आजकल धन के बारे में देश में और देश के बाहर कुछ ज्यादा ही चर्चा हो रही है . हर तरफ धन की ही बात हो यह एक अजीब तरीके का अहसास दिलाता है . हम जैसे लोगों के लिए तो ऐसे जगह पर बहुत कम स्पेस बचता है. आखिर धन भी तो इस मायावी दुनिया का एक मजबूत स्तम्भ है . इसके बिना शायद ही किसी का काम चले. और अगर बात राजनीति की आती हो और चर्चा धन की ना हो यह तो हो ही नहीं सकता है. धन या अर्थ की राजनीति आज अहम स्थान लेती जा रही है. राजनीत के इस कड़ी में आज मैं झारखण्ड की राजनीति को लेकर चर्चा करूँगा. इस राज्य की स्थापना 2000 से ही यह अमिर राज्य का तमगा हासिल करने की सोचता था, लेकिन कहते हैं न की जिस जगह के राजनेताओं में लक्ष्य का अभाव हो उस जगह का विकास शायद ही कभी हो पाता है . धन की ऐसी माया पड़ी इस राज्य के नेताओं पर की कल तक जो खाने को तरसता था वह स्विस बैंक में खाताधारी हो गया. हैं न एक अजीब सी बिडम्बना, लेकिन यह सत्य है और इससे नाता नहीं तोडा जा सकता है. राज्य चाहे किसी मामले में आगे रहे न रहे लेकिन यहाँ के नेताओं और अधिकारियों के धन की तुलना में बहुत उद्योगपति भी पीछे छुट जाएँ तो ताज्जुब होने वाली कोई बात नहीं है. कोयले की लूट से तो सभी वाकिफ हैं लेकिन यहाँ जनता के निवाले को भी लूटा जा रहा है. देश का कोई भी पैसवाला इन्सान यहाँ से चुनाव जीतने का दावा कर सकता है. इसका तो प्रमाण मिल ही चुका है . पहले केडी सिंह चुनाव जीत जाते हैं तो कभी धूत और मिश्र जैसे लोग चुनाव जितने की की सोचते हैं . कभी प्रदेश के विधायक बिकने को आतुर रहते हैं तो कभी मंत्री. अब आप ही बताईये इस राज्य का क्या हो सकता है. अगर कोई दम लगाकर कहता है ही यहाँ सब बिकाऊ हैं तो क्या वह गलत कहता है. मुझे तो लगता है की हकीकत में बिकाऊ शब्द की परिभाषा यहाँ चरितार्थ होती है. कहने को तो इस राज्य को बने लगभग 12 साल हो चुके हैं और सत्ता और विपक्ष के कई लोगों के दमन में धन लेकर कार्य करने का दाग लग चुका है और यह आज भी जारी है. झारखण्ड को अगर धनखंड कहें तो कोई गलत बात नहीं होगी. आज बस इतना ही आगे फिर आऊंगा आपसे मिलने कुछ नई बात के साथ .