May 25, 2012

धन के आगे बेबस राजनीति

झारखण्ड की राजनीति  को लेकर बहुत दिनों से कुछ लिखने का मन हो रहा था. काफी विचार करता की आज कुछ लिख ही डालूँगा लेकिन विचार सही आकार ले नहीं पा रहे थे . लेकिन आज का मुहूर्त शायद बड़ा अच्छा है की आज मैं इस विषय पर कुछ लिखने जा रहा हूँ . अपने नाम के अनुरूप ही इस राज्य की  राजनीति भी उलझी  हुई है. सरकार बनती भी बड़ी मुश्किल से है और चलती भी बड़ी मुश्किल से है.  पहले तो  अपने दम पर सरकार  बनाने  की सोचता ही कोई नहीं है और अगर सोचता भी है तो उसका सपना-सपना  ही रह जाता  है. तो जनाब मैं बता दूँ की इसकी कारण से तो राजनीति के मामले में यह राज्य खास है. शायद ही कोई मुख्यमंत्री  रहा हो जिसने अपना कार्यकाल पूरा किया हो. और तो  और जिसने जितना भी समय सीएम आवास  में काटा  वह शायद ही कभी चैन की साँस ले पाया. हैं न यहाँ की राजनीति दिलचस्प. राज्य अपने को हमेशा कोसते रहता है की कोई आये और उसका उद्धार करे. लेकिन रामायण के सबरी की  तरह  यहाँ राम का अवतार  हुआ ही कहाँ है. लूट, खसोट मची पड़ी है. हर किसी को कुबेर का खजाना हाथ लगा है, सब की  निगाह उसे खाली  करने पर लगी है . किस्मत का खेल यहाँ खूब हुआ है. कई खाकपति को अरबपति बनते देखा है इस राज्य ने. नरसिम्हा राव की सरकार बचाने को शिबू सोरेन ने पैसे लिए थे तो खूब हल्ला हंगामा मचा था देश में. लेकिन यहाँ तो बिना पैसे खर्च किए सरकार  बनती ही  नहीं है. दोष किसी एक पार्टी या लोगों का नहीं है दोषी तो यहाँ भरे पड़े हैं. हर कोई मलाई को बड़े ही टकटकी भरे निगाहों से देखता है और मौका मिलते ही हाथ साफ़ कर देता है . कहने को बीजेपी अपने को पाक साफ़ कहती है लेकिन इसका असली चरित्र यहाँ देखने को मिलता है. सरकार और सत्ता की  इसकी भूख क्या है वह यहाँ स्पष्ट नजर आ जाता है. कांग्रेस का अवतार भी यहाँ बुरी आत्मा के रूप में ही हुआ  है. किसी तरह सेज सजा  मिल जाये यही उसकी कामना रहती है . अब जब दो बड़ी पार्टियाँ ही लाभ के लालच में हर घडी घुमती  रहती है तो छोटी पार्टियाँ क्यूँ पीछे रहे. घर का बड़ा ही जब बिगड़ा है तो छोटा भी बिगड़ जाये  तो कोई ताज्जुब  नहीं होना चाहिए. जेएमम  और अन्य पार्टियाँ तो इस फेर में ही रहती से है की कैसे कोई  महाजन कहीं से आये और हमें कुछ मिल जाये. ईमान तो कब का बिक चुका है अब खुद को भी बेचने में परहेज़ नहीं रह गया है राजनेताओं को . कहिये कैसी है राजनीति इस प्रदेश की . जहाँ सत्ता के पहरेदार ही बिकने को हर हमेशा  तैयार रहते हैं वहां की क्या स्थिति हो सकती है इसका  अंदाजा हर किसी को हो हो चुका है. ट्रेड शब्द यहाँ हमेशा ऊफान पर रहता है .आखिर जब बाजार ही बिकने को तैयार बैठा है तो कोई व्यापारी क्यूँ परहेज़ करे. हर दल की जहाँ यही कोशिश रहती है की सत्ता में आओ और रेवड़ी का लुत्फ़ उठाओ. मैं तो अब इतना ही  कहना चाहता हूँ की अगर दुसरे देशों के लोगों को भी यहाँ से चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी जाये तो धनबल  के कारन वह भी चुनाव जीत जाएँ. न भी जीतें तो भी एक बार किस्मत आजमाने इस कसीनो में जरुर आयेंगे. राजनीति को शर्मसार करने के लिए इतना ही काफी नहीं है. अगर नहीं है तो बता दीजिये और भी बहुत कुछ कर सकते हैं यहाँ के नेतागण. ज्यादा फिर किसी दिन आज तक के लिए इतना ही. एक बार सोचिएगा  जरुर इस विषय  पर वह भी गंभीर रूप से .

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