Aug 30, 2010

ममता की मायागिरी ?

ममता बनर्जी को लेकर कांग्रेस के अगुवाई वाली सरकार को आये दिन विपक्ष के द्वारा तरह तरह की बाते सुननी पड़ती है | लेकिन सरकार ममता के छाँह में ही रहना चाहती है | और आये दिन ममता को लेकर कुछ भी कहने से डरती है | और एक ममता है जिसे किसी की परवाह नहीं है | उसे तो किसी भी तरह रायटर्स बिल्डिंग पर कब्ज़ा जमाना है | बंगाल उनकी प्राथमिकता है , देश को उनकी नजर में देखने वाले बहुत से लोग हैं | ममता का एक ही मिशन है 2011  में बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में सत्ता हासिल करना | और इसके लिए वो प्रयासरत भी हैं चलिए कुछ तो कर रही हैं वो | हमारे देश में तो ज्यादातर नेता लोग बीच में ही फंसे रहते हैं | ममता का विजन स्पष्ट है | ममता जब से रेलमंत्री बनी है तब से रेलवे का मुख्यालय बंगाल शिफ्ट हो गया है , आखिर जब शरद पवार ने भारतीय क्रिकेट का मुखिया बनते ही मुख्यालय मुंबई शिफ्ट करा दिया तो ममता क्यूँ न करे | लेकिन यहं ममता मात खा गयीं वो इसे पूरी तरह बंगाल भी शिफ्ट करना नहीं चाहती , सिर्फ काम काज के लिए अधिकारियों को दिल्ली तो कोलकाता के बीच दौड़ लगानी है | यह हुई न ममता की रंगबाजी | वो खुलेआम नक्सलियों  का समर्थन करती हैं लेकिन जब समय आता है तो अपने बात से मुकरने से भी नहीं हिचकती हैं | वैसे भी दिल्ली में ममता को क्या मिलेगा , बंगाल की वे मुखिया बन सकती हैं , सारे राज्य पे राज करेंगी | तो उनका हित को बंगाल में ही है | और जब दोनों तरफ काम हो ही रह है तो परेसानी की कोई बात ही नहीं है | रेल दुर्घटना हो तो सीधे कह दो की विरोधियों की चल है , यह तो कोई ममता से सीखे | इसमें कोई दो राय नहीं है की ममता का मिशन बंगाल बड़ी तेज गति से चल रहा है | केंद्र सरकार भी उनसे हार मान चूकी है , आखिर एक शेरनी जब खूंखार हो जाए तो कौन हार नहीं मानेगा| ममता एक बात बड़ी अच्छे से कहती है की उनकी चाहे लाख बुराइयाँ हो लेकिन वो अपने पथ से हटने वाली नहीं हैं | ममता का जो मिशन है उसकी झलक साफ़ दिखती है | सबसे ज्यादा रेलगाड़ी भी मिशन वाले जगह से गुजारनी चाहिए , आखिर हार रेलमंत्री तो ऐसा ही करता है तो ममता क्यूँ न करे | ममता एक बात बड़ी साफगोई से कहती है की मुझे बदनाम करने की चाहे कितनी भी कोशिश कर लो लेकिन मैं अपने रास्ते से हिलने वाली नहीं हूँ | मिशन तो मैं किसी भी हद पर पूरा करके रहूंगी |

सेक्स और समाज ?

आज लिखने तो बैठ गया हूँ, पर अपने को यह समझा नहीं पा रहा हूँ की आखिर आज का विषय क्या होगा ? कुछ सोचने की कोशिश करता हूँ तो लगता है अरे मेरे पास तो ढ़ेरों विषय हैं | ज्यादा सोचना नहीं है , बस अब माउस हाथ में आ गया है और कीबोर्ड भी कह रहा है की कुछ लिख ही दो भाई, ज्यादा सोचो विचारो नहीं ? मैं भी आखिर में इनकी ही बात मान रहा हूँ और फिर से कुछ लिखने को प्रतिबद्ध हो रहा हूँ ? पर कहा जाता हैं न डीजल इंजन को गर्माने में थोड़ा समय लगता है तो वही मुझे भी लग रहा है | रोज की तरह  राजनीत और अर्थनीत पर लिखने से आज मैं परहेज करने के मूड में हूँ | आज मैं सेक्स पर कुछ लिखने जा रहा हूँ | सही में देखें तो अभी भी हमारे समाज में यह एक विचाराधीन मुद्दा ही है | लोग अभी भी इसके बारे में खुल कर बात नहीं करते हैं , आखिर करें भी तो कैसे अपने को सभ्य जो कहते हैं | इस तरह की बातों से उनकी असलियत बाहर आने का जो डर लगा रहता है | पर जहाँ तक मेरा मानना है आज जितना लोग कहते फिर रहे हैं की यह बड़ा ही ख़राब मुद्दा है उतनी तेजी से ही यह बढ़ता जा रहा है | पहले अक्सर देखा जाता था की लोग शादी के बाद ही रतिक्रिया में भाग लेते थे | एक दो प्रतिशत ही इसके अपवाद थे | फिर यह कॉलेज तक आ पहुंचा | अब कॉलेज के विद्यार्थी इसमें भाग लेने लगे | समय बड़ी तेजी से घुमा और हायर सेकेन्ड्री स्तर के स्टुडेंट इसमें शरीक होने लगे | पर कहते हैं न तकनीक ने सबको पीछे छोड़ दिया है आज तो क्या बताएं बच्चे-बच्चे इसमें मशगुल हैं | तो कहिये क्या यह छुपाने की बात है | अब इसका दूसरा पहलु लोग कहते हैं की आदमी एक उम्र के बाद सेक्स की गतिविधि से दूर हो जाता है लेकिन मैं इस मान्यता के बिल्कुल खिलाफ हूँ | अरे साहेब मैंने खुद देखा है की ऐसी उम्र में लोग और रसिक हो जाते हैं | वो ऐसा खुलेआम करते हैं , क्यूंकि उनको तो इस चीज़ की फ़िक्र रहती ही नहीं है की उनपर भी कोई शक करेगा | तो बतायिया जब बच्चे और बूढ़े दोनों इस कम में पीछे नहीं हैं तो फिर इस तरह की बात छिपाना किससे| एक वाक्य लिखने की चाहत है और लिख ही देता हूँ | मैं बिहार का रहने वाला हूँ | हमारे यहाँ एक ठाकुर बाबा हैं | समाज में उनकी बड़ी ही इज्जत है , धार्मिक कार्यों में सबसे आगे रहते हैं | लेकिन उनकी एक दूसरी स्थिति भी है , वो बड़े ही सेक्सी विचारधारा के भी हैं | एक बार उन्होंने मुझे और मेरे दोस्तों को एक लड़की की ओर  इशारा करके कहा का देखते क्या हो ??????????????? अब आप समझ ही गए होंगे क्या बात कहना चाह रहे थे वो | एक दिन मुझसे मिले जब मैं दिल्ल्ली से घर आया था तो कहा क्या बेटा वहां कुछ हुआ की सब जगह मरुस्थल ही है | और तो और उन्होंने मुझसे यह भी मांग कर डाली की मुझे ब्लू फिल्म दिखाओ |  अब आप ही बताओ क्या है ? यह दबी कुची भावना है लेकिन सिर्फ डर से बाहर नहीं आती है | आज भी जब कोई जवान लड़की सड़क पे मटक कर चलती है तो देखने वाले सबसे पहले उसे सेक्स की दृष्टी से ही देखते हैं | कहना होता है उनका मस्त माल है , मज़ा आ जायेगा | आप ही बताओ क्या ऐसा सही में नहीं होता है | मैं ज्यादातर की बात करता हूँ | मैंने कई लोगों को देखा है जो दिन में तो इसके विरुद्ध आन्दोलन निकालते रहते हैं , समाज सुधार के प्रणेता बनने का ढोंग रचते हैं ,लेकिन रात के अँधेरे में वही हरकत कर बैठते हैं | दुनिया के बहुत से देशों में सेक्स की शिक्षा दी जाती है और वह ठीक है | वैसे भी लोग जानकारी ले ही रहे हैं तो खुलेआम लेने में क्या हर्ज़ है | मैं बतौब एक बार हमलोग सर्वे का रिजल्ट देख रहे थे , उस रिजल्ट में था की प्रत्येक 4  में से 1 16  वर्ष की उम्र होते होते अपनी कौमार्यता खो चूका था चाहे वो लड़का हो या लड़की | ताज्जुब हुआ पर वो हमारे राष्ट्रीय राजधानी की स्थिति थी | अब बतायिया ? मैं पिछले बार घर गया था तो पता चला की मेरा एक पडोसी जिसकी उम्र मुश्किल से 14 -15 वर्ष रही होगी एक लड़की को लेकर फरार हो गया | आप ही कहो न यह क्या है ? तो मैं यहाँ पर यही कहने की कोशिश कर रहा हूँ की इस चीज़ को हमर समाज में जीतन छुपाया जा रहा है उसका कोई सार्थक परिणाम नहीं आ रहा है | आज छोटे- छोटे बच्चे जब हम उस उम्र के थे तो इस चीज़ के बारे में अनजान थे लेकिन आज हामी से पूछते हैं की क्या भैया लड़की-वडकी पटाई की नहीं | कुछ हुआ की नहीं , मैं तो इतना काम कर चुका हूँ |
थोड़ा आश्चर्य होता है लेकिन फिर समझ जाता हूँ | आज इन्टनेट के पोर्न साईट के बारे में सबको पता है | अकेला मौका देखा नही की लग गए , घर मैं माँ- बाप नहीं हैं तो बाजार से पोर्न कैसेट लाकर ब्लू फिल्म देखने लगे | यह सिर्फ लड़के ही नहीं लड़कियां भी करती हैं | तो बताओ क्या सेक्स की बात करनी गलत है , क्या है समाज को बर्बाद कर देगा | आपका जवाब इसकी पुष्टि कर सकता है |

Aug 23, 2010

आन्दोलन ही एक चारा ?

देश में अराजकता तो माहौल तो पहले भी रहा है, लेकिन अब जो बन रहा है वो कहीं ज्यादा विषम है|
आये दिन चर्चा होती रहती है इसको दूर करने को लेकर, लेकिन वो सिर्फ बैठक तक ही सीमित रह जाती है
जो चीज़ वातुनुकुलित कमरों में तय होता उसे बाहर निकला ही नहीं जाता है, बाहर निकलने की कोशिश भी नहीं की जाती है| ऐसी ही अराजकता और स्थिति विद्रोह को निमंत्रण देती है विद्रोह का मतलब जब आम जनता शासन और व्यवस्था से तंग आ जाता है तो उसके पास एक ही रास्ता होता है और वो है प्रदर्शन और कथित नेतृत्व के विरोध में संगठित होकर जबाब देना| इतिहास गवाह है जब जब अति हुई है तब तब जनता ने इसको बचाने की भरपूर कोशिश की है और अपने ताकत का एहसास कराया है| समय और परिस्थिति हमेशा से आम को आवाम को रास्ता दिखाने को मजबूर करती करती है| सन 1975 में भी ऐसा ही हुआ था जब इंदिरा गाँधी के विरुद्ध आम की आवाज़ बुलंद हुई थी| जयप्रकाश नारायण ने मोर्चा खोला तो लोग अपनी दबी भावना को छिपा न सके और आ गए सड़कों पर, दिखा दी अपनी ताकत और परिणामस्वरूप इंदिरा गाँधी को सत्ता से दूर जाना पड़ा था, जाना क्या पड़ा था दूर कर दिया गया था| स्थिति को इंदिरा ने अच्छी तरह समझ लिया की हमेशा अपनी मन मुताबिक काम नहीं कभी आम लोगों के लिए भी काम करनी होती है |आज उस चीज़ को बीते लगभग 35 वर्ष हो गएँ है|
उस समय के कितने लोग भगवान को प्यारे हो गए, तो कितने सत्ता का सुख ले रहे हैं लेकिन आज फिर उसी देश में स्थिति कुछ वैसी ही बनती दिख रही है| आज देश में हर तरफ एक अजीब सा माहौल है सरकार और शासन विवश दिख रहा है| आम के अन्दर एक अजीब सा आक्रोश पैदा हो रहा है| आज देश में गरीबी, भुखमरी, अनियंत्रित व्यवस्था आम हो गयी है| एक तरफ लोग दिन प्रतिदिन आमिर होते जा रहे हैं तो दूसरी और गरीबी भी सुरषा के मुंह की तरह फैलती जा रही है, और पता नहीं कितना फैलेगी| एक तरफ अनाज बर्बाद हो रहा है, दूसरी तरफ लोग दाने-दाने को मोहताज़ हैं|एक तरफ हम विश्व मंच से अपने विकसित होने की बात करते फिर रहे हैं तो दूसरी और लोग एक दूसरे को देख कर आंहे भरते नजर आ रहे हैं| इस देश का ही एक भाग लगातार बेवजह सुलग रहा है और सरकार सिर्फ दिलासा देती फिर रही है| सरकार को लगातार आंतरिक ताकतों द्वारा चुनौती मिल रही है और सरकार सिर्फ घोषणा और बयान देकर अपना काम पूरा कर रही है| आज बेरोजगारी की स्थिति और भी भयावह होती जा रही है ,लेकिन यहाँ भी सिर्फ आश्वाशन ही मिलता दिख रहा है| अब जो सबसे बड़ी बात है वो यह क्या की इतना कुछ होने के बाद भी हम चुप क्यूँ हैं| तो इसका सीधा सा एक ही जवाब है की कोई आगे आने की हिम्मत नहीं कर रहा है| एक बात तो तय है की कोई न कोई तो आगे आएगा ही| लेकिन सबसे बड़ी बात जो है वो ये क्या की आज का युवा वर्ग सिर्फ अपने तक ही सीमित होकर रह गया है| उसे देश दुनिया से ज्यादा कुछ लेना देना नहीं रह गया है|यह स्थिति देश के लिए खतरनाक है| हाल में मैंने अपने तीन चार मित्रों से कहा की हमलोगों को देश के लिए कुछ करना चाहिए तो वो सोचने वाली स्थिति में आ गए| और सबसे जो सबसे बड़ी बात है वो ये क्या की उनमे से ज्यादातर ने कहा क इतुम तो राजनीती के कीड़े हो तो बनो , हमलोगों के भी कुछ कल्याण कर देना
मुझे बड़ा ही ताज्जुब हुआ , और खुद पर शर्म भी आयी की पढ़े लिखे लोग ऐसा सोच सकते हैं तो औरों की तो बात ही कुछ और है| लेकिन मेरा भरोसा है की एक दिन वही लोग आयेंगे और कहेंगे की हम भी कुछ करना चाहते हैं| मेरी शिकायत है की आखिर क्या हम इतने बेफिक्र हो गए हैं की अपने में ही चूर रहते हैं
दुःख तो होता ही है लेकिन  नेक पल यह भी सोचता हूँ की सही ही तो कर रहे हैं|
लेकिन दूसरे पल गुस्सा भी आता है जब वो कहते हैं की राजनीत देश को बर्बाद करके ही दम लेगी|
अरे भाई जब आप गली देते हो तो उसे सुधारने की कोशिश तो करो , वो आपसे होगा नहीं तो आप लाया खी नहीं हो उस विषय में कुछ कहने को| मैं यकीन के साथ कह सकता हूँ की आज जो स्थिति बन रही है वो आज न कल एक आन्दोलन का रूप लेने वाली है| जनता का खून कभी तो गरम होगा , लोग कभी तो कुछ देश के बारे में सोचेंगे और युवा वर्ग कभी तो अपने अधिकार के लिए आगे आएगा| सब परिस्थिति  पनप  रही है बस अब चिंगारी फूटनी बांकी है| आग तो कब  की लग चूकी है और बहुत से लोग ऐसा हैं जो झुलसने वाले हैं|
अब फिर से एक आपातकाल की जरूरत भी आ सकती है जब देश के लोग एकजुट हों और एक करार जवाब दें
युवाओं से बस एक ही बात कहना चाहता हूँ की देश के लिए भी कुछ समय वह दे |
अगर आप देश और समाज को नहीं देखेंगे तो क्या फिरंगी लोग देखेंगे|
एक तरह से तो यही मनसा पैदा कर रहे है आपलोग समय रहते अगर कुछ नहीं किया गया तो हो सकता है की फिरंगी फिर से लौट आयें| इसलिए अब युवाओं को इस व्याप्त अवयवस्था के खिलाफ आवाज़ उठानी होगी
मैं दावे और यकीन के सात कह सकता हूँ की अगर एक बार देश में आवाज़ बुलंद हो गयी तो सरकार भी निंद्रा से जग जाएगी|
आखिर क्या कहना है आपका देश को लेकर, क्या विचार रखते है जरूर अवगत कराएँ|

Aug 14, 2010

किस कारण बदल गई छात्र राजनीत ?

बात हो रही है छात्र राजनीत की | विषय बड़ा गंभीर है, बात भी गंभीरता वाली होनी चाहिए| यह एक ऐसा विषय है जो देश की दशा और दिशा दोनों बड़ा सकता है | आज देश में हर जगह एक अजीब सी स्थिति हो गयी है | और जहाँ तक बात है छात्र राजनीती का तो इसमें बदलाव जरूर आया है | धनबल तो खैर तुक्छ चीज़ हो जाती है यहाँ बाहुबल भी छोटा पड़ जाता है, और इन सबके उपर हावी हो जाता है वह है इसके साथ भी राजनीती | अगर राजनीत हो और वह सही दिशा में चले तो देश और समाज का हित हो सकता है लेकिन वही जब पथ से भटक जाए तो अहित होने से कोई रोक नहीं सकता | और आज ऐसा ही कुछ हो रहा है | आज अगर देखा जाए तो देश में एक अच्छे छात्र नेता की कमी सी लगती है, लगता है समाज में कोई है ही नहीं | और जो महानगरों में कुछ हैं भी तो उनसे आम लोग जुड़ नहीं पाते हैं | मतलब स्पष्ट है समस्या बरकरार है | जहाँ तक बात है डूसू चुनाव की यहाँ लोग चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन आगे सफलता की बात कम ही रह पाती है | स्पष्ट है यहाँ के चुनाव में एक खास जात और गुट का ही दबदबा रह रहा है पिछले कुछ चुनावों से | जमकर माहौल बनाया जाता है | लेकिन यह सब यहीं तक सिमट कर रह जाता है | देश को इनसे कोई लेना देना नहीं रहता | आप ही देखिये की कितने नेतओं ने बड़ा धमाल किया है | वो दिल्ली में बैठ कर राजनीत को चलाने की बात जरूर करते हैं लेकिन ज्यादातर मोर्चे पर विफल ही हैं | और एक बात तय है की आज भी चाहे जो दावा और बात की जाए लेकिन यहाँ के कम ही लोग चुनाव को देश से जोड़कर देखतें हैं, निजी हित सर्वोपरी होता है | आज देश को एक अदद जयप्रकाश नारायण जैसे लीडर की जरूरत है | लेकिन जो अभाव है वो स्पष्ट देखा जा सकता है | अगर सही मायनों में कोई अच्छा छात्र दिल्ल्ली में छात्र नेता रहता, जिसकी रूचि गावं और शहर दोनों में रहती तो जेपी की तरह जनता और लोग उनसे जुड़ते | लेकिन एक शुन्यता है जो निकट भविष्य में पूरा होते नहीं दिखता | अब राजनीत में आखाड़े का प्रवेश हो गया है , जहाँ लोग पथ्कानी तो दे सकते हैं लेकिन किसी का दर्द नहीं समझ सकते | भविष्य की जो बात करता है वह ज्यादातर डरा हुआ इंसान होता है | जहाँ तक बात छात्र राजनीती के भाविस्ये की है तो एक बात नज़र आती है की जब तक सही में एक क्रांति नहीं होगी लोगों में विश्वास नहीं आएगा | सही में देखें तो एक क्रांति की सख्त जरूरत है जो देश को नया जीवन दे सके | और अगर एक सही छात्र जीत कर आता है जिसने गरीबों, बेकसूरों की सच्ची दुनिया देखी है तो तो इससे देह का कल्याण हो सकता है | जहाँ तक इसमें कम होते रुझान की बात है तो कोई गलत बात नहीं है | सही में छात्रों का इससे लगाव कम हो रहा है | वो अपने को इससे जुड़ा हुआ महसूस नहीं कर पा रहें है | जो सबसे बड़ी बाधा है | सही मायनों में इसका दमन कोई और नहीं बल्कि छात्र ही कर रहे हैं |

Aug 8, 2010

क्रांति की ओर इशारा ?

आज फिर कुछ लिखने की कोशिश करने की जहमत उठा रहा हूँ | इस बार विषय थोड़ा गंभीर है देखता हूँ कितना न्याय कर पाता हूँ | आज तस्वीर के माध्यम से कुछ कहना चाह रहा हूँ | यह तस्वीर हमारे अपने देश भारत की है जिसे हम जी जान से भी ज्यादा प्यार करने की बात करते हैं | हम सिर्फ बात ही करतें हैं लेकिन अगर यह देश हमारा है तो फिर यहाँ के लोग हमारे क्यूँ नहीं हैं ? यह एक कठोर लेकिन सत्य प्रश्न है, जिसे हम चाह कर भी नकार नहीं सकते | आज देश में एक तरफ बाढ़ से तभी है तो दूसरी तरफ स्थिति भूखों मरने की है | उत्तर भारत के कई राज्यों में सुखाड़ की स्थिति बनी हुई है | कई जिले सुखा ग्रस्त घोषित हो चूके हैं| कीमतें तो आसमान छु ही रही है | सरकार बेबस ओर अपंग की तरह पेश आ रही है | सबसे बड़ी जो कठिनाई है वो यह क्या अगर वर्षा नहीं हुई तो क्या होगा गरीब किसानों का जो इसके सहारे ही टिके हुए है | आत्महत्या जारी है रोज़ किसान इस तरह की घटनाओं  को  अंजाम दे रहे हैं | यह भयावह स्थिति हर साल आती है लेकिन शायद वातानुकूलित कमरे में बैठ कर देश चलाने वालों को इसकी खबर नहीं है | अभी भी ये चिरनिंद्रा में है , इनकी माने तो देश तो निवेश से चलता है | किसानों के भरोसे देश थोड़े ही चलता है | यह
दूसरी तस्वीर ओर भी भयावह है ये इस आस में हैं की कब उपर वाले की कृपा हो ओर हमारी रोजी रोटी का इंतजाम हो सके |

चाहे जो भी हो लेकिन यह एक ऐसा सुच है जिससे हम इनकार नहीं कर सकते | कही ऐसे न हो की एक ऐसी क्रांति इस रूप में शुरू हो जाए जिसका फिर कोई निदान न हो सके | बारिश की आश में कई लोग जान दे देते हैं तो किसी की ले भी सकते हैं | यह एक क्रांति की ओर बढ़ रहा है जो भूख ओर खाने को लेकर होगी | अगर अभी भी सही इंतजाम नहीं हुआ तो यह नजदीक है | इस बार जब भूखे लोग सडको पर निकलेंगे तो फिर इससे रोक पाना असंभव ही होगा | देश को इससे बचाने के प्रयत्न अभी से शुरू नहीं किया गया तो भविष्य बहुत कठिन साबित होने वाला है |

Aug 1, 2010

बिहार में कौन बनेगा अर्जुन ?

बिहार में चुनावी बिसात बिछ गयी है , हर दल चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार दिख रहा है | बात भी वाजिब है जब चुनाव होना ही है तो पहले से पूरी तरह से तैयार क्यूँ न हो जाया जाए|  सबसे बड़ी बात है की हर दल तैयार है, पूरी तरह से अपने अपने नए नए समीकरण और प्रयोग के साथ | लेकिन जो एक बात सबसे दुखद है वह यह क्या की हर दल विकास की बात तो करता है पर चुनाव आते ही जात वाली फैक्टर पर ही केन्द्रित दिख रहा है | अगर हम दलवार बात करें तो स्थिति बहत हद तक स्पष्ट हो सकती है| सबसे पहले बात करतें है बिहार में सत्तासीन पार्टी जनता दल (यू) की| वैसे तो नीतीश कुमार अपनी छवि विकास पुरुष की बनायें हुए हैं | बात भी एक हद तक सही है की आखिर उनके काल में बिहार में कुछ काम तो हुए ही हैं | लेकिन अगर गौर किया जाए तो यह सिर्फ रोड बनाने तक ही सीमित रह गया | आज भी बिहार में जाती वाद लागू ही है | ठेकेदार मालामाल हो गए हैं | आधिकारियों की तो बात ही मत कीजिये| उनका तो मानना है की वो भगवान हो गएँ है जो चाहे वो कर सकते हैं | नीतीश भी जातिवाद को बढ़ावा देने में किसी से पीछे नहीं रहेना चाहते हैं | हर जाती के लोगों को चाहे वह अपराधी किस्म का ही क्यूँ न हो अपनी पार्टी में उनका बड़े ही सम्मान से स्वागत कर रहे हैं | यह है इनकी चुनाव जीतने की नई तरकीब | अब आप ही बतायिए यह कहाँ तक उचित है| अभी हाल में जो घोटाले वाली बात आयी है इससे नीतीश भी सकते में हैं | शायद जवाब नहीं है उनके पास इस चीज़ का | एक बात और नीतीश कुमार जो गरीबो के हिमायती बनने की बात करतें है तो आखिर आज भी बिहार के गरीबों का उठान किस कारण से नहीं हुआ है | बात बिल्कुल स्पष्ट है सारे लोग एक ही है सिर्फ खाल अलग अलग है | नीतीश ने जितना पैसा विज्ञापन पर खर्च किया अगर इसका कुछ भाग गरीबों पे खर्च करते तो शायद ज्यादा अच्छा रहता | खैर जो भी हो अब तो जनता के पास ही इसका न्याय होगा जो अपने मत से सरकार का निर्माण करेगी |
बीजेपी- कहने को तो पार्टी सत्ता में बराबर की भागीदार है| लेकिन पार्टी के नेता हमेशा से अपनी उपेक्षा का आरोप लगाते फिरते है | इधर पार्टी में बहुत बदलाव हुआ है | पार्टी चुनाव में आगे रहने की हर तरकीब अपना रही है | अपने नाराज़ वोट बैंक को भी खुश करने की कोशिश में लगी हुई है | नेतओं का दौरा चालू है पर फिर भी पार्टी का कुछ कहना अभी से मुश्किल है | अपने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का नाम घोषित करने ही वाली है ताकि चुनाव में ज्यादा से ज्यादा फायदा मिल सके | वैसे अभी भी गतिरोध जारी है समय और चुनाव का इन्तजार है |
कांग्रेस- पार्टी हवा हवाई बात करने में माहिर दिख रही है | चुनाव जीतने के लिए हर तरह के प्रयत्न कर रही है | दागियों को पार्टी में लगातार शामिल कर रही है | एक तरफ कहती फिरती है की दागियों को टिकट नहीं दूसरी ओर ऐसे लोगों को चुनाव की जिम्मेदारी दी जा रही है | कुछ समय पहले तक स्वर्ण वोटों में सेंध लगाने की कोशिश की थी पर ज्यादा कामयाब नहीं हो सकी | अब एक मुस्लिम को पार्टी का प्रदेश प्रमुख बनाकर नई राजनीती खेल रही है | बहुत ज्यादा तो नहीं पर हर किसी का समीकरण जरूर बिगाड़ सकती है इस बार |
आरजेडी- लालू यादव को अब अहसास हो गया है की कुछ काम करना होगा | लगातार दौरे पे दौरे कर रहे हैं | पुराने फॉर्म में वापस आने की तय्यारी में जी जान से जूते हुए हैं | दौरे पे दौरे कर रहे है | हाल के घोटाले को लेकर मुद्दा ओर हवा बनाने में जुटे हैं | कार्यकर्ताओं में जोश भर रहें हैं |
लोजपा- रामविलास पासवान के लिए यह आखिरी मौका है कुछ करने का | लालू यादव से गठजोड़ बना कर पूरे कोशिश में लगे हैं अपनी लाज बचाने की | वोट बैंक में भी नीतीश ने सेंध लगा ही दिया है | उसी को सँभालने में व्यस्त हैं | बहुत ज्यादा खुद पर भरोसा नहीं है, लेकिन मैदान में जी तोड़ कोशिश कर रहें हैं |
शेष दल - यह ज्यादा तो कुछ नहीं कर सकते पर किसी किसी जगह का समीकरण बदल सकतें हैं |
कुल मिलकर देखा जाए तो स्थिति यही है बिहार की अब देखना है की कौन बनता है सिकंदर ओर किसी राजनीती पे लगती है | अब हर किसी को चुनाव का ही इंतजार है | देखना है की अर्जुन कौन ओर कर्ण कौन होता है | दोनों के बीच बहुत से योद्धाओं का परीक्षण होने वाला है |