर्मा जी वर्मा जी से चर्चा करते है की आज तो जीना मुश्किल है ,रमा आंटी गीता आंटी से बात करते नज़र आ जाती है आज तो दाल बनी ही नहीं ,रसोई पता नहीं कैसे चलेगी |लगता है एक गृह युद्ध छिड़ने वाला है इसको लेकर |कहा जाता है की भारत कुछ सालो में विकसित देश बनने वाला है |मैं तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ की जिस देश में खाने पर संकट आ गया है वो विकसित कैसे बनेगा |सरकार को सोचना चाहए  की कैसे इसको नियंत्रित किया जाए ताकि सही मायनो मैं हम विकसित बन सकें |एक बात और जबकि शरद पवार जो इस विषय वाली मंत्रालय को संभाल रहे है 2004  से ही ,जो खुद एक जमीन से जुड़े नेता है ,उनको गरीब जनता के विषय मैं जानकारी भी है इसको नियंत्रित किस कारण से नहीं कर पा रहे है |वैसे चाहे यह सरकार पूर्ववर्ती बीजेपी गठबंधन की सरकार को इस मुद्दे पर कोसे लेकिन इतना तो तय है यह सरकार बिल्कुल फ्लॉप हो रही है |सरकार ने जो वादे किये थे चुनाव के समय उसको भूलते जाने देश के लिए खतरनाक हो सकता है |एक बात मैं अंत में कहना चाहूँगा की " वायदे और सपने बहुत मीठे होते है ,लेकिन पूरे नहीं होने पर जहर का भी काम करते है " |कहीं सरकार ने जो सपने दिखाई है आम आदमी वाली अपनी छवि की कहीं वो धूमिल न हो जाये और देश में एक वीभत्स माहौल बन जाए |अगर आम आदमी ही सुखी नहीं होगा तो भारत कैसे बुलंद होगा |सरकार को गंभीर चिंतन और इस महंगाई पर काबू करने के तरीके को खोजना होगा |

Jan 12, 2010

कैसे होगा बिना रुपल्ली हॉकी में जय हो ?

भारतीय हॉकी  में कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है ऐसी खबरे रोज ही आ रही है |आखिर क्या हो गया अचानक की जो टीम कल तक फरवरी में होने जा रहे वर्ल्ड कप की तय्यारी में लगी थी , आज वो इस तरह का रुख अपनाये हुए है |कारणों के तह में जाए तो इसका सबसे बड़ा कारण खिलाडियो को मिलने वाले पारिश्रमिक से है |बात भी सही है कब तक कोई बिना पैसो के काम चलाएगा |भारत जैसे देश में जहाँ कभी यह खेल मुख्य रूप से मौजूद था शीर्ष पर ?आज भी चाहे जो भी हो बैट-बॉल चाहे कितना भी प्रगति कर ले पर देश का राष्ट्रीय खेल नहीं हो सकता ,वहां चाहे नाम का ही हो लेकिन रहेगा तो हॉकी ही |मुझे लगता है शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहाँ राष्ट्रीय खेल की स्थिति इतनी नाजुक हो, इसलिए तो भारत को अदभूत देश की संज्ञा दी गयी है |खैर अब कुछ तमाशे की भी बात हो जाये तो मतलब कुछ निकले |खबर आई की पुणे में भारतीय हॉकी
के खिलाडियो ने प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने से मना कर दिया है और कारण धन को बताया गया है |एक बात तो सही है भारत में एक तरफ जहाँ क्रिकेट में धन टनन हो रहा है तो वहीं हॉकी में ईश्वर के नाम पे कुछ दे -दे बाबा वाली स्थिति है |क्रिकेट खिलाडी जहाँ इनकम टैक्स देने में देश में अपना एक स्थान बनाते है वहीं हॉकी के खिलाडी तो सपने में भी इसके बारे में कभी नहीं सोचते है |शायद ऐसी स्थिति इसलिए है की भारतीय हॉकी टीम ने अब तक कुल आठ ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते है ,एक वर्ल्ड कप में भी गोल्ड जीता है टीम ने एशियन खेल में भी दो गोल्ड जीता है |देश में जहाँ स्थिति यह है वही क्रिकेट टीम ने अभी तक सिर्फ एक १९८३ का वर्ल्ड कप और एक २०-२० वर्ल्ड कप ही जीता है बड़े लेवल पर,पर शान में दोनों का जमीं आसमान का अंतर है |अपने देश में ऐसा ही होते आया है किसी को अर्श पे तो किसी को रसातल में जगह दी जाती रही है |मेरे हिसाब से जो टीम के मेम्बरों ने किया है वो बिल्कुल सही है |कोई कब तक झूठ के नाम को लेकर चलते रहे ,आखिर  कोई बिना उचित पारिश्रमिक के कितने दिन कोई  खट सकता है |टीम के खिलाडियों का कहना है जो सहारा का  लोगो क्रिकेट टीम के खिलाडी लगाते है वही तो हम भी धारण करते है, लेकिन जिस गाड़ी से क्रिकेट टीम के खिलाडी सफ़र करते है हम तो उसे दूर से देख के ही आहें भरते है |वाह!रे देश एक ही चीज़ के लिए अलग अलग दाम | हॉकी टीम के खिलाडी अगर कोई टूर्नामेंट जीत भी जाए तो उनको थोडा कुछ मिल जाता है ,वो भी एक इंतिजार के बाद समय पर तो कुछ मिलता ही नहीं है |लेकिन अगर कोई मैच हार जाते हैं तो कुछ से भी हाथ धोना पड़ता है |एक बात समझ से बाहर है की आखिर ऐसी दोतरफा नीति को लेकर हॉकी को बर्बाद किस लिए किया जा रहा है |टीम के खिलाडियों से कहा जाता है की देश के नाम को उपर उठाओ तो मैं पूछना चाह रहा हूँ की कोई क्या पेट में कपडा ठूस कर देश के नाम को आगे बढा सकता है क्या ?एक बात इसपर और क्या अगर हम पूरी संतुष्टि के साथ कोई काम नहीं करे तो वो कभी अच्छा हो सकता है क्या ?इस प्रश्न का जबाब तो हम सभी के पास शायद यही होगा की नहीं तो फिर टीम के साथ ऐसा किस लिए हो रहा है |हम चाहे कितना भी कुछ सोचे लेकिन अगर काम करने वाले संतुष्ट नहीं होंगे तो कोई भी काम नहीं होगा |हॉकी टीम के साथ भी ऐसा ही कुछ लागु होता है |लगातार अगर हम जीत के बारे में ही सोचेंगे और उसके बेसिक बातो पर ही ध्यान नहीं देंगे तो वो पूरा कैसे होगा ?जीत के लिए तो सभी सोचते है लेकिन इसके लिए भी कुछ करना होगा यह किस कारण से नहीं सोच पाते है |हम सिर्फ रसगुल्ले ही खाना चाहते है लेकिन उसके लिए अच्छी सामग्री अगर हम नहीं जुटा पाते है तो यह कल्पना बेकार है |हॉकी को अगर जीवित रखना है तो खिलाडियों का भी ध्यान रखना ही होगा ,अगर खिलाडी ही खुश  नहीं  रहेंगे तो कुछ भी अच्छा होना मुश्किल है |तो अगर हमे भारतीय  हॉकी को फिर से वर्ल्ड की बेस्ट टीम बनाना है तो खिलाडियों को भी गोल्ड तो देना ही होगा |आखिर हिंदी सिनेमा में एक गाना भी इसकी को लेकर है की "बाप बड़ा न भैया ,सबसे बड़ा रुपैया " ,लेकिन यहाँ तो रुपैया ही नहीं है तो होगा कैसे |तो भारतीय हॉकी के प्रशासको को बयानबाजी छोड़ इसकेलिए सोचना चाहए ताकि फिर से इस खेल में सोने का तमगा देश में आ सके |