May 23, 2012

राजनीत या अर्थनीत ?

आजकल देश में राजनीति को लेकर चर्चा गरम है आप कहेंगे की यह तो सदा से ही रहता  है. लेकिन यहाँ जो बाद बदली है वह यह क्या की आजकल राजनीति पहले जैसी  नहीं रह गयी है. बहुत से लोग इसके पक्ष में तो बहुत  विपक्ष में अपनी दलील देते हैं. एक बात तो बड़ी गौर करने वाली है वह यह की  राजनीति और धन के बीच एक गजब की जुगलबंदी हो चूका है . बहुत से लोग तो कहते हैं की बिना धन के राजनीत चल ही नहीं सकती.  चुनाव के  समय  इसका नजारा बड़ा ही शानदार नजर आता है.  धन का क्या  महत्व है इसका सबसे अच्छा दीदार चुनाव के समय ही दिखता है . बड़े चुनाव ही नहीं छोटे चुनावों में भी  इसका खूब जोर चलता है. अभी बिहार  में नगरपालिका का चुनाव हुआ है. मैं इस चुनाव में कई चीजों का  दर्शक रहा.  इन चुनावों को देखने के बाद मैंने  जाना की चुनाव का मतलब ही है धनबल. इस अर्थ में मैंने एक चीज़ सीखी की अब राजनीति सिर्फ राजनीति ही नहीं रह गई है इसमें बहुत तरह की अनीति का भी समावेश  हो गया है. राजनीति की जगह अर्थनीति ने ले ली है.  बिहार चुनाव में मैंने देखा की एक छोटे से वार्ड के चुनाव में  भी लाखों का खर्चा आने लगा है . मतदाता अब इस मामले में ज्यादा समझदार हो गया है. वह अब हर किसी से पैसा लेने लगा है  . चुनाव में तो उसकी  किस्मत ही खुल जाती है , उसके लिए धन कमाने का यह एक बेहतरीन  होता है जिसे वह जाने देना नहीं चाहता है . अब आप ही कहें, कैसे न कहा जाये इस राजनीत को  अर्थनीत. अब बाहुबल का स्थान धनबल ने ले लिया है . पैसे वाले चुनाव में सफल हो जाएँ को किसी को चौंकना नहीं चाहिए . हर स्तर पर धन का जोर है. इस चुनाव में कई लोगों ने मुझसे कहा दादा पैसा जब मिल रहा है तो हर किसी से क्यूँ ने लिया जाये . मुझे बड़ी ही तकलीफ हुई और  शर्म भी आई की क्या ऐसे ही हमारा देश प्रगति करेगा. कई लोगों को तो मैंने समझाया  और कई को समझाने के प्रयास में हूँ . अब देखता हूँ कितना सफल हो पता हूँ  लेकिन एक बात   जो मेरे जेहन से निकलती नहीं है वह यह की क्या राजनीति ऐसे जगह आ पहुंची है . इस विषय  पर  हम सभी को मिलकर काम  करना चाहिए. बस आज इतना ही अगली बार फिर किसी मुद्दे को लेकर हाजिर होऊंगा.

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