Oct 21, 2009

क्या कहूँ

यात्रा को अगर शब्दों में लिखने को कहा जाए तो एक बार तो लगता है क्या लिखू कहाँ से शुरुआत करूँ पर कुछ तो करना पड़ेगा चलिए कुछ लिखते है .मैंने अभी हाल में ही रुद्रपुर की यात्रा की है मिला जुला हुआ ही रहा ,चाचा की इस दुनिया को अलविदा कहने की ख़बर पहले ही मिल चुकी थी ,उत्साह हाफ हो गया था .खैर फिर भी उनके आखिरी संस्कार में समय से पहुँच नही पता तो पुराने प्रोग्राम पर ही चल पड़ा .बस पॉँच घंटे की यात्रा थी ,सोचा यूँ ही कट जायेगी पर हुआ ऐसा कुछ भी नही जो हुआ मैं लिख रहा हु .अगर सही लिखूं तो एक बात जरूर कहना चाहूँगा की अगर आपके बगल में कोई लड़की बैठी है तो बड़ा गजब सा माहौल हो जाता है ,मेरा सीट भी कुछ इसी तरह पड़ा आप इसे सौभाग्य कहिये लेकिन मैं इसे दुर्भाग्य ही मानता हु ,मैं समझता हूँ की इससे आजादी में कुछ कमी आ जाती है खैर हटायिए जो भी हो .मैंने एक बात जो आज तक अनुभव की है की अगर आप किसी लड़की के बगल में बैठे है और वो आपके बगल में तो प्रतिक्रिया के बारे में दोनों सोचते है ,आपको अब तक लग गया होगा की आज मैं पुरे रंग मैं हूँ पर हाँ मैं आपको बता दू की ये वो बात नही है जैसा की आप अब तक समझ रहे है .मैं तो सिर्फ़ ये बता रहा हु की आख़िर होता क्या है ?मैं विण्डो सीट पर था आख़िर सीट बुक थी मेरे नाम ,हकदार था मैं पर क्या बताऊ क्या हुआ ,मैं थोडी देर तक तो अपने जगह पर ही बैठा रहा लेकिन उसके बाद क्या हुआ होगा आप सोच चुके होंगे ,वही जो होता है एक हलकी सी बात और जगह फिर दुसरे के पास ,पर मैं औरतो को सीट दे दिया करता हु लेकिन आज लड़की को भी दे दिया ,बस फिर क्या मैं इधर मेरे उसके बीच उसके पापा फिर मैं ?मैं बहुत देर तक यही सोच रहा था की मैंने उसे सीट आख़िर इस तरह दे दिया पर अब तो जो होना था वो हो चुका था ,बस मैंने उस को वही भूल कर अलग काम में लग गया पर वो नही भूल सका ?एक बात मैंने जो मैंने जानी वो ये क्या की कैसे मन badalta है ?

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