Feb 6, 2013

बीजेपी की नरेन्द्र-नाथ नीति?

भारत की राजनीति वर्तमान समय में एक उथलपुथल भरे दौर से गुजर रही है। सभी राजनीतिक पार्टियाँ मिशन 2014 पर काम कर रही है। चुनौती हर दल में है, लेकिन बीजेपी को छोड़कर ज्यादातर दलों में नेतृत्व करने वाले का नाम स्पष्ट है। बीजेपी ही वह दल है जिसमे लगातार मंथन जारी है। अब सवाल है की आखिर भगवा ध्वज को लेकर पथ संचलन की बागडोर कौन संभालेगा। अभी इसपर कुम्भ में मंथन जारी है। लेकिन मेरे हिसाब से बीजेपी ने भी स्पष्ट तौर पर संकेत दे दिया है। पहले राजनाथ की ताजपोशी फिर मोदी राग यह लक्ष्य की तैयारी नहीं तो क्या है? कमल खिलाने को नरेन्द्र-नाथ की जोड़ी को एक तरह से मैदान में उतार दिया गया है। दोनों को उनके कार्य पर भी लगा दिया गया है। नरेन्द्र युवा भारत और विकास पर ध्यान केन्द्रित कर रहे हैं तो राजनाथ हिंदुत्व को लेकर चलने की बात कर रहे हैं। एक तरह से ड्राइंग रूम राजनीति करने वालों को शांत रह कर मामला देखने की सलाह दे दी गयी है। नरेन्द्र और नाथ की जोड़ी यूँ ही नहीं बनायीं गयी है इसके पीछे भी कारण रहा है। बीजेपी को दिशानिर्देश देने वाले संघ की मंशा रहती है की उसकी पकड़ हमेशा बनी रही और इस दिशा में इससे फिट जोड़ी शायद वर्तमान में नहीं हो सकती थी। गौर करें तो इस जोड़ी की शुरुआत गुजरात विधानसभा चुनाव के समय ही हो गयी थी। नरेन्द्र के स्वामी विवेकानंद यात्रा में नाथ मुख्य तौर से शामिल थे। चूँकि विवेकानंद का बचपन का नाम भी नरेन्द्रनाथ था तो बीजेपी को भी लगा की क्यूँ न ऐसे की किसी जोड़ी की तस्दीक करायी जाये। और यह सर्वविदित है की नरेन्द्रनाथ ने अखंड भारत को विश्व में अलग पहचान दिलाई। और इस नाम को लेकर नरेन्द्र युवाओं में अपनी अलग पहचान बना चुके हैं, गुजरात में लगातार तीसरी बार सत्ता में आना इसकी सटीक पुष्टि कर देता है। और इस कारण बीजेपी और उसके सलाहकारों को लगा की जब एक नरेन्द्रनाथ इतना बड़ा काम कर सकता है तो अगर दो को मिला कर वर्तमान का नरेन्द्र-नाथ बना दिया जाये तो काम हो सकता है। इसके दो फायदे हैं एक तो युवाओं को लगेगा की उनके युवा भारत का सपना यह जोड़ी साकार कर सकती है और दूसरा की उसके वोट बैंक में भी एक सन्देश जाएगा की बीजेपी अपने पुराने वादों को भूली नहीं है। इसी आधार पर फिलहाल पार्टी ने दो मुद्दे को चुना है एक है युवा और विकास और दूसरा हिंदुत्व। पार्टी को लगता है की यही मुद्दे उसे 2014 में दिल्ली की गद्दी तक ले जाने में सक्षम हैं।इस दिशा में नरेन्द्र-नाथ को लगा भी दिया है। जहाँ नरेन्द्र युवाओं और विकास को टारगेट कर रहे हैं वहीं नाथ साधू-संतों और देशवासियों को यह भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं की आज भी उनकी पार्टी हिंदुत्व के मुद्दे पर कायम है। मैं आपको बता दूँ की इसकी झलक भी बीते दिनों देखने को मिली। नरेन्द्र ने दिल्ली के एक  कॉलेज में आयोजित सभा में इसकी एक बानगी भी दिखा दी। 6 फ़रवरी को आयोजित सभा में नरेन्द्र ने युवाओं के सामने भारत की बात बात की जो हर युवा की सोच है। नरेन्द्र एक अच्छे वक्ता तो हैं ही उन्होंने एक अच्छे प्रशासक होने की भी तस्वीर पेश कर दी है। उनके संबोधन में साफ़ तौर पर यह बात नजर आई की वो 6 करोड़ गुजरातियों की नहीं बल्कि 121 करोड़ भारतियों की चिंता करते हैं। नरेन्द्र ने युवाओं से सहयोग की भी बात भी कही तथा साफ़ कहा की अगर एक सुन्दर और विकसित भारत बनाना है तो ऐसे लोगों को लाना होगा जो कर्म में यकीन रखते हैं। साफ़ है की वो अपनी जगह बनाने की कोशिश करते दिखे लेकिन एक चतुराई से। ये तो हुई नरेन्द्र की बात अब आते हैं नाथ पर जिन्हें इस साल बीजेपी की कमान दी गयी। नाथ साधू-संतों और आम जनमानस को यह समझाने का प्रयास कर रहे हैं की बीजेपी आज भी हिंदुत्व और राम मंदिर के मुद्दे पर कायम है। वो कभी कुम्भ तो कभी कहीं किसी और नगरी में जाकर अपनी बात की पुष्टि करते फिर रहे हैं। आखिर इतना सब होने के बाद कहाँ शंका है की बीजेपी में तैयारी नहीं हो रही है। मैं कह दूँ तो अनौपचारिक तौर पर सब सेट है बस समय का इन्तजार है। यूथ+अध्यात्म+हिंदुत्व +विकास इस मुद्दे पर बीजेपी पूरी तरह से केन्द्रित हो चुकी है। आगे तो आने वाला समय इसकी पुष्टि कर ही देगा बस एक चतुर सुजान की तरह निगाहें जमाये रखने की जरुरत है।

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