Sep 30, 2009

हरियाणा चुनाव और हुड्डा

हरियाणा में चुनावी बिगुल तो बज ही चुका है सेज भी सजने की राह देख रहा है अब हर किसी को इन्तिज़ार है १३ अक्टूबर की जिस दिन मत डाले जायेंगे और फिर दिवाली बाद २२ अक्टूबर की जिस दिन मतगणना होगी .आख़िर हरियाणा चुनाव में है क्या जो सभी चर्चा कर रहे है .येः चुनाव अपने आप में महत्पूर्ण है जहाँ एक तरफ़ टिकेट बटवारे में हुड्डा ने पहली बाज़ी मर ली है वही लगता है की आखिरी भी वही मारेंगे.हुड्डा ने आसानी से तो नही लेकिन टिकेट बटवारे में अपनी धक् दिखा दी है .दूसरी तरफ़ और दलों ने टिकेट तो पहेले बाट दिया लेकिन कुछ सीटो पर इस बातपर धयान लगाये रखा की कब कांग्रेस का कोई नेता जिसे कांग्रेस ने टिकेट नही दिया है उसे वो टिकेट दे लेकिन उनकी येः योजना भी धरी रह गई .बीजेपी तो वहां दिन प्रतिदिन कमजोर हो रही है इनलोद और हजका का भी हाल कुछ खास नही है .ओमप्रकाश चौटाला को जाट मतदाताओ पर ही पकड़ नही है तो कुलदीप बिश्नोई भी कुछ खास नही कर प् रहे है और लोकसभा के पिछले चुनाव ने तो येः दिखा ही दिया है की हुड्डा की राजनीती ने हरियाणा में कही न कही अपने पर जमा लिए है .हुड्डा तो यहाँ तक निशिंत दिख रहे है जैसे की कुछ हुआ ही नही है और वे दुबारा जितने वाले है .खैर जो भी हो येः चुनाव हुड्डा और दुसरे खास कर के चौटाला के लिया नाक की बात है .अब देखना है की किसकी नाक बचती है और किसकी कटती है .एक बात तो साफ़ है की अगर हुड्डा चुनाव में बहुमत हासिल कर लेते है तो निश्चित तौर पर वे हरियाणा के नए छत्रप हो जायेंगे और चौटाला और कुलदीप की कही न कही एक दुखद विदाई होगी .

शत्रुधन का बयां

शत्रुधन सिन्हा द्वारा हाल में ही जो राहुल गाँधी के बड़ाई में कसीदे पढ़े गए वो श्री सिन्हा के दोहरी मानसिकता को दर्शाती है .सिन्हा एक ऐसे नेता है जो की बीजेपी के सरकार में मंत्री भी रह चुके है ,उन्होंने २००९ का लोकसभा चुनाव भी बीजेपी के टिकेट पर ही पटना साहिब से लड़ा और जीता भी ,उनके टिकेट से लेकर आख़िर जीत तक पार्टी ने हरसंभव उनको मदद दी लेकिन चुनाव के दौरान भी बहुत तरह के विचार उनके द्वारा समय समय पर दिए गए .कभी टिकेट न मिलने पर बीजेपी छोड़ सपा में जाने की भी अटकले भी लगाये गए .आख़िर बीजेपी ने ही सिन्हा को इतना कुछ दिया उनको मंत्री तक बनाया और वही सिन्हा आज राहुल की बड़ाई कर रहे है .वैसे अगर एक बात को देखा जाए तो इतना तो स्पस्ट है की उनका बिहार की राजनीती से कोई खास लेना देना नही है २००५ के विधानसभा में भी वो प्रचार के लिया नही आए थे लेकिन पार्टी ने शानदार जीत हासिल की ,हो सकता है की शत्रुधन को येः लग रहा हो की अब बीजेपी में कोई भविष्य नही है ,वैसे भी बीजेपी में उनके न चाहने वालो की लम्बी फौज है तो हो सकता है उन्होंने सोचा हो की अब कहीं और देखा जाए .एक बात जो बहुत दिनों से उनके मन में है वो बिहार का मुख्मंत्री बनना है ,उपरी तौर से नही लेकिन अंडर से तो उनकी मनसा येः है .लेकिन जो संभावना है उसमे तो दूर दूर तक उनके मुख्मंत्री बनना की कोई आशा नही दिखती है ,हो सकता है विधानसभा उपचुनाव के बाद उनको लगा हो की बिहार में कांग्रेस का राज एक बार फिर से आ सकता है और यही समय है की वो कांग्रेस में किसी तरह अपनी जगह बनाये .अगर बिहार नही तो फिलहाल हो सकता है की केन्द्र में कुछ मिल जाए और अगर ऐसी बयानबाजी की जाए तो जसवंत सिंह के तरह मुझे भी निकल दिया जाए और फिर तो जनता का विश्वास जीत ही लिया जाएगा ,वैसे भी इस बार के लोकसभा इलेक्शन के बाद उनको अपने वोट का कुछ तो अंदाज़ लग ही गया होगा इसलिए वो ऐसी बात कर रहे हो .जहाँ तक बात राहुल की बड़ाई की है तो उनको कहीं न कहीं आभास हो गया होगा की अगर कांग्रेस में आया जाए तो आज नही तो कभी बिहार का मुख्मंत्री बना जा सकता है और वैसे भी बिहार में कांग्रेस को अभी नेता की तलाश है .शायद सिन्हा इस बात को भूल गया है की अब जनता इतनी भी मुर्ख नही रह गई है की नेताओ को न समझ सके .शत्रु जी आप की हड़बड़ी कही आपके लिया गडबडी न हो जाए .

Sep 29, 2009

सफलता मैं क्या सोचता हु

सफलता क्या है, इस बात को मैंने कई बार जानना चाहा पर सच कहू आज तक समझ नही पाया हु बस अपने तरफ़ से इस बारे में कुछ कहना चाह रहा हु की मैंने क्या क्या देखे है इस चीज़ को लेकर .सबसे पहले मैं एक छोटी सी बात कहना चाहता हु आज भी हमारे समाज में उन्ही लोगो को सफल कहा जाता है जो ज्यादा या अच्छा पैसा कमा रहे है या जिनकी आमदनी अच्छी है ,मैं ये कहना चाहता हु की क्या यही लोग असल में सफल है .मैं तो मानता हु की सिर्फ़ पैसा कमा लेना ही सफलता नही है ,मेरे हिसाब से सफलता तो वोह है की आप अपने अपने जिंदगी से कितने संतुस्ट है ,आप जो काम कर रहे है वो आपको तस्सली दे पा रहा या नही ?अगर आप ख़ुद ही अपने काम से संतुस्ट नही है तो कैसे सफल हो गए आप ?हाँ एक तरह से सफल हो गया ऐसे परिस्थिति में की कम से कम दो जून की रोटी खा रहे है ज्यादा कुछ नही .मैंने जहाँ तक देखा है या अभी तक अनुभव किया है हर माँ बाप की इक्छा होती है की उसकी संतान ज्यादा से ज्यादा धयान पढ़ाई पर लगाये और एक अच्छी नौकरी करे शायद इसी को वो सफलता मानते हो .पर एक चीज़ जो वो भूल जाते है की इस के लिया वो अपने संतान पर एक अनावश्यक दबाब भी दे रहे है .उन्हें ये तो फुरसत ही नही है की अपने बच्चे को कुछ दुनियादारी भी बताये ताकि वो सारा कुछ समझ सके .खैर मैं ज्यादा तो कुछ नही कहना चाहता हु लेकिन एक बात तो जरूर कहूँगा की अगर आत्म्संतुस्ती नही है तो कोई सफल नही कहा जा सकता है चाए वो अरबपति ही क्यू न हो .अम्बानी बंधुओ की आपसी लडाई सबके सामने है पैसे होने से ही कोई सफल नही हो सकता अगर वो अपने घर ,परिवार ,समाज के प्रति जिम्मेदार न हो ,इन सब से बाद कर कुछ नही है जहाँ तक मेरा मानना है हो सकता है आप भी कुछ सोचते होंगे पर बयां कर नही पा रहे है आपको लगता होगा की दुनिया आपको आसफल मानती है लेकिन अगर आप अपने अन्दर की बातो को उपर लाने की हिम्मत रखते है तो आप मेरी नजरो में सफल है दुनिया जो कुछ भी कहे आपके बारे में .?????????????????????/

क्या हो गया है हमें

लोग कहते है की आज न जाने क्यां हो गया है हमें जो हम इतने अवसरवादी हो गया है .कभी वो जमाना भी था जब अगर हमारे घर में कुछ होता था तो सारे गावं को जानकारी हो जाती थी मगर आज हालात येः है की हमारे ख़ुद के घर के निचे रहने वाले को भी पता नही चलता है क्या हो गया है हमें ?खैर कुछ न कुछ तो है जरूर है जो आज हालत ऐसे हो गए है ,हो सकता है की आज हम किसी चीज़ पर उतना धयान नही देते है या फिर धयान देकर भी अनजाने बन जाते है ,सायद आज हम सोचते है की दुसरो से हमें क्या लेना देना उन्हें कुछ भी हो हम तो ठीक है न .आज हमारे मन में येः बात घर कर चुकी है की दुनिया में जितना अकेले रहो उतना अच्छा .लेकिन हम येः भूलते जा रहे है हम हमेशा दुनिया से कट कर नही रह सकते है .कभी अगर किसी के घर बच्चा जनमता था तो वो बच्चा पलता कही और था उसे हर घर की जानकारी होती थी लेकिन अब शायद येः बात बेमानी लगे .पहले अगर गावं का कोई एक लड़का भी कामयाब होता था तो सारे गावं में चर्चा होती रहती थी लेकिन आज ज्यादातर हालात ये है की कोई अच्छा कर दे तो दुसरे को जलन होने लगती है आख़िर क्या हो गया है जो ऐसी बातें हो रही है .जरूर ही एक बात जो हमें सोचने को मजबूर कर देती है की क्या हम इतने मतलबी हो गए तो शायद हमें कहना होगा की हाँ हम हो गए है .एक बात यहाँ पर सही लगती है की मतलब निकल गया तो पहचानते नही .एक और बात आज तो यहाँ तक हो गया है की अगर लोग बड़े आदमी हो जाते है तो अपने पुराने पहचान को भी मिटा रहे है आख़िर कब तक ऐसा होगा ?

Sep 25, 2009

राहुल की राजनीती

राहुल गाँधी द्वारा आचानक उत्तरप्रदेश के दौरे पर जाना मायावती को मुसीबत लग रही है आख़िर लगे भी क्यू न लोकसभा इलेक्शन में तो इसका साफ़ असर नज़र आया .वैसे भी अब उत्तरप्रदेश में मायावती की पकड़ उतनी मजबूत नही लग रही है जैसी २००७ में विधानसभा चुनाव के समय थी .आख़िर क्या राहुल गाँधी का असर इस प्रदेश में बढ रहा है या फिर जनता के सामने कोई विकल्प नही है .जनता ने पिछले कुछ समय से सपा ,बसपा .भाजपा का शासन तो देखा लगता है जनता को कांग्रेस पर ही येः उम्मीद लगी है की वही उनका कुछ कर सकती है .राहुल गाँधी द्वारा यूथ्स को टिकेट देने की बात भी साफ़ असर कर रही है और इस बार के लोकसभा इलेक्शन में इसका फायदा भी मिला .अब जब २०१२ का चुनाव आने वाला है और इसकी कोशिस में राहुल गाँधी अभी से जुड़ गए है तो येः बात तो साफ़ है की इसका असर जरूर पड़ेगा और हो न हो मायावती को हार का मुह देखना पड़े .वैसे मायावती को भी इसका अंदाज़ लग गया होगा और हो सकता है वो भी इसका हल खोजने में लग गई हो लेकिन एक बात तो साफ़ है की राहुल की येः पहल एक अच्छी पहल है कम से कम हमारे नेताओं को इस बात का तो आभास हो गया की अब सिर्फ़ एसी में बठने और बड़े बड़े होटल्स में खाना खाने से अब राजनीती नही हो सकती है .उन्हें जमीं से जुड़ना ही होगा आन्यथा अब तो ऐसा लग रहा है की सिर्फ़ बड़ी बात से चुनाव नही जीता जा सकता है .

Sep 24, 2009

वंशवाद

देश में हर बार येः बात जोर शोर से उठाई जाती है की वंशवाद की राजनीती को ख़त्म किया जाएगा .वैसे लोगो को टिकेट नही दिया जाएगा जो ख़ुद राजनीती में शामिलनही है किसी को आचानक ही टिकेट नही दिया जाएगा ,पहीले उनका काम देखा जाएगा .कहेने को तो कुछ भी कहा जा सकता है लेकिन आमल में लेन की बात जब होती है तो फिर वही चीज़ आमल में लायी जाती है की उनको टिकेट देने से जीत हो सकती है चाएःजो कार्यकर्ता निराश हो उससे कोई मतलब नही .इसका स्पस्ट उद्धरण बिहार विधानसभा उपचुनाव में देखने को मिला जहाँ जेडीयू ने इस परम्परा को दरकिनार कर कार्यकर्ताओ को टिकेट दिया लेकिन रिजल्ट ने सारा माज़रा बिगड़ दिया ,आज कोई भी राजनितिक पार्टी सिर्फ़ और सिर्फ़ सत्ता पाना चाहती है नैतिकता से उनका कोई लेना देना नही है .महारास्ट्रविधान सभा चुनाव के लिया जो अब तक टिकेट के बात्वारे हुआ है उससे तो येअही लगता है येः ख़त्म होने वाला नही है .आज के डेट में हर बड़ा नेता अपने आगे की पीढी को सेटल करना चाहता है और उसी का परिणाम है ये वंशवादकी राजनीती इस समय जो सबसे अहम् बात रहती है वो होती है की अपने लोगो को जिताना .आख़िर ये कब तक रहेगा ये प्रश्न तो हमेशा होती है पर उत्तर अभी तक नही आ पाया है .अगर मैं कहू तो येः अभी ख़त्म नही होगा .

Sep 19, 2009

संथानम का खुलासा

११ मई १९९८ को तत्कालीन सरकार द्वारा जो परमाणु परिक्चन किया गया था उसपे आज ऊँगली उठ रही है.यहाँ सबसे बड़ी बात जो समझ से परे है वो येः क्या की आज तक अब तो ११ साल होने वाले है इन लोगो ने आज तक येः बात नही की और अचानक येः हो रही है यही समझ मैं सायद मुझे नही आ रही है .संथानम द्वारा जो बात आज कही जा रही है उसमे एक राजनीती की बू आ रही है हो सकता हो संथानम को कोई विवाद हो इसलिय वो आज ऐसी बात कर रहे है नही तो अगर देश का सवाल था तो उन्हें पहेले येः उजागर करना चयिया था .एक बात और हो सकती है की किसी राजनितिक दल द्वारा उन्हें कुछ फायदा हो रहा हो या फिर येः बात सही हो .लेकिन जो सबसे बड़ी बात यहाँ एक ही है वो संथानम का इतने दिनों तक खामोस रहना .खैर जो भी हो अब तो समय ही बातएगालेकिन देश के परमाणु स्सिएंतिस्तो को आचानक ग़लत ठरना एक जल्दबाजी होगी सायद अब तो जांच ही बता सकता है की असलियत क्या है ??????????????

सरकार के दावे और हमारा गावं

सरकार गावं की स्थिति बदलने की बात कई सालो से कर रही है कुछ सफलता भी सरकार को मिली है पर वास्तविक बात तो येःहै की अभी भी येः पुर्न्रुपें सही नही है .आज भी कई गावं ऐसे है जहाँ बिजली ही नही है ,सरकार अपना पैसा सरकारी विज्ञापनों मैं खर्च करती है अगर यही पैसा इन गावं के विकास मैं लगाया जाय तो बहुत कुछ बदल सकता है .आज भी हमारे गावं मे समुचित सुभिदा का आभाव है लोगो को बहुत चीजों के बारे मैं जानकारी नही है .अभी भी गावं में शिक्षा पुर्न्रुपें सही नही है बस खानापूर्ति जारी है ,कोई अच्छा रेफोर्म नही हो पा रहा है जिससे गावं की तस्वीर बदले खैर यहाँ मेरे कहने का मतलब येः नही है की गावं का देवेलोप्मेंट नही हो रहा है बल्कि येः है की जिस स्थिति में हमारे गावं अभी भी है वो सरकार के सारे वादों की पोल खोल देती है ,अभी भी शासन के पास समय है इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाये और गावं में जो उचित चीज़ होनी चयेया वो उपलब्ध कराये नही तो हो सकता है एक विषमता उत्पन्न हो जाए .

शशि की समस्या

कांग्रेस में शशि थरूर जैसे हाई प्रोफाइल लोगो को भारत की असली जानकारी सायद अभी भी नही हुई है ,बात बिल्कुल सही भी है हो भी तो कैसे वो तो हमेशा से विदेशो में ही रहे और यहाँ आकर कोई खास म्हणत भी नही करनी पड़ी और टिकटभी मिल गया .किश्मत ने भी साथ दिया और पहेली बार ही मंत्री बन गए .लेकिन येः तो सच ही है की किसी को भी अपनी पुरानी आदत छोड़ने में में दिन तो लग ही जाते है .लेकिन सबसे बड़ी बात है कोई भी जो कभी जनता के बीचनही गया उसे आम आदमी के दुःख दर्द के बारे कहाँ से ज्यादा जानकारी हो सकती है .शशि थरूर भी इसी किस्म के है आराम के शौकीन लोगो को जब थोडी सी भी दिक्कत आती है तो वो बौखला जाते है यही कुछ थरूर के साथ हुआ है .आम जनता के बीच से चुन कर तो वो आए है लेकिन उसकी कोई फिक्र उन्हें अभी तक नही है ,इसमे दोष सिर्फ़ उनका ही नही है दोष पार्टी का भी है जिसने एक ऐसे को मंत्री बना दिया है जो अपने समय को जनता को नही वरण होटल्स और ट्विट्टर पर देता है .जिसे अभी तक येः भी पता नही है की भारत जैसे देश मैं चुन कर आने के बाद कितनी जिम्मेदारी बढ़ जाती .लेकिन येः तो बहुत ही जरूरी है की अगर आप देश के विकाश के बारे में सोचते है तो आपको आम जनता का ख्याल करना ही होगा नही तो ऊँचे पदों पर जाने का कोई महत्व ही नही है .

Sep 17, 2009

वादे है वादों का क्या

लगातार सरकार द्वारा येः बात कही जा रही है की देश के तबके के बच्चो को तालीम दी जायेगी .सरकार दावे तो बहुत कर रही है और येः सिर्फ़ इसी सरकार द्वारा नही वरण सभी के द्वारा किया जाता रहा है.शिक्षा मंत्री द्वारा बड़े बड़े वादेभी किए जाते रहे है मगर वाश्त्विकता येः है की वादों मैं धयान तो छोटे वर्गो का भी होता है लेकिन वो सिर्फ़ वही तक सिमट कर रह जाता है .अमल मैं लेन से पहेले ही चापलूसों की नज़र लग जाती है और फिर वही होता है जो आज तक सरकारी स्कूलों का होते आया है .यहाँ पड़ने वाले ज्यादातर बच्चे ये तो गरीब परिवार से ही होता है ये फिर किसी कम आमदनी वाले घर से बात एक ही है यहाँ सिर्फ़ गरीबो के बच्चे ही पढ़ते है तो धयान देने की जरूरत क्या है .इलेक्शन आते ही वादे करके सारा काम हो जाएगा तो फिर कहे का दिमाग लगना .आज ज्यादातर स्कूलों की हालत ऐसी है की वहां पर्याप्त मात्र में शिक्षक ही नही है और जो है भी उनमे भी कए तो सिर्फ़ नाम मात्र के ही पढ़ते है उनको सिर्फ़ दुएइटी करनी है .एक तरफ़ सरकार देश के लिया ऊँचे ऊँचे सपने देखती है शिक्षा को लेकर दुश्री तरफ़ इतनी बड़ी खाई है इसमे .एक तरफ़ तो बाचे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ कर बड़े बड़े बन्ने का सपना देखते है वही आज भी सरकारी स्कूलों के बच्चे अपने आपको हिन् मानते है .येः बड़ी खाई ही समाज में इतनी आसमानता लती है तो सरकार को येः भी धयान रखना चयिया की सिर्फ़ वादे करने से नही जमीनी हकीकत से जानकर होना होगा तभी देश की सरकारी शीशा सुधर सकती है.

लालू की वापसी

लालू यादव की पार्टी ने बिहार उपचुनाव के परिणाम में जो सफलता पाई है वो पार्टी के लिए एक प्राणवायु का कम कर सकती है .लगातार मिल रहे हार के बाद ये जीत वाश्त्विक में लालू यादव के लिया कुछ रहत वाली है .बिहार मई जातिकी राजनीती तो पुरनरुपेंअभी खत्मनही हुई है लेकिन कुछ सकारात्मक शुरुआत हो चुकी है .श्याम रजक द्वारा पार्टी को चोरने के बाद येः कहना शुरू हो चुका था की लालू यादव के बुरे दिन सुरु हो चुके है .लोकसभा चुनाव के बाद लालू यादव के लिया येः सबसे बड़ा झटका था फिर तस्स्लिमुद्दीन द्वारा पार्टी छोरनेके बाद आवाज़ और तेज़ हो गई लेकिन बिहार के उपचुनाव मैं शानदार रिजल्ट और दिल्ली की विधानसभा मई पार्टी के मेंबर के पहुचने से लालू की पार्टी में फिर से जान आ गया है और हो न हो येः यादव के लिया येः एक सुभ संकेत हो और विरोधियो के लिए एक सबक की लालू को बिहार की राजनीती से हटाना कोई मुट्ठी का खेल नही है.

बिहार उपचुनाव और नीतिश की हार

बिहार में हुए उपचुनाव में सत्तारुड जेडीयू बीजेपी गठबंधन को अपेक्षित सफलता नही मिलने के कई कारण हो सकते है .इन कारणों के बारे में अगर सही से विवेचना की जाय तो कुछ मालूम चल सकता है .पहली बात तो येः है की नीतिश कुमार की सरकार द्वारा जो बात की जा रही है वो कही न कही कम sabit हो रही है.कुछ महीने pahela जो महादलित श्रेणी बनाई गई थी उसमे पस्वानो को नही सामिल करना भी एक बहुत बड़ा कारण हो सकता है.एक महत्पूर्ण कारण बिहार में अगड़ी जाती के लोगो का नीतिश से मोःभंग होना भी है .नीतिश कुमार के समय में टीचर्स की बहाली में जो शिकायते आ रही है वो भी एक कारण हो सकता है .तीसरी बात येः हो सकती है की नीतिश द्वारा जो दुसरे पार्टी से आए हुए लोगो को जो टिकेट दिया गए वो कही न कही आम पार्टी के लोगो को उपरी तोर पे नही लेकिन अंडर से चोट पंहुचा रही थी.इसका येः एक कारण हो सकता था अब नीतिश कुमार को खास तोर पे येः धयान देना होगा की पार्टी के लोगो को नाराज़ करके चुनाव नही जीते जा सकते है ,उपचुनाव में उन्हें येः सबक मिल ही चुका है.

Sep 16, 2009

एक अनुरो़ध सभी से

देश की राजनीती मेंलगातार एक नया मोड़ आ रहा है .हर राज्य की स्थिति तो ठीक थक ही लग रही हैलेकिन १५ नवम्बर को बने राज्य झारखण्ड की स्थिति बहुत ही विकटहै .लगातार सत्ता परिवर्तन के कारण येःराज्य सबसे ज्यादा खनिज होने के बाबजूद सबसे पिछाडा हुआ है .यहाँ की स्थिति सारा कुछ बता देते है येः राज्य सिर्फ़ धन कमाने का एक जरिए हो गया है .यहाँ के मंत्री तो अरबपति हो बाते है चाएःजनता को कुछ भी हो इनका सारा धयान तो बस एक जगह धन के खदान पर लगा हुआ है । बात अगर यहाँ के इंडस्ट्री की करे तो टाटा जैसी कंपनिया यही है.लेकिन फिर भी सबसे ज्यादा गरीब लोग यही है .कारण तो बहुत है आख़िर कितने के बारे में लोगो को पता है येः बड़ी बात है.खैर जनता तो सबसे आसान साधन है जिसे कोई भी कुछ कर सकता है .अभी देश में लगातार युवा की बात चल रही है .झारखण्ड में भी टॉप युवा ही थे कैबिनेट मेफिर क्यों नही बदलाव आया खेर येः भी बहुत ही लंबे विवाद का विषय है .सिर्फ़ नेता बंननेसे कुछ नही होता है, होता है निःस्वार्थ सेवा की भावना की अगर वही नही है तो सारा कुछ बेकार .देश को बदलने को लेकर काफी बातें होती रहती है लेकिन देश को बदलने के लिया किस चीज़ की जरुरत सबसे ज्यादा है वो किसी को नही पता .जो कभी गावं नही गया जिन्होंने कभी गावं नही देखा क्या बदलेंगे वो सूरत इनकी येः तो वही होगा बिना जाने ही किसी चीज़ के बारे में दिस्कुस्स करना .खैर अब हमारी कोशिस यही होनी चह्यिअकी हम और राज्य को झारखण्ड न होने दे .देश के विकास में एक सही योअग्दान दे .

Sep 14, 2009

आ गया मेरा गावं

दुनिया के रंगों मई रंगा था मेरा बचपन ,न कोई गिले ,न किसी से शिकवे शिकायत
बस खुस रहना ,हँसाना यही तो जिंदगी थी
देखते ही देखते यौवन ने आ घेरा मुझको
मै भी दुनिया से मुखातिब होने लगा
स्कूल पढ़ने से फुरसत ही न रहा
दोस्तों के समय भी घटने लगे
धीरे धीरे एकाकीपन सी आने लगी
फिर एक दिन छुट गया गावं ,छुट गए बचपन के दोस्त
डगर हो गई कठिन ,
दुनिया की भीड़ मे हो गया शामिल शहर महानगर जिंदगी इन्ही के बीच पिसने लगी
गावं अब पुराना सा लगने लगा ,
दोस्तों के नाम ख्यालो मे भी आने से परहेज़ करने लगे ,
फिर एक दिन हो गई शादी , रम गया अपने आप मे
भूलने लगा रिश्ते नातो को
जिंदगी के ढंग ही बदलने लगे
गावं दोस्त तो कब के छुट चुके थे अब छुटने लगे अपने भी
माँ ,पिता ,भाई ,बहन , अब लगने लगे पराये से
याद भी उनकी यदा कदा ही आती थी ,
फिर आ गए घर नए मेहमान
बस फिर भूल गया सारे रिश्ते को
ये बीते ज़माने से लगने लगे ,
अपने भी कोसो दूर हो गए
बढ़ता गया जीवन , बढ़ती गई दुरी
गावं ,समाज ,माँ ,बाप तो कब के छुट चुके थे
अब छुट गई वो भी
बड़े हो गया नन्हे मेहमान
लेकिन वो भी दिल से दूर जाने लगे
उनकी भी हो गई नई जिंदगी
अकेला हो गया मैं ,
फिर याद आया गावं ,बचपन और बचपन के अल्हड़पन भरे दिन ,
एक कसक सी उभर आई दिल मे
याद आने लगे रिश्ते ,नाते ,अपने
पास जाने को करने लगा दिल अपनों के बीच
मगर चाह कर भी नही जा सका
टूट गए सरे अरमान ,
छुट गए सरे दिल ऐ साजो सामान
फिर न रहा पास वो शाहर ,न रहे शाहर के चाहने वाले लोग
फिर चल पड़ा एक दिन मैं , एक अंजानी राह पर
मंजिल का पता नही पर बस चल पड़ा
छुट गई शाहर की जिंदगी
रास्ते मे याद आने लगे अपने
अपनों के बीच पाने को बेताब होने लगा मन
दिल चाह कर भी उनसे दूर न जा सका
फिर आ गई याद गावं की ,चल पड़ा राह वो अनजान छोड़
उस राह पर ,जहाँ था गावं मेरा
थे मेरे अपने नाते -रिश्ते ,थे मेरे अपने दोस्त यार
जम गई फिर वही महफिल ,
और फिर आ गया मेरा गावं ,आ गया मेरा गावं

Sep 13, 2009

तिरंगा हमारा शान


देश की आजादी को हम किसी भी कीमत मैं खोने नही देंगे .हम लोगो मैं येः भावना होनी चाह्यिया की हम किसी भी कीमत पर अपने तिरेंगे की शान को झुकने नही देंगे .हमें एक प्रतिज्ञा लेनी होगी की जो भी हो अगर कोई तिरेंगे के बारे मैं कोई ग़लत बात करेगा तो या तो उसका सर होगा य़ाःफिर हमारा . अगर आप एक सच्चे भारतीय है तो आज ही मेरी बात पर अपनी एक टिपण्णी जरूर दे .देश हमारा है हम किसी भी कीमत पर इसका आपमान नही सह सकते चाहए कुछ भी हो जाए .
सायद आज हम यह सोचने लगे है की दुनिया सिर्फ़ नए नए फैशन का हो गया है .हमारा सोचना भी बिल्कुल सही है लेकिन सायद हम हमे यह नही भूलना चाहिय की देश मैं अभी भी सभ्यता संस्कृति मौह्जूद है .नारी का जो शौन्द्रय साडी और गहनों मैं अच्छा लगता है सायद वो किसी और परिधान मैं अच्छा नही लगता है .आप बतायिया क्या मैं कुछ ग़लत कह रहा हु आपके अनुसार क्या होना चाहए .................................................

Sep 12, 2009

देश तो हमारा आजाद हो तो गया लेकिन हमारी मानसिकता अभी तक नही बदली है,आए दिन ऐसी घटनाये होती रहती ही की हम चाह कर भी कुछ नही कह पते है.चाहे किसी महिला के साथ बलात्कार हो जाए किसी बच्चे को जबरदस्ती तरह तरह की यातनाए दी जाए!हमारा तो बस कम ही है घटनाओ को देख कर अपना मुह मोर लेते है!आख़िर कब तक हम ऐसे ही सहते रहेंगे !आख़िर हम कब कुछ कहंगे !तब जब हमारे ऊपर ऎसी किसी तरह की घटनाये होंगी,...............................................................................आप अपने विचार जरूर दे !आपके विचारो की सख्त जरूरत है !