May 25, 2012

अब तो समझिए आडवाणी जी

समय बड़ा मूल्यवान होता है. कहते हैं न जो समय को पहचान जाता है वह  जीवन के सफ़र में निर्बाध रूप से  आगे जाता है. और अगर राजनीति में समय के बारे में जानना है तो आडवाणी जी से अच्छी व्याख्या और  कोई   नहीं कर सकता. मुंबई में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद इसकी पुष्टि और मजबूत  हुई है. मन में प्रधानमंत्री पद का सपना संजोये आडवाणी जी कब से बैठे हैं लेकिन मौका नहीं मिला. बहुत बार मौका मिला भी तो शायद भाग्य ने ही साथ नहीं दिया. पार्टी ने 2009 का लोकसभा चुनाव उनके नेतृत्व में लड़ा लेकिन पार्टी सत्ता में नहीं आ सकी . एक बार आस जगी लेकिन अंतत उन्हें निराश ही होना पड़ा. देश के मतदाताओं को शायद वो भरोसा नहीं जगा पाए . 2005 के जिन्ना प्रकरण के  बाद ही  आडवाणी जी की स्थिति ख़राब होनी शुरू  हो चुकी थी लेकिन 2009 के लोकसभा चुनाव और  गडकरी  की बीजेपी प्रमुख के रूप में ताजपोशी ने उनकी स्थिति स्पष्ट कर दी. आडवाणी  जैसे राजनीति के धुरंधरों  के बारे में कोई कहे की उन्हें इसका आभास नहीं था तो वो गलत कहता है. लेकिन पद और सत्ता चीज़ ही  ऐसी है की  किसी को भी अंधी कर देती है. प्रतिष्ठा वश आडवाणी जी को   विपक्ष के  नेता का पद भी किसी  और को  देना  पड़ा.  आडवाणी  जैसे चतुर सुजान के लिए यह एक तरह से झटका ही था . जो कभी उनकी बात से बाहर नहीं जाते वो भी धीरे-धीरे आँख दिखाने लगे. गुटबाजी  आडवाणी को बहुत महंगी पड़ने लगी. जनाधार का न होना उनके गुट के लिए गले का फांस बन गया. राज्यों के वे नेता भी उनको आँख दिखाने  लगे जिनने उनसे ही राजनीति का ककहरा सीखा. मतदाताओं का  उनके प्रति बेरुखा व्यवहार भी उनके लिए  गलत संदेश लेकर आया . आरएसएस भी उनको नापसंद करने लगा . जिस बीजेपी को उनने मेहनत से सींचा  वही उनको जाने की सलाह दे रहा है. इतना कुछ होने के बाद भी आडवाणी  जी हर बार एक ही बात कहते  और सोचते हैं किसी तरह एक बार देश चलने का मौका मिल जाये. जनता के साथ पार्टी भी किसी नये नेता को चाहती है लेकिन आडवाणी जी जाने को तैयार ही नहीं हैं. ज्यादा तो नहीं लिखना चाहूँगा  लेकिन अंत में एक एक बात  कहूँगा आडवाणी जी अब तो बालहट छोड़िये और एक  सम्मानपूर्वक  विदाई ले लीजिए. सभी को लग रहा है की आपके तरकश में कोई तीर नहीं बचा है. और अगर आपको  लगता है की आप पद और सत्ता हासिल कर लेंगे तो फिर देखिए. लेकिन हर रोज नया सवेरा होता है और  सभी लोग नए तरह का सूरज देखना पसंद करते हैं.

धन के आगे बेबस राजनीति

झारखण्ड की राजनीति  को लेकर बहुत दिनों से कुछ लिखने का मन हो रहा था. काफी विचार करता की आज कुछ लिख ही डालूँगा लेकिन विचार सही आकार ले नहीं पा रहे थे . लेकिन आज का मुहूर्त शायद बड़ा अच्छा है की आज मैं इस विषय पर कुछ लिखने जा रहा हूँ . अपने नाम के अनुरूप ही इस राज्य की  राजनीति भी उलझी  हुई है. सरकार बनती भी बड़ी मुश्किल से है और चलती भी बड़ी मुश्किल से है.  पहले तो  अपने दम पर सरकार  बनाने  की सोचता ही कोई नहीं है और अगर सोचता भी है तो उसका सपना-सपना  ही रह जाता  है. तो जनाब मैं बता दूँ की इसकी कारण से तो राजनीति के मामले में यह राज्य खास है. शायद ही कोई मुख्यमंत्री  रहा हो जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो. और तो  और जिसने जितना भी समय सीएम आवास  में काटा  वह शायद ही कभी चैन की साँस ले पाया. हैं न यहाँ की राजनीति दिलचस्प. राज्य अपने को हमेशा कोसते रहता है की कोई आये और उसका उद्धार करे. लेकिन रामायण के सबरी की  तरह  यहाँ राम का अवतार  हुआ ही कहाँ है. लूट, खसोट मची पड़ी है. हर किसी को कुबेर का खजाना हाथ लगा है, सब की  निगाह उसे खाली  करने पर लगी है . किस्मत का खेल यहाँ खूब हुआ है. कई खाकपति को अरबपति बनते देखा है इस राज्य ने. नरसिम्हा राव की सरकार बचाने को शिबू सोरेन ने पैसे लिए थे तो खूब हल्ला हंगामा मचा था देश में. लेकिन यहाँ तो बिना पैसे खर्च किए सरकार  बनती ही  नहीं है. दोष किसी एक पार्टी या लोगों का नहीं है दोषी तो यहाँ भरे पड़े हैं. हर कोई मलाई को बड़े ही टकटकी भरे निगाहों से देखता है और मौका मिलते ही हाथ साफ़ कर देता है . कहने को बीजेपी अपने को पाक साफ़ कहती है लेकिन इसका असली चरित्र यहाँ देखने को मिलता है. सरकार और सत्ता की  इसकी भूख क्या है वह यहाँ स्पष्ट नजर आ जाता है. कांग्रेस का अवतार भी यहाँ बुरी आत्मा के रूप में ही हुआ  है. किसी तरह सेज सजा  मिल जाये यही उसकी कामना रहती है . अब जब दो बड़ी पार्टियाँ ही लाभ के लालच में हर घडी घुमती  रहती है तो छोटी पार्टियाँ क्यूँ पीछे रहे. घर का बड़ा ही जब बिगड़ा है तो छोटा भी बिगड़ जाये  तो कोई ताज्जुब  नहीं होना चाहिए. जेएमम  और अन्य पार्टियाँ तो इस फेर में ही रहती से है की कैसे कोई  महाजन कहीं से आये और हमें कुछ मिल जाये. ईमान तो कब का बिक चुका है अब खुद को भी बेचने में परहेज़ नहीं रह गया है राजनेताओं को . कहिये कैसी है राजनीति इस प्रदेश की . जहाँ सत्ता के पहरेदार ही बिकने को हर हमेशा  तैयार रहते हैं वहां की क्या स्थिति हो सकती है इसका  अंदाजा हर किसी को हो हो चुका है. ट्रेड शब्द यहाँ हमेशा ऊफान पर रहता है .आखिर जब बाजार ही बिकने को तैयार बैठा है तो कोई व्यापारी क्यूँ परहेज़ करे. हर दल की जहाँ यही कोशिश रहती है की सत्ता में आओ और रेवड़ी का लुत्फ़ उठाओ. मैं तो अब इतना ही  कहना चाहता हूँ की अगर दुसरे देशों के लोगों को भी यहाँ से चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी जाये तो धनबल  के कारन वह भी चुनाव जीत जाएँ. न भी जीतें तो भी एक बार किस्मत आजमाने इस कसीनो में जरुर आयेंगे. राजनीति को शर्मसार करने के लिए इतना ही काफी नहीं है. अगर नहीं है तो बता दीजिये और भी बहुत कुछ कर सकते हैं यहाँ के नेतागण. ज्यादा फिर किसी दिन आज तक के लिए इतना ही. एक बार सोचिएगा  जरुर इस विषय  पर वह भी गंभीर रूप से .