Jan 7, 2011

अगर जनता जाग गयी तो ?

आज देश के सामने एक विकट समस्या आन खड़ी हुई है| दिन पर दिन नए-नए घोटालों  की खबर उजागर हो रही है, कभी यह घोटाला तो कभी वह| कभी देश के राजा को कभी मंत्री| लेकिन इन सब का खामियाजा जिसे भुगतना पड़ रहा है वह है देश की प्रजा या कह सकते हैं तथाकथित रंक| जिम्मेदार लोग तो अपनी जिम्मेदारियां निभा रहे हैं, आम लोगों के पैसों को डकारकर, शायद उनका यह सोचना है की आखिर सत्ता मिली ही तो है डकारने के लिए| लेकिन जैसा कहते हैं डकारने में भी कुछ फर्क होता है, कौन डकार रहा है| अगर गरीब डकारेगा तो लोगों के उपहास का केंद्र बनेगा, लेकिन अगर अमीर डकारेगा तो लोग समझेंगे की साहेब ने अच्छे से आज कुछ खाया है| आजकल  समूचा देश ही खाने- खिलाने की कोशिश में लगा हुआ है| कोई छोटे बाबु की तरफदारी कर रहा है तो कोई बड़े बाबू की चाकरी| लेकिन सबसे बड़ी और दुखद बात यह है की आजकल देश के नीति निर्धारक सबसे भूखे हो गए हैं| उनकी तो पेट भी इतनी बड़ी है की कभी शायद ही भरे| लोग उनकी तरफदारी में लगे रहते हैं की साहेब कुछ दे दें| आखिर अगर सोना टूटेगा तो कुछ अंश तो साथ वाले को मिलेगा| नीति तो अब पैसों से ही बनने लगी है और इसके बारे में बताना मुर्खता ही होगी| अगर आपके पास माल है तो आप देश में आपने ढंग से कानून बना सकते हो, बनवाना इसलिए नहीं की चाहे बनाओ या बनवाओ फायदा तो आपको ही होगा| खबर आती है की इतने लोग ठण्ड से मर गए, मरने दो सालों को अपने को क्या मतलब| अपने तो सुख से हैं न| आज इतने लोगों को रोटी नहीं मिली, सिर छुपाने को जगह नहीं है, क्या बकवास कर रहे हो यह बताओ की अमुख पार्टी वाले डील का क्या हुआ| अभी भी कुछ कह रहा है की और कुछ चाहता है|  अब प्रश्न उठता है की आखिर देश में किसका शासन है यह है भी की नहीं| या पूरे अंधेर नगरी ही है| किसी गरीब से पूछो तो कहेगा की अमुख साहेब कह के गए हैं की इस बार कुछ करेंगे लेकिन हमारा तो काम ही है इन्तजार करना, सो  कर रहे हैं| आम लोगों का दर्द चरम पर है लेकिन सरकार और देश चलाने वाले अभी भी निंद्रा में हैं| पता नहीं की यह कौन सी निंद्रा है, शायद कुम्भकर्ण वाली तो नहीं, लेकिन दुर्दिन आने पर वह भी जगा था चाहे उसका खुद का ही दुर्दिन ही क्यूँ न हो| लेकिन क्या देश के लिए इससे भी बड़ा दुर्दिन होगा जहाँ एक तरफ लोग महल पर महल बना रहे हैं वहीं दूसरी और एक शेड भी नसीब में नहीं है| अब भी सरकार सोई हुई है| ऐसे ही कुछ दिनों पहले मध्यप्रदेश की सरकार सोई हुई थी, लेकिन किसानों ने प्रदेश की राजधानी को ही जाम कर दिया तब शायद सरकार को चेतना आयी की इनकी भी कुछ दिक्कतें हैं| यह रीति रही है की जब जब अन्धकार का बोलबाला बढ़ता जाता है लोगों की चेतना जग रही है| अन्धकार से मुक्ति पाने लोग राजा और शासन के खिलाफ गोलबंद होते रहे हैं| अब अगर इस लुट पर लगाम नहीं लगाया गया तो ऐसा न हो की एक और युद्ध छिड जाए| अभी भी समय है जागो और आम के लिए भी कुछ करो| नहीं तो कहा ही गया है की सिंघासन खाली करो की जनता आती है? अगर आप लोगों के चेहरे पर खुशी नहीं ला सकते तो छोड़ तो राजसत्ता| 

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