Feb 4, 2012

क्या आम युवाओं का कोई मोल नहीं?

मनमोहन जी ने बहुत दिनों के बाद देश के युवाओं से कुछ अपील की है. उन्होंने युवाओं को देश की राजनीति से जुड़ने को कहा है. बकौल मनमोहन जी युवा ही राजनीति की दशा और दिशा बदल सकते हैं . सिर्फ मनमोहन जी ही नहीं देश के कई और लोग भी इस तरह की बातें कहते रहे हैं . गौर करने की बात है की उनकी कथनी और करनी में क्या किसी तरह की समानता है या फिर 'हाथी के दांत खाने के कुछ और, और दिखाने के कुछ और' वाली ही बात है. आपको लगता होगा की मैं अपने मुद्दे से भटक रहा हूँ, तो चलिए सीधे अपनी बात ही कहता हूँ. सच कहूँ तो मुझे मनमोहन जी की बात से बहुत निराशा हुई है, अब आप कहेंगे जब उन्होंने इतनी अच्छी बात कही तो फिर निराशा काहे की. निराशा इसलिए होती है की इन बातों को सुनते-सुनते तंग आ गया हूँ. आज यह तो कल कोई और इसी तरह की बात करता है लेकिन युवाओं को राजनीति में सही तरीके से प्रवेश कराने की बात कोई नहीं करता? ऐसे समय में सब के मुंह पर ताला लग जाता है.सिर्फ बात तक ही सीमित रह जाते हैं ये लोग जब बात कुछ करने की आती है तो गिरगिट भी रंग बदलने में इनके सामने शर्मा जाता है. अब आप ही कहिये की इस बात से निराशा नहीं होगी तो क्या होगी? युवाओं के नाम पर देश के कुछ घरानों के लोग ही नजर आते हैं, सिर्फ उनमे ही काबिलियत नजर आती है. आम युवा तो सब कुछ होते हुए भी मेहनत का फल नहीं खा पाता है. आखिर वह राजनीति में आकर करे तो करे क्या? जब मेहनत की बारी आती है तो उनको याद किया जाता है और जब फल खाने की बारी आती है तो युवराजों की राह देखी जाती है. वे आयेंगे और मीठे फल का रसास्वादन करेंगे. मकान बनाने में सारी मेहनत तो आम युवा ही करते हैं लेकिन उसका मालिकाना हक़ उनको नहीं मिलता है . चांदी की चम्मच लेकर पैदा होने वाली बात यहाँ चरितार्थ होने लगती है. मनमोहन जी या कोई और जी एक युवा होने के नाते यह कहना चाहूँगा की पहले सचमुच में कुछ करने की सोचिए तब किसी तरह की अपील किया कीजिए. दुःख होता है जब पता चलता है की फलां ने जी तोड़ मेहनत की लेकिन जब बारी आई तो किसी और का नाम सामने आ गया. ज्यादा लिखना तो नहीं चाहता हूँ सिर्फ एक बात युवाओं से कहना चाहता हूँ की क्या हम आम युवाओं को ऐसे ही उपयोग किया जाता रहेगा. आप अपने विचारों को जरुर बताएं.