Nov 14, 2013

गरम है दिल्ली का पारा?

जैसे-जैसे सर्दी बढ़ती जा रही है देश का राजनीतिक माहौल गरमाते जा रहा है. आखिर बात भी है तभी तो सर्दी के मौसम में भी गर्मी लगने लगी है. वैसे तो चार और राज्यों में चुनाव हो रहे हैं लेकिन पांचवे जगह का चुनाव खास है. खास होने का भी तो कारण होना चाहिए तो हैं न कारण, आखिर देश कि राजधानी है. पूरे देश पर यहीं से बैठकर राज किया जाता है. हर किसी कि चाहत होती है कि हस्तिनापुर में सत्ता का स्वाद चखने को मिले. लेकिन सिर्फ सोचने भर से सत्ता नहीं मिलती साम-दाम-दंड-भेद लगाना होता है तभी गद्दी मिलती है. समय के साथ राजनीति भी पेचीदा होती जा रही है. जनता का मूड कब किस ओर चला जाये यह कहना कठिन होता जा रहा है. आखिर हो भी कैसे नहीं अब जनता थोड़ी बहुत जागरूक जो होती जा रही है. और जब बात दिल्ली कि हो तो वहाँ तो माहौल ही अलग है. पूरे देश कि मीडिया जहाँ विराजमान हो वह जगह अलग तो होगा ही. कहते हैं न छपे हुए और दिखे हुए का काफी असर होता है. और राजधानी है देश कि तो बात कुछ तो अलग होगी ही.
सभी का खिंचा है ध्यान 
बहरहाल जो भी हो लेकिन इस बार के दिल्ली चुनाव ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खिंचा है. कहने को तो यहाँ का हर चुनाव अपने आप में खास होता है, लेकिन इस बार का विधानसभा चुनाव अलग है. आंदोलन का सहारे राजनीतिक मंच पर आये आम आदमी पार्टी ने सभी को आकर्षित किया है. लोगों में यह कौतूहल है कि आखिर क्या होगा परिणाम?
त्रिकोणीय है मुकाबला 
कभी दिल्ली चुनाव दो ध्रुवीय होते थे लेकिन इस बार त्रिकोणीय नजर आ रहे हैं. आम आदमी पार्टी के आने के बाद मुकाबला कांग्रेस, भाजपा और आप के बीच हो चुका है. कहने को जो भी कहें लेकिन आप ने अपनी जगह बना ली है. एक विकल्प के तौर पर जिस तरह आप ने लोगों के बीच अपने को लाया है वह रोमांच पैदा करता है. 
कम सीट लेकिन दमदार चुनाव 
वैसे तो दिल्ली विधानसभा चुनाव में मात्र 70 सीट हैं लेकिन हर सीट पर कड़ा मुकाबला है. बीते चुनाव में कांग्रेस ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया था और कुल 43 सीटों पर कब्ज़ा जमाया था लेकिन इस बार मुकाबला अलग नजर आ रहा है. हो सकता है पार्टी के सीटों में गिरावट भी आये. 
शीला कि सीट पर सबसे कठिन मुकाबला 
कहने को तो दिल्ली कि हर सीट पर मुकाबला दिलचस्प है लेकिन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कि सीट पर मुकाबला काफी रोमांचक होने कि संभावना है. आप पार्टी के अरविन्द केजरीवाल और भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष विजेंद्र गुप्ता के भी उसी सीट से चुनाव लड़ने के कारण सभी कि नजर इस सीट पर लगी है.
मीडिया कि है पल-पल नजर 
दिल्ली के चुनाव पर पूरे मीडिया जगत कि नजर है. खासकर अरविन्द केजरीवाल कि आप पार्टी पर सबकी नजर है. लगातार यह सुनने को मिलता है कि आप पार्टी को बनाने में मीडिया का बड़ा हाथ है तो जाहिर है चुनाव में भी मीडिया कि दिलचस्पी होगी ही. 
मोदी हैं मुद्दा 
बीजेपी मोदी के पोस्टर का सहारा यहाँ भी ले रही है. मोदी को मुख्या भूमिका में रख कर चुनाव लड़ा जा रहा है. हर पार्टी के लिए मोदी मुद्दा हैं कोई मोदी को लाने के लिए चुनाव लड़ रहा है तो कोई मोदी को भगाने को लेकर चुनाव लड़ रहा है. 
और ये हैं मुद्दे 
इनके आलावे महंगाई, भ्रष्टाचार, बिजली, जनलोकपाल जैसे मुद्दों को केंद्र में रख कर चुनाव लड़ा जा रहा है. बीजेपी और आप इन सभी मुद्दों पर कांग्रेस को लगातार कटघरे में खड़ा कर रही है, तो कांग्रेस भी अपने को हर सम्भव तरीके से बचाने में लगी है. एक बार फिर से प्याज़ मुख्य रूप से चर्चा में है. 
कांग्रेस कि साख दांव पर 
इस चुनाव में वैसे तो हर दल कि प्रतिष्ठा दांव पर लगी है, लेकिन कांग्रेस के लिए यह साख का सवाल है. पार्टी लगातार सत्ता में है. और आने वाले लोकसभा चुनावों के मद्देनजर विजयी होना काफी जरुरी है.बीजेपी और मोदी के लिए भी यह चुनाव काफी महत्वपूर्ण हैं. अगर पार्टी का प्रदर्शन अच्छा रहता है तो आने वाले चुनावों में पार्टी को इसका फायदा मिल सकता है. और आप के लिए तो यह चुनाव डेब्यू मैच जैसा है अगर चल गया तो फिर बात ही मत पूछिए. कुल मिलाकर काफी दिलचस्प होने वाला है मुकाबला. इन दलों के अलावे भी कई दल चुनाव में हैं जो हो सकता है एक दो सीट जित जाएँ लेकिन सेंटर में यही तीन दल हैं.
सर्वे पर माथापच्ची 
अलग-अलग मीडिया संगठनों के सर्वे में अलग-अलग परिणाम आये हैं. लेकिन कुल मिलकर कांग्रेस के लिए सभी ने खतरे कि घंटी बजाई है. बीजेपी के लिए फायदे कि बात और आप को किंगमेकर का तगमा कई मीडिया संगठनों ने दिया है. 
जनता कोर्ट में फैसला 
अब पूरा मामला जनता कोर्ट में है. 4 दिसम्बर को जनता जिसके लिए बटन दबा देगी वही दिल्ली का अगला महाराज हो जायेगा. सभी पार्टियां जनता का दिल जीतने में लगी है. किसी तरह जनता उनके पक्ष में आ जाये बस. अब तो आने वाला समय ही इसकी तस्दीक करेगा कि कौन किंग बनता है और कौन किंगमेकर? तब तक इन्तजार करना ही बेहतर विकल्प है?