Nov 18, 2013

भीड़तंत्र, वोटतंत्र, लोकतंत्र

चुनाव नजदीक आते ही रैलियों का दौर शुरू हो जाता है. कहा जाता है कि रैलियों में आयी भीड़ से संबंधित पार्टी या व्यक्ति का भविष्य पता चलता है. लेकिन यह भी है कि इन रैलियों के आधार पर ही किसी पार्टी या व्यक्ति के राजनीति के बारे में कुछ कह देना उचित नहीं होगा. कभी-कभी भीड़तंत्र वोटतंत्र में तब्दील नहीं हो पाता है. लेकिन यह लोकतंत्र है और यहाँ हर किसी को अधिकार है अपनी बात कहने का. बहुत बार देखा गया है कि किसी नेता के रैली में लोगों का हुजूम रहता है लेकिन चुनाव में उसे पराजय का सामना करना पड़ जाता है. 2004 के लोकसभा चुनाव में राजग के रैलियों में खूब लोग जुटते थे, इंडिया शाइनिंग का नारा भी खूब हवा में था लेकिन परिणाम आया बिल्कुल उल्टा. राजग को हार का सामना करना पड़ा. आजकल भी चुनावों का मौसम चल रहा है तो जाहिर है रैलियों का दौर भी चालू होना लाजिमी है. भारत कि हर छोटी बड़ी पार्टी और हर छोटा बड़ा नेता अपने तरीके से लोगों को लुभाने में लगा है. खूब प्रचार प्रसार हो रहा है. देश कि दो बड़ी पार्टियां भाजपा और कांग्रेस अपने-अपने योद्धाओं और सेनापतियों संग मैदान में आ चुके हैं. एक नमो संग मैदान में तो दूसरा युवराज को लेकर आगे बढ़ रही है. दोनों सेनापति जनता रूपी वोटर को लुभाने में लगे हैं. किसी कि सभा में लाखों कि भीड़ आ रही है तो किसी के लिए लोगों को रोकना पड़ रहा है. एक बड़े घराने का वारिस तो एक अपने दम पर अपना मुकाम बनाने वाला. अगर मीडिया कि माने को एक को लोगों को लुभाने का हर नुस्खा आता है तो एक अपने को भीड़ से जोड़ ही नहीं पाता है. लेकिन फिर वही बात उठती है कि क्या रैलियों में आने वाली भीड़ वोट में तब्दील हो जायेगी. ढेरों उद्धारण भरे पड़े हैं जब भीड़ वोट में तब्दील हो गयी है और पूरी तस्वीर ही बदल गयी. एक दौर इमरजेंसी का था जब लोग इंदिरा गांधी के खिलाफ एकजुट हुए थे, जनता पार्टी के हर नेताओं कि रैली में भीड़ उमड़ती थी. और परिणाम भी वही आया भीड़तंत्र वोटतंत्र में तब्दील हो गयी. कांग्रेस कि सरकार सत्ता से बाहर हो गयी साथ ही इंदिरा भी चुनाव हार गयीं. लोकतांत्रिक देश में यही तो होता है कि हर व्यक्ति को अपना अधिकार है और वह इसका बखूबी इस्तेमाल भी करता है. बंगाल में तीन दशकों से ज्यादा समय तक सत्ता में रहने वाले वामपंथियों को भी भीड़ के वोट में तबदीली ने हराया था. ममता दीदी के रैलियों में उमड़ती भीड़ ही बाद में वोट में तब्दील हो गयी और लोकतंत्र का एक उद्धारण पेश किया. बिहार में भी लालू और राबड़ी के शासन से जनता तंग आ गयी थी, राजग के रैली में उमड़ती भीड़ बताती थी कि कुछ परिवर्तन होगा. नीतीश और भाजपा को सुनने लोगों कि भीड़ आने लगी थी जो बाद में वोट में तब्दील हो गयी, जिसका परिणाम सबके सामने है. खैर जो भी हो लेकिन फिलहाल जो भीड़ मोदी और राहुल के सभा में आ रही है अगर वो वोट में तब्दील हो गयी तो फिर यह तय हो जाएगा कि भीड़तंत्र भी वोटतंत्र में तब्दील हो सकती है जो लोकतंत्र नाम को और मजबूत कर सकती है!

No comments: