Sep 27, 2011

फिर घिरे राहुल?

आज बहुत दिनों बाद कुछ लिखने बैठा हूँ. बहुत दिनों से लेखनी खामोश थी कुछ कारण थे साथ ही कुछ मजबूरी भी थी. खैर जो भी हो अगर इन्सान की जिंदगी में मजबूरी न हो तो फिर जीवन ही क्या? चलिए अगर मजबूरी की बात करें तो आजकल राहुल गाँधी भी खासे मजबूर हैं, करें तो करें क्या लगातार पार्टी और सरकार की किरकिरी हो रही है जिस मुद्दे पैर बात होती है वहीँ हर कोई नीचा दिखाने की कोशिश करता है. आप ही बतायिए एक अकेला आदमी क्या करे और क्या न करे और उसमे भी अगर ऐसे रणनीतिकार हों जो अच्छा तो कर नहीं सकते और बुरे वक्त में साथ भी नहीं दे सकते तो क्या किया जाये? बेचारे युवराज ने बड़ी कोशिश की थी तब जाकर पार्टी उत्तरप्रदेश में कुछ हद तक जगी थी लेकिन अपनों ने वहां भी सब गुड का गोबर कर दिया. आजकल कश्मीर में भाषण दे रहें हैं और युवाओं से अपील कर रहे हैं की राजनीती में आईये आपको हर कुछ मिलेगा. चलिए जो कम परनाना, नानी और पापा न कर सके वो सायद ये कर दें. पैर संभावना अति कमजोर है. इधर जो कुछ भी था अन्ना ने बिगड़ दिया और अब घोटाला जान मर रहा है कल तक गठबंधन के लोग लपेटे में थे आज तो अपने भी आने वाले हैं. अब बाबा को कुछ सूझ नहीं रहा है की क्या करें ,यूथ ब्रिगेड भी सिर्फ दिखावे को रह गयी है, सही कहते हैं बुरे वक्त में हर कोई साथ छोड़ देता है वही हो रहा है. और तो और अब नरेन्द्र मोदी भी एक चुनौती बन गएँ है आखिर करें तो करें क्या? ऊपर  से जनता का अलग दबाव हर तरफ समस्या ही समस्या है जनाब हल कोई नहीं? वैसे यह तो है की युवराज कभी निराश नहीं होते अरे आज नहीं तो कल तो दिन सही हो ही जायेगा. अब तो आने वाले समय का इन्तजार है. जो भी हो बाबा की अभी तो हवा हो गयी है. वक्त का इन्तजार आप भी कीजिये और हम भी. हाँ अब मैं आपको यहाँ मिला करूँगा पुनः वापसी हो चुकी है.