Feb 7, 2010

क्या हो गया अमर के साथ ?

राजनीती ने कब कौन सी चीज़ महंगी पड़ जाती हैं ये किसी को पता नहीं रहता हैं | अब देख लीजिये जो अमर सिंह कल तक समाजवादी पार्टी के सबसे लोकप्रिय लोगों में से हुआ करते थे आज उस पार्टी ने उनको अपना रास्ता तलाश करने को कह दिया है |अमर को शायद पता नहीं था की उनकी इस नए दावं से मुलायम एक बार फिर पिघल कर उनको पार्टी में आने को कहेंगे | लेकिन अमर के तरह मुलायम ने भी यूटर्न ले लिया और उस काम को किया जो उन्हें बहुत ही पहले करना चाहिए था | अमर जनाब तो देश के अन्य राजनीतिक दलों की तरफ भी गए लेकिन सभी ने अमर को अपना दुखड़ा सुना दिया और अमर के लिए किसी भी जगह के लिए सॉरी कह दिया | अमर सिंह को कहाँ पता था की कल तक बड़े -बड़े नेताओ के लिए सीट और गद्दी पक्का करवाना किसी कम का नहीं रहता है अगर एक बार दिन ख़राब हो जाए | अमर ने मुलायम को एक जमीनी नेता से आसमानी नेता बना दिया पर यह भूल गए की जमीनी आखिर में जमीनी ही रहता है | कुछ दिनों के लिए वह जरूर हवा में रहता है लेकिन वापस एक न एक दिन उसे आना ही पड़ता है | अमर सिंह जी ने सोचा की इस बार मुलायम सिंह को कुछ इस प्रकार कमजोर कर दिया जाए की वो किसी काबिल न रहें | अमर ने मुलायम के घर को ही तोड़ने की कोशिश की जो सफल नहीं हो सका | अब अमर के साथ दिक्कत यह है की उनको सपा ने राज्यसभा से इस्तीफा देने को कहा है अमर भी इस्तीफा देने पे तुले थे लेकिन जब उन्होंने देखा की ऐसा करके वो किसी काम के नहीं रहेंगे तो उन्होंने अपना विचार बदल दिया | अब अमर को तो पता ही है की किसी भी काम को करवाने के लिए पद का होना कितना जरूरी होता है | लेकिन अब जैसे लगता है की अमर की राजनीत की गाड़ी पटरी पर से उतर रही है | अमर के साथ दिक्कत इस बात की भी है की उनका जनता के बीच कोई पकड़ नहीं है | अमर की सपा को बर्बाद करने की कोशिशो को अब विराम लगता हुआ दिखाई देता है | शायद अब अमर को भी समझ आ गया होगा की राजनीती में एक बयान का क्या महत्व होता है | अब लगता है की राजनीती में अमर कहीं सही में अब अमर ही न हो जाएँ |सपा में रह कर अमर ने राजनीत में जो नाम कमाया लगता है वह अब गुमनाम हो रह है | वैसे भी डूबते सूरज को कोई सलाम नहीं करता और अमर के राजनीती में अब सूरज थोडा बहुत डूब चूका है | इस बात को अमर भी जानते हैं और अभी इसको समझ भी रहे हैं |

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