Aug 14, 2010

किस कारण बदल गई छात्र राजनीत ?

बात हो रही है छात्र राजनीत की | विषय बड़ा गंभीर है, बात भी गंभीरता वाली होनी चाहिए| यह एक ऐसा विषय है जो देश की दशा और दिशा दोनों बड़ा सकता है | आज देश में हर जगह एक अजीब सी स्थिति हो गयी है | और जहाँ तक बात है छात्र राजनीती का तो इसमें बदलाव जरूर आया है | धनबल तो खैर तुक्छ चीज़ हो जाती है यहाँ बाहुबल भी छोटा पड़ जाता है, और इन सबके उपर हावी हो जाता है वह है इसके साथ भी राजनीती | अगर राजनीत हो और वह सही दिशा में चले तो देश और समाज का हित हो सकता है लेकिन वही जब पथ से भटक जाए तो अहित होने से कोई रोक नहीं सकता | और आज ऐसा ही कुछ हो रहा है | आज अगर देखा जाए तो देश में एक अच्छे छात्र नेता की कमी सी लगती है, लगता है समाज में कोई है ही नहीं | और जो महानगरों में कुछ हैं भी तो उनसे आम लोग जुड़ नहीं पाते हैं | मतलब स्पष्ट है समस्या बरकरार है | जहाँ तक बात है डूसू चुनाव की यहाँ लोग चुनाव तो जीत जाते हैं लेकिन आगे सफलता की बात कम ही रह पाती है | स्पष्ट है यहाँ के चुनाव में एक खास जात और गुट का ही दबदबा रह रहा है पिछले कुछ चुनावों से | जमकर माहौल बनाया जाता है | लेकिन यह सब यहीं तक सिमट कर रह जाता है | देश को इनसे कोई लेना देना नहीं रहता | आप ही देखिये की कितने नेतओं ने बड़ा धमाल किया है | वो दिल्ली में बैठ कर राजनीत को चलाने की बात जरूर करते हैं लेकिन ज्यादातर मोर्चे पर विफल ही हैं | और एक बात तय है की आज भी चाहे जो दावा और बात की जाए लेकिन यहाँ के कम ही लोग चुनाव को देश से जोड़कर देखतें हैं, निजी हित सर्वोपरी होता है | आज देश को एक अदद जयप्रकाश नारायण जैसे लीडर की जरूरत है | लेकिन जो अभाव है वो स्पष्ट देखा जा सकता है | अगर सही मायनों में कोई अच्छा छात्र दिल्ल्ली में छात्र नेता रहता, जिसकी रूचि गावं और शहर दोनों में रहती तो जेपी की तरह जनता और लोग उनसे जुड़ते | लेकिन एक शुन्यता है जो निकट भविष्य में पूरा होते नहीं दिखता | अब राजनीत में आखाड़े का प्रवेश हो गया है , जहाँ लोग पथ्कानी तो दे सकते हैं लेकिन किसी का दर्द नहीं समझ सकते | भविष्य की जो बात करता है वह ज्यादातर डरा हुआ इंसान होता है | जहाँ तक बात छात्र राजनीती के भाविस्ये की है तो एक बात नज़र आती है की जब तक सही में एक क्रांति नहीं होगी लोगों में विश्वास नहीं आएगा | सही में देखें तो एक क्रांति की सख्त जरूरत है जो देश को नया जीवन दे सके | और अगर एक सही छात्र जीत कर आता है जिसने गरीबों, बेकसूरों की सच्ची दुनिया देखी है तो तो इससे देह का कल्याण हो सकता है | जहाँ तक इसमें कम होते रुझान की बात है तो कोई गलत बात नहीं है | सही में छात्रों का इससे लगाव कम हो रहा है | वो अपने को इससे जुड़ा हुआ महसूस नहीं कर पा रहें है | जो सबसे बड़ी बाधा है | सही मायनों में इसका दमन कोई और नहीं बल्कि छात्र ही कर रहे हैं |