Oct 26, 2010

मतदाता की ख़ामोशी?

बहुत दिनों से सोच रहा था की बिहार चुनाव पर कुछ लिखूं| चलिए आज अपना इन्तजार ख़त्म करता हूँ और कुछ लिखता हूँ| इस बार चुनाव हर बार की तरह अलग है, हार दल परेशान है| चाहे वह सत्ता पक्ष हो या विपक्ष हार किसी को हार का डर है| नीतीश कुमार की विकास के नारे जात के नारे में कब के बदल चुकें हैं| सुशील मोदी तो पहले से सुशील हैं, अपने दल में किसी की नहीं सुनते लेकिन नीतीश को अपना आराध्य मान रहें हैं| दूसरी तरफ पुराने राजा लालू जी पूरे परिवार के साथ जुटे हुए हैं, किसी तरह इज्जत बच जाए| रामविलास पासवान के लिए शायद यह आखिरी मौका होगा यह वह भी सोच रहें हैं| कांग्रेस पार्टी भी अपने नए नारों के बीच उछलकूद कर रही है | छोटे बड़े सभी टाल ठोक रहें हैं| निर्दलियों की भरमार है| खुद चुनाव जीतने से उन्हें कोई मतलब नहीं है लेकिन प्रतिद्वंदी को हराना है, ऐसा लेकर वह भी चुनाव मैदान में हैं| लेकिन सबसे निराशाजनक बात है की वोटर खामोश है| शायद उसे किसी पर भरोसा नहीं रह गया है| उसने अभी तक पत्ते नहीं खोले हैं की किसके पक्ष में आंधी है| मतदाता तो हार बार ही छला जाता है, यह उसको भी पता है| इसलिए इसबार उसमे अजीब सी ख़ामोशी है| जनता के तथाकथित सेवकों की हालत पतली है| बिहार चुनाव में ऐसा पहले नहीं होता था, वोटर अपना रुख स्पष्ट करते थे, पिछले लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में भी ऐसा ही हुआ| लेकिन इस बार रहस्य बरकरार है| आखिर वोटर क्या करे सरकार किसी की बने उससे उसको क्या होने वाला है| मंत्री और विधायक कभी कभी ही उनका हाल लेने शायद ही आयेंगे|| वोट की दरकार है तो अभी उनकी भी बारी है हिसाब चुकता करने की| इस बार नीतीश की सभा में भी विरोध इस बार को उजागर करता है की उनके प्रति भी जनता में जबरदस्त गुस्सा है, राहुल गाँधी के प्रति भी ऐसी ही हो चुकी है और भी नेताओं के साथ ऐसा हो चुका है| आप ही बताईये क्या यह वही चुनाव है जहाँ कभी नेतओं के नाम पे ही चुनाव जीत जाते थे आज इतने मसक्कत के बाद भी आशा नहीं है| जरूर इसके लिए हमारे प्रतिनिधि भी जिम्मेदार हैं| धन और शक्ति के नशे में चूर उन्हें आम जनता की कोई सुध- बुध नहीं रहती और वे जनता से दूर होते चले जाते हैं| आज चाँद युवाओं को छोड़कर जयादा को राजनीति में विश्वास नहीं है| मैंने अपने एक दोस्त को फोन किया की इस बार क्या हाल है, उसने मुझे कहा की कुछ नहीं बस सब दौड़ धूप रहें हैं अपने को क्या मतलब| आज अगर एक मतदाता यह कह रहा है तो कुछ जरूर गड़बड़ है| जो कभी चुनाव में बढ़चढ़ कर भाग लेता था आज बेरुखी भरा जवाब देता है| शायद उसको यह विश्वास है की उसको इस चुनाव से कुछ नहीं मिलेगा| और यही बेरुखी नेताओं की परेशानी बना हुआ है| मतदात की ख़ामोशी का कारण वाजिब भी है| आज पार्टियाँ अपराधियों को खुलेआम टिकट दे रही है, तो जनता में खौफ तो होगा ही\ अब तो चुनाव आधा बीत चुका है और कोई भी दल यह नहीं कह रहा है की उसकी जीत हो रही है, लेकिन हार का भय हार किसी को है|  

क्या यह हमारा देश है?

आज फिर से कुछ लिकने की कोशिश कर रहा हूँ, हाथ कीबोर्ड की तरफ खुद ब खुद आ गए| शायद इन्हें भी लग रहा है की आज कुछ लिखना ही चाहिए| तो चलिए जिस्म के इस अंग की बात माननी चाहिए, और शुरुआत करनी चाहिए| विषय आज के तारीख में ढ़ेरों हैं लेकिन आज मैं देश की एक ऐसी स्थिति पे लिखने जा रहा हूँ जो फिलहाल मद्धिम पड़ गया है| आज देश को एक पुनर्जन्म की जरूरत है ऐसे लोगों की जो देश को आजाद करके दुनिया आजाद करने निकल पड़े हैं| आपको लगता होगा की क्या अजीब उल्टी- सीधी बिना मतलब के बात कर रहा है| बड़ा आया है देश की चिंता करने वाला| तो आपको आज मैं अपने तरफ से कुछ कहने की तम्मना रखते हुए ही लिख  रहा हूँ|  जब देश आजाद नहीं हुआ था तो हम सोचते थे की आजादी जल्दी मिले, मिल भी गयी| लेकिन मुझे लगता है देश में ख़ुशी नाम की कोई चीज़ नहीं है, एक तरफ मुकेश अंबानी 27  मंजिला घर बना रहे हैं तो दूसरी तरफ राजू 27  दिनों से बस नाममात्र अन्न पर मौत की बाट जोह रहा है| आप ही बताईये क्या यही  है वह देश जहाँ के लोगों ने आजाद भारत की एक स्वर्णिम कल्पना की थी| आज विजय माल्या का अरबों रुपया बांकी है सरकारी फार्मों में लेकिन उन्हें कोई नोतिसे भी नहीं मिलती, लेकिन बिहार की धन्नो हक़ की बात लेकर बाबुओं के पास जाती है तो उसे फटकार दिया जाता है| आज देश के बड़े बड़े सरकारी समारोह में लाखों रूपये का खाना बर्बाद होता है, तो दूसरी तरफ करोड़ों लोग भूखे पेट सोने को विवश हैं| शायद यही है भारत ऐसा कभी-कभी मैं सोचता हूँ, आज भी किसी दूर दराज के इलाके में जाइये आपको भूख से तिलमिलाते हजारों परिवार मिल जायेंगे| जिनको आँखों में एक आग है, किसी की बाट नहीं सुनते वो, आखिर क्यूँ सुने जब उनकी कोई नहीं सुनता| खुलेआम सरकारी संपत्ति का बंदरबांट चाल रहा है और देश के लोग मूक दर्शक होकर सुन रहे हैं, देख रहे हैं| खुद को विवश कहते हैं, आज भी किसी दफ्तर मैं जाओ तो बिना घूस दिए शायद ही कोई काम होता है| इस बाट को सुप्रीम कोर्ट भी स्वीकार कर चुका है की देश में भ्रष्टाचार गंभीर रूप से व्याप्त  है| सुप्रीम कोर्ट ने व्यंग भरे लहजे में यह भी कहा था की ' बेहतर होगा की सरकार अब रिश्वत खोरी को वैध कर दे , ताकि लोग निश्चित राशि देकर अपना काम करवा ले|' आयकर, बिक्रिकर, अबकारी विभागों में तो कोई काम ही बिना पैसों के नहीं होता| इससे कम से कम प्रत्येक व्यक्ति को यह तो मालूम हो जायेगा की उसे कितना घूस देना है| क्या यह बात यह नहीं कहता की देश में स्थिति किस तरह भयावह है| अब समय आ गया है की हमे कुम्भ्करनी नींद से जागना होगा और खुद के लिए ही नहीं देश के लिए भी कुछ सोचना होगा| मैं आपको एक कहानी सुनाता है जो मेरे साथ घटित हुआ| आज से दो महीने पहले एक आदमी मेरे पास आया (भोपाल में जहाँ मैं फिलहाल जिंदगी गुजर रहा हूँ) उसकी स्थिति से लगती थी की उसने कितने दिनों से ही कुछ खाया नहीं है| वह अचानक मेरे पास आकार बोला साहेब एक बात कहूँ, आप मुझे कुछ रूपये दे दें तो आपका बहुत एहसान होगा| मेरी बेटी एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती है और इलाज के लिए अब पैसे नहीं बचा है| मैंने कहा की सरकारी में क्यूँ नहीं भर्ती करवाया, तो उसका जवाब सुनकर मेरी रूह कांप उठी| उसने कहा की साहेब मेरी बछि तो उसी दिन मर जाती जिस दिन सरकारी में भर्ती करवाता| क्या यही है देश जिसे भारत कहते हैं, जहाँ ओबामा के आंये से पहले करोड़ों रूपये और आने तक पता नहीं कितने रूपये  उनके स्वागत में बहा देता है| लोगों को भूखे मरने दो उसकी फ़िक्र मत करो| शायद यही इंडिया का नारा हो गया है| मुझे लगता है की अगर ये भूखे, नंगे लोग साड़ों पर उतर आयें और कुछ भी करने ओ आतुर रहें तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी| और मुझे लगता है की यह कुछ दिनों में हो सकता है| आज भी अगर हम अपने आपसे थोड़ा हट कर दूसरों के लिए भी सोचें तो देश में कितने चेहरों पर मुस्कान आ सकती है| इससे पहले की देश में लोग भूख से बेमौत मरने लगें हमें कुछ करना चाहिए| मेरे हिसाब से यह हमारा भारत नहीं है| यहाँ तो इंडिया घुस आया है, अपनी मौज दूसरों से क्या मतलब| नींद से जागना होगा नहीं तो देर हो जाएगी| मैं आप लोगों से पूछता हूँ क्या यही भारत है? आपके जवाब के आशा में ?