Jan 26, 2010

ये टिकत नहीं आसान ?

राजनीती में  बड़े - बड़े लोगो के छक्के छूट जाते हैं| और जब समय चुनाव का हो तो पता चलता है की राजनीत है क्या ? सबसे दिक्कत वाला पल होता है जब टिकट मिलने का समय होता है ,यकीन नहीं होगा आपको की कैसे भाग दौड़ कर के नेता लोग अपनी सेहत बनाते हैं | जब तक टिकट नहीं मिलता है तो खूब प्रदेश की राजधानी से लेकर देश की राजधानी की यात्रा होती है | अगर इतनी सी दौड़ धूप के बाद भी टिकट मिलना पक्का हो तो कोई बात नहीं| सही बात है टिकट के लिए नेताओ को आजकल जितनी जिल्लत झेलनी पड़ रही हैं उतने में तो कोई आम आदमी चार धाम की यात्रा कर आवे | सबसे पहले समर्थक जुटाने पड़ते है इसके लिए देश के टॉप क्लास के मैनेजमेंट वाले लोगो से संपर्क करना होता है |यहाँ जानकारी जरूरी है की ये मैनेजमेंट वाले लोग आईआईएम या अन्य किसी बिजनेस संस्थान से नहीं बल्कि आम जनता से जुड़े हुए संस्थान से होते हैं |उसके बाद भीड़  मैनैजे करनी होती है जितनी ज्यादा भीड़ उतना ज्यादा चांस टिकट मिलने की |अगर लोग नहीं आये तो यकीन कौन  करेगा की फलाने नेता की फलाने जगह कुछ पकड़ है | खैर भीड़ जुटाने में नेताजी को शारीरिक और आर्थिक दोनों रूप से तैयार भी होना होता है |जब लोग नेताजी के रैली में आ गए तो नेता लोगो को कुछ यकीन होता है की इस बार टिकट मिल सकता है पूरा यकीन तो होता ही नहीं है |फिर शुरू होता है असली दौर बड़े -बड़े पार्टी पदाधिकारियों से मिलने का ताकि किसी तरह टिकट का जुगाड़ हो जाए |सिर्फ नेताजी ही नहीं कई चमचे भी चम्मच लगा रहे होते है नेताजी के टिकट के लिए | एक तरफ नेताजी लोगो से मिल कर यह आश्वासन भी ले रहे होते हैं की अगर पार्टी टिकट नहीं देती है तो वो निर्दलीय भी चुनाव लड़ सकते है | नेताजी मुलाकातों का दौर जारी रखते है इस दौरान ताकि कोई मौका छूट न जाए |फिर जब आखिरी दौर आता है एक- दो नामों के बीच कांटे का टक्कर होता है तो नेताजी लगातार बड़े नेताओ को अपनी ताकत का उद्धारण देने में कोई कसर नहीं छोड़ते | लेकिन जब टिकट मिलता है और सिर्फ एक को ही मिलता है तो बड़ी मायूसी होती है अन्य में |और जिसको टिकट मिल जाते है वो यह प्रचार करते फिर रहा होता है की किस तरह इतने लोगो को छांट कर उसे टिकट मिला है |सही में इसी समय नेता लोगो को लगता है की कितना मुश्किल होता है टिकर पाना | भगवान से ज्यादा वे अपने पार्टी के भगवानो को शुक्रिया देते हैं |

Jan 25, 2010

विज्ञापन में भूल ?

कल यानि की 24  जनवरी ,रोज की तरह सुबह बिस्तर से चिपका हुआ था तक़रीबन सुबह के 8  बज रहे होंगे |सर्दियों के सुबह में नॉएडा आने के बाद मैं इसी समय पर अक्सर अपनी आँख खोलता हूँ |कभी -कभी पहले भी खोल देता हूँ ,अनूप बाबु जो हमें सुबह- सुबह अखबार मुहैया करते हैं उनकी कृपा से |कल सोचा की चलो आज तो सन्डे है कुछ देर तलक सोते हैं ,लेकिन अनूप जी तो समय से ही आते हैं| मैं अभी जहाँ निवास करता हूँ वहां मेरा बसेरा तीसरे मंजिल पर है |अनूप जी तो इतने उपर आते नहीं है इसलिए दूसरे फ्लोर से ही पेपर फ़ेंक देते हैं |कल भी कुछ ऐसा ही किया उनने पेपर सीधा मेरे दरवाजे पर एक बम की आकर लगा मैं उठा और पेपर समेत कर रूम में वापस आ गया |अख़बार पढने की आदत तो आप सभी जानते ही होंगे कितनी बुरी होती है ,अगर अख़बार आ जाए तो मैं तो उसे बिना पढ़े रह ही नहीं पाता हूँ |मैंने शुरू कर दिया ,मैं फिलहाल तीन अख़बार लेता हूँ एक है अंग्रेजी का भारत का सबसे अधिक बिकने वाला the times of  india   तो और दो हैं नई दुनिया और दैनिक भास्कर |नई दुनिया को मैं पोलिटिकल न्यूज़ के लिए लेता हूँ |खैर अब आते है कुछ मुद्दे पर ,मैंने पेपर पढना शुरू किया ही था की तब तक मेरे मित्र और कमरे के सहयोगी वेद्पाणी जी की भी निद्रा भंग हो गयी |वेद्पाणी जी भी अखबार में रम  गए |मैं सबसे पहले अंग्रेजी वाला अखबार ही देखता हूँ मैं पढना इसलिए नहीं कहूँगा की मैं अखबार को पूरी तरह तो पढ़ ही नहीं सकता |खैर अखबार उलटते -उलटते हुए मेरी नजर एक विज्ञापन पर गयी जो भारत सरकार के महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा बालिका दिवस के उपलक्ष्य पर जारी की गयी थी |मुझे उसमे बहुत सा फोटो दिखा लेकिन एक ने मुझे गौर करने पर मजबूर कर दिया |मैंने गौर कर के देखा तो मुझे उसमे किसी दूसरे देश के सेना अधिकारी का फोटो लगा |मैंने उसे वहीं पर त्याग दिया और आगे दृष्टि दी |कुछ देर बाद एक प्रक्रिया के बाद वह अखबार वेद्पनी जी के पास गया |उनकी दृष्टि किसी भी चीज़ पर अगर टिक गयी तो उसका पूरा पड़ताल करके ही छोड़ते हैं |उन्होंने मुझे बुलाया और कहा की कश्यप जी देखिये यहाँ क्या है पाकिस्तान के अधिकारी का भारतीय विज्ञापन पर फोटो लगा है |मैंने कहा हाँ मुझे भी लगा कोई अलग देश का ही है फिर हम दोनों गौर कर के देखने लगे तो उन्होंने कहा की इसकी टोपी में चिन्ह देखिये पाकिस्तान का चाँद तारा निशान है |मैंने कहा हाँ इसका बैच भी अलग है |फिर हम दोनों में विमर्श होने लगा मैंने कहा लगता है इस विभाग को जानकारी का अभाव है |तरह तरह के बात निकले ,फिर समाप्त हो गयी |एक बात जो मैं सोच रहा था वह यह क्या की कैसे इतने बड़े जगह पर ऐसा मिस्टेक हो गया |आज मेरे पास वही दो हिंदी के और एक अंग्रेजी  के अखबार आये| हिंदी में तो मुख्य पृष्ठ की खबर थी कल वाले विज्ञापन की गलती ,पर जो अंग्रेजी  अखबार था उसमे अन्दर एक छोटी से खबर दी गयी थी |मुझे लगा इस अंग्रेजी के अखबार को क्या सिर्फ पैसो से मतलब है क्या वह कुछ देखता है भी की नहीं |मेरा विश्वास अब और तगड़ा हो गया था की इस अंग्रेजी के अखबार में कुछ भी दो अगर उससे पैसे आता है तो वह चाप जायेगा |किसी को भी इस घटना के लिए कम नहीं माना जाना चाहिए ,जो विज्ञापन दे रहा है और जहाँ छप रहा है दोनों जिम्मेदार हैं |इस अंग्रेजी अखबार में जो जो विज्ञापन थी उसमे जो पूर्व पाकिस्तानी वायुसेना प्रमुख तनवीर अहमद की तस्वीर छपी थी वह यह जाहिर करती है की हमारे देश की स्थिति क्या है ?इस जगह पर अगर कोई छोटा आदमी या छोटा संगठन ऐसी गलती करता तो हर कोई उसमे मीन मेख निकलता लेकिन यहाँ तो दोनो मे से एक भी नहीं है |ज्यादा कुछ होगा भी नहीं लेकिन मैं एक सलाह देन चाहूँगा अखबार वाले को की वो कम से कम एक बार विज्ञापन को जांच कर ले छापने से पहले ,अपने आप को आप देश के प्रहरी कहते हैं और ऐसी गलती करते हैं |अगर देश का प्रहरी ही सोते इन्सान की तरह काम करेगा तो देश के आम लोगो के विषय मे ऐसा सोच्न बेकार है की वो सही करेंगे |वैसे इस अंग्रेजी अखबार ने यह दिखा दिया है की उनके लिए पैसा ही सब कुछ है |और मैं मन्त्रालय मैं बैठे लोगो से भी एक बात कहना चाहूँगा की आप तो देश को चलने वाले लोग हो आप अगर ऐसी गलती करेंगे तो कैसे चलेगा देश ?काँग्रेस नीत इस सरकार के इस एक और गलती ने दिखा दिया है की सिर्फ सत्ता पाने से ही सारा काम नहीं होता है, उसको सही से चलाना भी जरूरी होता है |इस सरकार ने लगता है अभी तक सबक नहीं लिया है और करीब -करीब हर मन्त्रालय से लगातार इस प्रकार की गल्तियाँ हो रहिन है |कभी विदेश ,कभी शिक्षा ,कभी कृषि तो अब महिला और बाल विकास मन्त्रालय हर कोई लगातार गलती करता जा रहा हैं ,और देश इस हालात मे आ गया है |अब इनको कुछ ध्यान सही तरह से काम करने पर भी देना चाहिए |

Jan 22, 2010

किसी ने नहीं खरीदा पकिस्तानियो को ?

जैसा होना था वही हुआ पाकिस्तानी खिलाडियों को आइपीअल -3  में किसी भी टीम के प्रायोजकों ने नहीं ख़रीदा |खरीदने की बात तो तब न होती जब कोई इसके लिए बोली भी लगता ,यहाँ तो बोली भी नहीं लगी |काफी झमेले के बाद तो पाकिस्तानी खिलाडियों को बीड में शामिल किया गया लेकिन वो भी सिर्फ दिखावे के लिए |पाकिस्तानी खिलाडियों को थोड़ी बहुत आशा तो थी की उनको इस बार खेलने का मौका मिल सकता है ,लेकिन कहाँ बंधू ऐसा तो तब होता न जब उनको लेकर कोई गंभीर रहता |यहाँ तो सिर्फ दिकह्वे के लिए उनको निमंत्रण तो दे दिया गया पर भोज में शामिल होने का मौका ही नहीं दिया |पाकिस्तानी के बहुत से खिलाड़ी 20 -20  फॉर्मेट के बेहतरीन खिलाड़ी मने जाते हैं एक बार उनको इस आयोजन में भाग लेने का मौका मिला लेकिन फिर दरवाजे बंद हो गए |पाकिस्तान के द्वारा जो आतंकवादियो को लगातार प्रोत्साहन दिया जाता रहा है उसका असर पहले भी पाकिस्तान पर पड़ चूका है |लेकिन 26 /11  के बाद भारत में उनके देश के खिलाफ एक जो ज्वाला भड़की है उसने दोनों देशों के बीच संबंधो को और भी ख़राब कर दिया है |भारत पहली बार इतना खुल कर पकिस्तान का विरोध कर रहा है ,बात भी सही है एक तरफ आप हमें परेशान करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हो और दूसरी तरफ हमसे फायदे की उम्मीद भी रखते हो |भारत ने अब तक  कभी भी गलत का साथ नहीं दिया  है लेकिन पाकिस्तान इसको समझ ही नहीं सका है |अब जब भारत ने एक और कठोर कदम उठाया तो अब उनको समझ में आ रहा है |मेरे अनुसार देश सबसे पहले है और देश को अगर कोई अनदेखा करता है तो वह देश में रहने का हक़दार नहीं है |सब कुछ पैसा ही नहीं है इसका परिचय इस बार इस नीलामी में दिया गया |अब पाकिस्तान को लग रहा है की भारत ने यह कदम मुंबई हमलो के कारण उठाया है ,पाकिस्तान अगर भारत को इस मामले पर कुछ सहयोग देता तो सब कुछ ठीक हो सकता था लेकिन पाक तो आखिर पाकिस्तान है ,पीठ पैर छुरा घोपने वाला |मुझे लगता है अब भी शायद  पाकिस्तान को कुछ समझ आ जाए और वो भारत में होने वाली आतंकवादी गतिविधि का प्रायोजक न बने |अगर वो फिर से इस गतिविधि का प्रायोजक बनता है तो कहीं ऐसा न हो की उनके देश के खिलाडियों को भविष्य में कोई प्रायोजक ही न मिल सके |

राहुल की राजनीति

राहुल गाँधी आजकल लगातार यूनिवर्सिटी और कालेजो के दौरे पे हैं और विपक्षी पार्टियों खासकर बीजेपी के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है |बीजेपी को लग रहा है की राहुल के प्रति जो युवाओं  का आकर्षण है वो कहीं पार्टी के वोट बैंक में सेंध न लगा दे |आज राहुल गाँधी हर जगह के दौरे पर है और युवाओं को राजनीती से जुड़ने की बात कर रहे है, उन्हें सलाह दे रहे हैं |यूथ भी राहुल के साथ चलना चाह रहें है ऐसा राहुल के कार्यक्रम के दौरान उनके प्रति युवाओं के नजरिये से पता चलता है |बात भी सही है देश के युवाओं को सही मायनों में राजनीती से जुड़ने और एक अलग मुकाम बनाने को लेकर आजतक ज्यादा बात नहीं होती थी और राहुल ने आज इसकी शुरुआत कर दी है | राहुल युवाओं को एक तरह से प्रेरित और अपील भी कर रहे है |आज देश में कई पार्टियाँ है पर इस तरह की शुरुआत किसी ने नहीं की थी |राहुल की तरह आज कोई भी युवा नेता युवाओं में यह भरोसा नहीं दिला पा रहा है की राजनीती में उनका कुछ भविष्य है |राहुल युवाओं को देश की राजनीती का हिस्सा बनाने के लिए जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं |राहुल के इस कदम की तारीफ सिर्फ उनकी पार्टी के नेता ही नहीं बल्कि विपक्षी भी कर रहें हैं |अभी हाल में ही नितिन गडकरी ने भी राहुल के इस फ़ॉर्मूले को सही बताया और राहुल को इस कदम के लिए धन्यवाद भी एक तरह से दे गए |वास्तविकता में राहुल की कोशिश अगर रंग लाती है तो देश को कुछ काम करने वाले लोग राजनीती में भी मिल सकते हैं |राहुल ने यूथ कांग्रेस के लिए जिन लोगो को लेने की बात की उनमे से आपराधिक प्रकार के लोगो के लिए कोई जगह नहीं है ,राहुल के इस कदम को हर पार्टियों को नज़र में रखना चाहए इससे देश की राजनीती में कुछ सुधार आ सकता है |राहुल फिलहाल जो काम कर रहे है मेरी नज़र में वह प्रशंसा योग्य है |

चौहान उवाच ,मतलब क्या?

मैं एक बात सुबह से ही सोच रहा हूँ और अब जाकर आखिर में कुछ लिख देने को मजबूर हो गया हूँ |मैंने बचपन  में मछली पकड़ते लोगो को बहुत देखा और बात करते सुना है और मुझे अब लगता है वो कुछ बात बहुत सही करते थे |एक बात वो करते थे की "गंदे पानी में रहने वाली  बड़ी मछलियाँ पहले इसी पानी  में रहने वाली  छोटी मछलियों को शह देती है| और वही मछलियाँ जब बड़ी मछलियों के बताये तौर तरीको को जानकार उनको ही बताने लगते हैं तब बड़ी मछलियों को उनको बताना पड़ता है की वो उनसे बड़ी है |" ऐसा ही कुछ आजकल महाराष्ट्र में हो रहा है |पहले तो शिवसैनिक बाल ठाकरे  दक्षिण भारतीयों को निशाना बनाते थे ,फिर बारी आई शिवसेना के दुलारे और एक मनमुटाव के कारण पार्टी से अलग होकर महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बनाने वाले राज ठाकरे की |राज ने भी अपने को  मराठी मानुस का असली हिमायती बताते हुए उत्तर भारतीयों के खिलाफ जहर उगलना शुरू किया, इसका फायदा राज को चुनाव में भी मिला और उनकी पार्टी को विधानसभा में 13  सीट प्राप्त हो गयी |अब जब वही बच्चा बड़े को ही चुनौती देने लगा तो बड़े को कुछ तो कदम उठाना पड़ेगा ,और इसको ध्यान में रख कर अब महाराष्ट्र के निवर्तमान  मुख्मंत्री अशोक चौहान ने भी मराठियो के प्रति अपने प्रेम को जाहिर कर दिया है |चौहान ने अब यह कह कर अपनी मनसा जाहिर कर दी है की "महाराष्ट्र में सिर्फ लोकल लोगो को ही टैक्सी का परमिट मिलेगा ,बाद में अशोक ने इसकेलिए अपने को बचाने का प्रयास किया |सब कुछ ठीक है ऐसा अशोक को इस बार सरकार बनाने के बाद लग गया और उनको लगा की अब उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है |लेकिन कांग्रेस पार्टी आज उत्तर भारत में बेहद कमजोर है और कांग्रेस के गाँधी राहुल पार्टी की स्थिति को ठीक करने में लगे है |ऐसे में अशोक ने यह बयान देकर उनकी स्थिति को ख़राब कर दिया है अब चाहे राहुल कितना भी समझाने का प्रयास करें लेकिन एक बार जो सब्द निकल आता है उसका परिणाम तो कुछ पड़ता ही है |कांग्रेस का कोई अदना सा कार्यकर्त्ता  वहां ऐसी बात तो उसे एक नासमझी या फिर अपनी स्थिति सुधारने की बात मानी जा सकती थी |लेकिन मुख्यमंत्री तो किसी भी पार्टी का प्रदेश में प्रमुख होता है और ऐसी बात अगर वो करे तो ऐसा जरूर है की इसपर पार्टी में कुछ न कुछ पाक रहा है |बाल ठाकरे के आँखों के सामने आज पार्टी की दुर्दशा हो रही है और वैसे भी राज और शिवसेना का मुख्य जनाधार जो भी है वह महाराष्ट्र तक ही है |वहीं कांग्रेस का जनाधार देश भर में है ,आज पार्टी बिना उत्तर भारत में जनाधार बनाये बहुमत नहीं पा सकती है और इसका अंदाज़ा अशोक चौहान को भी है |अब चौहान ने यह बयान देकर स्पष्ट कर दिया है की उनकी भी नीति किसी तरह सत्ता पाने की ही है और कुछ नहीं |कांग्रेस अपने को देश जोड़ने वाली पार्टी कहती है लेकिन उसके बड़े नेता अगर देश तोड़ने वाली बात कहे तो उसकी नीति का दोहरा सच नजर आता है |खैर जो भी हो लेकिन इतना तय हो गया की कांग्रेस जितना भी अपने आप को देश की हिमायती पार्टी कह ले वो है नहीं यह तो स्पष्ट हो गया |

Jan 21, 2010

ममता की ध्रुव प्रतिज्ञा |

राजनीती में अगर कोई अपनी बात पर आज भी कायम रहने की हिम्मत दिखा रहा है तो वो ममता बनर्जी ही हैं |ममता सही में दीदी बनने लायक वाली बात पर कायम है |अभी ज्योति बसु के निधन के बाद उनकी आखिरी यात्रा में शामिल न होकर दीदी ने एक अलग ही बात बतलानी चाही है |तृणमूल कांग्रेस ने जो फैसला लिया था वाम दल के किसी भी कार्यक्रम में शामिल न होने की वह ममता ने बसु के लास्ट यात्रा में शामिल न होकर उसको साबित  कर दिया |वैसे भी ममता की नजर 2012  के बंगाल चुनाव पर ही केन्द्रित है और ममता उसके लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहीं हैं |ममता  ने तो प्रधानमंत्री से बंगाल में मुलाकात करना भी मुनासिब नहीं समझा ,कारण अगर देखा जाए तो प्रधानमंत्री जी के साथ वाम नेताओ की उपस्थिति ही रही है |ममता एक और बात पर कायम है की चाहे जो भी हो जाए ,चाहे किसी भी मंत्रालय में रहें लेकिन उसका काम बंगाल से ही होना चाहए |देश को सही मायनो में आज ऐसे लोगो की कमी हो गयी है जो ममता दीदी की तरह बातो पर कायम हो कर दिखाए |देश के ज्यादातर लोग तो काम देख कर बात करतें है ,उसके हर पहलुओ की ओर ध्यान  देते हैं| लेकिन दीदी ने एक सन्देश देना चाहा है उन सभी लोगो को चाहे देश में कुछ भी हो जाए ,आपके फैसले देश को गर्त में ले जाए ,आपके आसपास के लोगो को पीछे कर दे लेकिन आप अपनी बात पर अटल रहो |ममता जी तो एक और बात पर उसी समय से   अटल रहीं हैं जब वो अटल बिहारी जी के सरकार में रेलवे मिनिस्टर बनी थी|तब भी उनका मुख्य लक्ष्य रेलवे की दुर्गति करना ही था ओर आज भी है |बंगाल के बाहर कोई भी रेल हादसा हो जाए लेकिन ममता जी जाने का कष्ट नहीं कर सकती हैं |उनके अनुसार तो यही सही लगता है की अरे मेरा तो मुख्य काम बंगाल का वोट लेना है देश जाए भांड में |ममता के जूनियर मंत्री भी लगातार कह रहे है की ममता तो उनको कुछ समझती ही नहीं है ,तो मुझे लगता है की उनको अभी भी पता नहीं चल सका है की आखिर ममता हैं क्या ?अरे बंधू लोग जब वो प्रधानमंत्री को समय नहीं दे पाती हैं तो आप किस खेत के मूली है भाई |ममता की एक ओर बात काबिले तारीफ है की एक तरफ तो  वो अपने आप को गरीबो का पूरा ख्याल रखने वाली बताती हैं लेकिन यह मोह भी सिर्फ बंगाल तक ही सीमित है |आखिर बात क्या है यह समझ से परे हैं |मुझे एक बात और लगता है की अगर ममता इस जन्म में प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनी तो कहीं यह न हो जाए की 7 रेसकोर्स रोड और रायसीना हिल वाली बिल्डिंग भी कोलकाता शिफ्ट हो जाए |मैं एक बात और भी कहना चाहता हूँ क्या ममता जी को यह नहीं पता चलता की किस राज्य के सबसे ज्यादा लोग रेलवे में सफ़र कर रहें है ?रेलगाड़ी की संख्या  उनके लिए कम पड़ रही है तो बढाया जाए |एक बात तो सरकार में बैठे लोगो को भी सोचना चाहए की ऐसे लोगो को उस जगह पर नहीं बैठना चाहए जहाँ सारे देश का मामला हो ,अगर ऐसे ही लोगो को इनसब जगहों पर बार -बार जगह दी गयी तो देश का कायाकल्प नहीं हो सकेगा ,प्रगति नहीं हो सकेगा |राज ठाकरे तो बयान दे कर प्रांतीयता को फैला रहें है और देश को विभाजित करने की कोशिश कर रहें है ,लेकिन ममता जैसे लोग जो काम कर रहें है वो और भी खतरनाक है |सरकार को इसपर धयान देना ही होगा | 

Jan 20, 2010

आज की सोच ?

मैंने आज सोचा चलो आज कुछ सोचते है |एक मूड बनाया और सोचने बैठ गया ,लेकिन जब बैठा तो लगने लगा क्या सोचूं ?किसके बारे में सोचूं ?फिर सोचने लगा आज तो वसंत पंचमी है माँ सरस्वती के पूजा का दिन |जब घर में रहता था तो पूरे लगन और मेहनत के साथ इसकी तैयारी में लगा रहता था |कोई इस दौरान कोई काम कह दे तो दो मिनट भी नहीं लगते थे ,किसी काम में न तो होती ही नहीं थी|क्या दिन थे जबरदस्त ,मजेदार किसी चीज़ की फ़िक्र नहीं ?लेकिन आज इस भागती दुनिया में अब मुझे थोड़ी थोड़ी फ़िक्र कभी -कभी होने लगती है जब मेरे कुछ अजीज मित्र नौकरी के बारे में बात करने लगते है |कॉलेज जाने से लेकर सोने तक उनके मुख पर सिर्फ एक ही बात होती है ,आज फलाने से बात करनी है ,यहाँ रिज्यूमे देना है ,इस जगह तो इस आदमी से काम निकल सकता है |फिर मन में बात आती है की आखिर इतनी जो महंगाई बढ़ रही है कैसे गुजारा होगा ,अभी तो बाप के पैसे पर बड़े शान से रहते है |कल कैसे होगा आखिर अब तो 5  महीने बाद लोग भी पूछेंगे क्या हो रहा है ,मुझे तो जबाब भी सोचना पड़ेगा कारण सिर्फ इसलिए की तब तक तो पढाई भी ख़त्म हो जाएगी बॉस |और अगर नौकरी नहीं मिली तो कुछ तो करना होगा ही ,वैसे मेरे एक दोस्त का कहना है एक मस्त ढाबा खोलेंगे और दोनों उसी में अपना समय देंगे |हुक्का पानी का इंतजाम तो इससे हो ही जायेगा |वैसे एक दोस्त का कहना है अगर कुछ नहीं मिलेगा तो राजनीती में घूसा जायेगा ,दिन तो कट ही जायेंगे |अगर इलेक्शन का टाइम रहा तो जुगाड़ अच्छा रहेगा |फिर सोचता हूँ देश में वैसे ही कई बंधू बेरोजगार है सरकार तो कुछ कर नहीं सकी चलो हमारा नाम भी इसमें शामिल हो जायेगा ये भी तो एक गर्व की ही बात है |तब तक नींद टूट गयी और फिर सोचना बंद एक्टिविटी चालू |

Jan 17, 2010

अब तू वापस नहीं आएगा ?

तू चला गया ,अब वापस नहीं आएगा
हमें याद तेरी आएगी ,
पर अब शायद तू नहीं आएगा ,
तूने हमें सिखाया ,
कैसे जीते है
कैसे गमों में भी मुस्कुराते है ,
कैसे हर मुसीबत को हँस कर टाल देते हैं ,
दुश्मनो को भी कैसे
दोस्त बनाते हैं ,
हर मोड़ पर कैसे अपनों का साथ निभाते है ,
पर अब तो तू ही छोड़ गया
हमें इस मझधार में
अब कैसे पार होगी हमारी
नैया इस भंवर से ,
कौन दिखाएगा हमें रास्ता
कैसे जायेंगे हम सही राह पर
कौन बताएगा हमें इस
दुनिया की रीति ,
कैसे समझ पाएंगे हम
कठिन से कठिन नीति .
तुम थे तो सब आसान लगता था ,
अब तो तुम ही नहीं हो ,
अब हर कुछ एक बोझ सा लगने लगा है ,
पर अब इनसब बातो का मतलब ही क्या ?
अब तो तू ही  चला गया ,हमें छोड़ के
अब तू वापस नहीं आएगा
वापस नहीं आएगा |

Jan 16, 2010

गोविंदाचार्य का नया बयान और वास्तविकता ?

कभी बीजेपी के थिंक टैंक रहे और अब राष्ट्रीय स्वाभिमान आन्दोलन के संयोजक  के.एन.गोविन्दाचार्य ने फिर से एक बार राष्ट्रीयता का मुद्दा उठाया है |इस बार गोविन्दाचार्य ने यह कहते हुए संविधान में संशोधन की बात की है की ,देश के प्रमुख संवैधानिक पदों(जैसे राष्ट्रपति ,प्रधानमंत्री ,सेना के जनरल ) पर केवल भारतीय मूल के लोगो को ही नियुक्त करना चाहिए |गोविन्दाचार्य ने इसके लिए आवश्यक  संविधान संशोधन करने की भी बात उठाई है साथ ही इस पर भी जोर दिया है की संविधान में आमूल -चूल परिवर्तन के लिए एक नई संविधान सभा गठित की जाए| गोविन्दाचार्य के इस बयान को एक बार फिर से सोनिया गाँधी से जोड़ कर देखा जा रहा है |लेकिन मैं इस बात पर गोविन्दाचार्य जी के बयान की सराहना करता हूँ ,इन्होने सही बात कही है |आखिर में जो देश का ही नहीं है वो देश को सही से चला कैसे सकता है ,वो देश को अच्छे से समझ ही नहीं सकता है |जहाँ तक मेरी सोच है तो मैं कहना चाह रहा हूँ की देश के संवैधानिक पदों पर सही में देश के ही किसी व्यक्ति को आसीन होना चाहए |क्या हमारे इतने बड़े विशाल देश में अच्छे और योग्य लोगो की कमी हो गयी है जो की हम दूसरी तरफ देखें |आज अमेरिका के सिलिकॉन वैली को भी भारतीय दिमाग ही चला रहे है तो फिर हम दूसरे की तरफ किस कारण से देखें |एक तरफ तो हम अपने संस्कृति और धरती माँ को महान बताते थकते नहीं है तो दूसरी तरफ हम क्या अपनी इस धरती के लालो को ही सही सम्मान दे पा रहे हैं ?यह प्रश्न कुछ लोगो को ख़राब और बिल्कुल गलत लग सकता है ,कुछ को लग सकता हैं की यह तो सिर्फ राजनीती का एक हिस्सा है पर मैं इससे राजनीती से नहीं अपने आप को एक आम देशवासी होने से जोड़ कर देख रहा हूँ |हम अपनी देश की पूजा करते हुए बड़े हुए ,एक सपना लेकर बड़े हुए लेकिन जब सपना पूरा होने का समय आया तो कोई बाहरी आकर उसपर आसीन हो जाए तो मैं सही में पूछता हूँ कैसा लगेगा? मुझे तो बड़ा ही ख़राब लगेगा ,मैं सोचूंगा की आज मुझे अपनों ने ही धोखा  दिया |अपने देश में इतनी प्रतिभा है और हम दूसरे की तरफ देखे तो एक अजीब सी बात नहीं लगती |मैं अंत में ज्यादा तो नहीं बस यही कहना चाहूँगा की अगर इस चीज़ के लिए संविधान में कुछ संशोधन की जरूरत है तो अवश्य  किया जाए |भारत को  जो समझ ही नहीं सकता वो देश को सही से चलाएगा कैसे ,शशि थरूर इसके सबसे बड़े उद्धरण है |अमेरिका में रह कर न उन्होंने कभी देश के गांवो को जाना न कभी जानने की कोशिश की| मुझे तो एक ताज्जुब भी लगता है की किस कारण से यूपीए सरकार ने उन्हें मंत्री बनाकर रखा है |जिसको देश के आम नागरिक का सम्मान नहीं आता उसे किसी भी पद पर देना खुद अपनी दुर्दशा करने जैसी है |बात सही है जिस देश ने दुनिया को सिखाया वहां आकर कोई दूसरा राज करे समझ से परे है |अंग्रेजो के समय वाली स्थिति फिर आ जाएगी अगर कोई दूसरा आ कर यहाँ शासन करेगा |

Jan 15, 2010

किस कारण से हैं शिक्षा का यह हाल ?

भारत में जितने भी सर्वे होते हैं उनके रिजल्ट बड़े ही चौकाने वाले ही होते हैं |गैर सरकारी संगठन प्रथम का गांवो के स्कूलों पर आधारित स्कूली शिक्षा की रिपोर्ट भी कुछ चौकाने वाली ही आई है |प्रथम ने 575  जिलो  के 16  हज़ार गांवो में तीन लाख परिवारों के बीच इस रिपोर्ट को तैयार करने के लिए सर्वेक्षण किया |इस सर्वेक्षण के अनुसार अभी भी देश के ग्रामीण इलाके के स्कूलों में 50 प्रतिशत बच्चे ऐसे है जो अपेक्षित स्तर से तीन कक्षा निचे के स्तर पर है ,मतलब यदि कोई बच्चा 6ठी क्लास में पढ़ रहा है तो उसका स्तर अभी कक्षा तीन के लायक है |एक बात अगर कहें तो यह बड़ा ही चौकाने वाला है जहाँ इतनी बड़ी- बड़ी बात कही जा रही है शिक्षा को सुधरने के लिए वहां शुरूआती स्तर पर यह हाल है |देश के शिक्षा मंत्री को शायद अभी भी गांवो के बारे में पता नहीं है इसका प्रमाण तो इस को देखने के बाद स्पष्ट है |सिर्फ उच्च स्तर पर शिक्षा को सुधारने से ही काम नहीं चलेगा सबसे पहले तो निचले  स्तर पर ध्यान  देना होगा|अगर शुरुआत में ही बच्चे कमजोर होंगे तो फिर आगे जा कर वो कैसे अपने आप को दुरुस्त करेंगे |अभी भी हमारे देश में सरकारी स्कूलों  में बहुत ऐसे शिक्षक मिल जायेंगे जिनको कुछ नहीं आता है ,लेकिन वे अपने पद पर बने हुए है |एक बात और आई है की गणित में 36  प्रतिशत बच्चे ही गुना भाग हल कर पाते है ,इसका सीधा मतलब है गणित में अच्छे शिक्षक नहीं मिल पा रहे हैं |वैसे भी शिक्षको को करना क्या है स्कूल में जा कर हाजरी बना देनी है काम ख़त्म |आज बहुत ही कम ऐसे शिक्षक रह गए है जो की सरकारी विद्यालयों में सही से पढ़ाते हैं |शिक्षक तो अपने बच्चे को किसी प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते  हैं और ज्यादातर का सोचना है की सरकारी स्कूलों में तो निचले  तबके के लोगो के बच्चे ही पढने  आते है |शिक्षक को कभी भगवान् माना जाता था लेकिन आज यही लोग बच्चो के भविष्य के साथ खेल रहे हैं |आज बच्चे सरकारी स्कूलों में सिर्फ मध्यान भोजन और अन्य कुछ जो चीज़े मिल रही है उसी के वास्ते जाते है | आखिर ऐसा  किस कारण से हो  रहा हैं कभी ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों में ही पढ़ते थे |सरकार को इसकेलिए एक ठोस कदम उठाने की जरूरत है |अगर मेरी एक सलाह की बात करें तो मेरा मानना  है की सरकार को यह लागू करनी चाहिए  की " सभी बच्चे प्राथमिक शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल को ही जाएँ "|इसका सबसे बड़ा फायदा होगा की शिक्षको को भी लगेगा की उनको अब हर तरह के बच्चो को पढ़ाना है जिसमे उनके बच्चे भी शामिल है |समाज में ज्यादा लोगो की भागीदारी सरकारी स्कूलों की तरफ होगी |सरकारी स्कूलों की सिर्फ गांवो में ही नहीं शहरों में भी हालत खस्त्हाल है |ध्यान दोनों तरफ देना होगा ताकि शिक्षा की स्थिति सुधर सके |समाज में अगर शिक्षा के मामले में भी  दो तरह की स्थिति   हो तो यह एक बड़ी ही दुखद  बात है |कहीं ऐसा न हो की आने वाले दिनों में शिक्षा को लेकर एक तरह से समाज दो फांक हो जाये इसके लिए अभी से कुछ ठोस कदम उठाने की सख्त जरूरत है | शिक्षा को सिर्फ बड़े स्तर पर ही नहीं बल्कि छोटे स्तर पर ही सुधारना होगा |देश को अगर आगे ले जाना  है तो इस असमानता को  हम सभी को मिल कर हल करना होगा |जब तक हम कुछ ठोस कदम नहीं उठाएंगे कुछ भी सही नहीं हो सकता है |मेरी एक बात और है की हमारे शिक्षा मंत्री साहेब कभी किसी गांवो के स्कूलों में जाकर स्थिति को जरूर देखें ,अगर वो ऐसा करते है तो सुधर अवश्य ही होगा |

Jan 14, 2010

कुंभ में ही होगा नेताओ का उद्धार?

कुंभ का मेला लग गया है ,लगभग तीन महीनो तक चलेगा |हर कोई सोच रहा है की इस बार हरिद्वार जाकर पवित्र गंगा नदी में डूबकी लगा ही आये |बात भी सही है बहुत दिनों बाद ऐसे मौका मिला है और हरिद्वार तो हरि का द्वार है ,मनोकामना पूर्ण हो सकती है |बात अगर कुंभ की हो और राजनेता लोगो को खबर न हो तो एक अटपटा सा लगता है|लेकिन इस बार तो हर कोई हरिद्वार जाने की बात कर रहे हैं |हमारे दो प्रसिद्द नेता जिनकी 2009  चुनाव में कुछ स्थिति ठीक नहीं रही कुंभ में डूबकी लगाने की बात कुछ इस तरह कर रहे है आजकल |पहले बड़े नेता जी कहते है की ससुरा अब तो जनता समझ चूकी है वोट ही नहीं करती हैं ,तो दूसरा फटाक से जबाब देता है हाँ नेताजी पिछले लोकसभा चुनाव में सारा प्रयास ही बेकार हो गया |पहले ने कहा सिर्फ माल कमाने में रहोगे ,जनता के उपर कुछ ध्यान ही नहीं दोगे तो होगा क्या ?दूसरे नेता महोदय कहते है हाँ मुझे भी लगता है की जनता तो नाखुश है ही लगता है भगवान भी मुझसे नाराज़ चल रहे है |देखिये न इस बार तो हम सांसद भी नहीं बन पाए ,पार्टी भी शून्य पर बोल्ड हो गयी |पहले जब मंत्रालय था तो बहुत बड़ा बंगलो मिला था अब तो पहले उसमे आग लगी और अब उससे हाथ धोना पड़ा |लगता है मुझे कुछ करना ही होगा ,पहले नेताजी अब अपना राग अलापना शुरू करते है |कहते है की मेरा भी कुछ इसी तरह का समाचार है पहले जनता ने साथ छोड़ा अब लगता है ऊपर वाला भी छोड़ रहा हैं |देखिये न इस बार पार्टी आसमान से जमीन पर आ गयी ,पिछले बार मंत्री पद मिला था तो देश- विदेश में कुछ नाम भी कमा लिए थे अब तो कुछ भी नहीं हो पा रहा है |अब तो नयी मंत्री साहिबा कौन - कौन  काला उजला पत्र लाने की बात कर रहीं हैं |दोनों अपनी अपनी चिंता व्यक्त कर रहे थे ,तभी एक तीसरा भी आ गया उन्होंने कहा की देखिये पहले तो हमलोगों की नयी रणनीति का मिटटी पलीत हो गया अब अपना पुराना यार भी मुझे छोड़ कर नया सुर अलाप रहा है |तीनो महोदय अपनी -अपनी चिंता कर रहे थे तभी अचानक एक साधू महाराज वहां से गुजर रहे थे तीनो को देख कर कहा वत्स क्या बात है |तीनो ने साथ में कहा लगता है महाराज हमारी राजनीती का ढलान आ गया है ,सब कुछ उल्टा हो रहा है ,कहीं भी सफलता हाथ नहीं लग रही है |कभी जो सीट अपनी पुस्तैनी  हुआ करती थी वो भी इस बार निकल गयी |पहले वाले दोनों नेताओ न भी कुछ इसी तरह की मुसीबतों के बारे में महाराज को बताया |महाराज ने कुछ सोचा फिर कहा की ऐसे करो तुम्हारे भाग्य फल के अनुसार तुमलोगों का समय कुछ ठीक नहीं चल रहा है |तीनो ने टपक से कहा की महाराज हमारे राज्य में कुछ दिनों में चुनाव होने वाले है हमलोगों का क्या होगा ,कुछ उपाय कीजिये |महाराज ने कहा अब तो एक ही उपाय है की जाओ और अपने पुराने पापो का प्राश्चित करो |तीनो ने पूछा वो कैसे होगा महाराज ,महाराज ने कहा जाओ और हरिद्वार के कुंभ में डूबकी लगाओ और प्राण करो की सब कुछ नहीं लूटेंगे बस थोडा थोडा ही |तीनो को यह उचित लगा और तीनो चल पड़े हरिद्वार के द्वार | 

माया का चमत्कार ?

मायावती को शायद अपने जन्मदिन का तोहफा इससे अच्छा नहीं मिल सकता है |विधानपरिषद के 36  सीटो के नतीजों ने माया को एक नए उत्साह से भर दिया है |15  जनवरी को मायावती का जन्मदिन पड़ता है और कुल 33  सीटो के नतीजों ने माया के जन्मदिन को एक खास बना दिया है |इस बार के परिणामो पे अगर गौर करे तो इनमें  से बसपा को 31 ,कांग्रेस को 1  और सपा को 1  सीट मिला है|अगर हम एक और बात गौर करे तो बीजेपी के लिए यह चुनाव फिर से निराशाजनक साबित हुआ है |बीजेपी और रालोद को एक भी सीट इस बार अब तक नहीं मिली है |कांग्रेस ने भी सिर्फ रायबरेली की सीट काफी मुश्किल से जीती है जबकि सपा सिर्फ प्रतापगढ़ की सीट ही जीत पाई है |अगर पिछले बार के चुनाव परिणामो की बार करे तो बसपा ने चुनाव ही नहीं लड़ा था और सपा को कुल 22  सीटो पर जीत हाशिल हुई थी ,बीजेपी ने भी 6  सीटो पर जीत का स्वाद चखा था तो रालोद ने भी  3  सीट जीती थी |बसपा और मायावती के लिए यह एक बड़ी बात रही ,राहुल गाँधी के लगातार  दौरों ने मायावती को एक चिंता में डाल  दिया था |मायावती को एक समय तो लगा था की राहुल कहीं उनके वोटबैंक पर सेंध लगा रहे है ,लेकिन इस परिणाम से माया ने सारे लोगो को करार जबाब दिया है |प्रदेश की सरकार पर लगातार बीजेपी .रालोद .सपा और कांग्रेस के चौतरफा हमला हो रहा था ,हर दल माया को कमजोर करने की  कोशिश कर रहे थे ,लेकिन उपचुनाव ने दिखा दिया की माया को कमजोर करने की जितनी कोशिश होगी माया उतनी ही मजबूत हो कर उभरेंगी |2012  में होने वाले चुनाव के पहले इस चुनाव को एक बड़ी बात माना जा रहा है ,और राहुल को माया ने दिखा दिया है की उनको कमजोर करने की कोशिश बेकार है |माया ने फिर से एक मैजिक चला दिया है ,और फिर के अपना लोहा मनवा दिया है |

कैसे होगा भारत बुलंद ?

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री " हेराल्ड विल्सन "का कहना था की " राजनीती में एक सप्ताह का समय ही बहुत होता है "|लेकिन आज अगर भारतीय राजनीती के वर्त्तमान परिपेक्ष में देखे तो यह कथन बिल्कुल उल्टा बैठता है |आज यूपीए -2  की सरकार बने हुए लगभग 8  महीने हो गए पर सरकार आज तक सुरसा की तरह मुंह फैलाये महंगाई को काबू करने की दिलासा  भर ही दे पा रही हैं |चुनाव के समय का नारा " यूपीए का हाथ आम आदमी के साथ " बिल्कुल फ्लॉप हो गया है| आज देश का हर आदमी बेहाल हो रहा है ,पॉकेट में जितनी ठन -ठन होती नहीं है उससे ज्यादा खाली होता जा रहा हैं |आज आदमी दाल खाने से इनकार कर रहा है| पहले जिस तरह गांव में किसी खास महोत्सव में खास तरह का पकवान बनता था लोग खाने के लिए लालायित रहते थे आज वही किस्सा दाल के साथ हो रहा हैं |अरहर की दाल की कीमत सुनने से पहले लोग आज कान बंद कर लेते है कौन सुनेगा 90 -100  रूपये किलो का भाव |आज देश की 80  प्रतिशत आबादी 20 रूपये कम पर प्रतिदिन गुजारा करते है वो तो अब दाल खाना सपना ही समझ रहे हैं |बात सिर्फ दाल की ही नहीं है हर तरफ तबाही मची हुई है कल तक दूकान पर जब हम चाय पीते थे तो अक्सर कहते थे की चीनी कम किस कारण से डाला है |आज घर में भी लोग चीनी नाममात्र का ही डालते है ,जब कोई बाहर से आता है तो यह कह कर उसे चीनी कम डालने का स्पष्टीकरण करते है की उनको सुगर बीमारी का खतरा है इसलिए चीनी कम ही डालते है |आज लोग इस महंगाई से बचने के लिए बीमारी तक का सहारा ले रहे हैं |आज अगर आपके पास 100  रूपये है और आप सब्जी खरीदने जाते है तो एक अति छोटी झोली लेकर ही जाना पड़ता  है ,पर वह भी आधा खाली ही रहता है |आज पार्क ,चौराहे, गली ,मोहल्ले में शर्मा जी वर्मा जी से चर्चा करते है की आज तो जीना मुश्किल है ,रमा आंटी गीता आंटी से बात करते नज़र आ जाती है आज तो दाल बनी ही नहीं ,रसोई पता नहीं कैसे चलेगी |लगता है एक गृह युद्ध छिड़ने वाला है इसको लेकर |कहा जाता है की भारत कुछ सालो में विकसित देश बनने वाला है |मैं तो समझ ही नहीं पा रहा हूँ की जिस देश में खाने पर संकट आ गया है वो विकसित कैसे बनेगा |सरकार को सोचना चाहए  की कैसे इसको नियंत्रित किया जाए ताकि सही मायनो मैं हम विकसित बन सकें |एक बात और जबकि शरद पवार जो इस विषय वाली मंत्रालय को संभाल रहे है 2004  से ही ,जो खुद एक जमीन से जुड़े नेता है ,उनको गरीब जनता के विषय मैं जानकारी भी है इसको नियंत्रित किस कारण से नहीं कर पा रहे है |वैसे चाहे यह सरकार पूर्ववर्ती बीजेपी गठबंधन की सरकार को इस मुद्दे पर कोसे लेकिन इतना तो तय है यह सरकार बिल्कुल फ्लॉप हो रही है |सरकार ने जो वादे किये थे चुनाव के समय उसको भूलते जाने देश के लिए खतरनाक हो सकता है |एक बात मैं अंत में कहना चाहूँगा की " वायदे और सपने बहुत मीठे होते है ,लेकिन पूरे नहीं होने पर जहर का भी काम करते है " |कहीं सरकार ने जो सपने दिखाई है आम आदमी वाली अपनी छवि की कहीं वो धूमिल न हो जाये और देश में एक वीभत्स माहौल बन जाए |अगर आम आदमी ही सुखी नहीं होगा तो भारत कैसे बुलंद होगा |सरकार को गंभीर चिंतन और इस महंगाई पर काबू करने के तरीके को खोजना होगा |

Jan 12, 2010

कैसे होगा बिना रुपल्ली हॉकी में जय हो ?

भारतीय हॉकी  में कुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है ऐसी खबरे रोज ही आ रही है |आखिर क्या हो गया अचानक की जो टीम कल तक फरवरी में होने जा रहे वर्ल्ड कप की तय्यारी में लगी थी , आज वो इस तरह का रुख अपनाये हुए है |कारणों के तह में जाए तो इसका सबसे बड़ा कारण खिलाडियो को मिलने वाले पारिश्रमिक से है |बात भी सही है कब तक कोई बिना पैसो के काम चलाएगा |भारत जैसे देश में जहाँ कभी यह खेल मुख्य रूप से मौजूद था शीर्ष पर ?आज भी चाहे जो भी हो बैट-बॉल चाहे कितना भी प्रगति कर ले पर देश का राष्ट्रीय खेल नहीं हो सकता ,वहां चाहे नाम का ही हो लेकिन रहेगा तो हॉकी ही |मुझे लगता है शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहाँ राष्ट्रीय खेल की स्थिति इतनी नाजुक हो, इसलिए तो भारत को अदभूत देश की संज्ञा दी गयी है |खैर अब कुछ तमाशे की भी बात हो जाये तो मतलब कुछ निकले |खबर आई की पुणे में भारतीय हॉकी
के खिलाडियो ने प्रशिक्षण शिविर में भाग लेने से मना कर दिया है और कारण धन को बताया गया है |एक बात तो सही है भारत में एक तरफ जहाँ क्रिकेट में धन टनन हो रहा है तो वहीं हॉकी में ईश्वर के नाम पे कुछ दे -दे बाबा वाली स्थिति है |क्रिकेट खिलाडी जहाँ इनकम टैक्स देने में देश में अपना एक स्थान बनाते है वहीं हॉकी के खिलाडी तो सपने में भी इसके बारे में कभी नहीं सोचते है |शायद ऐसी स्थिति इसलिए है की भारतीय हॉकी टीम ने अब तक कुल आठ ओलंपिक गोल्ड मेडल जीते है ,एक वर्ल्ड कप में भी गोल्ड जीता है टीम ने एशियन खेल में भी दो गोल्ड जीता है |देश में जहाँ स्थिति यह है वही क्रिकेट टीम ने अभी तक सिर्फ एक १९८३ का वर्ल्ड कप और एक २०-२० वर्ल्ड कप ही जीता है बड़े लेवल पर,पर शान में दोनों का जमीं आसमान का अंतर है |अपने देश में ऐसा ही होते आया है किसी को अर्श पे तो किसी को रसातल में जगह दी जाती रही है |मेरे हिसाब से जो टीम के मेम्बरों ने किया है वो बिल्कुल सही है |कोई कब तक झूठ के नाम को लेकर चलते रहे ,आखिर  कोई बिना उचित पारिश्रमिक के कितने दिन कोई  खट सकता है |टीम के खिलाडियों का कहना है जो सहारा का  लोगो क्रिकेट टीम के खिलाडी लगाते है वही तो हम भी धारण करते है, लेकिन जिस गाड़ी से क्रिकेट टीम के खिलाडी सफ़र करते है हम तो उसे दूर से देख के ही आहें भरते है |वाह!रे देश एक ही चीज़ के लिए अलग अलग दाम | हॉकी टीम के खिलाडी अगर कोई टूर्नामेंट जीत भी जाए तो उनको थोडा कुछ मिल जाता है ,वो भी एक इंतिजार के बाद समय पर तो कुछ मिलता ही नहीं है |लेकिन अगर कोई मैच हार जाते हैं तो कुछ से भी हाथ धोना पड़ता है |एक बात समझ से बाहर है की आखिर ऐसी दोतरफा नीति को लेकर हॉकी को बर्बाद किस लिए किया जा रहा है |टीम के खिलाडियों से कहा जाता है की देश के नाम को उपर उठाओ तो मैं पूछना चाह रहा हूँ की कोई क्या पेट में कपडा ठूस कर देश के नाम को आगे बढा सकता है क्या ?एक बात इसपर और क्या अगर हम पूरी संतुष्टि के साथ कोई काम नहीं करे तो वो कभी अच्छा हो सकता है क्या ?इस प्रश्न का जबाब तो हम सभी के पास शायद यही होगा की नहीं तो फिर टीम के साथ ऐसा किस लिए हो रहा है |हम चाहे कितना भी कुछ सोचे लेकिन अगर काम करने वाले संतुष्ट नहीं होंगे तो कोई भी काम नहीं होगा |हॉकी टीम के साथ भी ऐसा ही कुछ लागु होता है |लगातार अगर हम जीत के बारे में ही सोचेंगे और उसके बेसिक बातो पर ही ध्यान नहीं देंगे तो वो पूरा कैसे होगा ?जीत के लिए तो सभी सोचते है लेकिन इसके लिए भी कुछ करना होगा यह किस कारण से नहीं सोच पाते है |हम सिर्फ रसगुल्ले ही खाना चाहते है लेकिन उसके लिए अच्छी सामग्री अगर हम नहीं जुटा पाते है तो यह कल्पना बेकार है |हॉकी को अगर जीवित रखना है तो खिलाडियों का भी ध्यान रखना ही होगा ,अगर खिलाडी ही खुश  नहीं  रहेंगे तो कुछ भी अच्छा होना मुश्किल है |तो अगर हमे भारतीय  हॉकी को फिर से वर्ल्ड की बेस्ट टीम बनाना है तो खिलाडियों को भी गोल्ड तो देना ही होगा |आखिर हिंदी सिनेमा में एक गाना भी इसकी को लेकर है की "बाप बड़ा न भैया ,सबसे बड़ा रुपैया " ,लेकिन यहाँ तो रुपैया ही नहीं है तो होगा कैसे |तो भारतीय हॉकी के प्रशासको को बयानबाजी छोड़ इसकेलिए सोचना चाहए ताकि फिर से इस खेल में सोने का तमगा देश में आ सके |

Jan 9, 2010

नितिन गडकरी के नए संकेत

नितिन गडकरी ने बीजेपी के प्रमुख का पदभार सँभालते ही कुछ अलग तरह के संदेश देने शुरू कर दिए है नितिन गडकरी को जमीन से जुडा हुआ नेता माना जाता है ,उन्हें काम करने वाले नेता के रूप में एक अलग पहचान मिली हुई है कल तक उन्हें सिर्फ़ महाराष्ट्र तक ही सीमित नेता माना जाता था ,लेकिन आज गडकरी देश के प्रमुख पार्टी भाजपा के मुखिया है बहुत लोगो को ताजुब भी हुआ जब नितिन की ताजपोशी की खबरें मीडिया में आनी शुरू हुई ,लेकिन किसी को भी कुछ भी हो लेकिन गडकरी तो दिल्ली पहुँच ही गए गडकरी की माने तो इसके पहले उन्होंने इस नए शहर में रात भी नहीं बितायी थी अब तो ज्यादातर समय बिताना होगा खैर इस चीज़ को जाने दीजिये नितिन ने पार्टी में मुख्य पद सँभालते ही यह कह दिया है की अब ड्राईंग रूम की राजनीती नहीं चलेगी और नेताओ को जमीन से जुड़ना ही होगा नितिन ने भागवत की बात को दोहराते हुए कहा है की जिस भवन की नीव मजबूत होती है वही भवन असल में मजबूत होता है ,अच्छी कार्यकुशलता भी उस भवन को नहीं बचा पाती जिसकी नीव कमजोर होती है गडकरी के ये बात उनलोगों के लिए एक चुनौती हो सकती है जो सिर्फ़ दिल्ली में बैठ कर राजनीती करते है लगातार पार्टी की हार के कारण को भी ड्राईंग रूम पोलिटिक्स ही बताया जा रहा है गडकरी के ये संकेत एक तरह से बहुत ही अच्छे है इससे पार्टी में सही मायनो में काम करने वाले लोग तो मिलेंगे ही देश को भी अच्छे नेता मिलेंगे आज लोग गावं में जाना नहीं चाह रहे है सिर्फ़ चुनाव के समय ही उनको इनकी याद आती है गडकरी के बात में दम तो है सही में आज योजनाये तो बनती है मगर वो फेल हो जाती है सबसे बड़ा इसका कारण है हम उस नजरिये से योजना बना ही नहीं पाते है जिसकी गावं में वहां के लोगो को जरूरत है गडकरी ने इस बात के एक संकेत दिए है की जो लोग जमीन से जुड़े है उनको ज्यादा मौका मिलेगा आज जिस तरह से राजनीती में जमीन से जुड़े लोगो की उपेक्षा हो रही है उनके लिए जरूर यह एक अच्छी ख़बर है नितिन ने यह वादा किया है की पार्टी में वे ऐसे लोगो को भर देंगे जो सही में काम कर रहे है उनको तरहीज भी दी जाएगी नितिन ने भी एक आम से इतने दूर तक का सफर तय किया है ,तो इतना तो तय है की अब पार्टी में आम को जगह जरूर मिलेगी नितिन ने राहुल की वर्तमान राजनीती को भी सराहा है जो इस बात का संकेत है की वो भी कुछ इसी तरह के व्यक्तियो को पसंद करते है जो भारत को असल में समझता हो या इसकी कोशिश में लगा हो

Jan 7, 2010

अमर का एलान

अमर सिंह ने समाजवादी पार्टी के प्राथमिक सदस्य बने रहने के अलावा सभी पदों से इस्तीफा दे दिया है इस इस्तीफे का कारण स्वास्थ्य को बताया है उन्होंने ,बड़ी ही अजीब बात है की जब अमर सिंह सिंगापुरमें अपना इलाज़ करवा रहे थे तब उनको अपना इस्तीफा नही दिया गया अमर सिंह को लगा की भारत जाकर कुछ और दिन पोलिटिक्स में मज़े किए जाए फिर इस्तीफा अमर सिंह को राजनीती में जोड़ -तोड़ का बादशाह माना जाता रहा है ,लेकिन इस बार वही टूट गए हैं न अजीब सी बात ?खैर जो भी हो लेकिन समाजवादी पार्टी को अलग पहचान दिलाने में अमर की भूमिका को कोई नकार नही सकता ,एकाएक देश में लोग इस पार्टी को जानने लगे तो इसका एक बड़ा कारण थे अमर सिंह अमर सिंह ने समाजवादी को पूंजीवादी भी बनाया इसमे कोई गफलत नही है ,मुलायम तो लोह्यिया के नक्से कदम पर चल रहे थे लेकिन अमर ने उन्हें बताया की देश में राजनीती का मतलब सिर्फ़ और सिर्फ़ फायदा और लगातार सुर्खियों में रहना ही है फिर क्या मुलायम को भा गई अमर की नीति और मुलायम बन गए एक अलग नेता ,देश को परिवार मानने वाला अब परिवार को ही देश मानने लगा तो क्या यह एक बदलाव नही है अमर सिंह ने इस पार्टी के लगभग सभी पुराने लोगो को पार्टी से तोड़ दिया है और अब ख़ुद भी अलग हो गए ,शायद हो सकता है अमर मुलायम से अपनी कोई दुश्मनी निकाल रहे होहो सकता है की जिस तरह से मुलायम ने अपने पुत्र अखिलेश को प्रदेश की जिम्मेदारी देने की धीरे धीरे तय्यारीसुर कर दी है उससे भी अमर को लगा होगा की हो सकता है की अब उनकी पूछ कम हो जाए इससे पहले ही उपाय करना चाहए अमर सिंह को राजनीती में एक अलग पहचान मिली है जोड़ तोड़ को लेकर ,चाहे पार्टी में पैसा जुटाना हो या और कुछ अमर को इसमे महारत हासिल है आख़िर लोकसभा चुनाव के बाद ही लगातार अमर को अपने पार्टी में बनाये रखने के लिए मुलायम ने जो भी त्याग किया हो आज ख़ुद अमर ने ही उनसे किनारा कर लिया है अब तो आने वाला समय ही बताएगा की क्या होगा इस पार्टी का अमर ने कल्याण को भी पार्टी से जोड़ कर एक अलग जो अपनी पहचान दी थी क्या कोई और इस पार्टी में वो कर सकेगा इसको लेकर ख़ुद मुलायम भी परेशां है

Jan 5, 2010

ज्योतिष महाराजों की राजनीती में पूछ

आज बहुत दिनों बाद लिख रहा हूँ झारखण्ड में सब कुछ संपन्न हो चुका है ,गुरूजी ने राज्यके नए मुख्यमंत्री के रूप में ३० तारीख को रांची के चर्चित मोराबादी के मैदान पर सुबह के १०:३० बजे शपथ ले लिया है बड़ी ही गौर करने वाली बात है अभी से ही राज्य को चलने के लिए ज्योतिषोंका सहारा लिया जाने लगा है ,गुरूजी को पहले दिन के २:०० बजे शपथ लेना था लेकिन ज्योतिष लोगो के अनुसार समय सुबह वाला ज्यादा शुभ था तो गुरूजी ने आनन् फानन में नया निर्णय ले लिया खैर जो भी है आजकल राजनीती में ज्योतिषों की पुच बढ़ गई है ,हर दल चुनाव के पहले ज्योतिषों से पूछता है की कौन सा प्रत्यासी जित सकता है उसी अनुसार टिकेट दिया जाता है ,बात यहीं ख़त्म नही हो जाती है उसके बाद यह भी पुचा जाता है की प्रचार के लिए किसे भेजा जाए जो शुभ हो और जीत पक्की करे यह तो बात हुई शुरुआत की बाद में चुनाव के दिन भी बूथ पर उन्ही लोगो को बैठाया जाता है जो शुभ हो असली बात तो इसके बाद शुरू होती हाउ जब मतदान हो जाता है ज्योतिषों की पूछ में जबरदस्त उछाल आता है है वो तो मुख्य ही भूमिका में आ जाते है शुरू होता है गहन सलाह का काम ,कौन सा दल सबसे बड़ा होगा क्या होगा ?कोण सा नेता जीतनेवाला है ?क्या किसी को बहुमत आएगा की नहीं ?किस पार्टी के किसके साथ जाने के उम्मीद है ?इन बातो की जानकारी लेकर परिणाम से पहले ही सुरु हो जाती है सत्ता की दौडधूप ,सुरु हो जाता है भागमभाग परिणाम के दिनों के बाद तो और भी महत्व बढ़ जाता है ज्योतिष महाराजो का ?हर दल जो कुछ न कुछ सीट जीत कर आया है वह यह पूछने लगता है की किस पार्टी के साथ जाया जाए जो अच्छा होगा इसके आधार पर सरकार बनती है सिर्फ़ इतना तक ही सीमित नही होता है ,हर किसी के शपथ ग्रहण समारोह भी इनके इशारों पर ही तय होता है पदभार ग्रहण करने के बाद भी अपने नए आवास ,कार्यालय हर जगह पर ज्योतिषों की शलाह ली जाती है किस तरफ़ टेबल लगाया जाए ,कुर्सी की दिशा क्या होनी चाहए सब कुछ इनकी सलाह पर ही होती है अगर बात यहीं ख़त्म हो जाती तो कुछ बात नही था आख़िर इतने मुश्किलों के बाद जो सत्ता मिली है तो इतना करना लाजिमी है अब इतने के बाद इस बात को लेकर ज्योतिष महाराजो की सत्कार की जाती है की सरकार कितने दिनों तक चलेगी ,किस कारण से सरकार गिरेगी ,कौन समर्थन वापस लेगा अगर सरकार गिरती है तो इसे उठाया कैसे जाएगा किसका सहारा लिया जाए जो यह फिर से आ जाए आदि चीजों पर बात की जाती है अगर देखा जाए जो आज के इस राजनीती में किसी का कोई महत्त्व नही है अगर महत्त्व है तो सिर्फ़ ज्योतिष महाराजो की ,सत्ता की चाभी असल में उनके हाथ में ही है क्या मैं कुछ ग़लत कह रहा हूँ ?आपकी क्या सोच है ?

Jan 4, 2010

जय हो ज्योतिष महाराज

बहुत दिनों बाद आज फिर से इस ब्लॉग पर अपनी भावना व्यक्त कर रहा हूँ सोच रहा हूँ क्या लिखूं पर जब शुरुआत कर चूका हूँ तो अंत भी तो करना ही होगा बहुत लोग कहते हैं की पता नही आप इतना कुछ कैसे कह लेते हैं ,चलिए आज कुछ मिट्ठी बात ही करता हूँ मैं कभी सोचता हूँ तो लगता है की दुनिया बड़ी ही अजीब है ,पर फिर एक मिनट ठहरकर सोचता हूँ तो लगता है अपनी जगह ठीक ही है यह दुनिया आपको भी लगता होगा की क्या अजीब सी बात कर रहा है आज कुछ अता पता नही उलटी सीधी बकवास लेकिन आज मैं थोड़ा अलग लिख रहा हूँ कुछ अलग चीज़ ,शायद आपको जानकारी होगी आजकल देश दुनिया में एक नया प्रचलन चला है ज्योतिष सलाह की हर काम से पहले देखिये आज किसी को नौकरी नही मिली ,शादी नही हुई बस चले गए ज्योतिष के पास बाबा जो कहें उसी आधार पर आगे काम करना है और अगर किसी तरह बाबा की बात सही हो गई तो फिर कहना ही क्या वो तो घर के सदस्य ही हो गए ?चाहे कुछ भी हो जुकाम ,सरदर्द ,पेट ख़राब कहीं नही जाना है सिर्फ़ बाबा के पास ही इसका कुछ हो सकता है सही में न आज इन बाबाओ की पूछ में शेयर बाज़ार से भी ज्यादा उछाल आ रहा है बच्चे का नाम क्या रखना है ,घर में किस तरह की पेंटिंग करवानी है ,सामान किस दिशा में रखना है सारा कुछ यही तय करते है अगर बात यहीं ख़त्म हो जाए तो कुछ राहत है पर आज तो यह बहुत चरम पर है किन लोगो को दोस्त बनाना है ?किस्से दुश्मनी करनी है? सारा कुछ निर्णय वही कर रहे है आजकल ज्योतिष महाराज ही आज यह भी तय करते है की बच्चा किस महीने जन्म लेना चाहए की वो अच्छा होगा ज्यादा तो मैं इनका गुणगान नही करना चाह रहा हूँ पर सारे लोगो को एक सलाह दे रहा हूँ की इस काम में बहुत फायदा है साइड से यह किया जा सकता है वैसे आपका क्या ख्याल है इस विषय पर जरूर बतायिएगा ?