Nov 11, 2009

भटकाव

जिंदगी में बहुत चीज़ हमें ऐसे भी समय में सीखने को मिल जाती है जिसकी हम कल्पना भी नही करते है .मैंने भी अपने अ़ब तक के अल्प जीवन में बहुत कुछ इसी तरह से सिखा है .ऐसे तो मैं किसी बड़े शहर से नहींआता हूँ और कभी कभी लगता भी है की काश मैं भी किसी बड़े शहर से आता लेकिन जिस तरह पुरबा हवा का झोखा बस छु कर निकल जाता है उसी तरह ये ख्याल भी जल्द ही छूमंतर हो जाता है .एक तरह से कहूँ तो मैं अपने आपको धन्य मानता हूँ की मुझे ग्रामीण और शहरी दोनो जीवन जीने का मौका मिला है.अब मैं जो कुछ भी कहना चाहता हूँ वो ये क्या की अगर आपने अपना कुछ समय गावं में नहीं बिताया है तो आप भारत देश के विषय में ज्यादा नहीं कह सकते है जैसे की मैंने बहुत सारे लिखने वालो को पढ़ा तो मुझे बहुत सी बातें अजीब सी लगी लेकिन एक पल ही ये समझते देर नहीं लगी की इन्होने तप सिर्फ़ औरो से जो सुना है वही लिखा है वास्तविकता तो कोसो दूर लगती है इनके लेखनी से .मैं जो मुझे लग रहा है वो ये क्या की अपने मुद्दे से भटक रहा हूँ ,मैंने जो शुरुआत की थी वो कुछ और थी पर क्या करू भटक जाता हूँ ऐसी दुनिया में आकर .

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