Apr 29, 2013

चालू हो गया राजनीतिक तमाशा

मौसम गर्मी का है, धूप काफी तेज है। सूरज की प्रचंडता में बदन जला जा रहा है। देश का मिजाज भी गर्म ही है। जब हर तरफ गरमी का एहसास है तो राजनीति कैसे अछूती रहेगी। जनाब राजनीति भी काफी गरम है। इस गरमी का नजारा संसद में देखने को खूब मिल रहा है। लगातार आरोप-प्रत्यारोप का दौर चालू है। अगर गौर करें तो मिशन 2 0 1 4 की तैयारी जोरों पर है। हर दल ख्वाबों में अपने को सत्ता के करीब देख रही है। बड़ी पार्टियों के साथ छोटी पार्टियों को भी लग रहा है की इस बार बिना उनके सहयोग के कोई भी राजा नहीं बन सकता। बिहार, बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु, यूपी  के छत्रप तो मंद-मंद मुस्कुरा रहें हैं की चाहे जो जितना भी गरजे बर्षा तो उनके सहयोग से ही होगी। कोई कोलगेट पे कलह कर रहा है तो कोई कॉमनवेल्थ के सहारे वेल्थ बनाने की जुगत में है। कोई तीर को कमान में लाने को प्रयासरत है तो कोई हाथी मेरे साथी का जुमला उछाल रहा है। कोई अम्मा तो कोई दीदी को मना रहा है तो कोई साइकिल की रफ़्तार के साथ जाने की सोच रहा है। एक तरफ कमल अपना कुनबा बढ़ाने की जद्दोजहद कर रहा है तो एक तरफ हाथ सबके साथ वाली बात करने में व्यस्त है। कहीं बाबा की ब्रांडिंग हो रही है तो कहीं नमो मंत्र का जाप हो रहा है। कोई साधु संतो के शरण में जा रहा है तो कोई युवाओं को साथ लेकर चलने की बात कर रहा है। कोई लैपटॉप तो कोई घर देने की बात कर रहा है। कोई पिछड़े तो कोई अगड़े की रहनुमाई कर रहा है तो कोई माइनॉरिटी संग मोहब्बत बढ़ा रहा है। लेकिन इतना सब होते हुए भी आम आदमी बिल्कुल गायब है। उसको टॉर्च लेकर ढूंढा जा रहा है। तमाशा तो चालू हो चूका है, तमाशबीन पूरे लाव लश्कर के साथ डट चूके हैं तो चलिए हम भी चलें तमाशा देखने।  साथ में कुछ पैसे-वैसे भी लेना मत भूलिएगा कुछ खा-पीकर वापस आएंगे ऐसे थोड़े ही।

Apr 16, 2013

सुशासन बाबू को भगवा का भय?

फिलहाल गर्मियों का मौसम चल रहा है तो जाहिर सी बात है वातावरण तो गर्म होगा ही। मीडिया में भी गर्मी है रोज-रोज बिना मेहनत के मजेदार खबर मिल जा रही है। आने वाला वर्ष चुनाव का वर्ष है तो राजनीतिक गर्मी भी बढ़े तो हमें ताज्जुब नहीं होनी चाहिए। अब देखिए न बिहार का भी वातावरण गर्म हो रहा है जो दिल्ली तक को गरमा रहा है। बोलते हैं नीतीश तो हिलते हैं कई सारे। वैसे भी नीतीश जी को आजकल कुछ ज्यादा ही गर्मी चढ़ी हुई है, लो क्या बकबास बात कर दी मैंने। आखिर लगातार दूसरी बार पाटलिपुत्र की गद्दी मिली है तो सम्राट क्या ठंडा रहेगा। कोई भी आराम से कह सकता है की गद्दी की गरमी बर्दाश्त करनी बहुत मुश्किल होती है। अपने चारा वाले साहेब खूब जानते हैं, क्या मजेदार तरीके से तम्बाकू खाते गरमी झाड़ते थे। आजकल लालटेन किसी तरह एक बार फिर जले इसके लिए तेल का इंतजाम करते फिर रहे हैं। जाने दीजिए जो हुआ सो हुआ अब आते हैं सुशासन बाबू पे। आजकल सुशासन बाबू पूरे गरम हैं बेल का शर्बत और आम की चटनी भी बेअसर है उनके गरमी पर। अपने चचेरे भाई (राजनीतिक) पर रोज -रोज पिनक रहे हैं। अरे भाई ने कह क्या दिया की सिर्फ सुशील ही नहीं अबकी असली मोदी को भी जगह देना होगा। बाप रे बाप एक तो करेला दूजा नीम चढ़ा। आखिर हो बर्दाश्त उनके चलते ही तो सुशासन बाबू की राजनीत अभी तक बची हुई है नहीं तो मुद्दा तो है ही कहाँ। और लालटेन भी टोपी पर दम लगा दिया है तो कुछ तो करना होगा। भूरा बाल तो साथ नहीं ही देगा कम से कम टोपी वाला तो न बिदके। गरमी में बड़ा राहत होता है टोपी से। सुशासन बाबू सोचे की भगवा झंडा को भपकी देंगे तो वह शांत हो जाएगा। सुशील तो वैसे भी सुशील हैं, लेकिन मामला उल्टा पड़ गया। भगवा रंग इस बार पूरा रंगा रहा एक रंग में और सुशासन बाबू को खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी। कभी पाटलिपुत्र वाले ने गुस्सा दिखाया तो कभी हस्तिनापुर वाले ने। नतीजा सुशासन बाबू शांति की और जाने लगे। और तो और जब सुशील ने भी अपना रूप दिखाया तो बाबू को लगा की अब तो बिभीषण भी ललकारने लगा। क्या करें, क्या ना करें चलो किसी संघी को ही मलहम लगाया जाए। आखिर बात बनाने में ही फायदा है। सारा भपकी गीदड़ वाला बन गया। पार्टी में तो शरद भी हैं जो गरमी में भी जमे रहना ही पसंद करते हैं। लेकिन इस बार कुछ गरमी उनको भी लगी लेकिन शांत रहना जैसे उनका परम स्वभाव है सो वो उसी पे चलते हैं। सुशासन बाबू ने त्याग-तपस्या वाले को भी मोर्चा पर लगाया लेकिन बात नहीं बनी। अंत में बाबा के शरण में गए लेकिन वो भी जानते हैं भगवा में बाबाओं की कोई कमी नहीं है। वैसे भी मामला तो हम जैसे लोग ही तय करेंगे लेकिन समय-काल और वर्तमान परिस्थिति में सुशासन बाबू जीत से दूर रह गए। और तो और भगवा वाले अब सोच रहें हैं की जब सुशासन की वाहवाही सुशासन बाबू लूटें तो कुशासन का इल्जाम हम क्यूँ सहें। और इन सारी बातों को सोचकर वह भी मन बना रहें हैं की पाटलिपुत्र की सत्ता के अन्दर रह कर बदनामी मोल क्यूँ लिया जाये तो बाहर रह कर भी थोड़ा तमाशा देखा जाए। चलिए अब थोड़ा दरबार घूम लिया जाए कुछ राजकाज की उलटी-सीधी बात जान ली जाए। क्यूँ सही कहा न चलिए देखें क्या हो रहा है?