Jan 12, 2010

कैसे होगा बिना रुपल्ली हॉकी में जय हो ?

भारतीय हॉकी  में कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है ऐसी खबरे रोज ही आ रही है |आखिर क्या हो गया अचानक की जो टीम कल तक फरवरी में होने जा रहे वर्ल्ड कप की तय्यारी में लगी थी , आज वो इस तरह का रुख अपनाये हुए है |कारणों के तह में जाए तो इसका सबसे बड़ा कारण खिलाडियो को मिलने वाले पारिश्रमिक से है |बात भी सही है कब तक कोई बिना पैसो के काम चलाएगा |भारत जैसे देश में जहाँ कभी यह खेल मुख्य रूप से मौजूद था शीर्ष पर ?आज भी चाहे जो भी हो बैट-बॉल चाहे कितना भी प्रगति कर ले पर देश का राष्ट्रीय खेल नहीं हो सकता ,वहां चाहे नाम का ही हो लेकिन रहेगा तो हॉकी ही |मुझे लगता है शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहाँ राष्ट्रीय खेल की स्थिति इतनी नाजुक हो, इसलिए तो भारत को अदभूत देश की संज्ञा दी गयी है |खैर अब कुछ तमाशे की भी बात हो जाये तो मतलब कुछ निकले |खबर आई की पुणे में भारतीय हॉकी
के खिलाडियो ने प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने से मना कर दिया है और कारण धन को बताया गया है |एक बात तो सही है भारत में एक तरफ जहाँ क्रिकेट में धन टनन हो रहा है तो वहीं हॉकी में ईश्वर के नाम पे कुछ दे -दे बाबा वाली स्थिति है |क्रिकेट खिलाडी जहाँ इनकम टैक्स देने में देश में अपना एक स्थान बनाते है वहीं हॉकी के खिलाडी तो सपने में भी इसके बारे में कभी नहीं सोचते है |शायद ऐसी स्थिति इसलिए है की भारतीय हॉकी टीम ने अब तक कुल आठ ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते है ,एक वर्ल्ड कप में भी गोल्ड जीता है टीम ने एशियन खेल में भी दो गोल्ड जीता है |देश में जहाँ स्थिति यह है वही क्रिकेट टीम ने अभी तक सिर्फ एक १९८३ का वर्ल्ड कप और एक २०-२० वर्ल्ड कप ही जीता है बड़े लेवल पर,पर शान में दोनों का जमीं आसमान का अंतर है |अपने देश में ऐसा ही होते आया है किसी को अर्श पे तो किसी को रसातल में जगह दी जाती रही है |मेरे हिसाब से जो टीम के मेम्बरों ने किया है वो बिल्कुल सही है |कोई कब तक झूठ के नाम को लेकर चलते रहे ,आखिर  कोई बिना उचित पारिश्रमिक के कितने दिन कोई  खट सकता है |टीम के खिलाडियों का कहना है जो सहारा का  लोगो क्रिकेट टीम के खिलाडी लगाते है वही तो हम भी धारण करते है, लेकिन जिस गाड़ी से क्रिकेट टीम के खिलाडी सफ़र करते है हम तो उसे दूर से देख के ही आहें भरते है |वाह!रे देश एक ही चीज़ के लिए अलग अलग दाम | हॉकी टीम के खिलाडी अगर कोई टूर्नामेंट जीत भी जाए तो उनको थोडा कुछ मिल जाता है ,वो भी एक इंतिजार के बाद समय पर तो कुछ मिलता ही नहीं है |लेकिन अगर कोई मैच हार जाते हैं तो कुछ से भी हाथ धोना पड़ता है |एक बात समझ से बाहर है की आखिर ऐसी दोतरफा नीति को लेकर हॉकी को बर्बाद किस लिए किया जा रहा है |टीम के खिलाडियों से कहा जाता है की देश के नाम को उपर उठाओ तो मैं पूछना चाह रहा हूँ की कोई क्या पेट में कपडा ठूस कर देश के नाम को आगे बढा सकता है क्या ?एक बात इसपर और क्या अगर हम पूरी संतुष्टि के साथ कोई काम नहीं करे तो वो कभी अच्छा हो सकता है क्या ?इस प्रश्न का जबाब तो हम सभी के पास शायद यही होगा की नहीं तो फिर टीम के साथ ऐसा किस लिए हो रहा है |हम चाहे कितना भी कुछ सोचे लेकिन अगर काम करने वाले संतुष्ट नहीं होंगे तो कोई भी काम नहीं होगा |हॉकी टीम के साथ भी ऐसा ही कुछ लागु होता है |लगातार अगर हम जीत के बारे में ही सोचेंगे और उसके बेसिक बातो पर ही ध्यान नहीं देंगे तो वो पूरा कैसे होगा ?जीत के लिए तो सभी सोचते है लेकिन इसके लिए भी कुछ करना होगा यह किस कारण से नहीं सोच पाते है |हम सिर्फ रसगुल्ले ही खाना चाहते है लेकिन उसके लिए अच्छी सामग्री अगर हम नहीं जुटा पाते है तो यह कल्पना बेकार है |हॉकी को अगर जीवित रखना है तो खिलाडियों का भी ध्यान रखना ही होगा ,अगर खिलाडी ही खुश  नहीं  रहेंगे तो कुछ भी अच्छा होना मुश्किल है |तो अगर हमे भारतीय  हॉकी को फिर से वर्ल्ड की बेस्ट टीम बनाना है तो खिलाडियों को भी गोल्ड तो देना ही होगा |आखिर हिंदी सिनेमा में एक गाना भी इसकी को लेकर है की "बाप बड़ा न भैया ,सबसे बड़ा रुपैया " ,लेकिन यहाँ तो रुपैया ही नहीं है तो होगा कैसे |तो भारतीय हॉकी के प्रशासको को बयानबाजी छोड़ इसकेलिए सोचना चाहए ताकि फिर से इस खेल में सोने का तमगा देश में आ सके |